कहानी का अर्थ परिभाषा विशेषताएँ। कहानी का प्राचीन वर्तमान स्वरुप। Meaning Definition Characteristics of Story
कहानी का अर्थ परिभाषा विशेषताएँ
कहानी का स्वरूप
- गद्य के भीतर कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, निबन्ध, यात्रावृत्त, जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण, समीक्षा आदि विधाएं आती हैं। इनमें से कहानी, उपन्यास और नाटक को हम कथा - साहित्य कहते हैं।
- कथा-साहित्य में किसी न किसी घटना क्रम के सन्दर्भ में प्रेम, ईर्ष्या, रहस्य, रोमांच, जिज्ञासा और मनोरंजन संबधी भाव मिले-जुले होते हैं। कहानी का सम्बन्ध सृष्टि के प्रारम्भ से ही जोड़ा जाता है। मानव ने जिस दिन से भाषा द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति आरम्भ की होगी सम्भवतः उसी दिन उसने कहानी कहना और सुनना आरम्भ कर दिया होगा।
- प्रारम्भ में कहानी में व्यक्ति के अनुभव सीधे-सीधे कहे गये होंगे। यानि घटना या अनुभव को बॉटने की क्रिया ही कहानी बन गयी होगी। वास्तव में दो लोगों के बीच भूख-प्यास, सुख-दुःख, भय-आशंका, प्रेम-ईर्ष्या, जीवन और सुरक्षा की भावना समान और सामान्यतः पायी जाती है। निश्चित ही दूसरों के साथ हुई घटना को सुनने और अपने अनुभवों को सुनाने की इच्छा आज भी हर एक मनुष्य मे एक समान रूप से पायी जाती है। इसी सुनने की इच्छा ने कहने अर्थात् कहानी का प्रारम्भिक रूप बनाया होगा।
- स्पष्ट है कि मनुष्य के ज्ञान के साथ-साथ कहानी का विकास भी निरन्तर होता रहा है। मनुष्य के विकास का जो क्रम रहा वही कहानी के विकास का भी रहा है। जिस प्रकार आज मनुष्य का जीवन सरल से अत्यन्त जटिलता की ओर बढ़ा, कहानी का रुप भी उसी अनुरूप जटिल हो गया है। आज का जीवन तर्क प्रधान, बुद्धि प्रधान है, इसलिए कहानियां भी बुद्धि प्रधान हो गयी हैं।
कहानी का वर्तमान स्वरुप
- कहानी का वर्तमान स्वरुप आधुनिक युग की देन है। भारत में कहानियां अपने अत्यन्त प्राचीनतम रुप में मिलती हैं। वेदों में हम भले ही कहानी के मूल रुप का आभास न पाएँ किन्तु उनमें कहानियों की व्यापक परम्परा रही हैं। महाभारत, बौद्ध साहित्य, पुराण, हितोपदेश, पंचतन्त्र आदि कहानियों के भण्डार हैं। पन्चतंत्र तो वास्तव में विश्व की कहानियों का स्रोत माना जाता है।
- दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आधुनिक कहानी का यह स्वरूप अंग्रेजी साहित्य से होते हुए बँगला के माध्यम से मिला है। अपने प्राचीन रूप में गल्प, कथा, आख्यायिका, लघु कथा नाम से जानी जाने वाली कहानी का स्वरूप वर्तमान कहानी से बिलकुल अलग है।
- आजकल प्रचलित कहानियाँ मुख्यतः तीन रूपों में दृष्टिगत होती हैं जिन्हें कहानी, लघुकथा एंव लम्बी कहानी के नाम से जाना जाता है।
कहानी, लघुकथा, लम्बी कहानी
- हम ऊपर कहानी पर चर्चा कर चुके हैं। अब आपको कहानी के अन्य रूपों से अवगत कराते हैं। कहानी का दूसरा रूप है ‘लघुकथा' और तीसरा ‘लम्बी कहानी'। आजकल इन रूपों में कई रचनाएँ प्रकाशित हो रही हैं और लोग इन्हें एक ही मानने की भूल करते हैं। वे सोचते है कि कहानी छोटी होकर ‘लघुकथा' और आकार बड़ा होने पर ‘लम्बी कहानी' हो जाती है, जबकि आकार मे औसत होने वाली कहानी ही कहानी है।
