मध्यप्रदेश प्रागैतिहासिक काल एवं आद्य-इतिहास।मध्यप्रदेश में प्रागैतिहासिक संस्कृतियों का विकास। MP Prehistoric Era in Hindi
मध्यप्रदेश प्रागैतिहासिक काल (MP Prehistoric Era in Hindi)
मध्यप्रदेश प्रागैतिहासिक काल एवं आद्य-इतिहास
मध्यप्रदेश प्रागैतिहासिक काल एवं आद्य-इतिहास का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत करेंगे -
पुरापाषाण काल - मध्यप्रदेश
नामकरण-
मध्य प्रदेश में प्रातिनूतन कालीन जमाव एवं संस्कृतियों का विकास
- चम्बल घाटी
- बेतवा घाटी नर्मदा घाटी
- सोन घाटी
- भीमबैठका
- आदमगढ़
अ. निम्न पुरापाषाण काल
- उपकरण प्रसार
- स्तरीकरण
- तिथि निर्धारण
ब. मध्य पुरापाषाण काल
- उपकरण प्रसार
- स्तरीकरण
- जीवाश्म
- तिथि निर्धारण
स. उच्च पुरापाषाण काल
- उपकरण एवं प्रसार
- स्तरीकरण
- अस्थि उपकरण
- आभूषण
- प्रागैतिहासिक कला
- तिथि निर्धारण
मध्यपाषाण काल
- उपकरण
- प्रसार
- स्तरीकरण
- प्रमुख पुरास्थलों का विवरण: भीमबैठका, आदमगढ़, पचमढ़ी, गुप्तेश्वर, बाँकी
- शवावशेष
- निवास पद्धति
- भोजन
- शैल चित्रण
- मृद्भाण्ड
नवपाषाण एवं ताम्र-पाषाण काल
- मृद्भाण्ड:
- मृद्भाण्डों पर चित्रण
- कायथा मृद्भाण्ड
- जोर्वे मृद्भाण्ड
- कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड
- मालवा मृद्भाण्ड
- खुरदुरे लाल-काले मृद्भाण्ड
- धूसर मृद्भाण्ड
- आवास पद्धति
- खाद्य सामग्री
- धातु उपकरण
- पाषाण उपकरण
- मृण्मूर्तियाँ
- आभूषण
- धार्मिक दशा
- शवावशेष
पुरापाषाण काल
- भारत में पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विषय में शोध लगभग 150 वर्ष पुराना है। सन् 1863 में प्रथम उपकरण की प्राप्ति से संस्कृतियों के नामकरण पर भारत में सोच प्रारंभ हुई।
- प्रथमतः राबर्ट ब्रूश फूट ने संस्कृतियों के अवशेषों को कालों में विभाजित कियाः पुरापाषाण काल, नव पाषाण काल, प्रारंभिक एवं उत्तर लौह काल। कालान्तर में किये गये सर्वेक्षणों के परिणाम स्वरूप अन्य संस्कृतियों के अवशेष जैसे लघु पाषाण उपकरण आदि प्रतिवेदित किये गये। ये अवशेष, पूर्व में किये गये वर्गीकरण में स्थान न पा सके। अतः इस नामकरण में संशोधन की आवश्यकता महसूस की गई।
- कैमियड एवं बर्किट 2 ने इसे सीरीज-I, सीरीज-II, सीरीज-III एवं सीरीज-IV नामकरण पूर्व नव पाषाण कालीन संस्कृतियों के लिये प्रस्तावित किया।
- यह नामकरण यूरोप की पाषाण कालीन संस्कृतियों के समकक्ष था जो कि सेरीज-I के लिये निम्न पुरापाषाण काल (Lower Palaeolithic), सीरीज-II के लिये मध्य पुरापाषाण काल (Middle Palaeolithic), सीरीज-III के लिये उच्च पुरापाषाण काल (Upper Palaeolithic), सीरीज-IV के लिये मध्य पाषाण काल (Mesolithic) संस्कृतियों के रूप में थी।
