नर्मदा घाटी से प्राप्त जीवाश्म और उपकरण , सोन घाटी से प्राप्त जीवाश्म और उपकरण
नर्मदा घाटी से प्राप्त जीवाश्म और उपकरण
नर्मदा मध्यप्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलकर पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में मिलती है। नर्मदा घाटी जो प्रागैतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, प्रातिनूतन कालीन जमाव से समृद्ध है।
नर्मदा घाटी से प्राप्त प्रातिनूतन कालीन जमाव को दो भागों में विभक्त किया गया है- उच्च नर्मदा
वर्ग (Upper Narmada Group) एवं निम्न
नर्मदा वर्ग (Lower
Narmada Group) ।
ऊपरी जमाव कपासी मिट्टी (Cotton Soil Group) का जमाव है एवं नूतन काल से संबंधित है।
येल-क्रैम्ब्रिज अभियान दल ने सोहन (उत्तरी क्षेत्र) एवं कोर्टलायर घाटी (दक्षिणी
क्षेत्र) के साथ-साथ नर्मदा घाटी (मध्यक्षेत्र) से प्राप्त प्रातिनूतनं कालीन
संस्कृतियों एवं जमावों का अध्ययन किया।
सबसे नीचे ग्रैवेल एवं लाल रंग की कंकड़युक्त मिट्टी का जमाव है। ग्रैवेल से
एश्यूलियन पेबुल उपकरण हैण्डैक्स, क्लीवर,
स्क्रैपर, क्रोड, फलक, प्रोटोहैण्डैक्स
उपकरणों की प्राप्ति हुई है।
ग्रैवेल के ऊपर कंकड़ मिट्टी जमाव से भी उपकरण
प्राप्त हुये हैं। ग्रैवेल से प्रचुर मात्रा में गाय, बैल, सुअर, हाथी, घोड़ा आदि
जानवरों के जीवाश्म प्राप्त हुये हैं। इन जीवाश्मों के जीव विज्ञान के नाम है- वॉस
नमाडिकस (Bos
namadicus), सुस नमाडिकस (Sus namadicus), एलिफस हाइसूड्रिकस (Elephas hysudricus), इक्वस
नमाडिकस (Equus
namadicus), हेक्साप्रोटोडान नमाडिकस (Hexaprotodon namadicus)।
ये जीवाश्म नर्मदा में ग्रैवेल से प्राप्त
मध्य प्रातिनूतन कालीन तिथिक्रम दर्शाते हैं। उच्च जमाव के निचले भाग में कम ठोस
ग्रैवेल एवं बालू का जमाव निर्मित है। इस जमाव के ऊपर लाल मिट्टी का जमाव है। इन
जमावों से अन्त सोहन प्रकार के उपकरणों के साथ-साथ फलक क्रोड़ आदि भी मिलते हैं।
यह जमाव उपकरण एवं जीवाश्मों हेतु समृद्ध है।
जीवाश्मों में इक्वस नमाडिकस (Equus namadicus), हेक्साप्रोटोडान
पैलिन्डिकस (Hexaprotodon
palaeindicus), एलिफस हाइसूड्रिकस (Elephas hysudricus), सरवस (cervus) के अनेक प्रकार प्रतिवेदित किये गये हैं।
जीवाश्मों एवं प्राप्त उपकरणों के आधार पर जमाव की तिथि उच्च प्रातिनूतन काल मानी
गई है।
तृतीय जमाव, जो उच्च नर्मदा समूह से संबंधित है, जिसे साधारण भाषा में कपासी मिट्टी कहा जाता
है, को दो भागों
में विभक्त किया गया है बालू युक्त छोटे ग्रैवेल (fine gravel) एवं काली
मिट्टी।
इन जमावों से प्राप्त उपकरणों को आद्य-नव पाषाणिक (Proto neolithic) कहा गया, जिसमें फलक, ब्लेड आदि पर निर्मित उपकरण मिलते हैं। ये
उपकरण मध्य पाषाण काल के उपकरणों से साम्यता रखते हैं।
