गणित पाठ्यक्रम में स्थान। गणित की आधारभूत संरचना। Importance of Mathematics in Curriculum
गणित पाठ्यक्रम में स्थान (Place of Mathematics in Curriculum)
- शिक्षा में किसी भी विषय का महत्त्व एवं स्थान इस बात पर निर्भर करता है कि यह विषय शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में किस सीमा तक सहायक हो रहा है।
- यदि कोई विषय शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिक सहायक सिद्ध होता है तो उस विषय की महत्ता अधिक हो जाती है।
- प्राचीन काल से ही गणित अन्य विषयों की अपेक्षा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिक सहायक सिद्ध हुआ है। वर्तमान समय विज्ञान तथा तकनीकी का युग है। इस युग में जो भी भौतिक एवं तकनीकी प्रगति विज्ञान के कारण हुई हैं। उसका श्रेय गणित को ही दिया जाना चाहिए, इतना महत्त्वपूर्ण विषय होते हुए भी पाठ्यक्रम में गणित को क्या स्थान दिया जाना चाहिए, इस पर अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता नहीं है।
- विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित की शिक्षा दसवीं कक्षा (माध्यमिक स्तर) तक अनिवार्य विषय बनाने के सम्बन्ध में कोठारी कमीशन ने स्पष्ट किया कि "गणित को सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत सभी विद्यार्थियों के लिए पहली कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक एक अनिवार्य विषय बना देना चाहिए।” परन्तु कुछ लोग अभी भी गणित को आठवीं कक्षा तक अनिवार्य तथा इसके बाद ऐच्छिक (Optional) विषय बनाने पर जोर देते हैं।
गणित को माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य विषय न बनाए जाने के लिए विरोधी पक्ष द्वारा निम्न कारण स्पष्ट किए गए-
- यह बहुत ही जटिल विषय है जिसके सीखने के लिए एक विशेष प्रकार की बुद्धि और मस्तिष्क की आवश्यकता है। अतः सभी बच्चों को गणित की शिक्षा ग्रहण करने में कठिनाई होगी।
- गणित के अध्ययन से सभी मानसिक शक्तियों, अनुशासन, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा नैतिक विकास होने की बात कल्पना मात्र ही है।
- अन्य विषयों की अपेक्षा हाई स्कूल परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की संख्या गणित विषय में सर्वाधिक होती है।
- उच्च कक्षाओं में भी गणित का ज्ञान उन्हीं छात्रों के लिए उपयोगी रहता है जोकि भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र अथवा गणित को ही अपने अध्ययन का विषय रखना चाहते हैं। इसीलिए शेष छात्रों के लिए गणित के ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं रहती।
- प्रत्येक विद्यार्थी न तो इंजीनियर ही बन पाता है और न ही मिस्त्री, फिर सभी के लिए गणित की अनिवार्यता का क्या लाभ है? इस प्रकार गणित को माध्यमिक स्तर (कक्षा दस) तक अनिवार्य विषय न बनाए जाने के समर्थन में विरोधी पक्ष द्वारा दिए गए उपरोक्त मत वास्तव में निराधार ही प्रतीत होते हैं। गणित के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए महान गणितज्ञ श्री महावीराचार्य जी ने अपनी 'गणित- सार संग्रह' नामक पुस्तक में लिखा है कि “लौकिक, वैदिक तथा सामाजिक जो भी व्यापार हैं, उन सभी में गणित का प्रयोग है। अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, कामशास्त्र, छन्द, अलंकार, व्याकरण तथा कलाओं के समस्त गुणों में गणित अत्यन्त उपयोगी है। सूर्य, आदि अन्य ग्रहों की गति दिशा तथा समय ज्ञात करने में गणित का काम पड़ता है। गुण, मात्रा संहिता तथा संख्या आदि से सम्बन्धित सभी विषय गणित पर ही निर्भर हैं।"
