मध्य प्रदेश की मध्य उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति ।मध्य प्रदेश की मध्य पाषाण कालीन Middle Palaeolithic Culture of Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश की मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति (Middle Palaeolithic Culture of MP)
(2) मध्य प्रदेश की मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति :
- मध्यप्रदेश के बहुत से स्थानों से मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण मिले हैं। इस काल के उपकरण नर्मदा घाटी में नरसिंहपुर, होशंगाबाद और महेश्वर से मिले हैं।
- नर्मदा के दोनों ओर डोंगरगाँव और चोली पर कई कार्य-स्थल पाये गये हैं। पिपरिया में ए. पी. खत्री ने इस युग के बहुत से उपकरण अशूलियन उपकरणों के साथ मिले हुये पाये हैं।
- सगुनघाट के चबूतरे से भी बहुत से मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण खोजे गये हैं। सूपेकर ने अमरकंटक और मंडला के बीच इस काल के बारह कार्य-क्षेत्र ढूंढे।
- चम्बल घाटी में मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण मंदसौर और नाहरगढ़ से पाए गए हैं। एक कार्य-स्थल इंदौर में खड़की माता और राऊ में भी स्थित है।
- सिहोरा के धसान में एक समृद्ध मध्य पुरापाषाण कालीन स्थल स्थित है। बेतवा के गोंची नामक स्थान पर, रामेश्वर सिंह द्वारा 230 उपकरण एकत्रित किये गये हैं। इस काल के उपकरण भीमबेटका की खुदाई में भी मिले हैं।
- दमोह में सोनार और व्यारमा घाटी में आर.वी. जोशी ने इस काल के उपकरणों को 12 स्थालों से खोजा है।
- उच्च सोन घाटी के उत्खनन से, निसार अहमद ने 45 स्थलों से 485 उपकरण एकत्रित किए।
- आल्विन ने भी पांडव झरना, बधेन नदी बजरी, कन्हारी मैदान और रेहुन्तिया के भी चार स्थलों का उल्लेख किया है। जी. आर. शर्मा ने मध्य पूर्वपाषाण कालीन स्थलों को बल्लीघाट, ककरहिया और रीवा जिले के मिसीरपुर में स्थित पाया।
(3) मध्य प्रदेश की उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति :
- उच्च सोन घाटी के उत्खनन के दौरान, निसार अहमद सीधी और शहडोल जिले के कई ऐसे कई स्थलों पर गए जहाँ उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति के उपकरण पाए गए। मंडला के निकट नर्मदा की एक सहायक नदी बंजर के तट पर स्थित बमनी में छुरी और छैनी भी मिले हैं। ये उपकरण भीमबेटका के स्तर-वैन्यासिक उत्खनन स्तर और ग्वालियर तथा रीवा जिले के उत्खननों में भी मिले हैं।
(4) मध्य प्रदेश की मध्य पाषाण कालीन संस्कृति :
- मंदसौर, रतलाम, उज्जैन, इंदौर, खंडवा और निमाड़ जिले में चम्बल घाटी में किए गए उत्खनन के दौरान बहुत से लघु-पाषाणीय स्थल निकले हैं। शहडोल, रीवा, मंदसौर, सिहोर, भोपाल, होशंगाबाद, उज्जैन, जबलपुर, मंडला, छतरपुर, विदिशा, सागर, गुना, पन्ना, छिंदवाड़ा, और धार की खुदाई में भी बहुत से लघु-पाषाणीय स्थल निकले हैं।
- आदमगढ़ के उत्खनन से निकले लुघ-पाषाणीय उद्योग-स्थल को 5500 ई.पू.+130 का माना गया है। वी. वी. मिश्रा ने भीमबेटका की गुफाओं के उत्खनन में ब्लेड अवयवों के विकास को रेखांकित किया है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दल व जे. डी. क्लार्क ने बालाघाट और मंडला जिलों में उत्खनन करके बहुत से मध्यपाषाणीय स्थलों का पता लगाया।
(5) मध्य प्रदेश की शैल चित्र संस्कृति :
- चित्रित शैलाश्रयों की दृष्टि से मध्यप्रदेश भारत का सबसे समृद्ध प्रदेश है। हजारों की संख्या में मौजूद ये शैलाश्रय प्रदेश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली हुई हैं और इसमें होशंगाबाद, सागर, रीवा, मंदसौर, जबलपुर, दमोह, सिहोर, रायसेन, ग्वालियर, पूर्वी निमाड़, विदिशा, शिवपुरी, छिंदवाड़ा, छतरपुर, पन्ना, नरसिंहपुर आदि जिले शामिल हैं। इनमें हरे, लाल सफेद, काले, पीले आदि रंगों से एक के ऊपर एक बने हुए कई चित्र हैं जिनमें पाषाणकालीन रोजमर्रा की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को चित्रित किया गया है। इनमें से कुछ चित्र अवश्य ही ऐतिहासिक काल के हैं। इन चित्रों के अंकनकर्ता और काल को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं।
(6) मध्य प्रदेश की नव पाषाण संस्कृति :
- नव पाषाण संस्कृति उस काल की द्योतक है जब मानव संस्कृति, शिकारी और खानाबदोश जीवन से व्यवस्थित या सामाजिक जीवन में परिवर्तित हो रही थी। म. प्र. में, इस काल के द्योतक, अच्छी तरह तराशे और चमकाए गए पाषाण उपकरण अर्जुनी, एरण, कुण्डम, गढ़ीमोरिला, जतकारा, जबलपुर, दमोह, बहूतराई, बुरेचुन्का, मुनई, सागर, हटा और होशंगाबाद में पाए गए हैं।
(7) ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति
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