सतपुड़ा पर्वत भौगोलिक प्रदेश। Satpura Mountain Geography GK in Hindi
सतपुड़ा पर्वत भौगोलिक प्रदेश, Satpura Mountain Geography GK in Hindi
सतपुड़ा पर्वत भौगोलिक प्रदेश
- सतपुड़ा श्रेणी नर्मदाघाटी के दक्षिण में पूर्व से पश्चिम तक फैली है। पूर्व में इसकी सीमा मैकल पर्वत बनाता है।
- मध्यप्रदेश में इसका विस्तार 27° से 23° उत्तर अक्षांशों तथा 74°30' से 81° पूर्वी देशांशो के मध्य में है। यह श्रेणी नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच का जल विभाजन है।
- सतपुड़ा श्रेणियाँ नर्मदा एवं ताप्ती नदियों से घिरे एक त्रिभुज के रूप में फैली हुई है जिसका आधार पूर्व में स्थित मैकल श्रेणी है।
- सतपुड़ा श्रेणी नर्मदा और ताप्ती बेसिनो को अलग करती है। इसके विभिन्न पठार चपटी पहाड़ियों से युक्त हैं। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 400 से 600 मीटर है।
- भैँसादेही-बुरहानपुर सीमा पर असीरगढ़ पहाड़ी की ऊँचाई 600 मीटर से भी अधिक है, यह पूर्व से पश्चिम की ओर फैला है। इसके उत्तर में बीजाडांगरी बुरहानपुर में है।
- बैतूल पठार 400 से 600 मीटर ऊँचा है। कालीभीत पहाड़ियों (678 मीटर) का अधिकांश भाग बैतूल पठार में स्थित है, इसके पूर्व में छिंदवाड़ा एवं सिवनी के पठार हैं बैनगंगा नदी क्रम उन्हें अलग करता है।
- बड़वानी पहाड़ियाँ (641 मीटर) खंडवा में, बिजलगढ़ पहाड़ियाँ (849), कालीभीत पहाड़ियाँ (770 मीटर) बैतूल तहसील में हैं।
- बैतूल तहसील में पचमढ़ी के पश्चिम में धूपगढ़ ( 1350 मीटर) शिखर महादेव पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी है। अन्य चोटियाँ चौरागढ़, बालकन्धार आदि हैं।
- सोहागपुर तहसील के भाग में ऊँची श्रेणियाँ कगार तथा विच्छेदित पठार हैं, परसवाड़ा पठार के पूर्व में 900 मीटर ऊँची चोटियाँ हैं।
सतपुड़ा पर्वत क्षेत्र में नदियां और घाटियाँ
- सतपुड़ा पर्वत क्षेत्र में नदियों की घाटियों में गहरी, साधारण गहरी, और छिछली काली मिट्टियों के संकरे मैदान हैं। अधिकांश क्षेत्र में लाल व पीली मिट्टियां है जिनकी उर्वरता बहुत कम है। अधिकतम क्षेत्र पहाड़ी होने के साथ ही सघन वनों से आच्छादित रहा है।
- सतपुड़ा पर्वत के संबंध में किंवदन्ती है कि वह विन्ध्यांचल के सात पुत्रों का समूह है।
- सतपुड़ा विन्ध्यांचल के समान्तर ही फैला है मैकल से प्रारंभ होकर पश्चिम तक मध्यप्रदेश में इसी लंबाई करीब 900 किलोमीटर तथा चौड़ाई 150 किलोमीटर से भी अधिक है। मैकल पर्वत सतपुड़ा और विन्ध्यांचल को जोड़ता है।
सतपुड़ा पर्वत अपवाह तंत्र
- सतपुड़ा पर्वत के अपवाह तंत्र में नर्मदा ताप्ती और गोदावरी की सहायक नदियाँ हैं। नर्मदा की सहायक नदियों में गौर उल्लेखनीय है जिसकी सहायक नदियाँ माचारेवा, बसरेवा इत्यादि है।
- नर्मदा की दूसरी प्रधान सहायक नदी शक्कर है जो अमरवाड़ा (छिन्दवाड़ा) के 128 किलोमीटर उत्तर से निकलकर सतपुड़ा के कोयला क्षेत्र को पार कर नर्मदा में मिलती है। छोटी तवा नदी आबना एवं सुक्ता नदी का योग है।
- इस भौगोलिक प्रदेश की सबसे बड़ी नदी ताप्ती है। इस नदी का जलग्रहण क्षेत्र बैतूल जिले के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित है।
- भैंसदेही पठार भी सीमा से दक्षिण पश्चिम को मुड़कर बुरहानपुर में मध्य होकर यह महाराष्ट्र में प्रवेश करती है। यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदी है।
सतपुड़ा पर्वत का क्षेत्र की जनजातियाँ
- सतपुड़ा पर्वत का क्षेत्र सदैव से ही वनाच्छादित रहा है और इसलिये अनेक जनजातीय समूहों का निवास स्थल भी रहा है।
