MP Soil (Mitti) Fact in Hindi । मध्यप्रदेश की मृदा (मिट्टी) महत्वपूर्ण जानकारी
MP Soil (Mitti) Fact in Hindi मध्यप्रदेश की मिट्टी महत्वपूर्ण जानकारी
MP Soil (Mitti) Fact in Hindi मध्यप्रदेश की मिट्टी महत्वपूर्ण जानकारी
- मध्य प्रदेश में विभिन्न प्रकार की मृदा पाई जाती है।
- पश्चिम में मालवा, विन्ध्य, निमाड़ पठार एवं नर्मदा घाटी में काली से गहरी काली मृदा मिलती है।
- बुन्देलखंड एवं उत्तरी मध्य प्रदेश में ग्रिड क्षेत्र में मिश्रित काली से लाल कंकरीली मृदा है।
- मुरैना, भिण्ड एवं ग्वालियर में दोमट तथा पूर्व और दक्षिण के पठारों और मैदानों में काली तथा लाल मिट्टी पाई जाती है।
मध्य प्रदेश में मिट्टियों के वितरण क्षेत्र
- कछारी मिट्टी -मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर, श्योपुर
- जलोढ़ मिट्टी- मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर, शिवपुरी
- लाल-पीली मिट्टी -मंडला, बालाघाट, शहडोल, सीधी
- कंकरीली मिट्टी -मंडला
- काली-पीली मिट्टी -बालाघाट
- गहरी काली मिट्टी-होशंगाबाद
- छिछली काली मिट्टी -छिन्दवाड़ा, बैतूल, सिवनी
- साधारण काली मिट्टी- झाबुआ, मंदसौर, खरगौन, खंडवा, इंदौर, देवास, सीहोर, शाजापुर, आगर, दमोह, जबलपुर
- मिश्रित मिट्टी -पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी, छतरपुर, सतना, रीवा
मध्य प्रदेश में काली मिट्टी
- काली मिट्टी मध्य प्रदेश में मालवा पठार, सतपुड़ा के कुछ भाग तथा नर्मदा घाटी में मिलती है। जिले स्तर पर यह मंदसौर, रतलाम, झाबुआ, धार, खंडवा खरगौन, इंदौर, देवास, सीहोर, उज्जैन, शाजापुर, राजगढ़, भोपाल, रायसेन, विदिशा, सागर, दमोह, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, गुना, शिवपुरी, सीधी आदि जिलों में फैली है।
- काली मिट्टी प्रदेश के 47.6 प्रतिशत क्षेत्र में पाई जाती है।
- फसलें - कपास, तिलहन, मोटे अनाज, खट्टे फल इसमें लोहा, चूना, एल्यूमिनियम, कैल्शियम व मैग्नीशियम पाया जाता है, परंतु नाइट्रोजन, फास्फोरस कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है।
काली मिट्टी मुख्यतः दो प्रकार की होती है -
- (i) गहरी काली मिट्टी
- (ii) छिछली काली मिट्टी
मध्य प्रदेश में गहरी काली मिट्टी-
- यह मिट्टी मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी, मालवा एवं सतपुड़ा पठार के विस्तृत भागों में लगभग 1.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर पाई जाती है।
- इसमें चिकनी मिट्टी की मात्रा 20-60 प्रतिशत होती है तथा इसकी गहराई 1-2 मीटर है।
- प्रदेश में यह मिट्टी गेहूं, तिलहन, चना तथा ज्वार की कृषि के लिए उपयोगी है।
मध्यप्रदेश में छिछली काली मिट्टी
- यह मिट्टी मुख्य रूप से छिन्दवाड़ा, सिवनी तथा बैतूल जिलों में पाई जाती है।
- राज्य में इसका क्षेत्रफल लगभग 75 लाख एकड़ है, जो राज्य का 7.5 प्रतिशत है।
- यह गेहूं एवं चावल की कृषि के लिए उपयोगी है।
- इसमें लोहा व एल्यूमिनियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, चूना की कमी पाई जाती है।
- यह मिट्टी बाजरा, आलू, रागी, मूंगफली के लिए उपयुक्त होती है।
मध्यप्रदेश में लाल-पीली मिट्टी
- लाल-पीली मिट्टी का निर्माण आर्कियन, धारवाड़ तथा गोण्डवाना चट्टानों के ऋतुक्षरण से हुआ है। लाल-पीली मिट्टियां साधारणत: साथ-साथ पाई जाती हैं। लाल रंग लोहे के ऑक्सीकरण तथा पीला रंग फेरिक ऑक्साइड के जलयोजन के कारण होता है। यह हल्की बलुई मिट्टी है।
