अच्छी परीक्षा की विशेषताएँ। मूल्यांकन प्रविधियाँ । Criteria of a Good Test
गणित का पेपर कैसा होना चाहिए ? अच्छी परीक्षा की विशेषताएँ
अच्छी परीक्षा की विशेषताएँ (Criteria of a Good Test)
- विश्वसनीयता (Reliability)
- वैधता (Validity)
- वस्तुनिष्ठता (Objectivity)
- विभेदीकरण (Discrimination)
- कठिनाई स्तर (Difficulty Index)
- व्यापकता (Comprehensiveness)
- सहजता (Usability)
विश्वसनीयता Reliability
- किसी परीक्षा के परिणाम समान परिस्थितियों में एकसमान बने रहते हैं तो उस परीक्षा को विश्वसनीय (Reliable) माना जाता है। इस प्रकार किसी परीक्षा की विश्वसनीयता परीक्षा में न्यादर्श की मात्रा (Sample Size) तथा अंकों की वस्तुनिष्ठता (Objectivity in Scoring) पर निर्भर करती है।
Reliability Sample Size + Objectivity in Scoring
- इसी प्रकार, कोई प्रश्न तभी विश्वसनीय कहा जाएगा जब उसके उत्तर विद्यार्थी की सही उपलब्धि अथवा स्तर का ज्ञान कराए अर्थात् परिणामी अंक त्रुटियों की सम्भावना से मुक्त हो । त्रुटियों की सम्भावना प्रायः निर्देशों की अस्पष्टता के कारण होती है। यह दो स्तरों पर हो सकती है- प्रथम, जब विद्यार्थी प्रश्न का उत्तर दे रहा है और दूसरा, जब परीक्षक उत्तर का मूल्यांकन कर रहा है।
- रिजलैण्ड ने विश्वसनीयता को निम्न प्रकार परिभाषित किया है "विश्वसनीयता उस विश्वास (Faith) को प्रकट करती है जो कि एक परीक्षा में स्थापित की जा सकती है।"
वैधता Validity
- इसका आशय यह है कि यदि कोई परीक्षण वही मापन करता है जिसके मापन के लिए इसका निर्माण हुआ है तो वह परीक्षण वैध (Valid Test) कहलाता है। इस प्रकार वैधता गुणक (Validity Index) यह सूचित करता है कि किसी परीक्षण ने वस्तुतः उसी विशेषता (Trait) का मापन किस सीमा तक किया है जिसका मापन करने के लिए वह दावा करता है। उदाहरणार्थ, गणित की परीक्षा को वैध तभी कहेंगे जबकि उसके द्वारा हम गणित की योग्यता का ही मापन करें, इसके अतिरिक्त भाषा की योग्यता, स्वच्छता अथवा सामान्य बुद्धि का नहीं ।
गुलिकसन ने निश्चित शब्दों में वैधता को इस प्रकार व्यक्त किया है-
- "It is the correlation of the test with some criteria."
