भारतीय संविधान एवं हिन्दी। राजभाषा अधिनियम (1963, 1976)। Bharat Ka Samvidhaan aur Hindi Bhasha
भारतीय संविधान एवं हिन्दी (Bharat Ka Samvidhaan aur Hindi Bhasha)
भारतीय संविधान एवं हिन्दी
भारतीय संविधान में भाषा संबंधित 11 अनुच्छेद हैं। संविधान के 18 भागों में, भाग 17 भाषा संबंधी व्यवस्था पर आधारित है। यहाँ हम संविधान में हिन्दी का क्या स्थान है, इस विषय का अध्ययन करेंगे।
संविधान में हिन्दी का क्या स्थान है ?
1 संविधान और
हिन्दी
संघ की राजभाषा
1. अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और इसकी लिपि देवनागरी होगी।
2. खंड 1 में इस बात का संकेत है कि संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की अवधि तक संघ उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का उपयोग किया जाता रहेगा।
3. इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात्, विधि द्वारा
- अंग्रेजी भाषा का, या
- अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी, जो ऐसी विधि में
विनिर्दिष्ट किए जाएँ।
2 राजभाषा अधिनियम
अध्याय 2 - प्रादेशिक भाषाएँ
- 345. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ - अनुच्छेद 346 और अनुच्छेद 347 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान मंडल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयोग होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा या भाषाओं के रूप में स्वीकार / अंगीकार कर सकेगा।
- परन्तु जब तक राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा।
- 346. एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की राजभाषा संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किये जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा होगी।
- 347. किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध यदि राष्ट्रपति को यह लगता है कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वह निर्देश दे सकता है कि ऐसी भाषा का भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए, जो वह विनिर्दिष्ट करे, शासकीय मान्यता दी जाए।
- I. उस भाषा के बोलने वालों की पर्याप्त संख्या हो,
- II. वे माँग करे कि उनकी भाषा को मान्यात दी जाए।
- संविधान के भाग 17 के अध्याय 3 के दो अनुच्छेदों-अनुच्छेद 348 तथा 349 में उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की भाषा के सवाल पर विचार किया गया है। इस अनुच्छेद में उच्चतम न्यायालय तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी में करने का प्रावधान है।
आठवी अनुसूची की भाषाएँ
अनुच्छेद 344 (1) और 351 अष्टम सूची से संबंधित है। अष्टम अनुसूची की भाषाएँ हैं
1. असमिया
2. उड़िया
3.उर्दू
4. कन्नड़
5. कश्मीरी
6.गुजराती
7. तमिल
8. तेलुगु
9.पंजाबी
10. बांग्ला
11. मराठी
12. मलयालम
13. संस्कृत
14. सिंधी
15. हिन्दी
16. उर्दू,
17. नेपाली,
18. ओडिया,
19. बोडो,
20. संथाली,
21. मैथिली
22 डोगरी।
- संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं:
- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
- इन भाषाओं में से 14 भाषाओं को संविधान के प्रारंभ में ही शामिल कर लिया गया था।
- वर्ष 1967 में सिंधी भाषा को 21वें सविधान संशोधन अधिनियम द्वारा आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था।
- वर्ष 1992 में 71वें संशोधन अधिनियम द्वारा कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को शामिल किया गया।
- वर्ष 2003 में 92वें सविधान संशोधन अधिनियम जो कि वर्ष 2004 से प्रभावी हुआ, द्वारा बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
- संविधान के भाग 17 के अंतिम परिच्छेद (अनुच्छेद 351) हिन्दी भाषा के विकास के निर्देष' से संबंधित है। अनुच्छेद 351 में कहा गया है कि संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, जिससे वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची मे विर्निदिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक हो वहाँ मुखतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें। इस अनुच्छेद के निम्नलिखित तथ्य हैं-
I. संघ का पहला दायित्व है कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए।
