मध्य प्रदेश का प्राचीन इतिहास जानने के साधन। मध्यप्रदेश के इतिहास की जानकारी के साधन। Sources of MP History
मध्य प्रदेश का प्राचीन इतिहास जानने के साधन
मध्यप्रदेश के इतिहास की जानकारी के साधन
1. पुरातत्त्व
- प्रागैतिहासिक एवं आद्यैतिहासिक पुरावशेष
- अभिलेख
- सिक्के
- स्मारक
2. साहित्य
3. विदेशी लेखकों के वृत्तान्त
मध्यप्रदेश भारत के उन प्रदेशों में से एक है जो अपने समृद्ध इतिहास और संस्कृति के लिये जाने जाते हैं। भारत के हृदय स्थल में बसे होने के कारण यह एक ऐसा क्षेत्र रहा है जहां से होकर राजनैतिक और सांस्कृतिक लहरें उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम और इनके विपरीत दिशाओं के प्रति गुजरती रही हैं।
मध्यप्रदेश का प्राचीन इतिहास के पुरातात्विक साक्ष्य
अ. प्रागैतिहासिक और आद्यैतिहासिक पुरावशेष
मध्यप्रदेश के विभिन्न स्थानों के उत्खनन और खोज से बहुत सी
पाषाणयुगीन सांकृतियाँ, जैसे निम्न
पुरापाषाण कालीन, मध्य पुरापाषाण
कालीन, उत्तर पुरापाषाण
कालीन मध्य पाषाण कालीन, नवपाषाण कालीन व
ताम्रपाषाण के साथ प्रारंभिक लौह-युग के स्थल भी प्रकाश में आए हैं। इनका विवरण
निम्नानुसार है।
( 1 ) मध्य प्रदेश में निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति :
(अ) नर्मदा घाटी:
- नर्मदा घाटी के भूस्तर विन्यास की जानकारी और आदि मानव के अवशेष ढूंढने के प्रयास में पुरातत्त्वविदों ने विगत सौ वर्षों से अधिक समय में कई पुरातात्त्विक उत्खनन किये।
- 1878 में एक पूर्वपाषाण कालीन उपकरण, स्तनपायी जानवर के जीवाश्म के साथ भुतरा में पाया गया। बाद में 1935 में डी टेरा और पीटरसन द्वारा घाटी का सर्वेक्षण किया गया और जीवाश्मों, उपकरणों व स्तर-विज्ञान द्वारा पाए गये प्रमाणों में परस्पर संबंध स्थापित करने के प्रयास किये गये।
- इसके पश्चात् ए. पी. खत्री, एच.डी. सांकलिया और सेन, एस.सी. सूपेकर, मैक क्राउन, जी.जे. वैनराइट, डब्ल्यू. थिओबोल्ड, जी.एल. बदाम, आर. वी. जोशी के अतिरिक्त और भी कई विद्वानों ने नर्मदा घाटी का सर्वेक्षण किया और विभिन्न निष्कर्षो पर पहुँचे।
- होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच की मध्य नर्मदा घाटी जीवाश्मों के विषय में बहुत ही समृद्ध प्रमाणित हुई है। इन जीवाश्मों को मध्य प्लीस्टोसीन काल का माना जाता है, यद्यपि इनके संरक्षण और खनिजीकरण की स्थितियाँ, इनमें से कुछ जमूनों को उच्च प्लीस्टोसीन का बताती हैं। प्राणी समूह के जीवाश्मों में एलिफस नेमाडिकस, बॉस नेमाडिकस एकस नेमाडिकस, हेराप्रोटोडॉन, बाबालस, सस और सरवस शामिल हैं। सीहोर जिले में हथनोरा से प्राप्त नर्मदा-मानव की खोपड़ी के जीवाश्म की खोज पुरातत्त्व में एक नये युग का निर्माण करने वाली खोज सिद्ध हुई है।
- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति के कुछ पत्थर के उपकरण घाटी के विभिन्न स्थानों पर काम कर रहे विद्वानों के द्वारा खोजे गये हैं। डी टेरा और पीटरसन ने कई क्षेत्रों से कुल्हाड़ियाँ और बुगदां एकत्रित किये हैं। कुल्हाड़ी और प्रारंभिक, मध्य तथा पूर्व अशूलियन उपकरणों का एक बड़ा संग्रह ए. पी. खत्री द्वारा भी संग्रहित किया गया है।