- निमाड़, झाबुआ, सेन्धवा, भीकनगाँव में भील भिलाला, बारेला पारेलिया आदि जनजातियाँ निवास करती हैं जो सभी भील समूह की है। छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला तथा बैतूल में गोंड़, भुंजिया, बिन्झवार, धनवार कोरकू इत्यादि जनजातियाँ निवास करती है।
- सतपुड़ा पर्वत भौगोलिक प्रदेश की एक जनजाति के एक समूह का उल्लेख करना उचित होगा क्योंकि यह अब भी इतिहास विहीनता जैसी स्थिति में पाई जाती है। यह जनजाति है भारिया जिसका विस्तार मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला और सरगुजा जिलों तक है परन्तु इसी जनजाति का एक समूह छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट नामक स्थान में सदियों से रह रहा है।
- पातालकोट की भौम्याकृति विशिष्ट है। यह एक छोटा समतल क्षेत्र है जो ऊँची पहाड़ियों द्वारा चारों ओर से घिरा है, ठीक वैसा ही जैसा कि एक कटोरा होता है। पातालकोट के भारिया जनजाति के इस समूह को अत्यंत पिछड़ी जनजाति समूह (प्रिमिटिव ट्राइव) वर्ग के अंतर्गत रखा गया है। यह जनजातीय समूह आदिम स्थाई कृषि से अपना भरण पोषण करता है।
- सतपुड़ा पर्वत क्षेत्र के पश्चिमी भाग में भील पाये जाते हैं। इनका यह वितरण प्राचीन काल से है। ऊपर वर्णित हत्ती पर्वत श्रृंखला पर जब मुगलों ने अधिकार किया तब भीलों ने उनका प्रतिरोध किया। इस पर मुगलों ने पकड़े गये भील सरदारों को मुसलमान बना लिया तथा उसके पश्चात् इस पर्वतीय श्रृंखला के पश्चिमी भाग के चार भाग कर चार सरदारों को दे दिये। ये सरदार व्यापारियों और राहगीरों से नाजायज वसूली करते थे। अंग्रेजों के काल में इस पर काफी कुछ अंकुश लगा।
- सतपुड़ा पर्वत क्षेत्र की जनसंख्या अधिकतम जनजातीय ही रही है। प्राचीन काल से ही केन्द्रीय सत्ता चाहे उत्तराखंड की रही हो, या दक्षिणापथ की इस क्षेत्र पर उनका अधिकार केवल नाममात्र का ही रहता था।
- अपने वर्चस्व को स्थायित्व देने के लिये इस क्षेत्र में नाम मात्र के प्रयास हुये। प्राचीन काल में मौखरी वंश के राजाओं ने सतपुड़ा की एक चोटी पर असीरगढ़ का किला बनवाया जो सारे भारत में अपनी अभेद्यता के लिया विख्यात था। यह किला रकबे में साठ एकड़ है।
- इस तरह यह ग्वालियर के किले से आधा है परन्तु इसकी समीपवर्ती क्षेत्र से ऊँचाई ग्वालियर के किले से दूनी है।
- मुसलमानों के आक्रमणों के पश्चात् यह किला हिन्दू राजाओं के हाथ से निकलकर फारूखी सुल्तानों के हाथ में आ गया। उत्तर से दक्षिण के मार्ग के पर सामरिक महत्व का यह किला अकबर ने 1600 ईस्वी में छल से जीता।
- छत्तीसगढ़ में फारूखियों और मुगलों के अनेक लेख है। मुगलों के लेख फारसी में है। मुगल शाहजादा दानियाल जब खानदेश का सूबेदार मुकर्रर हुआ तब वह इसी किले में रहने लगा। यहाँ से ताप्ती की घाटी में बसा नगर बुरहानपुर केवल 14 मील दूर है।
बुरहानपुर का तत्कालीन भारत में महत्व
- बुरहानपुर का तत्कालीन भारत में महत्व इसी से समझा जा सकता है कि इंग्लैंड के राजा जेम्स के राजदूत सर टामस रो ने यहाँ जाकर शाहजादा परवेज से (1605 ईस्वी) मुलाकात की। फ्रांसीसी यात्री ट्रैवर्नियर (1641 एवं 1658 ईस्वी) यहाँ से दो बार गुजरा उसके विवरणों से ज्ञात होता है कि यहाँ बहुत उच्च कोटि की मलमल बनाई जाती थी तथा वह मध्यपूर्व के रास्ते से यूरोप के देशों तक भेजी जाती थी। मुगल काल में नगरों में नलों का प्रयोग यहाँ देखने मिलता है। ये नल मुगलाई नल कहलाते हैं जिनमें 13000 फुट दूरी से पानी लाया जाता था।
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