II. संघ का यह दायित्व होगा कि वह हिन्दी का विकास इस रूप में करे कि वह भारत की सामासिक संस्कृति की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।
III. संघ का यह दायित्व होगा कि वह हिन्दी की समृद्धि सुनिश्चित
करें। राजभाषा आयोग और राष्ट्रपति आदेश
- संविधान के अनुच्छेद 343 (2) के अनुसार राष्ट्रपति ने 27 मई 1952 को आदेश जारी किया जिसमें राज्यपालों और उच्चतक तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों के अधिपत्र में अंग्रेजी के साथ हिन्दी के प्रयोग को भी लागू किया जाये।
3 दिसम्बर, 1955 के राष्ट्रपति के आदेश द्वारा संघ के निम्नलिखित सरकारी प्रयोजनों में अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी के प्रयोग को भी लागम किया जाये-
I. जनता से व्यवहार
II. प्रशासनिक रिपोर्ट, सरकारी पत्रिकाएँ तथा संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट
III. सरकारी संकल्प एवं विधायी अधिनियम ।
IV. राजभाषा हिन्दी वाले प्रदेशों के साथ पत्र व्यवहार में
V. संधियों और करार
VI. अन्य देशों की सरकारों, राजदूतों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ पत्र व्यवहार
VII. राजनयिक और कांसल
के पदाधिकारयिों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारतीय प्रतिनिधियों के नाम जारी
किये जाने वाले औपचारिक दस्तावेज
राजभाषा अधिनियम (1963)
यथासंशोधित राजभाषा अधिनियम, 1963
(1963 का अधिनियम स019)
( 10 मई, 1963)
उन भाषाओं का जो संघ के राजकीय प्रयोजनों, संसद कार्य के
संव्यवहार, केन्द्रीय और
राज्य अधिनियमों और उच्च न्यायालयों में कतिपय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जा
सकेंगी, उपबन्ध करने के
लिए अधिनियम भारत गणराज्य के चौदवे वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह
अधिनियमित हो-
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ
1) यह अधिनियम राजभाषा अधिनियम, 1963 कहा जा सकेगा।
2) धारा3, जनवरी, 1965 के 26वें दिन को प्रवृत्त होगी और इस अधिनियम के शेष उपबन्ध उस तारीख को प्रवृत्त होंगे जिसे केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे और इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों विभिन्न तारीखें नियत की सकेंगी।
2. परिभाषाएँ :
इस अधिनियम में, जब तक कि प्रसंग में अन्यथा अपेक्षित न हो,
(क) “नियत दिन” से, धारा 3 के सम्बन्ध में, जनवरी, 1965 का 26वाँ दिन अभिप्रेत है और इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के सम्बन्ध में वह दिन अभिप्रेत है जिस दिन को वह उपबन्ध प्रवृत्त होत है;
(ख) . "हिन्दी” से वह हिन्दी अभिप्रेत है जिसकी लिपि देवनागरी है।
3. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए और संसद में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा का बना रहना।
(1) संविधान के प्रारम्भ से 15 वर्ष की कालावधि की समाप्ति हो जाने पर भी, हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा, नियत दिन से ही-
(क) संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए जिनके लिए वह उस दिन से ठीक पहले प्रयोग में लायी जाती थी; तथा
(ख) संसद में कार्य के संव्यवहार के लिए; प्रयोग में लायी जाती रह सकेगीः परन्तु संघ और किसी ऐसे राज्य के बीच, जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है, पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा प्रयोग में लाई जाएगी:
राजभाषा नियम 1976
राजभाषा (संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग) नियम, 1976 राजभाषा विभाग
की अधिसूचना सं. 11011/1/73-रा.भा. (1) दिनांक 28-6-76 की प्रतिलिपि
सा.का.नि. - राजभाषा अधिनियम, 1963 (1963 का 19) की धारा 3 की उपधारा (4) के साथ पठित धारा 8 द्वारा प्रदत्त शक्तियां का प्रयोग करते हुए केंद्रीय
सरकार निम्नलिखित नियम बनाती है अर्थात्:
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ
1) इन नियमों का संक्षिप्त नाम राजभाषा (संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग) नियम 1976 है।
2. इनका विस्तार तमिलनाडु राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है।
3. राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को प्रवृत्त होंगे।