- लघुकथा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए डा० पुष्पा बंसल ने कहा है “लघुकथा कहानी की सजातीय है, किन्तु व्यक्तित्व में इससे भिन्न। यह मात्र घटना हैं, परिवेश- निर्माण को पूर्णतया छोड़कर पात्र-चरित्र-चित्रण को भी पूर्णतया त्यागकर विशलेषण से अछूती रहकर, मात्र घटना (चरम सीमा) की प्रस्तुति ही लघुकथा हैं। लघुकथा में प्रेरणा बिन्दु का विस्तार नहीं होता है, केवल बिन्दु होता है। लघुकथा मनोरंजन नहीं करती मन पर आघात करती है। चेतना पर ठोकर मारती है और आँखों में उंगली डालकर यर्थाथ दिखाती है। लघुकथा में एक सुस्पष्ट नुकीला संवदेना-सूत्र प्रधान हो उठता है।"
- उक्त कथन के आलोक में कहा जा सकता है लघु कथा एकता, संक्षिप्ता, तीखेपन, व्यंग्य और घटना सूत्र के तीव्र प्रभाव पर विशेष ध्यान दिया जाता है। में दूसरी ओर जीवन की गहरी जटिलता ने 'लम्बी कहानी' को जन्म दिया। ‘लम्बाई' पृष्ठ संख्या की नहीं, अपितु साहित्य के क्षेत्र में नई दृष्टि की सूचक है। यहीं नई दृष्टि 'लंबी कहानी’ को कहानी से अलग करती है। घटना और परिवेश में, अंतर्द्वन्द्व में अर्थात् मनोभावों के चित्रण में विस्तार देकर चित्रित किया जाता है।
- इसीलिए घटना का इकहरापन होते हुए भी उसके एक से अधिक कोण स्पष्टता से उभर आते हैं और एक से अधिक पात्र उभर आते हैं। अर्थात् लम्बी कहानी में मुख्य पात्र के साथ-साथ घटना से जुड़े अन्य पात्र परिवेश की सम्पन्नता में स्थित होकर जीवन-सन्दर्भों की गहनता को विस्तार एवं आयाम प्रदान करते है। इसे संक्षेप में आप समझ सकते है। लम्बी कहानी में क्योंकि घटना और पात्रों के सन्दर्भ में 'एकता' या एक पक्ष का पालन नहीं होता, इसीलिए उसका आकार बढ़ जाता है किन्तु वह अपने कहानीपन को अक्षुण रखती हैं।
- यद्यपि कहानी जीवन के यर्थाथ से प्रेरित होती है तब भी इसमें कल्पना की प्रधानता रहती है। इसमें रचनाकार अपनी बात सीधे न कहकर कथा के माध्यम से कहता है।
कहानी का अर्थ और परिभाषा
कहानी का अर्थ
- 'कहानी' शब्द अंग्रेजी के 'शॉर्ट स्टोरी' का समानार्थी है। कहानी का शाब्दिक अर्थ है "कहना", इसी रूप में संस्कृत की 'कथ' धातु से कथा शब्द बना, जिसका अर्थ भी कहने के लिए प्रयुक्त होता है। कथ्य एक भाव है जिसे प्रकट करने के लिए कथाकार अपने मस्तिष्क में एक रूपरेखा बनाता है और उसे एक साँचे में ढाल कर प्रस्तुत करता है, वही 'कथा' कहलाती है।
- सामान्य बोलचाल की भाषा में 'कथा' और 'कहानी' शब्द एक पर्याय के रूप में जाने जाते रहे हैं; लेकिन आज कहानी कथा-साहित्य के एक आवश्यक अंग के रूप में प्रसिद्ध है।
- यद्यपि कहानी को किसी एक निश्चित परिभाषा या शब्दों में बाँधना कठिन कार्य है, फिर भी 'कहानी' को समझाने के लिए विद्वानों ने इसे परिभाषित करने का प्रयास किया है।
कहानी की परिभाषा
- हम पहले ही बता चुके हैं कि कहानी पश्चिम से आई विधा है। अतः सबसे पहले पश्चिमी विद्वानों की कतिपय परिभाषाओं को लिया जा सकता है।
