स्वामी विवेकानन्द के दार्शनिक विचार और उनका आधार । Philosophical Thoughts of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द के दार्शनिक विचार आधार 

Philosophical Thoughts of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द के दार्शनिक विचार और उनका । Philosophical Thoughts of Swami Vivekananda


स्वामी विवेकानन्द के दार्शनिक विचार (आधार) 

स्वामी विवेकानन्द के चिन्तन के दार्शनिक आधार अमलिखित रहे हैं 


1. वैदिक परम्परा- 

  • स्वामी विवेकानन्द अद्वैत वेदान्त के समर्थक थे। उनके दर्शन का सर्वप्रथम एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण सोत वैदिक परम्परा एवं वेदान्त ही थे। वे वेदों के दृढ़ भक्त तथा पक्के वेदानुगामी थे। वेद विश्वास उनके लिए प्राण के समान प्रिय था। स्वामी दयानन्द सरस्वती की तरह स्वामी विवेकानन्द ने भी वेद तथा वेदान्त की धारणाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति के गौरव को प्रतिष्ठित किया। इसी के सहारे उन्होंने संसार के सामने भाषासाहित्यज्ञान-विज्ञानइतिहासधर्म तथा संस्कृति के क्षेत्र में भारत को अन्य देशों की अपेक्षा उत्तम तथा समृद्ध दर्शाया।

 

2.  रामकृष्ण मिशन की स्थापना

  • विचारों का प्रचार-प्रसार केवल एक व्यक्ति के बस की बात नहीं होती। इस प्रचार को निरन्तर क्रियात्मक रखने के लिए एक संस्था की आवश्यकता होती है। स्वामी दयानन्द ने "आर्य समाज की स्थापना इसी हेतु की थी। 
  • उनके विचारों तथा उनके द्वारा सुझाए सुधारों का व्यापक एवं प्रभावपूर्ण प्रसार होता रहे इसी उद्देश्य से स्वामी विवेकान्द ने 1893 ई. में "रामकृष्ण मिशन" की स्थापना की। आज इस संस्था की शाखा देशभर में फैली हुई है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य वैदिक धर्म का प्रचार तथा भारतीयों का नैतिक व आध्यात्मिक उत्थानदीन दुखियों की सेवा-सहायता करके उन्हें शिक्षित करना और ऊपर उठाना था। इसके अतिरिक्त समाज सुधार हेतु जातीय भेदभाव तथा धार्मिक अन्धविश्वासों और कुरीतियों को दूर करना था।

 

पाश्चात्य अन्धानुकरण का विरोध

  • उन दिनों लोग अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य सभ्यता के पीछे आँखें मूंद कर पड़े हुए थे। वे भौतिक सभ्यता की ओर इतने आसक्त थे कि भारत की गौरवपूर्ण संस्कृति को धीरे-धीरे भूलते जा रहे थे। 
  • स्वामीजी ने इस अन्धानुकरण का तीव्र विरोध किया। उनका कथन था कि धर्म का निवास भारत के दर्शनसंस्कृति और अध्यात्म में है। भारत को इन सबके प्रति आस्था रखनी चाहिये तथा इनको बनाये रखने के लिये प्रयत्नशील रहना चाहिये।
  • यदि भारतवासी इनको विस्मृत कर देंगे तो भारत भ्रष्ट हो जायेगा। पाश्चात्य समाज की नकल करने की प्रबल इच्छा के सामने हम इतने विवश हो जाते हैं और हममें विचारबुद्धिशास्त्र एवं हित अहित के ज्ञान की इतनी कमी हो जाती है कि हम भले-बुरे का निश्चय करने के लिये भी उनका सहारा नहीं ले पाते।

 

जनसेवा का समर्थन

  • जनसेवा सबसे पहला भाव था जो स्वामीजी के हृदय में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान था। अभावों से ग्रस्त मानव जाति के सूखी होने तथा निर्धन के सम्मानपूर्वक जीवन के लिए उनकी हमेशा कामना रही है। उनके विचार से जनसेवा ही सच्ची राष्ट्र सेवा थी। जो व्यक्ति राष्ट्र की सेवा करना चाहता हैउसके लिये जरूरी है कि वह शिक्षा तथा सभ्यता का प्रचार करे तथा निर्धनता को मिटाने का प्रयत्न करे। निर्धनता की समाप्ति और अच्छी शिक्षा की प्राप्ति से आत्मोन्नति का मार्ग स्वत: ही खुल जायेगा।

 

