माहिष्मती (महेश्वर) का इतिहास एवं साक्ष्य । History of Mahismati (Maheswar)
माहिष्मती (महेश्वर) का इतिहास एवं साक्ष्य History of Mahismati (Maheswar)
माहिष्मती (महेश्वर) का इतिहास एवं साक्ष्य
- माहिष्मती प्राचीन ग्रंथों में माहिष्मती नाम की प्रसिद्ध नगरी का वर्णन मिलता है। इस नगरी का उल्लेख महाभारत और हरिवंश में मिलता है।
- पौराणिक परम्परा में कहा गया है कि राजा ययाति के पौत्र तथा यदु के पुत्र सहस्रजित् ने इस नगरी को बसाया था।
- सहस्रजित् को हैहयवंश का आदिपुरुष कहा जाता है।
- माहिष्मती की राजधानी बनाने का श्रेय हैहय वंश के राजा माहिष्मत को दिया जाता है।
माहिष्मती का बौद्ध ग्रंथों में विवरण
- माहिष्मती का विवरण बौद्ध ग्रंथों में भी मिलता है। बौद्ध ग्रंथों में माहिष्मती को उज्जयिनी और विदिशा के समान महानगर कहा गया है।
- माहिष्मती का नाम सांची स्तूप के शिलालेखों में भी है। इन शिलालेखों में चार अलग हिज्जे दी गई हैं।
- कुल मिलाकर यह तो सदा से स्पष्ट था कि माहिष्मती नर्मदा के तट पर बसी नगरी है परन्तु इस नगर की भौगोलिक स्थिति सुनिश्चित करने में इतिहासकारों को काफी शोध करनी पड़ी। अनिश्चित भौगोलिक स्थिति का कारण ऐतिहासिक प्रमाणों की अलग व्याख्यायें थीं। इनमें से कुछ की विवेचना यहाँ की जा रही है।
माहिष्मती के ऐतिहासिक प्रमाणों की व्याख्या
- महाभारत (सभापर्व 28/38) के अनुसार माद्रीपुत्र सहदेव दक्षिण दिग्विजय करते समय माहिष्मती पहुँचे जहाँ के राजा नील ने उनके समक्ष आत्मसमर्पण किया, इसे स्वीकार कर सहदेव दक्षिण दिशा में आगे बढ़े और उन्होंने त्रिपुरी के राजा को वश में किया।
- इसका अर्थ यह हुआ कि हस्तिनापुर से दक्षिण की ओर जाने पर पहले माहिष्मती मिली और बाद में त्रिपुरी कनिंघम (1924) ने संभवतः इसी विवरण के आधार पर इसे आधुनिक मंडला के साथ संबद्ध करने का सुझाव दिया। वस्तुत: मंडला के पश्चात् ही जबलपुर के निकट त्रिपुरी स्थित है, यद्यपि यहाँ भी दिशा संबंधी भ्रम है मण्डला जबलपुर (त्रिपुरी) से दक्षिण में है।
- अन्य विद्वानों में फ्लीट (1910) तथा सिंह (2003) के मत उल्लेखनीय हैं। उत्तर नर्मदातट पर स्थित दो अलग-अलग नगरों को एक ही बतला दिया। उन्होंने महेश्वर और मान्धाता की एक ही नगर के रूप में पहिचान की, जबकि इन दो नगरों में लगभग 50 किलोमीटर का फासला है। मान्धाता (या ओंकारेश्वर) पूर्व की ओर है जबकि महेश्वर पश्चिम की ओर।
- माहिष्मती या माहिष्मती से मिलते जुलते (माहिसति, मदस्मति) नामों वाले अनेक प्राचीन सिक्के मध्यप्रदेश के निमाड़ जिले से प्राप्त हुये, अतः यह तो निश्चित हो गया कि माहिष्मती निश्चित ही मालवा में स्थित है किंतु अजयमित्र शास्त्री (1978-79) द्वारा खोजे गये सिक्के द्वारा ही यह पूर्ण रूप से निश्चित हुआ कि माहिष्मती वस्तुतः वर्तमान समय का महेश्वर ही है।
- अजयमित्र शास्त्री द्वारा खोजे गये इस सिक्के का वजन 7.10 ग्राम है तथा विस्तार 20 मि.मी. है। इसमें अशोक शैली भी ब्राह्मीलिपि में स्पष्ट रूप से 'माहिष्मती' लिखा है। इस सिक्के में नर्मदा नदी सूचक दो लहरियादार रेखायें है, एक मछली अंकित है साथ ही तीन शिखर वाला पर्वत भी अंकित है।
- इस खोज के पश्चात् 'माहिष्मती' अंकन वाले और भी सिक्कों की खोज हो चुकी है, अतः अब यह सुनिश्चित रूप से कहा जा सकता है कि महेश्वर ही प्राचीन माहिष्मती है।
पूर्वमध्यकाल के संस्कृत कवियों ने महेश्वर और कलचुरि राजाओं का सुनिश्चित संबंध बतलाया है। आठवीं सदी के मुरारि कवि ने अपने काव्य अनर्घराघव में माहिष्मती को कलचुरियों की कुलराजधानी कहा:-
'इयं कलचुरि कुलनरेन्द्रासाधारणाग्रमहिषी
माहिष्मती नाम चेदि मंडल मुण्डमाला नगरी'
राजशेखर के बालरामायण (3/35) के अनुसार भी माहिष्मती कलचुरियों की राजधानी थी।
'माहिष्मती कलचुरे: कुलराजधानीम्'
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