कालान्तर में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण एवं डेक्कन कॉलेज शोध संस्थान पूना
ने नर्मदा घाटी पर अनेक सर्वेक्षण एवं उत्खनन किये, जिससे नर्मदा घाटी की संस्कृति पर विश्व से
तुलनीय प्रमाण मिले। यहाँ से ओल्डुवाई गार्ज के समकक्ष संस्कृतियों के विकास के
अवशेष प्राप्त हुए एवं डे टेरा एवं पैटरसन द्वारा उसी प्रकार के विकास भारत में भी
समझे गये थे। उदाहरण स्वरूप Sohanian-Madrasian टूलकिट, सोहन घाटी में Early Sohan एवं Late Sohan आदि, विकासक्रम
प्रातिनूतन कालीन परिवर्तनों से संबंधित किये गये।
नर्मदा घाटी में महादेव पिपरिया से बोल्डर कांग्लोमिरेट जमाव से सन् 1958-59 में पेबुल
उपकरण युक्त जमाव ए. पी. खत्री को प्राप्त हुये जिसे खत्री ने टाइप साइट के आधार
पर'महादेवियन' (Mahadevian) नाम से
संबोधित किया। परन्तु भारत में इस प्रकार के संस्कृति विकास पर संदेह होने के कारण
इस क्षेत्र में अनेक नये सर्वेक्षण एवं उत्खनन किये गये।
महादेव पिपरिया में
डेक्कन कॉलेज शोध संस्थान के एस. जी. सुपेकर द्वारा उत्खनन किया गया उत्खनन के
परिणामस्वरूप इस ग्रैवेल जमाव से पेबुल उपकरणों के साथ-साथ एश्यूलियन उपकरण एवं
मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए एवं इस संस्कृति काल में निर्मित अन्य
ग्रैवेल के भी अवशेष प्राप्त किये गये एवं यह ग्रैवेल पश्चिम से बहकर आया एवं जमाव
हुआ, समझा गया।
कालान्तर में आर. वी. जोशी, वी. एन. मिश्र, एस.एन. राजगुरू, सलाहुद्दीन,
जी. एल.
वादाम, आर.पी.
पाण्डेय, आर. के.
शर्मा द्वारा इस क्षेत्र में कार्य किया गया जिसके फलस्वरूप बोल्डर कांग्लोमिरेट
ग्रैवेल से निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति, सैण्डी पेवली ग्रैवेल, सीमेण्टेड
ग्रैवेल से मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति एवं सैण्डी ग्रैवेल से उच्च पुरा
पाषाणकाल के उपकरणों की जीवाश्मों के साथ प्राप्ति की गई।
ऊपरी जमाव (नूतन कालीन
जमाव) से मध्य पाषाण काल (mesolithic) के उपकरण प्रतिवेदित किये गये यही
स्तरीकरण भारत की अन्य नदी घाटियों पर भी समय-समय पर मिलते रहे हैं एवं प्रातिनूतन
कालीन जमाव के साथ सांस्कृतिक विकास क्रम का अध्ययन किया जाता रहा है।
ओटा द्वारा
नर्मदा घाटी पर सैण्डी ग्रैवेल से उच्च पुरापाषाण संस्कृति के साथ-साथ शुतुरमुर्ग
के अण्ड कवच पर मनके निर्माण का उद्योग (bead making factory) प्राप्त हुआ
है जो एक महत्वपूर्ण अवशेष है एवं संभवतः भारतवर्ष में अकेला एवं प्रथम प्रमाण है।
भारतीय
भूगर्भ सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों द्वारा नर्मदा पर 4 प्रकार के जमाव शोभापुर जमाव, नरसिंहपुर
जमाव, देवाकछार
जमाव, झलोन जमाव
प्रतिवेदित किये गये हैं। इन जमावों से सांस्कृतिक अवशेषों की प्राप्ति की जानकारी
नहीं है।