2) परिभाषाएं
इन नियमों में जब तक कि संदर्भ से अन्याथा अपेक्षित न होः
क) “अधिनियम” से राजभाषा अधिनियम 1963 (1963 का 19) अभ्रिपेत है:
ख) ‘‘केन्द्रीय सरकार के कार्यालय" के अंतर्गत निम्नलिखित भी है अर्थात्:
I. केन्द्रीय सरकार का कोई मंत्रायल, विभाग या कार्यालय
II. केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किसी आयोग, समिति या अधिकरण का कोई कार्यालय और केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में या नियंत्रण के अधीन किसी नियम या कंपनी का कोई कार्यालय;
ग) “कर्मचारी” से केंद्रीय सरकार के कार्यालय में नियोजित कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;
घ) “अधिसूचित कार्यालय” से नियम 10 के उपनियम 4) के अधीन अधिसूचित कार्यालय अभिप्रेत है;
ङ) “हिन्दी में प्रवीणता” से नियम 9 में वर्णित प्रवीणता अभिप्रेत
च) “ क्षेत्र के” से बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रेदश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य तथा दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है;
छ) “क्षेत्र ख” से गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब राज्य तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एवं चंडीगढ़ संघ राज्य अभिप्रेत है;
ज) “ क्षेत्र ग” से खंड (च) और (छ) में निर्दिष्ट राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से भिन्न राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र अभिप्रेत है;
झ) ‘‘हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान" से नियम 10 में वर्णित कार्यसाधक ज्ञान अभिप्रेत है। राज्यों आदि और केंन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से भिन्न कार्यालयों के साथ पत्रादि-1 केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'क' में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या संघ राज्यक्षेत्र में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि असाधारण दशाओं को छोड़कर हिन्दी में होंगे और यदि उनमें किसी को कोई पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा।
2) केंन्द्रीय सरकार
के कार्यालय से
- क) क्षेत्र 'ख' के किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या ऐसे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि मामूली तौर पर हिन्दी और यदि इनमें से किसी को कोई पत्रादि अंग्रेजी में भेजे जाते हैं तो भेजे जाते हैं तो उनके साथ उनका हिन्दी अनुवाद भी भेजा जाएगा। परन्तु यदि कोई राज्य या संघ राज्यक्षेत्र यह चाहता है कि किसी विशिष्ट वर्ग या प्रवर्ग के पत्रादि या उसके किसी कार्यालय के साथ पत्रादि संबद्ध राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि तक अंग्रेजी या हिन्दी में भेजे जाएँ और उसके साथ दूसरी भाषा में उसका अनुवाद भी भेजा जाए तो पत्रादि उसी रीति से भेजे जाएँगे।
- ख) क्षेत्र 'ख' के किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी में भेजे जा सकते हैं।
3) केन्द्रीय सरकार के कार्यालय के क्षेत्र 'ग' में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार का कार्यालय न हो) या व्यक्ति को पत्रादि अंग्रेजी में होंगे।
4) उपनियम1 ) और 2) में किसी बात के होत हुए भी क्षेत्र ‘ग’ में केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से क्षेत्र 'क' या क्षेत्र 'ख' में किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र को या ऐसे राज्य में किसी कार्यालय (जो केन्द्रीय सरकार के कार्यालय न हों) या व्यक्ति की पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी में हो सकते हैं।
4) केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों के बीच पत्रादि
क) केन्द्रीय सरकार के किसी एक मंत्रालय या विभाग और किसी दूसरे मंत्रालय या विभाग के बीच पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी में हो सकते हैं,
ख) केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग और क्षेत्र 'क' में स्थित संलग्न या अधीनस्थ कार्यालयों के बीच पत्रादि हिन्दी में होंगे और ऐसे अनुपात में होंगे जो केन्द्रीय सरकार ऐसे कार्यालयों में हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों की संख्या हिन्दी में पत्रादि भेजने की सुविधाएँ और उससे संबंधित आनुषंगिक बातों का ध्यान रखते हुए समय पर अवधारित करें;
