परमार कालीन साहित्य और मध्यप्रदेश । परमार राजवंश आश्रित कवि / लेखकों की रचनायें। Parmar Kalin Sahitya Aur MP
परमार कालीन साहित्य और मध्यप्रदेश (परमार राजवंश आश्रित कवि / लेखकों की रचनायें)
परमार राजवंश आश्रित कवि / लेखकों की रचनायें
- मालवा के परमार शासकों के समय साहित्य की अभूतपूर्व उन्नति हुई और संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में लिखित रचनायें समकालीन मध्यप्रदेश के इतिहास और संस्कृति के पुनर्निर्माण के महत्वपूर्ण स्रोत प्रमाणित हुये हैं।
- वाक्पति मुंज से प्रारंभ होकर साहित्य की उन्नति भोज के काल तक सर्वोच्च शिखर पर पहुँची। प्रगति की परंपरा अर्जुनवर्मन् के शासन काल तक निरंतर गति से जारी रही।
- परमार वंश के कई शासक स्वयं उच्च कोटि के विद्वान एवं रचनाकार थे। उज्जयिनी और धारानगरी प्रमुख साहित्यिक केन्द्र थे।
वाक्पति (मुंज) का साहित्य और योगदान
- वाक्पतिराज स्वयं विद्वान और साहित्य प्रेमी थे। यद्यपि इनकी कोई रचना अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है तथापि ऐसा विश्वास किया जाता है कि वे 'मुंजप्रतिदेशव्यवस्था' के लेखक थे जो संभवत: भूगोल सम्बंधित एक कोष था। उनके रचित कई छन्दों को जल्हण, क्षेमेन्द्र, वल्लभदेव, धनिक, मेरूतुंग और भोज द्वारा अपने ग्रंथों में उद्धृत किया गया है।
- वाक्पतिराज ने समकालीन कई कवियों को राजाश्रय प्रदान किया। 'तिलकमंजरी', 'ऋषभ पञ्चाशिका' और भाषा के शब्दकोष 'पाइयलच्छी' के प्रणेता धनपाल मुंज के कुलपुरोहित थे। धनपाल के भ्राता शोभन मुंज की सभा के प्रमुख विद्वान थे।
- 'दशरूप' के लेखक धनञ्जय और 'दशरूपकावलोक' तथा 'काव्यनिर्णय' नामक ग्रंथों के प्रणेता धनिक राजा मुंज के सभा के विदग्ध पण्डित थे। 'सुभाषितरत्नसंदोह' के लेखक अमितगति मुंज की सभा को सुशोभित करते थे।
- 'भट्टहलायुध' मुंज के राज्य के न्यायाधीश थे। उनके 'राजव्यवहारतत्व' ग्रंथ में न्याय की विभिन्न प्रणालियों का दिग्दर्शन है।
- इसके अतिरिक्त पिंगलछन्दसूत्र' पर 'हलायुदवृत्ति' नामक टीका प्रसिद्ध है। अनेक अन्य पण्डित एवं विद्वान मुंज की सभा को अलंकृत करते थे जिनके विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं है।
सिन्धुराज के समय साहित्य का विकास
- वाक्पतिराज के उत्तराधिकारी सिन्धुराज के सभाकवि थे पद्मगुप्त परिमल जिन्होंने संस्कृत महाकाव्य 'नवसाहसाकचरित' की रचना की। इन्होंने मुंज और सिन्धुराज दोनों की सभा में ख्याति प्राप्त की थी।
- अठारह अध्यायों का यह ग्रंथ सम्राट सिन्धुराज नवसाहसांक के जीवन चरित्र और उपलब्धियों पर आधारित है।
- बस्तर के नागवंशी शासक शंखपाल को सिन्धुराज द्वारा दी गई सहायता और उसके परिणाम स्परूप नाग राजकुमारी शशिप्रभा का सिन्धुराज से विवाह की ऐतिहासिक घटना का विवरण इस ग्रंथ का विषय है।
भोजकालीन साहित्य
- सिन्धुराज का उत्तराधिकारी सम्राट् भोज उच्च कोटी के विद्वान थे। संस्कृत वाड्मय में उन्हें त्रिविध वीर-चूड़ामाणि की उपधि से विभूषित किया गया है। वे रणवीर, दानवीर और विद्यावीर थे। उनके आश्रय में 1400 पण्डित रहते थे।