गणित की अनिवार्यता के सम्बन्ध में तर्क Arguments Related to Exigency of Mathematics
- सभी महान शिक्षाविदों; जैसे-हर्बर्ट, पेस्टालॉजी आदि ने भी गणित को मानव-विकास का प्रतीक माना है। गणित विषय को बौद्धिक और सांस्कृतिक (Intellectual and Cultural) विकास का सर्वश्रेष्ठ साधन मानते हुए सभी शिक्षाविदों ने गणित को पाठ्यक्रम में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया है।
इस प्रकार गणित को अनिवार्य विषय बनाने के सम्बन्ध में हम कुछ तर्क दे सकते निम्नलिखित हैं
- यदि गणित विषय को पाठ्यक्रम में उचित स्थान न दिया गया तो बच्चों को मानसिक प्रशिक्षण (Mental Training) के अवसर नहीं मिल सकेंगे जिसके अभाव में उनका बौद्धिक विकास प्रभावित हो सकता है।
- गणित का ज्ञानार्जन करने के लिए गणित सम्बन्धी ऐसी कोई जन्मजात विशेष योग्यता एवं कुशलता नहीं होती, जोकि दूसरे विषयों के अध्ययन की योग्यता से अलग हो ।
- गणित ही एक ऐसा विषय है जिसमें बच्चों को अपनी तर्कशक्ति, विचार-शक्ति, अनुशासन, आत्मविश्वास तथा भावनाओं पर नियन्त्रण रखने का प्रशिक्षण मिलता है।
- गणित के अध्ययन से ही छात्रों में नियमित तथा क्रमबद्ध रूप से ज्ञान ग्रहण करने की आदतों का विकास होता है।
- प्रत्येक विषय के अध्ययन में गणित के ज्ञान की प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष आवश्यकता पड़ती है क्योंकि गणित को सभी विज्ञानों का विज्ञान तथा समस्त कलाओं की कला माना जाता है। अतः उपरोक्त विवेचना के आधार पर सारांश रूप में यह कहा जा सकता है कि गणित ही एक ऐसा विषय है जिसके ज्ञान की आवश्यकता जीवन भर हो सकती है। यह तभी सम्भव है जबकि पढ़ने वाला प्रत्येक छात्र कक्षा दस तक अनिवार्य रूप से गणित विषय का अध्ययन करे। इंजीनियर से लेकर मिस्त्री तक तथा मजदूर लेकर वित्त मन्त्री अथवा अन्य उद्योगपतियों आदि सभी को उनकी आवश्यकतानुसार गणित के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि देशों में तो हाई स्कूल स्तर के विद्यार्थियों का ज्ञान यहाँ के इण्टरमीडिएट स्तर से के विद्यार्थियों के बराबर होता है। वहाँ के बालकों को अपने भविष्य तथा उच्च कक्षाओं के लिए विषयों का चयन करना अपेक्षाकृत सरल तथा रुचिकर हो जाता है।
- इस प्रकार यदि रोजी-रोटी कमाने के उद्देश्य से ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाए, तब भी गणित विषय का स्थान सर्वोपरि होना चाहिए । गणित को कक्षा एक से कक्षा दस तक अनिवार्य विषय अवश्य ही बनाया जाए अन्यथा इसके बिना सभी विषय निरर्थक प्रतीत होंगे।
गणित को पाठ्यक्रम में विशेष स्थान देने के कारण
Causes for Special Place of Mathematics in Curriculum
यह विज्ञान विषयों का आधार है
- विज्ञान की विभिन्न शाखाओं यथा - भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, नक्षत्रशास्त्र, जीव विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, भू-गर्भ विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान आदि महत्त्वपूर्ण विषयों की आधारशिला गणित ही है। उदाहरणार्थ- आयतन, क्षेत्रफल, भार, घनत्व, अणु-परमाणुओं की संख्या, औषधि निर्माण तथा अन्य माप-तौल आदि सभी का अध्ययन गणित के ज्ञान से ही सम्बन्धित है।
गणित का मानव जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है