मध्य प्रदेश में जलोढ़ मिट्टी
- जलोढ़ मिट्टी का निर्माण बुन्देलखंड नीस तथा चम्बल द्वारा निक्षेपित पदार्थों से हुआ है। यह मिट्टी प्रदेश के मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर तथा शिवपुरी जिलों में लगभग 30 लाख एकड़ क्षेत्रफल में फैली है।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन, जैव तत्त्व तथा फॉस्फोरस की कमी पायी जाती है।
- इसमें नाइट्रोजन व ह्यूमस की कमी पाई जाती है, परंतु चूना, फॉस्फोरस, कार्बनिक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
मध्य प्रदेश में कछारी मिट्टी
- कछारी मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा बाढ़ के समय अपवाह क्षेत्र में निक्षेपित पदार्थों से हुआ है। प्रदेश में इस मिट्टी का विस्तार ग्वालियर, भिण्ड एवं मुरैना जिलों में है।
- यह मिट्टी गेहूं, गन्ना तथा कपास की फसल के लिए और उपयुक्त है।
मध्य प्रदेश में मिश्रित मिट्टी
- प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में लाल, पीली एवं काली मिट्टी मिश्रित रूप में पाई जाती है।
- यह मिट्टी फॉस्फेट, नाइट्रोजन एवं कार्बनिक पदार्थों की कमी वाली कम उपजाऊ मिट्टी है।
- इस मिट्टी में मुख्य रूप से ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाज पैदा किए जाते हैं।
मध्य प्रदेश में भूमि का उपयोग
- छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद पुनर्गठित मध्य प्रदेश का न कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 307.56 लाख हेक्टेयर है।
- वर्ष 2009-10 के लिए मध्य प्रदेश का भूमि उपयोग वर्गीकरण यह दर्शाता है कि राज्य का लगभग आधा भौगोलिक क्षेत्रफल (49 प्रतिशत) शुद्ध बुआई क्षेत्रफल है और इसके अतिरिक्त क्षेत्रफल परती एवं खेती योग्य बेकार भूमि के अन्तर्गत है, इस प्रकार उपयुक्त तकनीकों के द्वारा प्रभावी प्रयासों से भविष्य में 57 प्रतिशत भूमि को उत्पादन क्षमता में सम्मिलित किया जा सकता है।
- बेकार भूमि के विकास एवं जल संरक्षण की योजनाओं पर विशेष जोर देकर जीविका के नये-नये साधनों न के द्वार खोले जा सकते हैं।
- राज्य में दो-तिहाई से अधिक ( 67.61% ) संचालित जोतें लघु सीमान्त प्रकृति की हैं।
मृदा की उर्वरा शक्ति
- देश के विभिन्न जिलों में राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी.आई.एस.) के आधार पर मृदा उर्वरा स्थिति-नक्शे दर्शाए गए हैं, जो कि देश के विभिन्न जिलों में मुख्य पोषक रसायनों जैसे कि नाइट्रोजन (N) ,फॉस्फोरस, पोटैशियम (K) ,की उपलब्धता की स्थिति का विवरण प्रदर्शित करते हैं।
- मध्य प्रदेश में मृदा उर्वरा नक्शे के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि राज्य के लगभग एक-तिहाई (30 प्रतिशत) जिलों में नाइट्रोजन (N) की कमी है और लगभग 60 प्रतिशत जिलों में इसका मध्यम स्तर है तथा शेष 10 प्रतिशत जिले नाइट्रोजन (N) की दृष्टि से उच्च क्षमता रखते हैं।
- फॉस्फोरस उपलब्धता की दृष्टि से भी लगभग उतने ही जिले उपरोक्त प्रकार विभाजित हैं, कम उपलब्धता ( 31 प्रतिशत), मध्यम उपलब्धता (58 प्रतिशत) तथा उच्च उपलब्धता (11 प्रतिशत)।
- जहां तक पोटैशियम (K) की उपलब्धता का प्रश्न है, केवल 15 प्रतिशत जिलों में इसकी मात्रा कम है, जबकि एक-तिहाई जिलों में मध्यम स्तर और 52 प्रतिशत जिलों में उच्च स्तर की पोटैशियम (K) की उपलब्धता राज्य में पाई गयी है ।
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