स्वामी विवेकानन्द के के जाति प्रथा सम्बन्धी विचार 

  • स्वामी विवेकानन्द को भारतीय समाज में इतनी असमानताएँ दिखाई दी कि वह (समाज) असमानताओं पर ही आधारित लगा। आरम्भ में समाज को कर्म के आधार पर बाँटा गया था। परन्तु अब वह जातीय संकीर्णताओं से घिरा हुआ था। वे जाति प्रथा के बन्धनों को ढीला करना आवश्यक समझते थे। उनका विचार था कि समाज को शिक्षित करके ही चतुः वर्ण व्यवस्था समाप्त की जा सकती हैअतः वे इस कार्य के लिए आवश्यक शिक्षा पर बल देते थे। जाति भेद का अन्त करने का एकमात्र उपाय सभ्यता और शिक्षा का प्रसार हैउच्चतर जातियों का बल है। जाति प्रथा की संकीर्णताएँ विलुप्त करने का एकमात्र उपाय निम्न वर्ग को शिक्षित करना है। उन्हें शिक्षित करके जनसाधारण पर महान उपकार किया जा सकता हैउनकी दासता की कड़ियाँ टूट जाएँगी और सम्पूर्ण राष्ट्र का उत्थान होगा।

 

स्वामी विवेकानन्द के अस्पृश्यता सम्बन्धी विचार 

  • स्वामीजी के अनुसार जाति प्रथा ने समाज को भारी क्षति पहुँचाई थी। जाति प्रथा के कारण ही समाज में उच्च जातियाँ अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने लगी। निम्न वर्ग वालों साथ भेदभाव धीरे-धीरे इतना बढ़ा कि उनका स्पर्श भी अपवित्र माना जाने लगा। 
  • स्वामी विवेकानन्द का कथन है कि "जाति के कारण ही भारत का पतन हुआ है। प्रत्येक दृढमूल अभिजात्य वर्ग अथवा विशेषाधिकार प्राप्त सम्प्रदाय जाति के लिये घातक है। जाति को स्वतन्त्रता दोजाति की राह से प्रत्येक रोड़े हटा दोबस हमारा उत्थान होगा।” ऊँच-नीच और छूत- अछूत की भावना को वे जाति के मार्ग में ऐसा अवरोध मानते थे जो उसको उन्नति नहीं करने देगा। यह आवश्यक है कि इस भावना का अन्त हो। इसके लिये जनसाधारण को जीवन के आवश्यक विषयों का ज्ञान कराकरसबको साथ लेकर चलना चाहिये। देश का उत्थान तभी होगा जब सभी का उत्थान हो ।

 

नारी उत्थान का समर्थन

  • एक सच्चे वैदिक धर्मानुगामी की तरह स्वामी विवेकानन्द भी यह मानते थे कि राष्ट्र में स्त्री जाति का सम्मान उचित एवं आवश्यक हैतभी राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकता है। जिन राष्ट्रों में नारियों का आदर नहीं होता वे उन्नति नहीं कर पाते हैं और भविष्य में भी नारी जाति के सम्मान बिना उनका उन्नति करना असम्भव ही है । तरह-तरह के कठोर नियमों द्वारा स्त्रियों पर कडे प्रतिबन्ध लगाकर उन्हें मात्र मूर्ति बना देने से न उनका उत्थान हो सकेगान राष्ट्र का ही। 
  • स्वामीजी का दृढ़ विश्वास था कि स्त्रियाँपुरुषों के समान हैं और राष्ट्र की सेवा तथा उन्नति के लिये पुरुषों तथा स्त्रियों को मिलकर प्रयत्न करना चाहिए। वे नारी को शिक्षित करके उसे महानता की सीमा तक ऊपर उठाना चाहते थे। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर स्वामी विवेकानन्द ने दहेज प्रथा तथा बाल विवाह जैसी कुरीतियों का विरोध किया और इसे नितान्त अनुचित ठहराया कि विधवा विवाह पर रोक लगाकर स्त्रियों को बलपूर्वक वैधव्य भोगने को बाध्य किया जाये।

 

कर्म की प्रधानता - 

  • स्वामी विवेकानन्द का मानना है कि व्यक्ति को सदा क्रियाशील बने रहना चाहिए। वे प्रत्येक व्यक्ति को अपने लक्षित कर्म की शिक्षा देते हैं।
  • स्वामीजी का विख्यात कथन है कि प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करोसभी मरेंगे साधु या असाधुधनी या दरिद्र - सभी चिरकाल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठोजागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।
  •  स्वामी जी कहते हैं कि व्यक्ति को एक समय में एक ही लक्ष्य तय करके उसके प्रति समर्पित हो जाना चाहिए। साथ ही अपने कर्म के मार्ग में साहस और निर्भीकता के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

 

9. आध्यात्मिक मानववाद- 

  • स्वामीजी मानवता एक नये नजरिये के संस्थापक हैंऔर यह नजरिया है आत्मा का संभावित दैवत्व"। उनके अनुसार यदि आत्मा के दैवत्व में कमी आती है तो यह कमी ही उसे नैतिक पतन की ओर ले जाती है। अतः हमें आत्मा की अखण्डता का अभ्यास करना चाहिये। यह अभ्यास के माध्यम से किया जा सकता है।

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