- किसी परीक्षण की भाँति कोई प्रश्न अपनी वैधता उसी सीमा तक खो देता है जिस सीमा तक वह अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल नहीं होता। कोई आइटम (Item) वैध नहीं कहलाएगा यदि वह पाठ्यक्रम से सम्बन्धित न हो जैसे-हम आमतौर पर कहते हैं कि यह पाठ्यक्रम के बाहर है अथवा इसमें कुछ ऐसी अवांछित सामग्री है जिसके मापन का हमारा उद्देश्य नहीं है। सी. बी. गुड के अनुसार, “वैधता वह सीमा अथवा विस्तार है, जिस तक परीक्षा उसे मापती है, जिसे वह मापना चाहती है।"
- रिजलैण्ड के अनुसार, "वैधता एक मापन-साधन का मापने वाला गुण होती है जिसे वह मापना चाहती है।”
- ग्रीन महोदय ने वैधता को इस प्रकार परिभाषित किया है “वैधता उस मात्रा की एक अभिव्यक्ति का नाम है जहाँ तक एक परीक्षा उन गुणों, योग्यताओं, कौशलों तथा सूचनाओं को मापती है, जिन्हें मापने के लिए वह वांछित होती है।"
वस्तुनिष्ठता Objectivity
- जिस परीक्षा पर परीक्षक का व्यक्तिगत प्रभाव नहीं पड़ता है, वह परीक्षा वस्तुनिष्ठ कहलाती है। किसी भी परीक्षण के लिए वस्तुनिष्ठ होना बहुत जरूरी है, क्योंकि इसका विश्वसनीयता व वैधता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। एक बार स्कोरिंग कुंजी (Scoring Key) बन जाने पर यह प्रश्न ही नहीं उठना चाहिए कि प्रश्न अस्पष्ट तो नहीं है या उसके उत्तर के बारे में ठीक से निर्णय नहीं लिया जा सकता। अब मूल्यांकन कोई भी करे छात्र को सदैव उतने ही अंक मिलने चाहिए, इसी को वस्तुनिष्ठता (Objectivity) कहते हैं।
- निबन्धात्मक परीक्षाओं (Essay Type) में यह बात नहीं होती। इसमें कापियों का मूल्यांकन करते समय परीक्षक का व्यक्तिगत निर्णय अधिक महत्त्व रखता है। यही कारण है कि इन परीक्षाओं के स्थान पर हम नवीन परीक्षा प्रणाली (Objective Type Test) को अधिक प्रयोग में लाते हैं।
विभेदीकरण Discrimination
- विभेदीकरण से तात्पर्य परीक्षण के उस गुण से है जिसके द्वारा पढ़ने में तेज, सामान्य एवं पिछड़े छात्रों के मध्य काफी सीमा तक भेद किया जा सके। इसके द्वारा यह जाना जा सकता है कि पूरे परीक्षण पर प्राप्तांकों के आधार पर अधिकतम अंक (Maximum Score) एवं न्यूनतम अंक (Minimum Score) पाने वाले छात्रों को अलग करने में प्रत्येक प्रश्न का क्या योगदान रहा। परीक्षण के आइटमों को विभेदीकरण क्षमता ज्ञात करने के लिए प्रत्येक प्रश्न का विश्लेषण किया जाता है, जिसे पद विश्लेषण प्रक्रिया (Item Analysis) कहते हैं। इससे प्रत्येक प्रश्न के कठिनाई स्तर का पता चल जाता है।
कठिनाई स्तर Difficulty Index
- कठिनाई स्तर प्रश्न का बहुत महत्त्वपूर्ण लक्षण है। सम्पूर्ण प्रश्न-पत्र में दिए गए अंकों के वितरण को इसी के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है। उन प्रश्नों में जिनका अंकन 'शुद्ध अथवा अशुद्ध' रूप में किया जा सकता है, कठिनाई स्तर की परिभाषा सही प्रश्न हल करने वाले विद्यार्थियों की प्रतिशतता है।
निबन्धात्मक तथा लघु उत्तरीय प्रश्नों में, जो आंशिक रूप से शुद्ध हो सकते हैं, कठिनाई स्तर का सूत्र निम्न है -
D =X /A x 100
जहाँ, X = प्रश्न में उस वर्ग द्वारा प्राप्त अंकों का मध्यमान
A = निर्धारित पूर्णांक
- कठिनाई स्तर वास्तव में सुगमता सूचक होता है क्योंकि ज्यों-ज्यों प्रश्न सरल होता जाता है, D.I. बढ़ता जाता है। स्पष्टतः यह सूचक एक सामूहिक गुणक है जो शून्य से 100 तक जाता है।