- तत्कालीन भारतीय संस्कृति के अवशेष यूरोपीय संस्कृतियों के समकक्ष नहीं थे। इसी बीच साँकलिया को प्रवरा नदी पर नेवासा से तीन सांस्कृतिक क्रम प्राप्त हुये जिनमें मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति की प्राप्ति महत्वपूर्ण थी।
- इस संस्कृति का नामकरण प्रवरा नदी पर नेवासा से प्राप्त होने के कारण बनर्जी द्वारा 'नेवासियन' रखा गया, परन्तु अभी भी उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृतियों के अवशेषों में कमी थी।
- इस बीच सुब्बाराव द्वारा "Personality of India" पुस्तक का प्रकाशन किया गया, जिसमें प्रागैतिहासिक संस्कृतियों हेतु अफ्रीकी संस्कृतियों के समकक्ष नामकरण अपनाया गया जो प्रारंभिक पाषाण काल (Early Stone Age), मध्य पाषाण काल (Middle Stone Age) एवं अन्त पाषाण काल ( Late Stone Age) के रूप में थीं।
- इस प्रागैतिहासिक नामकरण में मध्य पुरापाषाण काल एवं उत्तर पाषाण कालीन संस्कृतियाँ मध्य पाषाण काल के अन्तर्गत समाहित थीं सन् 1962 की पुरातत्त्व संगोष्ठी में प्रागैतिहासिक संस्कृति के नामकरण पर विस्तृत विमर्श किया गया एवं सम्पूर्ण अवशेषों के अभाव में अफ्रीकी नामकरण लागू रखने का निर्णय लिया गया। अब भी विभिन्न विद्वानों द्वारा अलग-अलग नामकरण प्रयोग जारी रहा।
- भारतवर्ष की विभिन्न नदी घाटियों एवं क्षेत्रों में शोध कार्य एवं सर्वेक्षण चलता रहा। नवीन प्रकार के सांस्कृतिक अवशेष प्रतिवेदित किये जाते रहे। नये प्रकार के अवशेष ब्लेड-ब्यूरिन उद्योग के उपकरण अनेक पुरास्थलों से प्राप्त हुये जिनकी समानता यूरोप की उत्तर पुरापाषाण कालीन सांस्कृतिक अवशेषों से थी, परन्तु अफ्रीकी नामकरण में स्थान नहीं था। ये उपकरण विकास क्रम में मध्य पुरापाषाण काल एवं मध्य पाषाण काल के मध्य स्तरीकृत एवं सतही प्रकार के पुरास्थलों से प्राप्त हो रहे थे-जैसे, कुरनूल क्षेत्र (आंध्रप्रदेश), शोरापुर दोआब (कर्नाटक), एवं बेलन घाटी (उत्तर प्रदेश) 6 विसादी (गुजरात) 7 ।
- अतः सन् 1964 में डेक्कन कॉलेज, शोध संस्थान पूना अधिवेशन एवं सन् 1972 बम्बई अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि सभी प्रकार के क्रमबद्ध सांस्कृतिक विकास दर्शाने वाले अवशेष भारतवर्ष में भी हैं।
- इसी बीच मध्यप्रदेश के भीमबैठका में किये गये उत्खनन में सांस्कृतिक विकास के विभिन्न चरण प्रतिवेदित किये गये एवं यूरोपीय सांस्कृतिक विकास के स्तरीकृत अवशेष भारतवर्ष में अन्य पुरास्थलों से प्राप्त हुए।
इन सभी प्रागैतिहासिक अवशेषों के आलोक में एवं
स्तरीकृत सांस्कृतिक क्रमबद्धता के कारण भारतीय पुरातत्त्व के पुरोधा सांकलिया ने
सन् 1974 में अपनी पुस्तक "प्रीहिस्ट्री एवं प्रोटोहिस्ट्री ऑफ इण्डिया एण्ड
पाकिस्तान" में समान यूरोपीय अवशेषों की भारतवर्ष में प्राप्ति के कारण