- 'प्रबंन्धचिन्तामणि' और बल्लाल रचित 'भोजप्रबंध' में उनकी सभा में 500 पण्डितों की उपस्थिति कही गयी है। इनका निर्वाह राज्य की ओर से होता था। 'भोजप्रबंध' में भोज की सभा के कवियों का सुन्दर चित्रण है।
संस्कृत वाङ्मय के प्रत्येक विधा पर भोज की लेखनी ने चमत्कार दिखाया। विद्वानों द्वारा रचित ग्रंथों का विभाजन निम्मानुसार किया गया है:
1. काव्य -
- चम्पूरामायण, श्रृंगारमंजरी, महाकालीविजय, विद्याविनोद एवं प्राकृत स्तोत्र धार के भोजशाला में शिला पर उत्कीर्ण काव्य- अवन्तिकुमारशतक, खड्गशतक और कोदण्डकाव्य
2 अंलकार कोष-
- व्याकरण, सरस्वतीकष्ठाभरण, नाममाला, शब्दानुशासन, सुभाषितप्रबन्ध, सिद्धान्तसंग्रह
- पूर्वमार्तण्ड, दण्डनीति, व्यवहारसमुच्चय एवं चारूचर्या
4. योगशास्त्र:
- राजमार्तण्ड
5. शिल्पशास्त्र -
- युक्तिकल्पतरू, समरांगणसूत्रधार
6. ज्योतिषशास्त्र
- राजमार्तण्ड, राजमृगांक, विद्वज्जनवल्लभ, प्रश्नज्ञान, आदित्यप्रताप सिद्धान्त
7. पशुचिकित्सा-
- शालिहोत्र
- भोज ने धारा नगरी (आधुनिक धार) को शिक्षा का एक प्रख्यात केन्द्र बनाने का प्रयास किया। उन्होंने यहाँ एक सरस्वती मंदिर जिसे भारती-भवन अथवा शारदा-सदन के नाम से भी जाना जाता था, का निर्माण किया। इसमें सरस्वती की एक प्रतिमा स्थापित की गई। यह आधुनिक भोजशाला कहलाता है। यह विदग्ध विद्धानों, पण्डितों, आलोचकों तथा शिक्षाभिलाषियों की संगमस्थली थी।
- भोज के राजदरवार के प्रख्यात कवि और लेखक थे; 'प्रबंध चिन्तामणि' में उल्लिखित सुराचार्य; 'मन्त्रभाषा' के लेखक वैदिक विद्वान उवट; अज्ञात ग्रंथों के लेखक चित्तप; 'तिलकमंजरी' के लेखक धनपाल वलभी से पधारे बौद्ध विद्वान् दशवल जिन्होंने ज्योतिषशास्त्रीय ग्रंथ 'चिन्तामणि सारणिका' की रचना की।
- भोजकालीन उपरोक्त सभी साहित्यिक ग्रंथ समकालीन मध्यप्रदेश के इतिहास और संस्कृति संबंधित जानकारियों के अपार भण्डार हैं।
भोज के उत्तराधिकारी और साहित्य विकास
- भोज के उत्तराधिकारी परमार शासकों के काल में विन्ध्यवर्मन् द्वारा कवि सुल्हण (केदार रचित 'वृत्तिरत्नाकर' के टीकाकार) एवं पण्डित आशाधर (रुद्रट रचित 'काव्यालंकार' के टीकाकार) एवं अन्यान्य ग्रंथों के रचयिता को राजाश्रय प्रदान किया गया। सम्राट् अर्जुनवर्मन् ने स्वयं 'रसिक संजीवनी' की रचना की। उन्होंने अपने गुरू एवं 'पारिजातमंजरी' के लेखक मदन को 'बालसरस्वती' की उपधि से विभूषित किया। अप्राप्त ग्रंथ 'बालसरस्वतीयम्' के रचनाकार भी संभवतः मदन ही था।
जैन
- मालवा के परमार शासनाधीन अनके जैन ग्रंथों की रचना हुई। इनके प्रमुख लेखक हैं: देवसेन, हरिषेण, महासेन, अमितगति, धनपाल, वीर, श्रीचन्द्र, नेमिचन्द्र, प्रभाचन्द्र, नयनन्दिन, जिनवल्लभ, पण्डित आशाधर तथा दामोदर। इनके द्वारा रचित ग्रंथ अधिकांशतः धार्मिक हैं। इतिहास संबंधित जानकारियों का इनमें अभाव है। अवश्य ही वे समकालीन जैन धर्म के विकास की जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
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