व्यापकता Comprehensiveness
- व्यापकता के अन्तर्गत परीक्षण का वह प्रारूप आ जाता है जिसके द्वारा परीक्षण उस योग्यता (Trait) के विभिन्न पक्षों का मापन करने में समर्थ हो सकता है जिसके मापन हेतु उसको निर्मित किया गया है। परीक्षण की व्यापकता के बारे में निर्णय करना स्वयं एक निर्माता की सूझ-बूझ एवं क्षमता पर निर्भर करता है।
- माइकेल्स ने व्यापकता की केक (Cake) की पर्तों से की है।
- इस तरीके से हम पाठ्यक्रम में सम्मिलित सभी तथ्यों को न लेकर उनमें से कुछ का न्यादर्श (Sample) ले सकते हैं। इस प्रकार, संक्षेप में व्यापकता का अर्थ दो प्रकार से लिया जाता है।
- 1. पाठ्य-वस्तु का समावेश
- 2. उद्देश्यों का समावेश
सहजता Usability
- वह परीक्षण जो निर्माण करने, छात्रों द्वारा उसका उत्तर देने एवं अंकदान करने, तीनों पक्षों की दृष्टि से सरल हो, एक अच्छा परीक्षण कहलाता है अर्थात्, वह परीक्षण जिसके निर्माण में कठिनाई न हो, छात्रों को भी उसके उत्तर देने में सहजता हो तथा अंकन की प्रक्रिया में भी किसी प्रकार की जटिलता न आए, सहजता के गुण वाला परीक्षण कहलाता है।
- सी सी रॉस के अनुसार, "सहजता वह मात्रा है, जिस तक परीक्षा अथवा अन्य साधन को, अध्यापकों तथा पाठशाला प्रबन्धकों द्वारा बिना समय तथा शक्ति के अनावश्यक व्यय के सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है। एक शब्द में सहजता का अ व्यावहारिकता है।”
मूल्यांकन प्रविधियाँ Evaluation Techniques
- मूल्यांकन प्रविधियों की उपयुक्तता इस बात पर निर्भर करती है कि उनके द्वारा अध्यापक को बालक के व्यवहार में परिवर्तन के बारे में कितनी स्पष्ट जानकारी मिलती है। उद्देश्यों एवं विषय-वस्तु की प्रकृति को ध्यान में रखकर ही मूल्यांकन की विधि का चयन करना चाहिए। यदि हमने दोषपूर्ण प्रविधि का प्रयोग किया तो निकाले गए निष्कर्ष दोषपूर्ण होंगे तथा हमें छात्र के बारे में गलत जानकारी प्राप्त होगी। प्रत्येक उद्देश्य दूसरे उद्देश्यों से भिन्न होते हैं तथा उनसे सम्बन्धित व्यवहार भी भिन्न होते हैं। मूल्यांकन की किसी एक प्रविधि को हम सभी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग में नहीं ला सकते।
कुछ मुख्य मूल्यांकन प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं-
लिखित परीक्षाएँ (Written Examinations )
- इन परीक्षाओं में निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type) तथा वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type) मुख्य हैं। निबन्धात्मक परीक्षाओं में छात्र को विस्तारपूर्वक उत्तर लिखने होते हैं, जबकि वस्तुनिष्ठ परीक्षा में उत्तर लिखने का ढंग अत्यन्त सरल एवं संक्षिप्त होता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ दो प्रकार की होती हैं। पहली, प्रमापित (Standardized) जिनके सामान्य स्तर (Norms) पहले से ही स्थापित किए होते हैं, दूसरी, अध्यापक निर्मित (Teacher-made) जिनमें प्रश्नों का निर्माण शिक्षक स्वयं करता है।
मौखिक परीक्षाएँ (Oral Examinations)
