नर्मदाघाटी भौगोलिक प्रदेश। नर्मदा घाटी बेसिन का इतिहास । Narmda Valley History
नर्मदाघाटी भौगोलिक प्रदेश, नर्मदा घाटी बेसिन का इतिहास
नर्मदाघाटी भौगोलिक प्रदेश
- नर्मदा नदी प्रायद्वीपीय भारत की अत्यंत महत्वपूर्ण नदी है जो कि अपने उद्गम स्थान अमरकंटक से निकलकर गुजरात में भड़ोंच के निकट खम्बात की खाड़ी मे गिरती है। नर्मदा नदी की कुल लम्बाई 1310 किलोमीटर है तथा अपवाह क्षेत्र 98,800 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 1079 किलोमीटर लंबाई मध्यप्रदेश में हैं।
- नर्मदा बेसिन में मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के भाग आते हैं।
- मध्यप्रदेश में इसका क्षेत्रफल लगभग 36000 वर्ग किलोमीटर है। बेसिन के कुल क्षेत्र का 89.8 प्रतिशत भाग मध्यप्रदेश में है।
- नर्मदा बेसिन 22°30' से 23°45' उत्तरी अक्षांश तथा 74° से 81°30' पूर्वी देशांश के मध्य स्थित है। नर्मदा नदी की ऊपरी घाटी अत्यंत संकरी है। इसके उत्तर में विन्ध्यांचल तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत की श्रेणियाँ हैं यही कारण है कि ऊपरी नर्मदा घाटी को सिंह (1968) ने विन्ध्यांचल-बघेलखण्ड भौगोलिक प्रदेश की इकाई माना। निचली नर्मदा घाटी के उत्तर में मालवा का पठार एवं दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है। सिंह (1968) इस सारे प्रदेश के मालवा भौगोलिक प्रदेश के अंतर्गत रखते हैं।
- इस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि नर्मदाघाटी का उत्तरी भाग इतिहास के अधिकतर कालखंडों में जिस तरह विन्ध्याचल और पूर्वी सतपुड़ा पर्वतों पर फैले राज्यों का भाग रहा है उसी तरह निचली नर्मदा घाटी भी इतिहास के अधिकतर कालखण्डों में मालवा के राज्यों का अंग रही है।
- परन्तु भूराजनैतिक दृष्टि से नर्मदा घाटी का एक और दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है वह यह कि इसे ऐतिहासिक काल में ही भारत के उत्तरी भाग या उत्तराखण्ड तथा दक्षिणीभाग या दक्षिणापथ की विभाजक रेखा माना जाता रहा है। इस प्रकार यह नदी भारत के राजनैतिक इतिहास में एक प्रमुख सीमान्त रही है।
- नर्मदा नदी के अपवाह तंत्र का लगभग 90 प्रतिशत भाग मध्यप्रदेश में है।
- नर्मदा बेसिन की औसत वार्षिक वर्षा 106 सेमी. के लगभग है किंतु पूर्व की वर्षा 140 सेन्टीमीटर होती है जबकि न्यूनतम वर्षा मण्डलेश्वर के मैदान में होती है।
- बड़वानी की औसत वार्षिक वर्षा 58 सेन्टीमीटर है।
- ऐतिहासिक काल में नर्मदा घाटी की ऊपरी घाटी में अत्यंत सघन वन थे।
- नर्मदा घाटी के ऊपरी भाग में संकरे मैदान है, जबकि मध्य एवं निचली घाटी में ये मैदान अपेक्षाकृत विस्तृत हैं।
- नर्मदाघाटी एक संकरी घाटी से होकर बहती है, इसिलये इसका नदी विभाजक विस्तृत नहीं है। ऊपरी नर्मदा घाटी के कुछ क्षेत्रों में कंकरीली मिट्टी की प्रधानता है।
- लाल रंग की इस कम उपजाऊ भूमि को मण्डला जिले में 'भरा' कहते हैं।
- जबलपुर जिले से पूर्व की ओर साधारण तौर पर कम गहरी तथा गहरी काली मिट्टी के क्षेत्र हैं। ये दोनों प्रकार की मिट्टियाँ उपजाऊ मिट्टियाँ है।