यूरोपीय नामकरण:-
- निम्न पुरापाषाण काल- Lower Palaeolithic Period
- मध्य पुरापाषाण काल- Middle Palaeolithic Period
- उच्च पुरापाषाण काल- Upper Palaeolithic Period
- मध्य पाषाण काल- Mesolithic
- प्रस्तावित किया। इस प्रकाशन के उपरान्त भारतवर्ष में अनेक सर्वेक्षण एवं उत्खनन किये गये जहाँ से उपरोक्त प्रागैतिहासिक सांस्कृतिक क्रमबद्धता स्तरीकृत रूप में प्रतिवेदित किये गये एवं अनेक प्रागैतिहासिक सांस्कृतिक क्रमबद्धता संबंधी प्रकाशनों में यूरोपीय नामकरण प्रकाशित हुए। इस प्रकार नामकरण संबंधी वैचारिक भिन्नता को विराम मिला।
- विश्व में शैल चित्रकला में सबसे समृद्ध पुरास्थल भीमबैठका की प्राथमिक रिपोर्ट "Bhimbetka: Prehistoric Man and His Art in Central India" 1977 में प्रकाशित हुई थी। उसमें भी पूर्व नव पाषाण कालीन संस्कृतियों को अवशेषों के आधार पर उपरोक्त यूरोपीय नामकरण दिया गया एवं प्रकाशित किया गया ।
मध्यप्रदेश में प्रातिनूतन कालीन जमाव एवं प्रागैतिहासिक संस्कृतियों का विकास
- पुरातात्त्विक दृष्टि से मध्यप्रदेश अत्यंत समृद्ध है। यह प्रदेश कुछ विशेषतायुक्त है जो और किसी प्रदेश में नहीं है। यहाँ भारत की अनेक प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है- जैसे, चम्बल, बेतवा, केन, पार्वती, सोन, नर्मदा, ताप्ती आदि। कुछ महत्वपूर्ण नदियाँ जैसे नर्मदा, सोन एवं ताप्ती तो भारतवर्ष की महत्वपूर्ण नदियाँ हैं।
- यह सम्पूर्ण प्रदेश विभिन्न पर्वत मालाओं द्वारा आच्छादित है जिनमें अनेक प्रकार के पाषाण प्रकार मिलते हैं। इन पर्वत श्रेणियों जैसे विन्ध्य एवं सतपुड़ा से अनेक नदियाँ उद्गमित होकर विभिन्न प्रकार के जमाव बनाती हैं।
- चम्बल नदी के जमाव अत्यन्त समृद्ध हैं एवं बलुए होने के कारण कटाव, कटाव होने के कारण अत्यन्त गहरे हैं जिन्हें बीहड़ (Ravines) कहा जाता है।
- प्रागैतिहासिक दृष्टि से भी मध्यप्रदेश अत्यंत समृद्ध है। सभी प्रागैतिहासिक संस्कृतियों के अवशेष इस प्रदेश से प्राप्त होते हैं। निम्न पुरापाषाण काल के अत्यंत समृद्ध अवशेष मध्यप्रदेश में मौजूद हैं जो कि स्तरीकृत एवं उत्खनित दोनों ही प्रकार के हैं। ये जमाव प्रातिनूतन काल एवं नूतन काल में हुए प्राकृतिक परिवर्तनों के फलस्वरूप जमा हुए।
- चूंकि प्राकृतिक परिवर्तन का प्रभाव मानव के ऊपर भी पड़ा, मानव भी बदली हुई परिस्थिति के अनुसार अपने जीवन यापन में परिवर्तन हेतु बाध्य हुआ। जलवायु परिवर्तन के प्रमाण हमें ग्रैवेल के रूप में नदियों पर प्राप्त होते हैं। ग्रैवेल जमाव प्रातिनूतन कालीन हैं एवं पुरापाषाण कालीन उपकरण इनमें प्राप्त होते हैं। ऊपरी मिट्टी का जमाव नूतन कालीन है एवं इसमें मध्य पाषाण कालीन उपकरण प्राप्त होते हैं। सभी नदियों पर प्रातिनूतन कालीन जमाव प्राप्त होते हैं। ये जमाव पुराने जमाव (Older Alluvium) एवं नवीन जमाव (Younger Alluvium) दोनों ही प्रकार के हैं।
