गणितीय शिक्षण में होने वाली त्रुटियों के कारण । गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के उपाय । (Errors in Teaching of Mathematics)

 गणितीय शिक्षण में होने वाली त्रुटियों के कारण ,गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के उपाय

गणितीय शिक्षण में होने वाली त्रुटियों के कारण । गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के उपाय । (Errors in Teaching of Mathematics)



गणितीय शिक्षण में होने वाली त्रुटियों के कारण

(Reason of Errors in Teaching of Mathematics)

 

  • गणित का अध्ययन करने के लिए शुद्धता का होना अनिवार्य है। शुद्धता के अभाव में बालक गणित का ज्ञान यथार्थ रूप में ग्रहण नहीं कर सकते तथा उनमें विभिन्न गणितीय योग्यताओं का विकास भी नहीं हो पाता है। 

गणित शिक्षण में बच्चों में बहुत-सी त्रुटियाँ पाई जाती हैं जो निम्नवत हैं

 

  1. गणित शिक्षण के अन्तर्गत कार्य का निर्धारण करते समय छात्रों की रुचियोंआवश्यकताओं तथा मानसिक विकास पर ध्यान न देना। 
  2. गणित शिक्षण में बालकों में तत्परता तथा एकाग्रता का अभाव होना 
  3. बालकों का गणित के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण का होना। 
  4. शिक्षण कार्यों के दौरान शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता का अभाव ।
  5. बालकों में कल्पना तथा स्मरण शक्ति का अभाव ।
  6. बालकों में गणित शिक्षण की समस्या का विश्लेषण तथा संश्लेषण करने की योग्यता की कमी। 
  7. बालकों में गणित के प्रति जागरूकता का अभाव। 
  8. दिए गए कार्य को समय पर पूरा न करने की समस्या
  9. बालकों में गणितीय गणना सम्बन्धी कुशलताओं का अभाव । 
  10. गणित शिक्षण में बालकों में आत्म-विश्वास तथा आत्म-निर्भरता का अभाव होना। 
  11. भिन्न-भिन्न गणित के तथ्यों में समानता तथा अन्तर का प्रयोग गलत करना । 
  12. भाग देने में तथा गुणा करने में हासिल का गलत प्रयोग सही न कर पाना ।
  13.  भिन्नों में हर तथा अंश का गलत प्रयोग करना । 
  14.  दो या अधिक प्रत्ययों में अन्तर सही न निकाल पाना । 
  15. समीकरण गलत बनाना, ज्ञात तथा अज्ञात राशियों का स्पष्ट ज्ञान न होना 
  16. गणित में प्रयोग होने वाले चिह्नों का गलत प्रयोग करना । 
  17. बालकों द्वारा गणित शिक्षण के दौरान श्यामपट्ट अथवा अभ्यास पुस्तिकाओं में सही-सही अंक तथा संख्याएँ न लिख पाना। 
  18. अध्यापकों द्वारा छात्रों की गलतियों को सुधारने हेतु पर्याप्त अवसर न देना। 
  19. अर्थात् उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था न करना । 
  20. गणित में गणना कार्य करते समय अधिक काट-पीट तथा लिप्त लेखन करना ।

 

गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के उपाय 

Remedy to Develop Accuracy in Mathematics Teaching 

  • बालकों का गणित के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने तथा गणित को रुचिकर बनाने के लिए गणित शिक्षण में शुद्धता का होना अत्यन्त आवश्यक है। 
  • गणित शिक्षण के दौरान अध्यापक को बालकों में शुद्धता से कार्य करने की आदत का विकास करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण उपायों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

 

गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नवत् हैं

 

  • छात्रों को गणित में सही गणना कार्य करने पर प्रोत्साहित करना चाहिए। 
  • गलत गणना कार्य करने पर छात्रों को हतोत्साहित करना चाहिए । 
  • छात्रों में परिणामों या उत्तरों की जाँच करने की आदत का विकास करना चाहिए। 
  • श्यामपट्ट अथवा पाठ्य पुस्तक में से सही-सही अंक उतारने या लिखने की योग्यता विकसित करनी चाहिए। 
  • गणित की समस्याओं को हल करने से पहले उस समस्या को समझने तथा विश्लेषण करने की आदत का विकास करना चाहिए। 
  • छात्रों को सही वाक्य, अंक, शब्द तथा संख्याएँ लिखने के लिए प्रेरित करना । 
  • छात्रों की गलतियों का पता लगाने के लिए निदानात्मक परीक्षणों का प्रयोग करना चाहिए। 
  • गलतियों का पता लगाने के पश्चात् अध्यापक को गलतियों का सुधार करने हेतु उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए। 
  • बालकों में यान्त्रिक कुशलताएँ विकसित करने हेतु गणित की आधारभूत संक्रियाओं, नियमों और सूत्रों को अच्छी तरह से याद करवाकर उनकी उपयोगिता स्पष्ट कर देनी चाहिए। 
  • समस्या का हल करने से पूर्व अध्यापक को यह स्पष्ट करना चाहिए कि प्रश्न में क्या दिया गया है, क्या ज्ञात करना है तथा उसे कैसे ज्ञात किया जा सकता है ? 
  • श्यामपट्ट अथवा अभ्यास पुस्तिकाओं में विभिन्न गणितीय आकृतियों, चित्रों तथा रेखाचित्रों को यथार्थ रूप में तथा सही अनुपात में बनाने की आदत विकसित करनी चाहिए। 
  • यदि कोई छात्र शीघ्रता से कार्य करने के कारण अधिक अशुद्धियाँ करता है, तो उसे 69 धीमी गति से कार्य करने की सलाह देनी चाहिए वह अपना गणना कार्य शुद्धता कर सके। 
  •  गणित में शुद्धता से कार्य करने के लिए अभ्यास कार्य (Drill work) पर विशेष बल देना चाहिए। 
  • अपने विचार तर्क-वितर्क, कल्पना शक्ति आदि के आधार पर किए गए कार्य को लिखित रूप से व्यक्त करने को कहा जाए। लिखित कार्य द्वारा बालक अपनी त्रुटियों को पहचानकर उनमें सुधार कर सकता है।

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