ग) क्षेत्र 'क' में स्थित केंन्द्रीय सरकार के एसे कार्यालयों के बीच जो खंड (क) या खंड (ख) में विनिर्दिष्ट कार्यालय से भिन्न है पत्रादि हिन्दी में होंगे;
घ) क्षेत्र 'क' में स्थित केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों और क्षेत्र 'ख' या क्षेत्र 'ग' में स्थित केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों के बीच पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी में हो सकते हैं; क्षेत्र
ङ) 'ख'
या 'ग' में स्थित
केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों के बीच पत्रादि हिन्दी या अंग्रेजी में हो सकते है
:
परन्तु जहाँ ऐसे पत्रादि
I. 'क' क्षेत्र के किसी कार्यालय को संबोधित हों वहाँ उनका दूसरी भाषा में अनुवाद पत्रादि प्राप्त करने के स्थान पर किया जाएगा।
II. क्षे 'ग' में किसी कार्यालय को संबोधित है वहाँ उनका दूसरी भाषा में अनुवाद साथ भेजा जाएगा:
परन्तु यह और कि यदि कोई पत्रादि किसी अधिसूचित कार्यालय को संबोधित है तो दूसरी भाषा में ऐसा अनुवाद उपलब्ध कराने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।
5) हिन्दी में
प्राप्त पत्रादि के उत्तर- नियम 3 और 4 में किसी बात के होते हुए भी हिन्दी में पत्रादि के उत्तर
केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से हिन्दी में दिए जाएँगे।
6) हिन्दी और
अंग्रेजी दोनों का प्रयोग अधिनियम की धारा 3 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट सभी दस्तावेजों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी
दोनों का प्रयोग किया जाएगा और ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्तियों
का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह सुनिश्चित कर लें कि ऐसे दस्तावेज हिन्दी और
अंग्रेजी दोनों में तैयार किये जाते हैं, निष्पादित किये जाते है और जारी किए जाते हैं।
7) आवेदन, अभ्यावेदन, आदि-1) कोई कर्मचारी आवेदन अपील या अभ्यावेदन हिन्दी या अंग्रेजी में कर सकता है।
2) जब उपनियम 1) में निर्दिष्ट
कोई आवेदन, अपील या
अभ्यावेदन हिन्दी में किया गया हो उस पर हिन्दी में हस्ताक्षर किए गए हों तब उसका
उत्तर हिन्दी में दिया जाएगा।
3) यदि कोई कर्मचारी
यह चाहता है सेवा संबंधी विषयों (जिसके अंतर्गत अनुशासनिक कार्यवाहियाँ भी हैं) से
संबंधित कोई आदेश या सूचना जिसका कर्मचारी पर तामील किया जाना अपेक्षित है
यथास्थिति हिन्दी या अंग्रेजी में होनी चाहिए तो वह उसे असम्यक् विलंब के बिना उसी
भाषा में दी जाएगी।
8) केंन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में टिप्पणों का लिखा जाना
1) कोई कर्मचारी किसी फाइल पर टिप्पणी या मसौदा हिन्दी या अंग्रेजी में लिख सकता है और उसे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह उसका अनुवाद दूसरी भाषा में प्रस्तुत करे।
2) केन्द्रीय सरकार का कोई भी कर्मचारी, जो हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान रखता है, हिन्दी में किसी दस्तावेज के अंग्रेजी अनुवाद की माँग तभी कर सकता है, जब वह दस्तावेज़ विधिक या तकनीकी प्रकृति का है, अन्यथा नहीं।
3) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विशिष्ट दस्तावेज विधिक या तकनीकी प्रकृति का है या नहीं तो विभाग या कार्यालय का प्रधान उसका विनिश्चय करेगा।
4) उपनियम 1) में किसी बात के होत हुए भी, केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा ऐसे अधिसूचित कार्यालयों को विनिर्दिष्ट कर सकती है जहाँ ऐसे कर्मचारियों द्वारा, जिन्हे हिन्दी में प्रणीणता प्राप्त है, टिप्पण, प्रारूपण और ऐसे अन्य शासकीय प्रयोजनों के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएँ, केवल हिन्दी का प्रयोग किया जाएगा।
9) हिन्दी के प्रणीणता- यदि किसी कर्मचारी ने
क) मैट्रिक परीक्षा या उसकी समतुल्य या उससे उच्चतर कोई परीक्षा हिन्दी के माध्यम से उतीर्ण करी है या
ख) स्नातक परीक्षा में अथवा स्नातक परीक्षा की समतुल्य या उससे उच्चतर किसी अन्य परीक्षा में हिन्दी को एक वैकल्पिक विषय के रूप में लिया था; या