- नदियों के किनारे, कगारों या तट के रूप में ऊँचे हैं एवं नदी के दोनों ओर मिट्टी के जमाव के रूप में हैं। पुराने जमाव प्रातिनूतन काल के समझे जाते हैं। इस जमाव में तीन ग्रैवेल जमाव हैं जो बोल्डर कांग्लोमिरेट, सैण्डी पेवली ग्रैवेल एवं सैण्डी ग्रैवेल के रूप में जाने जाते हैं जिनमें क्रमशः निम्न पुरापाषाण काल, मध्य पुरापाषाण काल एवं उच्च पुरापाषाण के उपकरण प्राप्त होते हैं।
- इन जमावों में उपकरणों के साथ प्रातिनूतन कालीन जीवाश्म प्राप्त होते हैं जो तिथि निर्धारण में सहायक हैं। इन जमावों के ऊपरी स्तरों से नूतन कालीन जमाव प्राप्त होते हैं। ये जमाव मिट्टी के (सैण्ड-सिल्ट) हैं। ऊपरी जमाव कभी-कभी बहुत मोटे 30-40 मी. निर्मित हैं। इनमें मध्य पाषाणकाल के उपकरण प्रतिवेदित किये गये हैं। ऐसे जमाव सोन घाटी एवं नर्मदा घाटी में अनेक हैं।
मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण नदियों पर स्थित जमाव एवं उनमें प्राप्त प्रागैतिहासिक संस्कृति के अवशेषों का विवरण-
चम्बल घाटी पर प्रागैतिहासिक संस्कृति के अवशेषों का विवरण
- चम्बल नदी भारत की एक महत्वपूर्ण नदी है। यह मध्यप्रदेश में इन्दौर के पास से उद्गमित होकर राजस्थान में प्रवेश करती है। पश्चिमी राजस्थान की सभी महत्वपूर्ण नदियाँ चम्बल की सहायिकायें हैं एवं पश्चिमी राजस्थान में यह जीवन रेखा समझी जाती है। कुछ क्षेत्रों में यह मध्यप्रदेश एवं राजस्थान एवं उत्तरप्रदेश की सीमा रेखा तय करती है।
- राजस्थान में इस नदी पर एवं इसकी सहायिकाओं पर निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति से मध्य पाषाण कालीन संस्कृति के प्रमाण प्रतिवेदित किये गये हैं। मध्यप्रदेश में इसकी सहायिकाओं, जैसे पार्वती नदी पर सर्वेक्षण कार्य किया गया जिसके परिणामस्वरूप अनेक निम्न पुरापाषाण कालीन से उच्च पुरापाषाण कालीन अवशेष प्रतिवेदित किये गये।
- मध्यप्रदेश में भी चतुर्थक जमाव समृद्ध मिला है, जहाँ से सैण्डी-पेवली ग्रैवेल से मध्य पुरापाषाण संस्कृति के अवशेष स्तरीकृत ग्रैवेल के साथ लेखक द्वारा प्रतिवेदित किये गये।
- चार मी. मोटे सैण्डी-पेवली जमाव के ऊपर 10 मी. मोटा मिट्टी एवं सिल्ट का जमाव गुना जिले में मोहम्मदपुरा से प्राप्त किया गया है ।
- सैण्डी-पेवली ग्रैवेल से बॉस प्रजाति के विभिन्न जीवाश्म मध्य पुरापाषाण उपकरणों के साथ प्रतिवेदित किये गये हैं। ये पुरास्थल नदी के किनारे ग्रैवेल के रूप में एवं नदी से 4-5 कि.मी. दूर पहाड़ों की ढलान पर सतही प्राप्त हुए हैं। कालान्तर में लखविन्दर सिंह द्वारा अनेक उच्च पुरापाषाण कालीन पुरास्थल इस नदी पर खोजे गये ।