विश्वविद्यालयों, शोध-संस्थानो एवं भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के साथ-साथ भू-गर्भ सर्वेक्षण
द्वारा भी नर्मदा घाटी पर भू-गर्भीय अवशेषों हेतु सर्वेक्षण किया गया। नागपुर शाखा
के अरूण सोनकिया को प्रथम बार मानव जीवाश्म की प्राप्ति हुई। यह जीवाश्म मानव
खोपड़ी (Skull) के रूप में
ग्रैवेल जमाव से प्राप्त हुआ।
कालान्तर में दिल्ली विश्वविद्यालय के चट्टोपाध्याय
द्वारा (व्यक्तिगत चर्चा) इस ग्रैवेल का उत्खनन किया गया जिसके परिणाम स्वरूप अनेक
निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण प्रकाश में लाये गये।
इसी ग्रैवेल जमाव से पशु
जीवाश्म अवशेष यथा एलिफस एवं स्टेगोडान गनेसा प्राप्त से हुए हैं। यह मानव जीवाश्म
प्रातिनूतन कालीन माना गया है। इस ग्रैवेल के ऊपर लाल रंग के जमाव (15 मी.) से
निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण मिले हैं। इस मानव खोपड़ी को होमो इरेक्टस (Homo-erectus) समूह के
अन्तर्गत रखा गया है एवं इसकी कपाल गुर्दा (cranial capacity) नाप 1155 से 1421 सी.सी. के
मध्य समझा जाता है। चूँकि मानव कपाल निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरणों के साथ प्राप्त
हुआ है अतः दोनों की तिथि मध्य प्रातिनूतन काल निश्चित हुई है।
नर्मदा घाटी पर समनापुर अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। यहाँ का उत्खनन डेक्कन
कॉलेज शोध संस्थान के वी. एन. मिश्र द्वारा किया गया है। इस पुरास्थल से Boulder conglomerate जमाव से
निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं
सोन घाटी से प्राप्त जीवाश्म और उपकरण
सोन मध्यप्रदेश की एक महत्वपूर्ण नदी है एवं इस पर महत्वपूर्ण अवशेष भी
प्राप्त हुए हैं। इस नदी की सांस्कृतिक समृद्धता के देखते हुए विद्वानों ने
प्रातिनूतन कालीन संस्कृतियों को ध्यान में रखकर सघन सर्वेक्षण कर उत्खनन कार्य
किये जिसके परिणामस्वरूप प्रातिनूतन कालीन पर्यावरण एवं सांस्कृतिक विकास के
प्रमाण स्तरीकृत जमाव से प्राप्त हुए हैं।
यह नदी म.प्र. में अमरकण्टक से उद्गमित
होकर बिहार में गंगा से मिलने के पूर्व 485 कि.मी. मार्ग तय करती है। ये अनेक प्रकार के
भू-भाग से बहती हुई, मार्ग में अनेक प्रकार के जमाव बनाती है।
प्रथमतः इस नदी पर निसार अहमद द्वारा
डेक्कन कॉलेज शोध संस्थान पूना के शोध छात्र के रूप में सन् 1960 में
सर्वेक्षण किया गया जिससे परिणाम स्वरूप 35 पुरास्थलों की खोज की गई एवं 167 निम्न
पुरापाषाण कालीन उपकरण एकत्रित किये गये ।
कालान्तर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय
द्वारा इस नदी घाटी में 1975-1977 के मध्य सर्वेक्षण किया गया, जिसके
परिणाम स्वरूप अनेक पुरास्थल एवं स्तरीकृत जमावों की खोज हुई।
ये पुरास्थल लगभग 300 हैं एवं
मध्यप्रदेश के सीधी जिले में स्थित हैं। सन् 1980-82 के मध्य इलाहवाद विश्वविद्यालय के जी. आर.
