विदेशी यात्रियों और लेखकों के वृत्तान्त और मध्यप्रदेश का इतिहास। Videshi Yatri Aur MP ki History

मध्यप्रदेश इतिहास अध्ययन के साधन के रूप में  विदेशी यात्रियों और लेखकों के वृत्तान्त 

विदेशी यात्रियों और लेखकों के वृत्तान्त और मध्यप्रदेश का इतिहास। Videshi Yatri Aur MP ki History


 

विदेशी यात्रियों और लेखकों के वृत्तान्त और मध्यप्रदेश का इतिहास 

 

  • भारत में समय-समय पर विदेशी यात्री आते रहे। कुछ अधिकारी और व्यापारी भी आये। इनमें से कुछ ने अपनी भारत यात्रा को लिपिबद्ध किया। चश्मदीद गवाह के रूप में उनके वृत्तान्त बहुरंगी हैं। भारत के इतिहास की पुनर्रचना में उनके साक्ष्य महत्वपूर्ण हैं। मध्यप्रदेश के प्राचीन इतिहास और संस्कृति की टूटी हुई कड़ियों को जोड़ने हेतु भी जानकारी के ये महत्वपूर्ण साधन हैं। 


 विदेशी यात्रियों और लेखकों के वृत्तान्त का क्रमबद्ध वर्णन निम्नानुसार है-

 

मेगस्थनीज़ की 'इंडिका'  और मध्यप्रदेश 

 

  • मेगस्थनीज़ की 'इंडिका' में मध्यप्रदेश की दो नदियों- 'प्रिनास' एवं 'केनास' का उल्लेख है जो गंगा से मिलती हैं। 
  • मैक क्रिन्डल ने प्रिनासको तमसा (पौराणिक पर्णशा, आधुनिक टोंस) के साथ पहचान की है। 
  • मेगस्थनीज के कथनानुसार पाटलीपुत्र नगर गंगा एवं 'एरन्नबोअस' (हिरण्यवाह, अर्थात् सोन) के संगम स्थल पर बसा था। यहाँ उल्लेखनीय है कि मूलत: पाटलीपुत्र की स्थिति यही थी। कालांतर में सोन के प्रवाह-परिवर्तन स्वरूप यह संगम स्थल आधुनिक पटना (प्राचीन पाटलीपुत्र) के 25 कि.मी. पश्चिम में स्थानान्तरित हो गया।

 

'पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी' और मध्यप्रदेश 

 

  • प्रथम शती ई. के उत्तरार्द्ध में किसी यूनानी व्यापारी द्वारा रचित इस ग्रंथ में उज्जैन का उल्लेख 'ओजेने' (उज्जयिनी) के रूप में किया गया है। इसे एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बताया गया है। नर्मदा का उल्लेख 'नावमैडोज़' के रूप में किया गया है।

 

टालमी का भूगोल में मध्यप्रदेश 

 

  • ईसा की दूसरी शती के लगभग मध्यकाल में रचित इस ग्रंथ में मध्यप्रदेश के प्राचीन भूगोल संबन्धित कुछ जानकारियाँ उपलब्ध हैं। टालमी ने 'ओइंडान' (विन्ध्य), और 'औक्सटेन्टोन' (ऋक्षवन्त) पर्वत, एवं 'दोसारोन' (दशार्ण अर्थात् धसान), 'नामादोस' (नर्मदा), 'ननगौना' (ताप्ति) एवं 'सोआ' (सोन) नदियों का उल्लेख किया है। टालमी ने 'ओजेने' (उज्जैन) को शकों की राजधानी के रूप में स्वीकार किया है।

 

हवेन सांग का यात्रा विवरण और मध्यप्रदेश 

 

  • चीनी यात्री ह्वेन सांग ने 629-645 ई. के बीच भारत के विभिन्न भागों में भ्रमण किया। अपनी यात्राओं के दौरान वह मध्यप्रदेश के कुछ भागों से भी गुजरा और अपने अनुभवों को यात्रा वृत्तान्तों में सम्मिलित किया। घटनाओं की साक्षी होने के कारण उसके विवरण मध्यप्रदेश के समकालीन इतिहास और संस्कृति की जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

 