- आज के इस भौतिक युग में गणित का ज्ञान अति आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को इसके ज्ञान की किसी न किसी रूप में आवश्यकता होती है। इंजीनियरिंग, बैंकिंग तथा अन्य व्यवसाय जो गणित से सीधे सम्बन्धित हैं, उनके लिए तो गणित का ज्ञान नींव की ईंट के समान कार्य करता है, परन्तु ऐसे व्यवसाय जिनका गणित से अप्रत्यक्ष सम्बन्ध है वे भी गणित पर पूरी तरह से निर्भर रहते हैं। इसके अलावा दैनिक जीवन में आय-व्यय, लेन-देन आदि में भी गणित की सामान्य जानकारी उपयोगी है। अतः गणित का हमारे जीवन से घनिष्ठ तथा अटूट सम्बन्ध है।
गणित बच्चों में तार्किक दृष्टिकोण पैदा करता है
- गणित की प्रत्येक समस्या को हल करने हेतु बच्चों को तर्कपूर्ण विचार करना होता है। प्रत्येक पद का सम्बन्ध दूसरे पद से एक निश्चित तर्क पर आधारित होता है जिससे छात्रों में अनेक मानसिक शक्तियों का विकास होता है जिनका प्रभाव उनके बौद्धिक विकास पर पड़ता है।
गणित एक विशेष प्रकार से सोचने का दृष्टिकोण प्रदान करता है
- गणित पढ़ने वाले बालकों में एक ऐसा दृष्टिकोण विकसित होने लगता है कि जिसके द्वारा वे अपना कार्य, क्रमबद्ध, नियमित तथा शुद्धता के साथ करना सीख जाते हैं। इसके साथ-साथ उनमें तार्किक ढंग से सोचने एवं समझने का दृष्टिकोण भी विकसित होता है।
गणित एक यथार्थ विज्ञान है
- गणित के अध्ययन से बालकों में किसी भी ज्ञान को यथार्थ रूप ग्रहण करने की भावना का विकास होता है। गणित के सभी प्रत्यय, सूत्र, तथ्य आदि पूर्णरूप से सही तथा स्पष्ट होते हैं। उनमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं रहता है। उदाहरण के लिए 2 + 2 = 4 होते हैं जोकि 3 या 5 नहीं हो सकते।
- गणित मानसिक शक्तियों को विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।
- गणित का ज्ञान चरित्र निर्माण एवं नैतिकता के विकास में सहायक है।
- बच्चों में अनुशासन सम्बन्धी गुण या विशेषता का विकास होता है।
- गणित की भाषा सार्वभौमिक होती है।
- गणित का ज्ञान अन्य विषयों के अध्ययन में सहायक होता है।
- गणित में सार्थक, अमूर्त एवं संगत संरचनाओं का अध्ययन किया जाता है।
- गणित समूहों (समुच्चय) तथा संरचनाओं का अध्ययन है।
गणित की आधारभूत संरचना (Basic Structure of Mathematics)
गणित में आधारभूत तीन संरचनाएँ होती
हैं
- 1. बीजगणितीय संरचना (Algebric Structure) इसके अन्तर्गत हम योग एवं गुणा तथा सामान्यीकरण आदि संक्रियाओं का अध्ययन करते हैं।
- 2. तलरूप संरचना (Plane Form Structure) इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रत्ययों जैसे-सीमा, समीपता या निकटता आदि को सम्मिलित किया गया है।
- 3. क्रमिक संरचना (Series Structure ) क्रमिक संरचना में 'से बड़ा' तथा 'से छोटा' आदि प्रत्ययों को सम्मिलित किया गया है।
विद्यालय
पाठ्यक्रम में गणित का महत्त्व
Importance of Mathematics in School Curriculum
- विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित एक महत्त्वपूर्ण विषय है। अन्य विषयों की अपेक्षा गणित का हमारे दैनिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। मातृभाषा के अलावा अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है जोकि गणित की भाँति दैनिक जीवन से इतना अधिक सम्बन्धित हो गणित को विज्ञान का जन्मदाता भी माना जाता है। वर्तमान समय में गणित को विद्यालयी पाठ्यक्रम में विशेष महत्त्व दिया गया है।
किसी विषय को
पाठ्यक्रम में विशेष महत्त्व देने के लिए उस विषय को सामान्यतः तीन दृष्टिकोणों से
देखा जाता है।
1. अमुक ( उस) विषय की बच्चों के दैनिक जीवन में उपादेयता (Utility)
