स्वतन्त्रता के पश्चात् हिन्दी कहानी कहानीकार और रचनाएँ । नयी कहानी का इतिहास । Nai Kahaniyan
स्वतन्त्रता के पश्चात् हिन्दी कहानी कहानीकार और रचनाएँ
स्वतन्त्रता के पश्चात् हिन्दी कहानी
- स्वतन्त्रता के पश्चात् हिन्दी कहानी के क्षेत्र में बड़े परिवर्तन आये।
- स्वतंत्रता पश्चात् लिखी गयी हिन्दी कहानी में आधुनिक जीवन की विविध समस्याओं का यथार्थ चित्रण हुआ।
- इन समस्याओं में निम्नवर्गीय व्यक्ति के द्वारा अपने विकास के लिए किये जाने वाले यत्नों से पैदा हुए अवरोध और संकटों से लेकर उच्चवर्गीय व्यक्तियों के जीवन में उपस्थित विसंगति, कुण्ठा आदि की बातें शामिल है।
- नगरीय जीवन में व्यक्ति का अकेलापन, नौकरीपेशा नारी के अनके पक्षीय सम्बन्ध और उससे उत्पन्न होने वाली कठिनाइयाँ, शिक्षितों की बेरोजगारी की समस्या, राजनैतिक गिरावट, परिवारों के टूटने आदि कई विषयों पर कहानियाँ लिखी गयी है।
- शिल्प की दृष्टि से इन कहानियों में कई प्रयोग किये गये हैं।
स्वतन्त्रता के पश्चात् हिन्दी कहानी के कहानीकार
- स्वतन्त्रता के पश्चात् हिन्दी कहानी के कहानीकारों में, मोहन राकेश राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, मार्कण्डेय, अमर कान्त मन्नू भण्डारी, फणीश्वर नाथ रेणु, कमल जोशी, उषा प्रियंवदा शिवप्रसाद सिंह, रघुवीर सहाय, रामकुमार भ्रमर, विजय चौहान, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, लक्ष्मी नारायण लाल, हिमांशु जोशी, हरिशंकर परसाई, महीपसिंह, श्रीकान्त वर्मा, कृष्ण वलेदव वैद, ज्ञानरंजन, सुरेश सिन्हा, गिरिराज किशोर, भीमसेन त्यागी, धर्मेन्द्र गुप्त, इब्राहिम शरीफ, विश्वेश्वर, महेन्द्र भल्ला, रवीन्द्र कालिया, काशीनाथ सिंह, प्रबोध कुमार, प्रयाग शुक्ल गोविन्द्र मिश्र विजय मोहन सिंह आदि है।
नयी कहानी का इतिहास
- नयी कहानी सन् 1950 और सन् 1953 के पश्चात् अस्तित्व में आयी। वास्तव में 'नयी कहानी' लेखक साहित्य के क्षेत्र में एक आन्दोलन था। इस आन्दोलन से हिन्दी जगत में काफी तर्क वितर्क सामने आये, जिसके फलस्वरूप 'नयी कहानी' अपने स्वरूप, कथ्य ओर उद्धेश्य की दृष्टि से पूर्ववर्ती कहानियों से विशिष्ट है। 'स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय जन जीवन में अनेक परिवर्तन आये जिसका यथार्थ प्रतिबिम्ब नई कहानी' में देखने को मिलता हैं।
- कमलेश्वर की ‘राजा निरबंसिया', 'मुर्दों की दुनिया', तीन दिन पहले की बात, चार घर, मोहन राकेश की 'मलबे का मालिक, राजेन्द्र यादय की 'जहाँ लक्ष्मी कैद हैं, अमरकान्त की 'डिप्टी कलक्टर' आदि कहानियों में समकालीन यर्थाथ बखूबी व्यक्त हुआ है।
- पुराने विश्वासों और मूल्यों को त्यागना तथा नवीन मूल्यों की खोज करना आधुनिकता है। आधुनिकता का यह लक्षण हमारे दैनिक जीवन की क्रियाओं से लकर चिन्तन मनन को भी प्रभावित कर रहा है। यह आधुनिकता मात्र नगरों और कस्बों तक ही सीमित नहीं है अपितु इसने धीरे-धीरे ग्रामों को भी अपने आँचल में समेट लिया है। आज का कहानी कार भी जिससे वंचित नहीं है। इसलिए उसकी कहानी भी आधुनिकता की पक्षधर हो गयी है।
नयी कहानी की विशेषताएँ
- शिल्प की दृष्टि से नयी कहानी' की अपनी विशिष्टता है। कहानी की भाषा, पात्र, घटना आदि में दिन प्रति दिन नये परिवर्तन आ रहे हैं।
- इस कहानी में नये प्रकार के बिम्ब विधान, नयी भाषा शैली, नये उपमान और नये मुहावरे आदि में विशेषता परिलक्षित होती है।
- भाषा में अलंकारिता का अभाव तथा बोल चाल की परिपूर्णता होती है। वर्तमान में कहानी दो वातावरणों को केन्द्र में रखकर लिखी जा रही है। प्रथम ग्रामीण वातावरण और द्वितीय नगरीय परिवेश।
ग्रामीण वातावरण को केन्द्र में रखकर लिखी गयी कहानी आंचलिक कहानी कहलाती है।
आंचलिक कहानियों के नाम