- चम्बल की सहायिका सांक एवं सुवर्णरेखा पर, ग्वालियर के पास गुप्तेश्वर से निम्न पुरापाषाण, मध्य पुरापाषाण एवं मध्य पाषाण संस्कृति स्तरीकृत रूप में प्रतिवेदित की गई। यहाँ पर शैलाश्रय में मध्य पाषाण कालीन जमाव एवं शैलचित्र कला के प्रमाण प्रतिवेदित किये गये। शैलाश्रय के बाहर पहाड़ की ढलान पर उत्खनन कार्य किया गया। यहाँ 3 स्तरों पर जमाव पाया गया। यहाँ पर निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण कंकड़ी ग्रैवेल से प्रतिवेदित किये गये। उत्खनन के परिणामस्वरूप लगभग 1000 उपकरण पाये गये जिनमें स्क्रैपर की संख्या अधिक है। शैलाश्रय में उत्खनन में मध्य पाषाण काल से संबंधित स्तर है।
- सन् 1986-87 में लेखक द्वारा इस क्षेत्र का गहन सर्वेक्षण किया गया जिसके परिणामस्वरूप निम्न पुरापाषाण से मध्य पाषाण तक के अनेक पुरास्थल सांस्कृतिक क्रमबद्धता दर्शाते हुए प्रतिवेदित किये गये।
बेतवा घाटी पर प्रागैतिहासिक संस्कृति के अवशेषों का विवरण
- बेतवा घाटी मध्यप्रदेश के ओबेदुल्लागंज (भोपाल के पास) से उद्गमित होती है एवं मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से बहती हुई, यमुना में मिलती है। इस नदी पर चतुर्थक काल सम्बन्धी जमाव अलग-अलग स्थानों पर 15-20 मी. मोटाई तक प्राप्त हुए हैं।
- ग्रैवेल जमाव नदी के सतह पर निर्मित है जो मुख्य नदी एवं सहायिकाओं पर स्थित है। ग्रैवेल जमाव से निम्न पुरापाषाण काल, एवं मध्य पुरा पाषाण काल के उपकरण स्तरीकृत रूप में प्राप्त हुये हैं।
- इस नदी घाटी पर मुख्य रूप से दो ग्रैवेल जमाव प्राप्त हैं निम्न ग्रैवेल से निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण एवं - ऊपरी ग्रैवेल से मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण।
- ऊपरी जमाव जो मिट्टी का जमाव है, से मध्य पाषाण कालीन उपकरण प्रतिवेदित किये गये हैं। इस नदी घाटी में ललितपुर (उत्तरप्रदेश) में रामेश्वर सिंह द्वारा 1965 में उत्खनन किया गया था। कालान्तर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा भी इस नदी पर उत्खनन किया गया।
- जमाव के कुछ उदाहरण बीना के पास कठोरा, विदिशा एवं दमोह क्षेत्र में इसकी सहायिका सोनार पर अनेक पुरास्थल स्थित हैं । इस नदी पर देवगढ़ के पास उच्च पुरापाषाण कालीन उपकरण सैण्डी जमाव से प्रतिवेदित किये गये।
- इस नदी पर प्रागैतिहासिक संस्कृति क्रम निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण से मध्य पाषाण कालीन उपकरण प्रतिवेदित किये गये हैं।
- बेतवा उद्भव क्षेत्र से अनेक शैलाश्रय शैलचित्रों सहित प्राप्त हुए हैं। ऊपरी जमाव एवं शैलाश्रयों में मध्य पाषाण काल के लघु उपकरण प्राप्त हुए हैं।
Post a Comment