तानसेन कौन थे। तानसेन मकरंद पाण्डे का जीवन । Tansen Short Biography in Hindi
तानसेन मकरंद पाण्डे का जीवन (Tansen Short Biography in Hindi)
तानसेन मकरंद पाण्डे कौन थे
- लगभग 505 वर्ष पूर्व ग्वालियर जिले के बेहट गाँव की माटी में मकरंद पाण्डे के घर जन्मा '"तन्ना मिसर'" अपने गुरू स्वामी हरिदास के ममतामयी अनुशासन में एक हीरे सा परिष्कार पाकर धन्य हो गया।
- तानसेन मुगल सम्राट अकबर के दरबार में ‘नवरत्नों’ (नौ रत्न) में से एक थे।
- तानसेन का जन्म ग्वालियर में मुकंड मिश्रा के पुत्र के रूप में हुआ था, जो कि एक कवि थे।
- तानसेन ने अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार हरिदास स्वामी से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया था।
- तानसेन ने पहले मेवाड़ के राजा रामचंद्र और फिर सम्राट अकबर के यहां एक दरबारी संगीतकार के रूप में कार्य किया।
- तानसेन को सम्राट अकबर द्वारा मियां का खिताब दिया गया था और बाद में उन्हें मियां तानसेन के रूप में जाना जाने लगा।
- हिंदू परिवार में पैदा हुए तानसेन ने बाद में इस्लाम धर्म को अंगीकार कर लिया था।
- तानसेन मेघ मल्हार राग गाकर बारिश कराने की और दीपक राग गाकर आग जलाने की क्षमता रखते थे।
- तानसेन कई रागों जैसे दरबारी कान्हड़ा, मियां की टोड़ी, मियां की मल्हार और मियां की सारंग के रचयिता हैं।
- गायन की प्रसिद्ध ध्रुपद शैली तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरिदास ने ही शुरू की थी।
- तानसेन ने संगीतसार और रागमाला नामक संगीत की दो महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की। वे एक रहस्यवादी संगीतकार थे।
- तानसेन का मकबरा ग्वालियर में संत हजरत गौस के मकबरे के पास स्थित है, जिनकी शिक्षा से प्रभावित होकर उन्होंने इस्लाम धर्म को अपनाया था।।
- तानसेन के मकबरे के पास एक तामरिंद वृक्ष है, माना जाता है कि यह उतना ही पुराना है जितना की मकबरा।
तानसेन मकरंद पाण्डे का जीवन
- तानसेन के समकालीन और अकबर के नवरत्नों में से एक अब्दुल रहीम खान खाना द्वारा रचित इस दोहे में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि "विधिना यह जिय जानि के शेषहि दिये न कान। धरा मेरू सब डोलि हैं, सुनि तानसेन की तान।"
- आरंभ में तानसेन जब संगीत का ककहरा सीख रहे थे तब ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा मानसिंह तोमर का शासन था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई।
- राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के कारण यहाँ के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी।
- तानसेन भी वृंदावन चले गये और वहाँ उन्होंने स्वामी हरिदास जी एवं गोविन्द स्वामी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। संगीत शिक्षा में पारंगत होने के बाद वे शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत खां के आश्रय में रहे।
- इसके बाद बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र की राजसभा में सम्मानजनक स्थान पर सुशोभित हुए। मुगल सम्राट अकबर ने तानसेन के गायन की प्रशंसा सुनकर उन्हें अपने दरबार में बुला लिया और अपने नवरत्नों में स्थान दिया।
- तानसेन प्रथम संगीत मनीषी थे, जिन्होंने राग मल्हार में कोमल गांधार और निषाद के दोनों रूपों का बखूबी प्रयोग किया।
- तानसेन को मियाँ की टोड़ी के आविष्कार का भी श्रेय है। कंठ संगीत में तानसेन अद्वितीय थे।
- अबुल फजल ने "आइन-ए-अकबरी'' में तानसेन के बारे में लिखा है कि "उनके जैसा गायक हिंदुस्तान में पिछले हजार वर्षों में कोई दूसरा नहीं हुआ है।" उन्होंने जहाँ "मियाँ की टोड़ी'' जैसे राग का आविष्कार किया वही पुराने रागों में परिवर्तन कर कई नई - नई सुमधुर रागनियों को जन्म दिया।
- तानसेन को “संगीत सार” और “राग माला” संगीत के श्रेष्ठ ग्रंथों की रचना का श्रेय भी है।
- इस महान संगीतकार की स्मृति में सन् 1924 से प्रतिवर्ष ग्वालियर में मूर्धन्य संगीतज्ञों का कुंभ लगता है, जहाँ देश के चोटी के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर संगीत सम्राट तानसेन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
तानसेन सम्मान
- संगीत शिरोमणि तानसेन की स्मृति को चिर-स्थाई बनाने के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा सन् 1980 में राष्ट्रीय तानसेन सम्मान की स्थापना की गई।
- वर्ष 1985 तक इस सम्मान की राशि पाँच हजार रूपये थी। वर्ष 1986 में इसे बढ़ाकर पचास हजार रूपये कर दिया गया और वर्ष 1990 से इस सम्मान में एक लाख रूपये तथा प्रशस्ति पट्टिका भेंट की जाती रही। अब पुरस्कार राशि बढ़ाकर दो लाख रूपये कर दी गई है।
- अभी तक तानसेन सम्मान से देश के ख्याति नाम 52 कलाकार सम्मानित किये जा चुके हैं।
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