- फणीश्वरनाथ 'रेणु' की 'तीसरी कसम' 'ठुमरी, 'लाल पान की बेगम, रसप्रिया' शैलेश मटियानी की 'प्रेतमुक्ति' माता' ‘भस्मासुर’, दो मुखों का एक सूर्य, शिवप्रसाद सिंह की 'नीच जात' धरा, मुरदा सराय, अँधेरा हँस्ता है, मार्कण्डेय की 'हंसा जाई अकेला' 'भूदान', शेखर जोशी की 'तर्पण', राजेन्द्र अवस्थी की 'अमरबेल’, लक्ष्मीनारायण लाल की माघ मेले का ठाकुर, रामदरश मिश्र की ‘एक आँख एक जिन्दगी' आदि कहानियाँ आंचलिक कहानियाँ हैं।
नगरीय परिवेश की कहानियाँ
- नगरीय परिवेश को केन्द्र में रखकर लिखी गयी कहानियों में नगरो की कृत्रिम जीवन प्रणाली, परिवार और समाज के अन्दर व्यक्तियों के नयी पद्धति के अन्तः सम्बन्ध, स्त्री पुरुष सम्बन्धों में तनाव, व्यक्ति का अकेलापन, जीवन मूल्यों का विघटन इत्यादि का वर्णन विस्तार से हुआ है।
नगरीय परिवेश की कहानियाँ
- निर्मल वर्मा के पराये शहर में' 'अन्तर' 'परिन्दे', 'लवर्स', 'लन्दन की रात',
- मोहन राकेश की 'वासना की छाया', 'काला रोजगार', मिस्टर भाटिया 'मलवे का मालिक,
- राजेन्द्र यादव की ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है', एक कमजोर लड़की का कहानी', 'टूटना', कृष्ण
- बलेव वैद की अजनबी', 'बीच का दरवाजा, भगवान के नाम सिफारिश की चिट्टी', '
- मन्नू भण्डारी की 'वापसी', 'मछलियाँ', 'गीत का चुम्बन',
- भीष्म साहनी की चीफ की दावत', 'खून का रिश्ता’,
- रघुवीर सहाय की प्रेमिका’, ‘मेरे और नंगी औरत के बीच', 'सेब', रमेश बक्षी की ‘आया गीता गा रही थी’, ‘अलग-अलग कोण',
- 'राजकुमार की लौ पर रही हथेली', 'सेलर',
- श्रीकान्त वर्मा की ‘शव यात्रा’, ‘दूसरे के पैर’,
- महीपसिंह की 'काला बाय, गोरा बाय', आद कहानियाँ नगरीय परिवेश की कहानियाँ हैं।
उपेक्षित जन जीवन का चित्रण और कहानियाँ
छोटे-छोटे कस्बों के व्यक्तियों की मनोवृत्ति और उपेक्षित
जन जीवन का चित्रण करने वाली कहानियों में
- कमलेश्वर की 'मुरदों की दुनिया', 'तीन दिन पहले की बात', ‘चार घर’,
- धर्मवीर भारती की 'सार्वत्री न0 दो', 'धुआँ', 'कुलटा', गुलकी बन्नों, 'अगला अवतार'
- 'कृष्णा सोवती की, यारों के यार,
- अमरकान्त की 'जिन्दगी और जोंक' 'डिप्टी कलेक्टरी' ‘दोपहर का भोजन'
- विष्णु प्रभाकर की 'धरती अब धम रही है',
- मनहर चौहान की 'घर धुसरा',
- रामकुमार भ्रमर की 'गिरस्तिन',
- हिमांशु जोशी की एक बूँद पानी' अभाव,
- हृदयेश की 'सभाएँ' "डेकोरेशन पीस" कहानियाँ काफी लोकप्रिय हुई।
व्यंग्य कहानियाँ
- ग्रामीण अंचल, नगरीय परिवेश और कस्बों के जन जीवन पर लिखी कहानियों के अतिरिक्त वर्तमान समाज की विकृतियों, व्यक्तियों के ढोंग, आरोपित प्रतिष्ठा, भ्रष्टाचार आदि पर व्यंग्य तथा प्रहार करती हुई अनेक, कहानियाँ लिखी गयी, इन कहानियों में हरिशंकर परसाई की निठल्ले की डायरी, ‘सड़क बन हरी है’, ‘पोस्टर एकता', शरद जोशी की रोटी और घण्टी का सम्बन्ध', . ‘बेकरी बोध’ प्रमुख है।
- वर्तमान में इन कहानियों की संख्या में वृद्धि करने वाले अन्य कहानीकारों में, गंगा प्रसाद विमल, दूधनाथ सिंह, राजकमल चौधरी, गिरिराज किशोर, सुरेश सिंन्हा ज्ञानरंजन, धर्मेन्द्र गुप्त, इब्राहिम शरीफ, विश्वेश्वर, भीमसेन त्यागी, अमर कान्त, रतीलाल शाहनी, कुष्ण बलदेव वैद, विपिन अग्रवाल आदि है।
कहानी जीवन यात्रा
- कहानी की इस जीवन यात्रा में साठ के बाद की कहानी में अनके आन्दोलन चलाये गये, जिनमें ‘सामन्तर कहानी', 'सचेतन कहानी', 'अकहानी आदि साहित्य आन्दोलन मुख्य हैं। इन आन्दोलनों पर फ्रान्स-जर्मनी में प्रचलित आन्दोलनों का प्रभाव था।
- इन आन्दोलनों से कमलेश्वर, गंगाप्रसाद विमल, महीपसिंह, रवीन्द्र कालिया, ज्ञानरंजन आदि कथाकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे।
- हिन्दी कहानी के विकास में मात्र इन आन्दोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही अपितु 'कहानी', नई कहानियाँ कल्पना', सारिका' संचेतना, कहानियाँ आदि कहानी पत्रिकाओं ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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