  •  ह्वेन सांग  के यात्रा विवरण के अनुसार कोसल से आन्ध्र, काँचीपुरम, भरूकच्छ होता हुआ वह 'मो-ला-पो' (मालव) प्रदेश पहुँचा, जो 'मो-हा' (माही) नदी के दक्षिण में था। 
  • यहाँ उल्लेखनीय है कि 7वीं सदी ई. के प्रारंभ में दो क्षेत्र मालवा के नाम से जाने जाते थे। पहला गुजरात स्थित माही घाटी में तथा दूसरा मध्यप्रदेश में पूर्व मालवा। 
  • उसके अनुसार 'मो-ला-पो' का क्षेत्रफल 6000 मील था और उसकी राजधानी 30 मील में बसी थी। यात्रा विवरण में मालवा की उपजाऊ भूमि और उन पर उत्पन्न होने वाली उपज, पेड़, पौधों, फल-फूल आदि का वर्णन है। साथ ही यहाँ के निवासी और धार्मिक सहिष्णुता का विवरण उसने किया है। 
  • उसने लिखा है कि मालवा में बौद्ध धर्म के अनुयायी तथा अन्य धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते थे। प्रदेश में सैकड़ों संघाराम तथा विहार थे जहाँ हीनयान शाखा के 20000 से भी अधिक भिक्षु निवास करते थे। यहाँ सैकड़ों देव मंदिर थे और विभिन्न सम्प्रदायों को मानने वालों की संख्या अत्यधिक थी। 
  • यहाँ शैव मत के प्रचार का भी उल्लेख उसने किया है। वह लिखता है कि उसके आने के पूर्व वहां शिलादित्य नामक शासक था जो अत्यधिक दयावान और धार्मिक प्रवृत्ति का था। यद्यपि वह स्वयं ब्राह्मण था तथापि उसने बौद्ध मंदिर बनवाया जहाँ धार्मिक उत्सव मनाये जाते थे जिस अवसर राजा बौद्ध अनुयायीयों को वस्त्र एवं बहुमूल्य सामग्री प्रदान करता था।

 

  • तत्पश्चात् ह्वेन सांग पूर्व मालव की राजधानी 'ऊ-शे-ये-न' (उज्जैन) आया। यह प्रदेश भी 6000 मील था और उसकी राजधानी का विस्तार 30 मील था। यहाँ के लोग धनी थे और आबादी सघन थी। उज्जयिनी में बौद्ध धर्म का प्रभाव बहुत कम था और यहाँ संघारामों की संख्या शतकों में नहीं बल्कि दशकों में थी जो अधिकांशत: जर्जर स्थिति में थे। उनमें से केवल कुछ की ही स्थिति ठीक थी जिनमें लगभग 800 महायानी भिक्षु निवास करते थे। उज्ययिनी का राजा ब्राह्मण था और उसे धर्म ग्रंथों का अच्छा ज्ञान था। राजधानी के पास ही एक स्तूप था जहाँ सम्राट् अशोक ने नरक के समान एक जेल स्थापित किया था।

 

खजुराहो, विदिशा अथवा चितौड़- ह्वेगसांग की यात्रा 

 

  • ह्वेगसांग की यात्रा का अगला पड़ाव था 'चि-चि-टो' जिसकी पहचान कुछ विद्वानों ने खजुराहो के साथ की है। अन्य विद्वान इसका समीकरण विदिशा अथवा चित्तौड़ से करते हैं। 
  • ह्वेन सांग के अनुसार यहाँ वह उज्जैन से उत्तर-पूर्व को ओर चल कर पहुँचा। उसके अनुसार इस प्रदेश का क्षेत्रफल 4000 ली था तथा राजधानी का क्षेत्रफल 15 ली था। 
  • यहाँ की भूमि अत्यन्त उपजाऊ थी और फसलें खूब होती थी। अधिकांश आबादी बौद्ध मतावलम्बी नहीं थे। यहाँ लगभग दस बौद्ध विहार थे जिनमें निवासियों की संख्या अल्प थी। देव मंदिरों की संख्या अधिक थी और वे विभिन्न धर्मों का पालन करते थे। राजा यद्यपि ब्राह्मण था परन्तु वह बौद्ध धर्म का पालक था और विभिन्न प्रदेशों से आये विद्वानों का आश्रयदाता था। 


महेश्वरपुर-ह्रवेनसांग की यात्रा 

 