- पाश्चात्य देशो में एडगर एलन पो आधुनिक कहानी के जन्मदाताओं में प्रमुख माने जाते
हैं। उन्होंने कहानी को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “छोटी कहानी एक
ऐसा आख्यान है, जो इतना छोटा है कि एक बैठक में पढ़ा जा सके और पाठक पर एक
ही प्रभाव उत्पन्न करने के उद्देश्यों से लिखा गया हो, वह स्वतः पूर्ण
होती है।”
हडसन के अनुसार कहानी की परिभाषा
- “लघु कहानी में
केवल ही मूल भाव होता है। उस मूल भाव का विकास तार्किक निष्कर्षों के साथ लक्ष्य
की एकनिष्ठता से सरल, स्वाभाविक गति से किया जाना चाहिए।” एलेरी ने कहानी
की सक्रियता पर अधिक बल दिया है और कहा कि, “वह घुड़दौड़ के
समान होती है। जिस प्रकार घुड़दौड़ का आदि और अंत महत्त्वपूर्ण होता है उसी प्रकार
कहानी का आदि और अंत ही विशेष महत्त्व का होता है।”
- इन परिभाषाओं पर यदि हम विचार करें तो पाते हैं कि कहानी में संक्षिप्तता और मूल भाव का ही महत्त्व होता है, जबकि कहानी के वास्तविक स्वरूप को ये पूर्ण नहीं करती। अतः यहाँ सर ह्यू बालपोल के विचार को समझना जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहानी के विषय में थोड़ा विस्तार से बताया है।
पोल के अनुसार,कहानी की परिभाषा
- “छोटी कहानी एक कहानी होनी चाहिए, जिसमें घटनाओं, दुर्घटनाओं, तीव्र कार्य
व्यापार और कौतूहल के माध्यम से चरम सीमा तक सन्तोषजनक पर्यवसान तक ले जाने वाले
अप्रत्याशित विकास का विवरण हो।”
- वस्तुतः ये परिभाषाएँ पश्चिम की साहित्यिक प्रवृत्तियों एवं विधा के अनुरूपों को उद्घाटित करती हैं। हिन्दी साहित्य में कहानी, बँग्ला कहानी साहित्य के माध्यम से आई। अतः कहानी में यहाँ का पुट भी शामिल हो गया। भारतीय समाज और संस्कृति का प्रभाव उसके स्वरूप में दिखाई देना स्वाभाविक था।
हिन्दी के विद्वानों का कहानी के सन्दर्भ में विचार
यहाँ हिन्दी के
विद्वानों का कहानी के सन्दर्भ में विचार जानना आवश्यक है। अतः अब हम भारतीय
विद्वानों के कहानी संबधी दृष्टिकोण पर विचार करते हैं। मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार, “कहानी (गल्प) एक
रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही
लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली तथा
कथा - विन्यास सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं।”
- बाबू श्यामसुन्दर दास का मत है कि, “आख्यायिका एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर नाटकीय आख्यान है।"
- बाबू गुलाबराय का विचार है कि, “छोटी कहानी एक स्वतः पूर्ण रचना है जिसमें एक तथ्य या प्रभाव को अग्रसर करने वाली व्यक्ति-केंद्रित घटना या घटनाओं के आवश्यक, परन्तु कुछ-कुछ अप्रत्ययाशित ढंग से उत्थान-पतन और मोड़ के साथ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला कौतूहलपूर्ण वर्णन हो।”
- इलाचन्द्र जोशी के अनुसार "जीवन का चक्र नाना परिस्थितियों के संघर्ष से उल्टा सीधा चलता रहता है। इस सुवृहत् चक्र की किसी विशेष परिस्थिति की स्वभाविक गति को प्रदर्शित करना ही कहानी की विशेषता है।"
