हिन्दी उपन्यास का उद्भव विकास। प्रेमचन्द पूर्व हिन्दी उपन्यासकार और उनकी रचना । Premchand Ke Purve Ke Upnyas
हिन्दी उपन्यास का उद्भव विकास, प्रेमचन्द पूर्व हिन्दी उपन्यासकार और उनकी रचना
हिन्दी उपन्यास का उद्भव
- भारत में कथा साहित्य की परम्परा प्राचीन काल से ही रही है। रामायण, महाभारत, उपनिषद् आदि ग्रन्थ अनेक कथा कहानियों से भरे पड़े हैं लेकिन हिन्दी साहित्य में जिस कहानी को हम आज पढ़ते या सुनते हैं उसके बीज पश्चिमी साहित्य से भारतीय साहित्य में आये। इसीलिए वर्तमान के हिन्दी उपन्यास भी कहानी विधा की भाँति ही पश्चिमी साहित्य की देन है। तभी तो हिन्दी उपन्यास का इतिहास भी कहानी साहित्य के इतिहास की भाँति बहुत प्राचीन नहीं है।
- जैसा हिन्दी साहित्य के इतिहासकार स्वीकार करते हैं कि हिन्दी साहित्य की इस विधा का जन्म भारतेन्दु युग में हुआ। पहले तो बंगला उपन्यासों के अनुवाद द्वारा हिन्दी उपन्यास साहित्य की नींव रखी गयी और इसके पश्चात् भारतेन्दु युग में अनेक उपन्यासकारों ने अपनी लेखनी से हिन्दी उपन्यास की शून्यता को समाप्त किया।
हिन्दी उपन्यास का विकास
- भारतेन्दु युग में जिस प्रकार अन्य गद्य विधाओं का जन्म हुआ उसी प्रकार हिन्दी भी अस्तित्व में आया के शीर्ष साहित्यकार भारतेन्दु हरिशचन्द्र ने अनेक साहित्यकारों को इस विधा पर लेखनी चलाने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी के परिणाम स्वरूप लाल श्री निवासदास ने परीक्षा गुरू' नामक वह उपन्यास लिखा जिसे हिन्दी का पहला उपन्यास स्वीकार किया जाता है।
- इनके पश्चात् अनेक लेखकों ने इस विधा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मुंशी प्रेमचन्द इसी उपन्यास विधा को आगे बढ़ाने में प्राणप्रण से जुट गये इसीलिए हिन्दी उपन्यास के इतिहासकारों ने मुंशी प्रेमचन्द को केन्द्र में रखकर हिन्दी उपन्यास के विकास क्रम पर अपनी लेखकी चलायी।
हिन्दी के उपन्यास साहित्य का इतिहास लिखते समय इसे तीन चरणों में विभक्त किया-
1. प्रेमचन्द पूर्व युग के हिन्दी उपन्यास
2. प्रेमचन्द युग के हिन्दी उपन्यास
3. प्रेमचन्दोत्तर युग के हिन्दी उपन्यास
1 प्रेमचन्द पूर्व हिन्दी उपन्यास
हिन्दी का प्रथम उपन्यास
- हिन्दी का प्रथम उपन्यास किसे स्वीकार करे? विद्वानों में इस बात पर पर्याप्त मतभेद है। लेकिन यह सत्य है कि प्रेमचन्द पूर्व युग में उपन्यास लेखन की परम्परा प्रारम्भ हो गयी थी। कुछ विद्वान रानी केतकी की कहानी को हिन्दी का प्रथम उपन्यास स्वीकारते हैं। लेकिन इसके लेखक इंशा अल्ला खाँ ने इसके शीर्षक पर 'कहानी' शब्द जोड़कर इसके उपन्यास होने की सम्भावना को समाप्त कर दिया।
- सन् 1872 में जब श्री श्रृद्धाराम फिल्लौरी ने 'भाग्यवती' नामक कृति की सर्जना की तो कुछ विद्वानों ने इसे हिन्दी का प्रथम उपन्यास स्वीकारा लेकिन इसमें औपन्यासिक तत्वों के अभाव ने इसे भी उपन्यासों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने इतिहास में परीक्षा गुरू को हिन्दी का प्रथम उपन्यास स्वीकार किया लेकिन आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भारतेन्दु के पूर्ण प्रकाश' और 'चन्द्रप्रभा' को हिन्दी का प्रथम उपन्यास मानकर आचार्य शुक्ल के द्वारा परीक्षा गुरू' को हिन्दी का प्रथम उपन्यास मानने पर प्रश्न चिह्न लगा दिया।
- आचार्य द्विवेदी भले उक्त दोनों उपन्यासों को हिन्दी के प्रथम उपन्यास स्वीकार करें लेकिन विद्वान इन दोनों उपन्यासों पर मराठी और बंगला की छाया मानते हैं।
