अहिल्याबाई होलकर द्वारा निर्मित छत्रियाँ । छत्रीबाग इंदौर की छत्रियाँ।Ahilya Bai Holkar Dwara Nirmit Chatriyan
अहिल्याबाई होलकर द्वारा निर्मित छत्रियाँ
अहिल्याबाई होलकर द्वारा निर्मित छत्रियाँ
- होलकर वंश द्वारा स्थापत्य कला में नये आयाम जोड़े गये जिससे वास्तु विन्यास की नव विधा उभर कर सामने आई। इसमें मुगल, मराठा शैली का समन्वयात्मक प्रयोग किया गया। ह वास्तु विन्यास में होलकरों ने राजपूत छत्री शैली का अनुकरण इंदौर नगर के छत्रीबाग में स्थि खाण्डेराव की छत्री में प्राचीन मंदिरों की परंपरा यथा वेदिबन्ध जंघा तथा नागर शैली के शिखर युक्त उत्कृष्ट संरचना है।
- यद्यपि देवी अहिल्याबाई होलकर ने अनेकों मंदिर, घाट, धर्मशालायें, अत्रक्षेत्र आदि निर्माण कराया किन्तु छत्री वास्तु कला के अभिनव प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- देवी अहिल्या द्वारा निर्मित प्रमुख छत्रियों में उनके पति, श्वसुर, पुत्र व पुत्री की है। छत्रीवास्तु के उद्धव प्रकाश डालना भी प्रासंगिक होगा।
- अपने पूर्वजन्म की याद में स्मृति पट्ट, स्मृति स्तंभ आदि क परंपरा भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है। मेगालिथिक शवाधानों में इस प्रकार के क अवशेष प्रकाश में आये हैं।
- महात्मा गौतम बुद्ध के निधन के उपरांत उनके अनुयायियों द्वार अस्थियों को बांट कर जिस स्मृति स्मारक का निर्माण कराया गया उसके स्वरूप के कारण उसे 'स्तूप" कहा गया।
- मौर्यकाल में स्तूप को स्मृति स्मारक के स्थान पर धार्मिक महत्व प्रदान किय जो हीनयान मत का प्रमुख अंग बन गया।
- "ब्राह्मण मतावलंबियों में भी "थान" या "स्थान की परंपरा प्रचलित थी। समान उद्देश्य से मुस्लिम मकबरा बनवाते थे।
- मकबरा स्थापत्य का अनुकरण कर राजपूतों द्वारा छत्रियों बनवाई गई। छत्री शब्द से आशय 'छत्र' स्वरूप से है। गुम्बदाकार शिखर के नीचे छत्र के रूप की संरचना ने छत्री नाम प्रदान किया।
- होलकर शासकों ने छत्री स्थापत्य को राजपूतों से यथा स्थिति में ग्रहण कर उसमें परिवर्द्धन का श्रेय देवी अहिल्याबाई को दिया जाना उचित होगा।
होलकरवंश की प्रथम छत्री
- होलकरवंश की प्रथम छत्री राजस्थान के भरतपुर जिले के कुम्हेर नामक स्थल पर है। इसका निर्माण ई. सन् 1754 में खाण्डेराव की मृत्यु के बाद मल्हारराव होलकर ने करवाया था।
छत्रीबाग परिसर इंदौर
- देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपने श्वसुर मल्हारराव होलकर प्रथम की छत्री का निर्माण उनकी मृत्यु स्थली आलमपुर (जिला भिण्ड) में करवाया। इस छत्री का निर्माण ई. सन 1780 में पूर्ण हुआ।
- तत्पश्चात देवी अहिल्याबाई ने इंदौर नगर के छत्रीबाग परिसर में अपने पति खाण्डेराव, श्वसुर मल्हारराव एवं पुत्र मालेराव की छत्री का निर्माण कराया। ये छत्रियां ई. सन् 1784 में बन चुकी थी। 26 मई 1784 को इन छत्रियों में देवी अहिल्याबाई ने प्रतिमायें स्थापित करवाई थीं। ये छत्रियां 18 वीं शताब्दी की विकसित वास्तुकला की उत्कृष्ट देन हैं।