- जयशंकर प्रसाद कहानी को सौन्दर्य की झलक का रस' प्रदान करने वाली मानते हैं।
- रायकृष्णदास कहानी को ‘किसी न किसी सत्य का उद्घाटन करने वाली तथा मनोरंजन करने वाली विधा कहते हैं।
- 'अज्ञेय' कहानी को 'जीवन की प्रतिच्छाया' मानते है तो जैनेन्द्र की कोशिश करने वाली एक भूख' कहते हैं। कुमार 'निरन्तर समाधान पाने
- ये सभी परिभाषाएँ भले ही कहानी के स्वरूप को पूर्णतः स्पष्ट नहीं करती हैं, परन्तु उसके किसी न किसी पक्ष को जरूर प्रदर्शित करती हैं। हम यह कह सकते हैं कि किसी साहित्य-विधा की कोई ऐसी परिभाषा देना मुश्किल है जो उसके सभी पक्षों का समावेश कर सके या उसके सभी रूपों का प्रतिनिधित्व कर सके। कहानी में साधारण से साधारण बातों का वर्णन हो सकता है, कोई भी साधारण घटना कैसे घटी, को कहानी का रूप दिया जा सकता है परन्तु कहानी अपने में पूर्ण और रोमांचक हो । जाहिर है कहानी मानव जीवन की घटनाओं और अनुभवों पर आधारित होती है जो समय के अनुरूप बदलते हैं ऐसे में कहानी की निश्चित परिभाषा से अधिक उसकी विशेषताओं को जानने का प्रयास करें।
कहानी की विशेषताएँ
उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि कहानी में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं
1. कहानी एक कथात्मक संक्षिप्त गद्य रचना है, अर्थात कहानी आकार में छोटी होती है जिसमें कथातत्व की प्रधानता होती है।
2. कहानी में 'प्रभावान्विति' होती है अर्थात् कहानी में विषय के एकत्व प्रभावों की एकता का होना भी बहुत आवश्यक है।
3. कहानी ऐसी हो, जिसे बीस मिनट, एक घण्टा या एक बैठक में पढ़ा जा सके। 4. कौतूहल और मनोरंजन कहानी का आवश्यक गुण है।
5. कहानी में जीवन का यर्थाथ होता है, वह यर्थाथ जो कल्पित होते हुए भी सच्चा लगे ।
6. कहानी में जीवन के एक तथ्य का, एक संवेदना अथवा एक स्थिति का प्रभावपूर्ण चित्रण होता है।
7. कहानी में तीव्रता और गति आवश्यक है जिस कारण विद्वानों ने उसे 100 गज की दौड़ कहा है। अर्थात कहानी आरम्भ हो और शीघ्र ही समाप्त भी हो जाए।
8. कहानी में एक मूल भावना का विस्तार आख्यानात्मक शैली में होता है।
9. कहानी में प्रेरणा बिन्दु का विस्तार होता।
10. कहानी की रूपरेखा पूर्णतः स्पष्ट और सन्तुलित होती है।
11. कहानी में मनुष्य के पूर्ण जीवन नहीं बल्कि उसके चरित्र का एक अंग चित्रित होता है, इसमें घटनाएँ व्यक्ति केन्द्रित होती हैं।
12.
कहानी अपने आप में पूर्ण होती है।
उक्त विशेषताओं को आप ध्यान से बार-बार पढ़कर कहानी के मूल भाव और रचना प्रक्रिया को समझ पायेंगे। इन सब लक्षणों या विशेषताओं को ध्यान में रखकर हम आसान शब्दों में कह सकते हैं कि--“कहानी कथातत्व प्रधान ऐसा खण्ड या प्रबन्धात्मक गद्य रूप है, जिसमें जीवन के किसी एक अंश, एक स्थिति या तथ्य का संवेदना के साथ स्वतः पूर्ण और प्रभावशाली चित्रण किया जाता है। किसी भी कहानी पर विचार करने से पहले उसे पहचानना आवश्यक होता है। आगे के पाठों में हम इस पर और विस्तार से बात करेंगे।
बहुत बहुत धन्यवाद सरजी आपने कहानी के बारे में बहुत ही अच्छी जानकारी दी है।
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