- इन परीक्षाओं द्वारा छात्रों की उपलब्धियों (Achievements) के उन पक्षों का मूल्यांकन किया जाता है जिन्हें हम लिखित परीक्षाओं द्वारा नहीं माप सकते। इन परीक्षाओं में मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद, विचार-विमर्श एवं नाट्य-प्रदर्शन आदि सम्मिलित हैं। गणित के मूल्यांकन में मौखिक परीक्षाओं को स्थान दिया जाना चाहिए। लिखित परीक्षाओं की कमियों की पूर्ति किसी सीमा तक मौखिक परीक्षाओं द्वारा सम्भव है।
प्रयोगात्मक परीक्षाएँ ( Practical Examinations)
- गणित में ज्यामिति, त्रिकोणमिति आदि विषयों में अनेक ऐसे उप-विषय होते हैं जिनमें प्रयोगात्मक कार्य द्वारा प्रत्ययों एवं संकल्पनाओं (Concepts and Hypotheses) का स्पष्टीकरण कराया जा सकता है। क्षेत्रफल, ऊँचाई एवं दूरी आदि उप-विषयों में प्रयोगात्मक कार्य बहुत उपयोगी हैं। गणित में इन परीक्षाओं को स्थान दिया जाना चाहिए।
निरीक्षण (Observation)
- गणित में निरीक्षण द्वारा छात्रों की उपलब्धियों के विषय में साधारण जानकारी मिल सकती है। बालकों की संवेगात्मक स्थिरता, मानसिक परिपक्वता तथा सोचने के तरीकों में यथार्थता की जानकारी कक्षा में प्रतिदिन निरीक्षण द्वारा प्राप्त हो सकती है। विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन उसके प्रश्न ह करने की क्रिया के निरीक्षण से भी किया जा सकता है। जब विद्यार्थी प्रश्न हल करता है तो अध्यापक उनका अवलोकन करके यह देख सकता है कि वह शीघ्रता, स्वच्छता एवं शुद्धता से प्रश्नों को हल कर सकता है या नहीं। अवलोकन द्वारा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के अन्य गुणों; जैसे आत्मविश्वास, चिन्तन, विवेक, कल्पना, तर्क, सूझ, भावात्मक विकास इत्यादि का भी मूल्यांकन किया जा सकता है।
साक्षात्कार (Interview)
- साक्षात्कार द्वारा विद्यार्थियों की गणित में रुचि का विकास, उपयुक्त दृष्टिकोण, आत्म-विश्वास, बौद्धिक स्तर, गणित के ज्ञान का प्रयोग इत्यादि का मूल्यांकन किया जा सकता है। मौखिक परीक्षा तथा साक्षात्कार के उद्देश्यों में अधिक अन्तर नहीं है।
प्रश्नावली (Questionnaire)
- जब अध्यापक समय की कमी के कारण निरीक्षण तथा साक्षात्कार प्रणाली का प्रयोग नहीं कर पाता तो वह प्रश्नावली प्रविधि का प्रयोग करता है। इसमें विद्यार्थियों को छपी हुई एक प्रश्नों की सूची दे दी जाती है जिन पर वह अपने उत्तर लिखकर अध्यापक को वापिस कर देते हैं। इस प्रविधि द्वारा विद्यार्थियों की गणित में रुचि, दृष्टिकोण, अनुभूति, व्यक्तित्व के गुण तथा अन्य व्यावहारिक परिवर्तनों का मूल्यांकन हो सकता है।
चैक-लिस्ट Check-List
- इसका स्वरूप प्रश्नावली प्रविधि की तरह ही होता है। अन्तर केवल इतना है कि इसमें प्रश्नावली की अपेक्षा प्रश्न तथा कथन बहुत स्पष्ट होते हैं जिन्हें पढ़कर विद्यार्थी केवल उनसे सम्बन्धित उत्तर पर सही का निशान लगाते हैं। इसमें उन्हें कुछ भी लिखना नहीं पड़ता। चैक-लिस्ट का उद्देश्य प्रश्नावली प्रविधि के ही समान होता है। यह आत्म-मूल्यांकन (Self-evaluation) के लिए भी उपयोगी होती है।
अभिलेख (Records)
- विद्यार्थियों की गणित की पुस्तिका, अभिलेख संचिका (Cumulative Records) इत्यादि के अवलोकन से उनकी रुचि, दृष्टिकोण, अनुभूति इत्यादि का मूल्यांकन किया जा सकता है। कक्षा में तथा घर पर किए गए कार्य की पुस्तिकाओं को भी अभिलेख का अंग माना जा सकता है।
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