देवी अहिल्याबाई द्वारा निर्मित प्रमुख छत्रियों का विवरण इस प्रकार है:
मल्हारराव होलकर की छत्री, आलमपुर
- सूबेदार मलहारराव होलकर का निधन ई. सन् 1766 में आलपुर जिला भिण्ड में हुआ था।
- यहां पर सोन नदी के दक्षिण तट पर उनका दाह संस्कार किया गया था। उनकी दो पत्नियाँ द्वारिकाबाई एवं बेजाबाई उनके साथ सती हो गई थीं।
- देवी अहिल्याबाई होलकर ने उनके दहन स्थल पर एक विशाल छन्त्री का निर्माण कराया।
- स्थापत्य की दृष्टि से छत्री का तल विन्यास उच्च कोटि का है। इसका निर्माण ऊंची जगती पर किया गया है, इसके अधिष्ठान पर दक्षिणाभिमुखी गर्भगृह तथा स्तंभों पर आधारित प्रदक्षिण पथ है। जगती पर पंहुचने के लिये पूर्व पश्चिम तथा दक्षिण में सोपान श्रृंखला बनी हुई है।
- प्रदक्षिणापथ के मध्य 3.50 x 3.50 मीटर आकार का गर्भगृह है इसमें सूबेदार मल्हारराव एवं उनकी दो पत्रियों की प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं।
- गर्भगृह का वितान घंटानुमा तथा शिखर गुम्बदाकार है।
- भित्तियों में तीनों ओर गवाक्ष बने हुये हैं किन्तु इसमें कोई भी प्रतिमा नहीं है।
- भित्तियों पर पशु पक्षियों एवं वनस्पतियों का अलंकरण है।
- प्रदक्षिणापथ के वितान पर चित्रों का मराठा शैली में आलेखन है।
- इन चित्रों में रामायण, कृष्णलीला तथा अन्य देवी देवताओं व युद्ध दृश्यों का अंकन है।
- शिखर "गुम्बदाकार" है, मध्य के विशाल गुम्बद के चारों कोनों पर छोटे-छोटे गुम्बद नुमा शिखर है। यह छत्री मुगल राजपूत एवं मराठा शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- इसी छत्री के बाद छत्री वास्तु कला के नवीन युग का सूत्रपात हुआ है।
मल्हारराव प्रथम एवं गौतमाबाई होलकर की छत्री, छत्रीबाग, इंदौर
- इंदौर नगर के छत्रीबाग परिसर में देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपने श्वसुर मल्हारराव एवं सास गौतमाबाई की छत्री बनवाई।
- गौतमाबाई का निधन मल्हाराव के निधन के पूर्व हो चुका था, दो पत्रियां मल्हारराव के साथ सती थी, उनकी प्रतिमायें आलमपुर की छत्री में स्थापित की थी, गौतमाबाई एंव मल्हारराव की प्रतिमायें इस छत्री में स्थापित की गई थी। इस छत्री का निर्माण कार्य 1784 में पूर्ण हो गया था।
- यह छत्री अत्यंत कलापूर्ण राजपूत छत्री स्थापत्य शैली में निर्मित है। दोहरे गुम्बद युक्त इस छत्री का आधार आयताकार है, दोनों ही गुम्बद अधोमुखी कमल की भांति दृष्टिगोचर होते हैं। जगती के ऊपर अधिष्ठान का निर्माण कलापूर्ण है। प्रवेश द्वार का सम्मुख भाग तथा दोनो पार्श्वों की अर्द्धवृत्ताकार मेहरावें आमेर शैली की देन है। प्रवेश द्वार के दोनो स्तंभ ऊपर से अर्द्धवृत जुड़े हुये हैं इनके नीचे पद्मनाल का वृत्त है।
- अर्द्धमंडप के साथ ही बड़े गुम्बद को कला पूर्ण स्तंभों के सहारे निर्मित किया गया है। स्तंभों का निर्माण हल्के भूरे व लाल रंग के प्रस्तर से किया गया है।