- नर्मदा घाटी में कृषि विस्तार या प्राचीन कृषि समस्याओं का विस्तार पश्चिम से पूर्व की ओर हुआ। मध्य और निचली नर्मदा घाटी में प्राचीनतम पाषाण एवं ताम्राश्मकालीन सभ्यताओं के अवशेष मिलते है। हंडिया, आदमगढ़, महेश्वर तथा होशंगाबाद से मनुष्य की प्राचीनतम सभ्यता के साक्ष्य प्राप्त हुये है।
- इससे प्राचीन काल को सामान्यतः इतिहासकार सूक्ष्माश्मीयकाल ईसा से 4000 वर्ष तक का मानते हैं परन्तु इसे 1,50,000 वर्ष पूर्व तक का भी कहा जाता है।
- उत्तर पाषाण काल और ताम्रकाल को सामान्यतः मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा संस्कृति का उत्तरकाल या सिंधु सभ्यता का पर्याय माना जाता है।
- नर्मदाघाटी में, नावदाटोली, महेश्वर इत्यादि स्थानों के उत्खननों से ज्ञात होता है कि मनुष्य यहाँ पर स्थाई कृषि ईसा की शताब्दियों पहिले ही करने लगा था तथा यहाँ स्थाई मानवीय अधिवासों का निर्माण होने लगा था।
नर्मदाघाटी और प्राचीन साहित्य
- जहाँ तक प्राचीन साहित्य का प्रश्न है अधिकतम विद्वानों का मत है कि प्रारंभिक वैदिक काल तक आर्यसभ्यता या यज्ञ संस्कृति का प्रसार नर्मदा तक नहीं हुआ था परन्तु अथर्ववेद के सम्पादन तक यज्ञ संस्कृति 'दक्षिणापथ' तक पहुँचने की राह में थी। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम की बनवास यात्रा के संदर्भ में नर्मदा का विवरण नहीं मिलता पर श्रीराम के समकालीन आदिकाव्य के प्रणेता बाल्मिकी को रेवाखण्ड की पूरी जानकारी थी। उन्होंने हैहयवंशी अर्जुन के संदर्भ में नर्मदा का वर्णन किया है।
'ततो माहिष्मतीं नाम पुरीं स्वर्गपुरी प्रभाम्
सम्प्राप्तो यत्र सान्ध्यं सदा सीव सुरेतसः
अर्जुनो नर्मदां
रन्तुं गतः स्त्रीभिः सहेश्वरः ।
इस तरह वाल्मीकि रामायण (सर्ग 31) में न केवल नर्मदा वरन्
नर्मदा तट की प्राचीन नगरी महेश्वर का वर्णन है।
- पुराणों में नर्मदा घाटी के अनेक प्राचीन राज्यों ओर राजवंशों के उत्थान और पतन की कहानियाँ मिलती हैं किन्तु ऐतिहासिक साक्ष्यों से जुड़ी हैहयों के उत्थान और पतन की कहानी का विशेष महत्व है।
- पुराण कथाओं के अनुसार हैहय राजा महिष्मत ने नर्मदा किनारे माहिष्मती नगर बसाया था, उसने नर्मदा घाटी के प्राचीन इक्ष्वाकु और नाग राजाओं को पराजित किया था। हैहय भद्रश्रेण्य ने उत्तर भारत के पौरवों को भी पराजित किया था सहस्रार्जुन कार्तवीय ने कर्कोटक नागों और प्रतापी लंकेश्वर को युद्ध में पराजित किया था परन्तु किन्हीं कारणों से उनका समकालीन भार्गव संघ से वैर हो गया जिसकी परिणिति युद्धों में हुई, परशुराम के नेतृत्व में संघीय सेना मै इस राजवंश को जड़ से उखाड़ फेंका। हैहय राजवंश पराजित होकर अनेक शाखाओं में विभक्त होकर तुंडीकेर (दमोह), त्रिपुरी, दशा (विदिशा के समीप), अनूप (निमाड़) अवंति इत्यादि स्थानों में जा बसा।
- इतिहासकारों का अभिमत है कि शताब्दियों के पश्चात् हैहयों के उत्तराधिकारी कलचुरि हुये जिन्होंने पहले तो अपनी राजधानी महेश्वर में पुर्नस्थापित की तथा शीघ्र ही उन्होंने पूरी नर्मदा घाटी में अपने राज्य का विस्तार किया।
- त्रिपुरी में इसी वंश की एक शाखा पल्लवित हुई जो पूर्व मध्यकाल की एक बड़ी राजनैतिक शक्ति के रूप में उभरी। ऐतिहासिक दृष्टि से यही कहा जा सकता है कि महाभारत काल तक नर्मदा तक यज्ञ संस्कृति प्रसार हो चुका था। नर्मदा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व (अयोध्याप्रसाद उपाध्याय, 1989) सुविदित है।