- होशंगाबाद, नरसिंहपुर और मंडला में भी डी. सेन ने निम्न पुरापाषाण कालीन युग के कई उपकरण एकत्रित किये। मैकक्राउन ने पिपरनाला से एक अच्छा संग्रह एकत्रित किया।
- महादेव पिपरिया के उत्खनन में सुपेकर ने 860 उपकरण इक्ट्ठे किये 1400 से भी अधिक पुरापाषाण कालीन उपकरण सहस्रधारा और मंडलेश्वर के बीच, महेश्वर से संग्रहित किये गये।
- महेश्वर के दुरकाडीनाला से जार्ज अरमोंड ने एक प्रायोगिक उत्खनन के दौरान 1100 से भी अधिक उपकरण संग्रह किये।
- के. डी. बैनर्जी ने मध्य नर्मदा घाटी और सिहोर जिले में लगातार कई खुदाइयाँ और खोज की। ऐसा लगता है कि नर्मदा घाटी में अशूलियन समय के हस्तकुठार और बुगदे, कंकड़ों और कंकड़-पपड़ियों के बने हुये ऐसे उपकरणों के साथ थे, लेकिन इसका स्तर वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
(ब) चम्बल घाटी :
- एक अनजान भू-गर्भ शास्त्री ने चम्बल घाटी के नीमच में ग्रे क्वार्टज़ाइट 'बाऊचर' की खोज सबसे पहले की बाद में वी. एस. वाकणकर ने मंदसौर में बहुत से पुरापाषाण कालीन उपकरण खोजे।
- ए. पी. खत्री ने शिवना का सूक्ष्म सर्वेक्षण किया और मंदसौर और नाहरगढ़ में क्रमश: रामघाट और श्मशानघाट नामक दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों की खोज की जहाँ उन्हें पुरापाषाण कालीन उपकरण मिले। निचली चम्बल घाटी में खोज के दौरान, एस. के. श्रीवास्तव को निम्न और मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण मिले।
(स) बेतवा घाटी
- सिंह और खत्री द्वारा किये गये बेतवा घाटी के सर्वेक्षण के दौरान पुरापाषाण कालीन उपकरण, ललितपुर क्षेत्र में पाये गये हैं। शहजाद नदी, बियाना नाला के 6 क्षेत्र, छतरपाल मंदिर और कथोरा में ये उपकरण मिले। बेतवा स्रोत क्षेत्र व भीमबेटका के गुफाओं में उत्खनन से भी पुरापाषाण कालीन उपकरण मिले हैं।
(द) सोनार घाटी
- आर.बी. जोशी द्वारा सोनार, कोपरा और ब्यारामा की घाटियों में की गई खोज के दौरान तीनों युगों के उपकरण मिले हैं। घगरा, हरट, नरसिंहगढ़ और मारियादो, सोनार के चार महत्वपूर्ण स्थल हैं।
(इ) सोन घाटी
- निसार अहमद द्वारा सोन घाटी में किये गये उत्खनन में पुरापाषाण काल के पुरावशेष 35 स्थानों पर मिले हैं। जी.आर. शर्मा और डेसमंड क्लार्क द्वारा मध्य सोन घाटी में भूगर्भ पुरातात्त्विक खोज के दौरान बहुत से पाषाणकालीन स्थल और गुफाएं मिली हैं। सीधी जिले के बाघोर, घघरिया, नकझर खुर्द, पटपरा और सोहावल में भी उत्खनन किया गया है।
अन्य स्थान :-
- वी. एस. वाकणकर और वी. के. तिवारी द्वारा की गई सर्वेक्षणों से निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण वाले बहुत से स्थल मिले हैं। बी. बी. लाल ने ग्वालियर जिले में पुरापाषाण कालीन उपकरणों की खोज की। गुना जिले में पूर्व और मध्य पाषाण कालीन उपकरण पाये गये हैं। जी. आर. शर्मा ने रीवा, सतना और सीधी जिलों में किये गये उत्खनन में सौ से भी ज्यादा पाषाण कालीन स्थल पाये। निम्न, मध्य और मीजोलीथिक उपकरण विदिशा जिले के पठारी और सोथिया में पाये गये हैं।
(2) मध्य प्रदेश की मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति
(03) ताम्रपाषाण कालीन संस्कृति और मध्य प्रदेश । मध्य प्रदेश में लौह-युग संस्कृति
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