त्रिपुरी का इतिहास महत्व पुरातात्विक उत्खनन ।कलचुरि काल का चौंसठयोगिनी मंदिर। History of Tripuri MP

त्रिपुरी का इतिहास महत्व पुरातात्विक उत्खनन

त्रिपुरी का इतिहास महत्व पुरातात्विक उत्खनन ।कलचुरि काल का चौंसठयोगिनी मंदिर। History of Tripuri MP


त्रिपुरी कहाँ है 

  • नर्मदा तट में स्थित त्रिपुरी की गणना भारत के महत्वपूर्ण नगरों में होती थी। महाभारतललित साहित्यशब्दकोशों ओर अभिलेखों में उसका उल्लेख मिलता है। 
  • प्राचीन त्रिपुरी वर्तमान समय में जबलपुर जिले में जबलपुर नगर से लगभग 10 किलोमीटर दूर तेवर नाम का ग्राम (25°25उत्तरी अक्षांश एवं 82°22पूर्वी देशांश) है। इसके समीप कुछ बड़े-छोटे पुरातात्विक महत्व के टीले है।
  • वर्तमान में यहाँ एक त्रिपुरसुन्दरी का मंदिर है।


प्राचीन कालीन त्रिपुरी का महत्व 

  • प्राचीन काल में त्रिपुरी के असाधारण महत्व के अनेक कारण थे। भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से त्रिपुरी की स्थिति अत्यंत सुरक्षित थी। 
  • व्यापारिक दृष्टि से भी उसकी स्थिति महत्व की थी। उत्तर दक्षिणईशान तथा पश्चिम की ओर जाने वाले प्रमुख मार्ग या तो त्रिपुरी होकर जाते थे या उसके पास से गुजरते थे। 
  • त्रिपुरी की प्राचीन समृद्धि का एक प्रमुख कारण उसके निकट कच्चे माल का उपलब्ध होना था। संगमरमरअभ्रकबलुआपत्थरचीनी मिट्टीत्रिपुरी के आस पास क्षेत्र में उपलब्ध थी। प्राचीन काल की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में उपर्युक्त पदार्थ और अधिक समृद्धि प्रदायक थे।

 त्रिपुरी में किये गये पुरातात्विक उत्खनन

  • त्रिपुरी में किये गये पुरातात्विक उत्खननों से त्रिपुरी की प्राचीनता पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ा है। इन उत्खननों में प्राप्त प्राचीनतम अवशेष ताम्राश्मयुगीन संस्कृति के हैं। यह संस्कृति मध्यप्रदेश के महेश्वर नवदाटोलीएरण इत्यादि स्थलों से ज्ञात ताम्राश्मयुगीन सभ्यता का उत्तरकालीन रूप जान पड़ती है। 
  • इससे स्पष्ट है कि त्रिपुरी ईसा पूर्व 1000 के आसपास बस चुकी थी। ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी से त्रिपुरी एक स्वतंत्र जनपद राज्य की राजधानी बनी। 
  • त्रिपुरी की यह स्वतंत्रता अधिक समय तक नहीं रही। इसके बाद अनेक शताब्दियों तक यह सातवाहनोंशकक्षत्रपों तथा बोधियों के राज्य में समाविष्ट रही। छठवीं शताब्दी में यह परिव्राजक राज्य एक केन्द्र के रूप में रही।


त्रिपुरी का गौरवमयी इतिहास -कलचुरि काल में

  • त्रिपुरी को सबसे अधिक समृद्धि और गौरव कलचुरि काल में प्राप्त हुआजब यह एक विशाल राज्य की राजधानी बनी। 
  • अरब यात्री अलबरूनी ने इसे डाहलराज गांगेयदेव की राजधानी कहा है। 
  • गांगेयदेव के ने तेवर के परिसर में कर्णावती नामक नगर बसाया जो आजकल करनबेल गाँव है। 
  • पुत्र लक्ष्मीकर्ण त्रिपुरी के शासकों की समृद्धि उनके निर्माण कार्यों से ज्ञात होती है। संपूर्ण ऊपरी नर्मदाघाटी में अमरकंटक से लेकर त्रिपुरी तक ही नहीं अपितु त्रिपुरी के शासकों का जहाँ तक राज्य था वहाँ उन्होंने अनेक विशाल मंदिरो का निर्माण कराया। इन सभी मंदिरों में भेड़ाघाट का विख्यात चौंसठयोगनी एवं गौरीशंकर मंदिर भी है। 

कलचुरि काल का चौंसठयोगिनी मंदिर

  • चौंसठयोगिनी मंदिर खुली छत का मंदिर है जो नर्मदा और उसकी सहायक नदी के संगम स्थल के बीच लगभग 50 फुट ऊँची एक गोल पहाड़ी पर निर्मित है। कलचुरी सम्राट कला के महान उन्नायक थे। वे परम शैव भी थे। ऐसा माना जाता है। कि भेड़ाघाट का चौंसठयोगिनी मंदिर एवं इसी मंदिर के परिसर में स्थित गौरीशंकर मंदिर दो अलग-अलग समय के निर्माण कार्य हैं।

 

  • अपने मूल रूप में चौंसठयोगिनी का मंदिर एक सादा वृत्ताकार घेरा मात्र थाजिसके भीतर योगनियों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थीं। दसवीं सदी के मध्य में दीवार के ऊपरी भाग का निर्माण हुआ तथा बारहवीं सदी में कलचुरी रानी अल्हणदेवी ने छत एवं स्तम्भों का निर्माण किया। 
  • गौरीशंकर मंदिर के संबंध में भी कहा जाता है कि अल्हणदेवी ने ही यह मंदिर बनवाया। इस मंदिर के गर्भगृह में नन्दी पर आरूढ़ उमा महेश्वर स्थापित है। यह कल्याण सुंदर प्रतिमा है। यह मूर्ति त्रिपुरी कला की श्रेष्ठतम मूर्तियों में से एक है। इस मूर्ति की पीठ पर ईस्वी दसवीं सदी के मध्य की नागरी लिपि में 'वरेश्वरलेख उत्कीर्ण है। 
  • त्रिपुरी से अनेक अन्य मूर्तियाँ जिनमें बौद्ध और जैन मूर्तियाँ भी हैं प्राप्त हुई हैं। इनसे पता चलता है कि कलचुरि अपने समय के सभी धर्मो का आदर करते थे।

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