- यद्यपि प्रेमचन्द पूर्व युग के विद्वान बहुत समय तक लाला श्रीनिवासदास के उपन्यास ‘परीक्षा गुरू’ को हिन्दी के प्रथम उपन्यास के रूप में आदर देते रहे। लेकिन बाबू गुलाब राय जैसे विद्वान इस पर हितोपदेश की छाया देखते हैं। जिसमें हितोपदेश की सी उपदेशात्मकता और बीच-बीच में श्लोंको की उपस्थिति इसे एक मौलिक उपन्यास की मान्यता से वंचित करती है। इस उपन्यास के अतिरिक्त इस युग में बाबू राधाकृष्णदास का निःसहाय हिन्दु' और पंडित बालकृष्ण भट्ट के 'नूतन ब्रह्मचारी तथा सौ अजान एक सुजान' जैसे उपन्यास चर्चित रहे। इसी श्रृंखला में हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पंडित अयोध्यासिंह 'हरिऔध' उपाध्याय का वेनिस का बाँका तथा ठेठ हिन्दी का ठाट' पंडित गोपालदास बरैया का 'सुशीला', लज्जाराम मेहता का धूर्त रसिकलाल, गोपाल राम गहमरी का 'सास पतोहू' तथा किशोरीलाल गोस्वामी का 'लबंग लता' काफी चर्चित उपन्यास रहे। ये उपन्यासकार अपने युग के चर्चित उपन्यासकार रहे हैं।
प्रेमचन्द पूर्व हिन्दी उपन्यासकार और उनकी रचना
1. देवकी नन्दन खत्री (सन् 1861-1913)
- हिन्दी के प्रेमचन्द से पूर्व के उपन्यासकारों में देवकी नन्दन खत्री का नाम काफी चर्चित है। इनके सभी उपन्यासों में घटना बाहुल्य तिलिस्म और ऐयारी की बातों पर जोर दिया गया है।
- इनके उपन्यास मौलिक उपन्यास हैं।
- हिन्दी भाषा में लिखे गये इनके उपन्यासों को पढ़ने के लिए उर्दू जानने वालों ने हिन्दी सीखी।
देवकी नन्दन खत्री के प्रसिद्ध उपन्यास हैं-
चन्द्रकान्ता, चन्द्रकान्ता सन्तति, भूतनाथ (पहले छः भाग) काजल की कोठरी, कुसुम कुमारी, नरेन्द्र मोहिनी गुप्त गोदना' वीरेन्द्रवीर आदि। इन उपन्यासों के कारण हिन्दी भाषा का विस्तार हुआ। और हिन्दी उपन्यास विधा लोकप्रिय हुई।
2. गोपाल दास गहमरी-
- श्री गोपालदास गहमरी ने हिन्दी में अनेक जासूसी उपन्यासों का अनुवाद किया। उन्होने अपने जीवन काल में एक जासूसी पत्रिका भी निकाली जिसका नाम था 'जासूस', इस पत्रिका में अनेक जासूसी उपन्यास और कहानियाँ प्रकाशित होती थी।
3. किशोरी लाल गोस्वामी- (सन् 1865-1932)
- श्री किशोरी लाल गोस्वामी साधारण जनता की अभिरूचि के उपन्यास लिखते थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में 'लवंगलता', कुसुम कुमारी, अंगूठी का नगीना, लखनऊ की कब्र, चपला, तारा, प्राणदायिनी आदि साठ से अधिक उपन्यास लिखे। इनके उपन्यासों में साहित्यिकता अधिक है लेकिन सामान्य पाठक की रूचि को उदार बनाने की विशेषता को न उभार सकने के कारण ये इनके उपन्यास मात्र बौद्धिक वर्ग की रूचि का परिष्कार करते हैं।
4. बाबू ब्रजनन्दन सहाय
- बाबू ब्रजनन्दन सहाय ने अपने जीवन काल में ‘सौन्दर्योपासक’ आदर्श मित्र' जैसे चार उपन्यास लिखे। इनके उपन्यासों में घटना वैचित्रय और चरित्र चित्रण की अपेक्षा भावावेश की मात्रा अधिक है।
प्रेमचन्द पूर्व हिन्दी के अन्य उपन्यासकार
- इन उपन्यासकारों के अतिरिक्त उस युग में अनेक उपन्यासकारों ने ऐतिहासिक उपन्यास लिखकर हिन्दी उपन्यास विधा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, इनमें श्री गंगा प्रसाद गुप्त का 'पृथ्वीराज चौहान और श्री श्याम सुन्दर वैद्य का 'पंजाब पतन' जैसे उपन्यास काफी चर्चित रहे। प्रेमचन्द पूर्व युग के उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों में आदर्शवाद के साथ भावुकता तथा भारतीय आदर्श को उभारते का प्रयत्न किया है।
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