2. अमुक विषय से बच्चों को मानसिक अनुशासन (Mental Discipline) में सहायता मिलती है अथवा नहीं।
3. अमुक विषय का सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व (Social and Cultural Importance)]
- आज विद्यालयों में गणित एक अनिवार्य विषय है। गणित विषय को विद्यालयों या पाठ्यक्रम में अनिवार्य करने के लिए किसी विशेष दृष्टिकोण से गणित का मूल्यांकन (Evaluation) अथवा परीक्षण (Testing) करने की आवश्यकता नहीं है। अन्य विषयों की भाँति गणित भी बच्चों को एक सामाजिक तथा बुद्धिमान नागरिक के रूप में विकसित करने में सहायक है।
- जब बालक गणित का अध्ययन करता है तो अनुशासन जैसे अन्य गुणों का विकास स्वतः ही हो जाता है। इसके अलावा गणित विषय द्वारा उन सभी गुणों का विकास भी सम्भव है जो कि किसी अन्य विषय द्वारा विकसित हो सकते हैं। यही नहीं गणित, विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को दिनों-दिन महत्त्व दिया जा रहा है और कहा जा रहा है कि यदि हमें राष्ट्र को आगे बढ़ाना है तो इन विषयों के स्तर को उन्नत करना होगा तथा प्राथमिक स्तर से ही इन पर ध्यान देना होगा।
कोठारी आयोग के गणित पर विचार
- इस सम्बन्ध में कोठारी आयोग ने अपने सुझावों में स्पष्ट किया कि “विद्यालयी जीवन के प्रथम दस वर्षों में विज्ञान एवं गणित विषय सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने चाहिए।
- व्यापक रूप से देखा जाए तो बच्चे को विद्यालय में विभिन्न लक्ष्यों (Goals) की प्राप्ति के लिए भेजा जाता है।
सामान्यतः यह अपेक्षा की जाती है कि विद्यालय में बच्चा निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त करने में समर्थ हो सकेगा-
- ज्ञान तथा कुशलताओं (कौशलों) की प्राप्ति (Acquisition of knowledge and Skills)
- बौद्धिक आदतों एवं विभिन्न शक्तियों- अनुशासन आदि की प्राप्ति (Acquisition of intellectual habits and various powers as discipline etc.)
- वांछित दृष्टिकोण एवं आदर्शों की प्राप्ति (Acquisition of desirable attitudes and ideals) | अब यह प्रश्न उठता है कि क्या गणित विषय का अध्ययन करने से ब बच्चा इन लक्ष्यों की प्राप्ति करता है? यदि गणित का अध्ययन इन लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक है, तब तो यह शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यवान है तथा शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। वास्तविक रूप से गणित विषय को इतना अधिक महत्त्व देने और अनिवार्य विषय बनाने में इसके अध्ययन से बच्चों को विभिन्न लाभ होते हैं जिनको हम गणित शिक्षण के मूल्य (Values) भी कहते हैं।
गणित शिक्षण के मूल्य
Values of Teaching of Mathematics
- बौद्धिक मूल्य (Intellectual value)
- प्रयोगात्मक मूल्य (Utilitarian or Practical value)
- अनुशासन सम्बन्धी मूल्य (Disciplinary value)
- नैतिक मूल्य (Moral value)
- सामाजिक मूल्य (Social value)
- सांस्कृतिक मूल्य (Cultural value)
- सौन्दर्यात्मक या कलात्मक मूल्य (Aesthetic value)
- जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य (Vocational value)
- मनोवैज्ञानिक मूल्य (Psychological value)
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बन्धित मूल्य (Value related to Scientific attitude)
- अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य (International value)
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