असीरगढ़ दुर्ग किले के बारे में जानकारी । Asirgarh fort GK in hindi । (Asirgarh Fort Madhya Pradesh)
असीरगढ़ दुर्ग किले के बारे में जानकारी
- असीरगढ़ सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों में नर्मदा और ताप्ती नदियों के मध्य समुद्री सतह में लगभग 283 फीट की ऊँचाई पर असीरगढ़ का प्रसिद्ध दुर्ग है।
- कर्नल ब्लेकर ने इस किले और पहाड़ी का विवरण देते हुये कहा है 'किले के ऊपरी भाग की अधिकतम लंबाई एक हजार एक सौ गज और अधिकतम चौड़ाई 600 गज है।
- पहाड़ी की आड़ी तिरछी, ऊँची नीची, बनावट के कारण इस पर बनाई गई दीवार से घिरा कुल क्षेत्रफल 60 एकड़ से अधिक प्रतीत नहीं होता है। एक अलग थलग स्थित पहाड़ी की चोटी पर यह किला एक मुकुट की भांति है।
- इसकी दीवालें 80 से 120 ऊँची हैं। दीवालें इस प्रकार बनाई गई है कि केवल दो स्थानों को छोड़कर कहीं और से इसमें प्रवेश करना संभव नहीं है।
- किले को और अधिक सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से दीवालों को एक स्कर्ट की भांति दोहरा लहरदार घेरेनुमा बनाया गया है। केवल उन स्थानों को छोड़कर जहाँ से दुश्मन पर गोलाबारी करने के लिये तोपे लगाई जा सके, शेष सभी जगह पहाड़ी और चट्टानों को काटकर सीधी ऊँची दीवाल खड़ी की गई है।
- असीरगढ़ क़िला बुरहानपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र सतह से 250 फ़ुट की ऊँचाई पर स्थित है।
असीरगढ़ दुर्ग किले का महत्व
- सोलहवीं शती तक इस किले का बड़ा सामरिक महत्व था। यह समझा जाता है कि इस किले पर अधिकार होने पर संपूर्ण खानदेश पर अधिकार हो सकता था। ईस्वी सन् 1600 में मुगल बादशाह अकबर ने भी इस पर आक्रमण किया था। वह इस किले पर विजय प्राप्त कर इतना खुश हुआ कि उसने अपनी यात्रा और विजय का उल्लेख जर्बे असीर के रूप में बुरहानपुर की जामा मस्जिद और असीरगढ़ मस्जिद में खुदवाया। अकबर के उत्तराधिकारियों ने भी इस किले के अनेक स्थानों पर यादगार आलेख उत्कीर्ण कराये।
- यहाँ यह उल्लेखनीय है कि यह किला सदैव ही अभेद्य रहा है तथा इसे सदैव ही छल से जीता गया। अकबर ने भी यह किला छल से ही जीता था। मुगल बादशाहों के पश्चात् अपनी भूराजनैतिक स्थिति के कारण ही इसे मराठो ने अपने अधिकार में रखा। अंग्रेजों के समय तक किलों का महत्व कम होने लगा था अतएव जब यह किला उनके हाथ लगा तब उन्होंने इसे कुछ समय तक छावनी बनाकर रखा।
- प्रत्येक दुर्ग की तरह इस दुर्ग के साथ भी अनेक किंवदंतियां और कहानियां जुड़ी है। लोक विश्वास के अनुसार महाभारत का द्रोणपुत्र अश्वत्थामा यहाँ आज भी आता है क्योंकि वह अमर है। इस दुर्ग पर अपनी विजय को अमर करने के लिये अकबर ने सोने के तगमे ढलवाये जिसमें एक बाज आक्रामक मुद्रा में चित्रित था, यह चित्र बादशाह अकबर को इंगित करता हुआ कहा जाता है।
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