  • 'मो-हि-स्सु - फा- लो-पु-लो' (महेश्वरपुर) ह्रवेनसांग का मध्यप्रदेश की यात्रा में अन्तिम पड़ाव था। यह 'चि चि-टो' से 900 ली उत्तर की ओर स्थित था। उसका क्षेत्रफल 3000 ली था तथा राजधानी का क्षेत्रफल था 30 ली। इस देश का उत्पादन तथा सामान्य जनता का स्वभाव उज्जैन की तरह था। 
  • बौद्ध धर्म का प्रचार अधिक नहीं था और मंदिरों की संख्या अधिक थी। यहाँ का शासक ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था और लोग अधिकांशतः पाशुपत मतावलम्बी थे। अधिकांश विद्वान महेश्वरपुर की पहचान ग्वालियर के निकटवर्ती क्षेत्र से करते हैं।

 

अलबरूनी का किताब-उल- हिन्द और मध्यप्रदेश 

 

  • मुहम्मद इब्न अहमद अलबरूनी, जिसे अबु रैहन के नाम से भी जाना जाता है, की पुस्तक 'किताब-उल- हिन्द' की रचना 1030-1033 ई. के बीच की गई थी। उसके ग्रंथ में समकालीन मध्यप्रदेश के भूगोल, इतिहास और संस्कृति संबंधित अनेक जानकारियाँ हैं। 
  • अलबरूनी ने लिखा की कन्नौज से दक्षिण-पूर्व में गंगा के पश्चिमी ओर 30 फरसख (1 फरसख= 4 मील) की दूरी पर जजाहूती (जेजाकभुक्ति, जज्ञौती बुन्देलखण्ड में) का क्षेत्र स्थित है। इसकी राजधानी खजूराह (खजुरवाहक= खजुराहो) है। इस नगर तथा कनौज के बीच ग्वालियर तथा कालिंजर के दो प्रसिद्ध किले स्थित हैं। 
  • निकट ही डहाल (डाहल) का देश है जिसकी राजधानी तिऔरी (त्रिपुरी) है और शासक गंगेय (गांगेयदेव) है। 


मालवा के विषय में अलबरूनी का ग्रंथ निम्नांकित जानकारी प्रदान करता है:

 

  • माहुरा (मथुरा) और कनोज (कनौज) के बीच दूरी इतनी ही है जितनी कनोज और बज़ान, अर्थात् 28 फरसख । यदि कोई व्यक्ति माहुरा से उज्जैन की ओर यात्रा करे तो उसे हर 5 फरसख पर नये-नये गाँव मिलते जावेंगे। 35 फरसख की दूरी पर उसे दूदही (ललितपुर के निकट), उसके पश्चात् 17 फरसख की दूरी पर बामाहूर और आगे 5 फरसख पर भाइलसाह (भीलसा - प्राचीन भायील्लस्वामी) जो हिन्दुओं का महत्वपूर्ण नगर है। इसके पश्चात् 9 फरसख पर अर्दीन ( उज्जयिनी) स्थित है जहाँ महाकाल की पूजा होती है। धार (धारा नगरी) यहाँ से 7 फरसख दूर है।


  • धार से दक्षिण की ओर यात्रा करने पर 20 फरसख की दूरी पर भूमिहर मिलता है; 10 फरसख पर नमावुर (निमाड़ ) जो नर्मदा तथा पर स्थित है; 20 फरसख की दूरी पर अलीसपूर (एलिचपुर) और 60 फरसख की दूरी पर मन्दागिर (नादनेड़) जो गदावर (गोदावरी) नदी पर स्थित है।

 

  • पुन: धार से दक्षिण की ओर यात्रा करने पर 7 फरसख दूर नमिय्या की घाटी; 18 फरसख पर महरट्ट- देश (महाराष्ट्र देश): 25 फरसख पर कुंकन (उत्तरी-कोंकण) का प्रान्त जिसकी राजधानी तान (स्थानक= थाना) और जो समुद्र तट पर स्थित था, मिलते हैं।

 

  • अलबरूनी ने सम्राट् विक्रमादित्य और धार के सम्राट् भोज और उनसे संबंधित किंवदन्तियों का उल्लेख भी किया है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि विदेशी यात्रियों और लेखकों के वृतान्त भी मध्यप्रदेश के प्राचीन इतिहास और संस्कृति के पुनर्निर्माण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। 

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