- महाभारत के कई पर्वो ( सभा 9 / 8, वन, 121/16, अनुशासन 2 / 18, भील, 10/3) में इसके संदर्भ मिलते है। स्कन्दपुराण में इसे रेवा कहा गया है। पालि साहित्य में इसे 'नम्मदा' कहा गया है।
- कुक्कुट जातक में इस नदी में बड़े आकार के केकड़ों के पाये जाने का उल्लेख है। जैन ग्रंथ पउम चरिउ में भी इसका नाम मिलता है। अमरकोश एवं कर्पूरमंजरी में इसे मेकलकन्या और मेकलसुता कहा गया है।
- टाल्मी ने इसका नाम 'नमदोस' दिया है। हुयेनसांग के यात्रा विवरण में इसका 'ने-सु-ने' नाम मिलता है। यह तो निश्चित ही है कि जहाँ ऊपरी नर्मदा धारा का इतिहास मुख्यतः विन्ध्य और सतपुड़ा क्षेत्र से जुड़ा वहाँ निचली नर्मदा घाटी का इतिहास मालवा क्षेत्र से अभिन्नता से जुड़ा।
ऊपरी नर्मदा घाटी
- ऊपरी नर्मदाघाटी को अनेक विद्वान प्राचीन चेदि देश में स्थित मानते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि जहाँ कुछ विद्वान चेदि की सीमा नर्मदा के उत्तरी तट तक रखने का आग्रह करते हैं वहाँ अन्य नर्मदा को चेदि राज्य के भीतर मानते. है।
- ऊपरी नर्मदा घाटी को डाहल, डभाल, डाहाल, डहाला इत्यादि विभिन्न नामों से विख्यात क्षेत्र के अंतर्गत भी माना गया है। विश्वेश्वरशम्मु के मलकापुरम स्तम्भ लेख में डाहल मण्डल को भागीरथी और नर्मदा के मध्य माना गया है।
- डाहल कलचुरि शक्ति का केन्द्र था। अल्बरूनी ने अपने समकालीन कलचुरि राजा गांगेयदेव को और बिल्हण ने कर्ण को डाहलाधीश कहा है।
- कलचुरी काल में डाहल में नौ लाख गाँवों का समावेश माना गया है। जाहिर है कि ये सभी गाँव नर्मदा के उत्तर में ही नहीं रहें होंगे, निश्चित ही दक्षिण में भी रहे होंगे।
- कलचुरियों की समृद्धि, शक्ति एवं कलाप्रियता का वर्णन प्रसिद्ध संस्कृत कवि राजशेखर की रचनाओं में मिलता है। यह उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में जन्मे राजशेखर अपने जीवन के आरम्भकाल में कन्नौज के राजकवि थे।
- कन्नौज में राजशेखर राजा महिपाल के शासन काल तक रहे। यह वह समय था जब प्रतिहार साम्राज्य अवनित की ओर जाने लगा था राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय तथा कलचुरि नरेश युवराजदेव प्रथम ने उसे पराजित किया। इन परिस्थितियों में राजशेखर युवराजदेव की राजधानी त्रिपुरी आ गये। कहा जाता है शेष जीवन उसने युवराजदेव की राजधानी में बिताये।
- यहाँ राजशेखर की यह उक्ति प्रसिद्ध है जिसमें उन्होंने नर्मदा को सर्वश्रेष्ठ नदी, चेदि देश को सर्वश्रेष्ठ देश तथा चेदि नरेश शंकरगण जिसका विरूद रणविग्रह था को सर्वश्रेष्ठ राजा कहा।
'नदीनां मेकल सुता नृपाणा रणविग्रहः
कवीनां च सुरानन्दश्चेदिमण्डल मन्डनम् ।।
- उपर्युक्त उक्ति में उल्लिखित 'सुरानन्द' राजशेखर का पूर्वज था राजशेखर की रचनायें परवर्ती काल में भी चेदि देश में लोकप्रिय रहीं और उसके कुछ श्लोक आवश्यक परिवर्तनों के साथ कलचुरि अभिलेखों में उद्धृत पाये जाते हैं।
- राजशेखर ने बालरामायण (3/39) में त्रिपुरी के चैद्य राजा की उपस्थिति की चर्चा की है जबकि यह माना जाता है कि चेदि राज्य वाल्मिकि के समय व रामायण काल में स्थापित नहीं हुआ था बल्कि यह महाभारत काल का राज्य था।
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