शर्मा एवं वर्कले विश्वविद्यालय के जे. डी क्लार्क के संयुक्त तत्वावधान में इस
नदी घाटी में पुन: सघन सर्वेक्षण प्रातिनूतन कालीन जमाव को दृष्टिगत रखते हुये
किया गया ।
साथ ही साथ मैक्वायर विश्वविद्यालय आस्ट्रेलिया के मार्टिन विलियम्स एवं
न्यूजीलैण्ड के कीथ रायस ने चतुर्थक कालीन जमावों का अध्ययन किया, जिसके
परिणामस्वरूप उनके द्वारा 4 विभिन्न जमावों को पहचाना गया।
1. सिहावल जमाव
शोधकर्ताओं के अनुसार सिहावल जमाव सोन पर सबसे पुराना जमाव है एवं
नदी के किनारे स्थित है। चूँकि यह जमाव सिहावल (जि. सीधी) पर सबसे अच्छा एवं अधिक
है, अतः इस जमाव
को सिहावल ने नाम से अभिहित किया गया। इस जमाव की मोटाई 1.50 मी. है एवं
इसमें क्वार्ट्जाइट, सेल, बलुआ पत्थर
युक्त, ग्रैवेल में
बालू के साथ प्राप्त होते है। इस जमाव से हैण्डैक्स, क्लीवर समूह के उपकरण, स्क्रैपर के
साथ मिलते हैं। अधिकांश उपकरण के नवीन एवं कुछ घिसे भी प्राप्त होते हैं। इसकी
उष्मा दीप्ति तिथि 103,800 (+-)19800 बी.पी. है एवं जलवायु आर्द्र शुष्क से
आर्द्र जलवायु समझी जाती है।
2. पटपरा जमाव
इस जमाव का नामकरण भी स्थान विशेष के आधार पर किया गया है। यह स्थल
भी सोन नदी पर पटपरा (जिला सीधी) में स्थित है। यह जमाव कई स्थानों पर देखा गया है
एवं इसकी मोटाई 10 मी. तक मिलती है।
यह सिहावल जमाव के ऊपर प्राप्त होता है। यह ग्रैवेल बलुआ
पत्थर क्वार्ट्जाइट क्वार्ट्ज, शेल के पेबुल लेटराइट पेलेट युक्त लाल रंग का है। इस ग्रैवेल में चाल्सीडोनी, चर्ट आदि के
पेबुल भी प्राप्त हुए हैं। इससे हैडैक्स, क्लीवर उपकरण के साथ मध्य पुरापाषाण काल के
उपकरण भी उपलब्ध हुए हैं जो प्रातिनूतन काल में लम्बे समय तक जमाव होने के संकेत
देते हैं। पटपरा जमाव से पशु जीवाश्म एवं वनस्पति जीवाश्म (पत्ती) प्राप्त हुए
हैं।
3. बाघोर जमाव
सिहावल जमाव के ऊपर अन्तराल के उपरान्त बाघोर जमाव पाया गया है जो
कि रूक्ष वर्ग एवं महीन वर्ग में विभाजित है। रूक्ष वर्ग 5 सेमी. से 6 मी. मोटा
है। इस जमाव में बालू के साथ शैल, क्वार्ट्जाइट, क्वार्टज,
चाल्सीडोनी, अगेट, चर्ट के
टुकडे अनेक आकार में मिले हैं। इसके ऊपर बालू एवं मिट्टी का जमाव भी प्राप्त हुआ
है। रूक्ष वर्ग के ऊपर ज्वालामुखी की राख का जमाव प्रतिवेदित किया गया है।
इस जमाव के ऊपर महीन वर्ग का जमाव प्राप्त हुआ है जो लगभग 10 मी. मोटा
है एवं कंकड़युक्त मिट्टी का है। इस जमाव के निम्न स्तर से मध्य पुरापाषाण के
उपकरण प्राप्त हुए हैं एवं ऊपरी स्तर से उच्च पुरापाषाण के उपकरण मिले हैं। बघोर
जमाव से हाथी,
घोड़ा, दरियाई
घोड़ा, मवेशी, गैंडा, हिरण, घड़ियाल तथा
कछुआ के जीवाश्म प्रतिवेदित किये गये हैं।
4. खेतौंही जमाव
यह नूतन कालीन जमाव है एवं खेतौंही नामक स्थान पर 10 मी. मोटा
है जो कि सोन एवं रेही नदियों के संगम पर स्थित है। यह जमाव सिल्ट एवं मिट्टी के
द्वारा निर्मित है। इससे मध्य पाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं। सोन घाटी के सभी
जमावों की तिथि निर्धारित की गई, जैसे सिहावल जमाव-मध्य प्रातिनूतन काल (एक लाख वर्ष से पुराना), पटपरा जमाव
उच्च प्रातिनूतन काल (एक लाख से 30,000 वर्ष बी.पी. तक), coarse member बलुई मिट्टी का जमाव (30,000-12,000 वर्ष पूर्व
तक), खेतौंही
जमाव, नूतन कालीन
(लगभग 10,000 वर्ष
बी.पी.) के मध्य आँकी गई है। जे. एन. पाण्डेय के अनुसार इस तिथि के निर्धारण में
संशोधन की आवश्यकता है।
नदी घाटियों पर चतुर्थक जमाव एवं संस्कृतियों के विकास के साथ-साथ अनेक
शैलाश्रय हैं जिनमें प्रातिनूतन कालीन जमाव के साथ सांस्कृतिक विकासक्रम
प्रतिवेदित किये गये हैं।
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