- छत्री के केन्द्र का बड़ा गुम्बद 12 स्तंभों पर आधारित है। है स्तंभों की आलम्बन पिण्डिका ऊंची तथा आयताकार है, जिसमें ज्यामितीय अलंकरणों से गज ओर मानवाकृतियों का अलेखन है।
- छत्री पर अलंकरण उच्च कोटि का है इस पर पुष्प वल्लरियों के अतिरिक्त देवी देवताओं का शिल्पांकन भी है।
मालेराव होलकर की छत्री, छत्रीबाग इंदौर
- देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपने पुत्र की छत्री ई. सन् 1784 में पूर्ण कराई।
- मालेराव अहिल्याबाई का इकलौता पुत्र था। उसकी मृत्यु 13 मार्च 1767 ई. को हुई।
- मालेराव की छत्री का निर्माण खाण्डेराव की छत्री के समीप किया गया। स्थापत्य की दृष्टि से यह छत्री अत्यधिक कलापूर्ण हैं ।
- छत्री के ऊर्ध्वविन्यास में जगती, अधिष्ठान, गर्भ गृह का मण्डोवर तथा शिखर है।
- यह छन्त्री गुम्बदाकार शिखरयुक्त अष्टकोणीय गर्भ गृह की है, जो राजपूत छत्री की परंपरा के अनुरूप है।
- उत्तराभिमुखी इस छन्त्री की जगती के कोणो पर बने गवाक्षों के स्तम्भ बलुआ प्रस्तर के है। जगती के ऊपर अपेक्षाकृत कम ऊंचा अधिष्ठान है, इस पर घट पल्लव तथा लता वल्ल यों से अंलकृत स्तम्भ गवाक्ष है। अलंकृत स्तंभों के शीर्ष पर दीपकों के स्थान पर कमल दल हुये हैं। स्तंभ आधारों पर कमल कलिकाओं एवं गज व्यालों का अलंकरण है। छत्रीका है।
- गर्भगृह का प्रवेश द्वार आकर्षक है, स्तंभों के मध्य तोरण, प्राचीन परंपरा के अनुर वना हुआ है। गर्भगृह में एक हाथी के ऊपर रानियों को बैठा हुआ बताया गया है। गर्भगृह की प्रतिमा मालेराव की है।
खाण्डेराव होलकर की छत्री, छत्रीबाग इंदौर
- अहिल्या बाई होलकर के पति खाण्डेराव कभी शासन में नहीं रहे परन्तु एक बहादुर सैनिक के रूप में उनकी ख्याति रही है ।
- कुम्भेर के घेरे क समय शनिवार 9 मार्च 1754 ई. को खाण्डेराव ने वीरगति पाई। उनकी मुख्य छत्री कुम्भेर में बनी हुई है। उनकी स्मृति में अहिल्याबाई ने इस छत्री का निर्माण भी कराया। इसमें अहिल्याबाई के निधन के पश्चात उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई।
- यह छत्री उत्तराभिमुखी है, इसका निर्माण नागर शैली के मंदिर स्थापत्य के आधार पर किया गया।
- देवी अहिल्याबाई द्वारा छत्रियों को मंदिर के रूप में बनाने की प्रथा प्रारंभ की गई। यह छत्री एक साधारण जगती पर स्थित है, इसके ऊर्ध्वविन्यास में वेदिवन्ध, जंघा व शिखर है। छत्री पर अलंकरण नहीं है।
- शिखर नागर शैली का है, अर्द्धमंडप में नंदी प्रतिमा है, अंतराल में चन्द्रशिला के साथ चार स्तंभों की संरचना है।
- गर्भगृह में शिवलिंग व जलाधारी मध्य में है तथा सामने के आसन पर खाण्डेराव तथा उनकी पत्तियों की मूर्तिया बनी हुई हैं।
- देवी अहिल्याबाई के जीवनकाल में निर्मित ये छत्रियों कला एवं स्थापत्य की दृष्टि से उत्कृष्ट कोटि की हैं, जो मराठा कला के विकसित स्वरूप की परिचायक हैं।
साभार - लेखिका - श्रीमती शैलजा सिंह
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