कलचुरि साहित्य और मध्यप्रदेश ।Kalchuri Sahitya Aur MP (Madhya Pradesh)
कलचुरि राजवंश आश्रित कवि / लेखकों की रचनायें और मध्यप्रदेश
कलचुरि साहित्य और मध्यप्रदेश
मुरारि कृत नाटक 'अनर्घराघव'
- मुरारि (8वीं.- 9वीं शती ई.) कृत नाटक 'अनर्घराघव' में माहिष्मती को अग्र-महिषी कहा है। इस आधार पर स्टेनकोनो महोदय ने मुरारि को माहिष्मती के कलचुरि शासकों का राजाश्रित कवि माना है।
मायूराज का 'उदात्तराघव' एवं 'तापसवत्सराज' नामक संस्कृत नाटक
- मायूराज (लगभग 750-880 ई.) जो सम्भवतः कलचुरि राजवंश के कालंजर शाखा का एक शासक था, ने 'उदात्तराघव' एवं 'तापसवत्सराज' नामक संस्कृत नाटक लिखे। वर्तमान में ये उपलब्ध नहीं हैं परन्तु उसके उद्धरण राजशेखर, अभिनवगुप्त, कुन्तक आदि कवियों के लेखों में उपलब्ध हैं जिनसे मध्यप्रदेश के प्राचीन इतिहास और संस्कृति पर प्रकाश पड़ा है।
भीमट
- वह कलचुरि राजवंश के त्रिपुरी शाखा का कवि था। राजशेखर के अनुसार वह पाँच नाटकों का रचयिता था जिनमें सर्वश्रेष्ठ था 'नाट्यदर्पण' ।
राजशेखर की रचना और मध्य प्रदेश
- राजशेखर के जीवन का प्रारंभिक काल कनौज में बीता जहाँ उसे प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल और उनके पुत्र महीपाल का संरक्षण प्राप्त हुआ। यहां रहते हुये उसने 'बालरामायण' एवं 'बालभारत' नामक संस्कृत नाटक तथा 'कर्पूरमंजरी' नामक प्राकृत नाटक लिखा ।
- कनौज के प्रतिहारों की अवनति के परिणाम स्वरूप वह त्रिपुरी आ गया जहाँ उसके पूर्वजों को राजाश्रय प्राप्त हुआ था।
- त्रिपुरी के समकालीन सम्राट् प्रथम युवराज (915-945 ई.) ने उसे राजकवि पद प्रदान कर सम्मानित किया। त्रिपुरी में रहते हुये राजशेखर ने 'विद्धशालभंजिका' नामक नाटक और 'काव्यमीमांसा' नामक साहित्यशास्त्र विषयक ग्रंथ लिखा जो अपूर्ण रह गया।
- राजशेखर के ग्रंथों में मध्यप्रदेश के विशेष संदर्भ में प्राचीन भारतीय भूगोल, इतिहास और संस्कृति के संबंधित जानकारियों की भरमार है। ऐसा लगता है कि ये विषय राजशेखर को प्रिय थे। 'काव्यमीमांसा' में उसने विन्ध्य पर्वत श्रृंखला, नर्मदा (मेकलसुता), क्षिप्रा, शोण, पयोष्णी, तापी नदियों तथा अवन्ति, दशपुर, दाशेरक (मालवा), देवसभा (देवास), माहिष्मती, मालव, विदिशा, उज्जयिनी और चेदि प्रदेशों का कई संदर्भों में उल्लेख किया है।
- उसके ग्रंथों में उल्लिखित ऐतिहासिक जानकारियों से प्राचीन भारत के कई अनसुलझे ऐतिहासिक समस्याओं पर नया प्रकाश पड़ा है और उन्हें सुलझा लिया गया है। कनौज के गुर्जर प्रतिहार और त्रिपुरी के कलचुरि राजवंशों के इतिहास की कई नई जानकारियाँ उनके ग्रंथों से मिली हैं। मध्यप्रदेश की समकालीन संस्कृति पर भी उनके ग्रंथों में अपार भण्डार है।
विद्यापति
- वह त्रिपुरी के कलचुरि शासक कर्ण (1041-1073 ई.) का राजकवि था। इसके कुछ आकर्षक श्लोक राजा कर्ण की प्रशंसा में हैं।
गंगाधर
- काश्मीर के सुप्रसिद्ध कवि बिल्लण के 'विक्रमांकदेवचरित' से ज्ञात होता है कि कर्ण के दरबार में गंगाधर नामक कवि 'से था। इस गंगाधर के श्लोक श्रीधर के 'सदुक्तिकर्णामृत' में लिये गये हैं। उससे यह जान पड़ता है कि वह प्रतिभा सम्पन्न कवि रहा होगा। बिल्हण ने उसे कर्ण के दरबार में वाराणसी में आयोजित संगोष्ठी में पराजित किया था।
वल्लण
- कर्ण के राजदरबार का वह एक अन्य सुप्रसिद्ध कवि था। उसके कितने ही सुभाषित 'कवीन्द्रवचनसमुच्चय', 'सदुक्तिकर्णामृत' इत्यादि सुभाषित-संग्रहों में लिये गये हैं।
नाचिराज और कर्पूर
- कर्ण द्वारा राजाश्रित इन दोनों कवियों की कथायें भी मेरुतुंग के 'प्रबन्धचिन्तामणि' में आयी हैं। इन दोनों ने कर्ण की प्रशंसा में कई श्लोकों की रचना की।
कनकमार
- 'करकंडचरिऊ' नामक अपभ्रंश काव्य का रचयिता कनकमार कवि कर्ण के दरबार में कुछ समय तक था। उसने भी अपने लेखों में कर्ण की प्रशंसा की है।
अज्ञात कवि
- त्रिपुरी के कलचुरि सम्राटों द्वारा उपरोक्त राजाश्रित कवियों के अतिरिक्त समकालीन अभिलेखों में कई अज्ञात कवियों की रचनायें उद्धृत हैं।
- अतः स्पष्ट है कि कलचुरि सम्राटों के आश्रित कवि एवं लेखकों की रचनायें समकालीन मध्यप्रदेश के इतिहास और संस्कृति के जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
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