ग) यदि वह इन नियमों को उपाबद्ध प्ररूप से यह घोषणा करता है कि उसे हिन्दी में प्रवीणता प्राप्त है, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने हिन्दी में प्रवीणता प्राप्त करी है।
10) हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान-1)
(क) यदि किसी कर्मचारी ने
I. मैट्रिक परीक्षा या उसकी समतुल्य या उससे उच्चतर परीक्षा हिन्दी विषय के साथ उतीर्ण कर ली है; या
II. केन्द्रीय सरकार को हिन्दी प्रशिक्षण योजना के अंतर्गत आयोजित प्राज्ञ परीक्षा या, जहाँ उस सरकार द्वारा किसी विशिष्ट प्रवर्ग के पदों के संबंध में उस योजना के अंतर्गत कोई निम्न परीक्षा विनिर्दिष्ट है, तब वह परीक्षा उत्तीर्ण कर जी है, या
iii केन्द्रीय सरकार द्वारा उस निर्मित विनिर्दिष्ट कोई अन्या परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है; या
ख)
2) यदि केन्द्रीय
सरकार के किसी कार्यलय में कार्य करने वाले कर्मचारियों में से अस्सी प्रतिशत ने
हिन्दी का ऐसा ज्ञान प्राप्त कर लिया है तो उस कार्यालय के कर्मचारियों के बारे
में सामान्यतया यह समझा जाएगा कि उन्होंने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर
लिया है।
3) केन्द्रीय सरकार या केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निर्मित विनिर्दिष्ट कोई अधिकारी यह अवधारित कर सकता है कि केन्द्रीय सककार के किसी कार्यालय के कर्मचारियों ने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है या नहीं।
4) केंन्द्रीय सरकार
के जिन कार्यालयों के कर्मचारयिों ने हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया
है, उन कार्यालयों के
नाम, राजपत्र में
अधिसूचित किए जाएँगे। परन्तु यदि केन्द्रीय सरकार की राय है कि किसी अधिसूचित
कार्यालय में काम करने वाले और हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले कर्मचारियों
का प्रतिशत किसी तारीख से उपनियम 2) में विनिर्दिष्ट प्रतिशत से कम हो गया है, तो वह, राजपत्र में
अधिसूचना द्वारा घोषित कर सकती है कि उक्त कार्याल उस तारीख से अधिसूचित कार्यालय
नहीं रह जाएगा।
11) मैन्युअल, संहिताएँ और प्रक्रिया संबंधी अन्य साहित्य, लेखन सामग्री आदि-
1 )केन्द्रीय सरकार के कार्यालय से संबंधित सभी मैन्युअल, संहिताएँ और प्रक्रिया संबंधी अन्य साहित्य हिन्दी और अंग्रेजी में द्विभाषीय रूप में, यथास्थिति, मुद्रित या साइक्लोस्टाइल किया जाएगा और प्रकाशित किया जाएगा।
2) केन्द्रीय सरकार के कसी कार्यालय में प्रयोग किए जाने वाले रजिस्टरों के प्ररूप और राजभाषा अधिनियम और आदर्श शीर्षक हिन्दी और अंग्रेजी में होंगे।
3) केन्द्रीय सरकार के किसी कार्यालय में प्रयोग के लिए सभी नामपट्ट, सूचना पट्ट, पत्रशीर्ष और लिफाफों पर उत्कीर्ण लेख तथा सामग्री की अन्य मदें हिन्दी और अंग्रेजी में लिखी जाएँगी, मुद्रित या उत्कीर्ण होंगी:
परन्तु यदि केंन्द्रीय सरकार ऐसा करना आवश्यक समझती है तो
वह साधारण या विशेष आदेश द्वारा, केन्द्रीय सरकार के किसी कार्यालय को इस नियम के सभी या
किन्ही उपबंधों में छूट दे सकती है।
12 अनुपालन का उत्तरदायित्व -
1) केन्द्रीय सरकार के प्रत्येक कार्यालय के प्रशानिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह-
I. यह सुनिश्चित करे कि अधिनियम और इन नियमों के उपबंधों का समुचित रूप से अनुपालन हो रहा है; और
II. इस प्रयोजन के लिए उपर्युक्त और प्रभावकारी जाँच के लिए उपाय करें।
2) केन्द्रीय सरकार
अधिनियम और इन नियमों के उपबंधों के सम्यक अनुपालक के लिए अपने कर्मचारियों और
कार्यालयों को समय-समय पर आवश्यक निदेश जारी कर सकती है।
हिन्दी राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा का प्रश्न
- हिन्दी भाषा और संविधान को लेकर कभी-कभी कुछ प्रश्नों से जूझना पड़ता है उन्हीं प्रश्नों में से एक प्रश्न है- राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा का । हिन्दी को कभी राजभाषा कहा गया तो कभी राष्ट्रभाषा। कभी संपर्क भाषा तो कभी संघभाषा । ये नामकरण दरअसल हिन्दी के व्यापक स्वरूप को ही व्यक्त करते हैं। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है, इसमें क्या संदेह, लेकिन इस पर यह कह कर आपत्ति उठायी गई कि ऐसा करने से हिन्दी भाषा को विशेष गौरव मिलेगा, और अन्य भारतीय भाषाएँ बहिष्कृत होंगी।
- हिन्दी के विरोधीयों ने इस तर्क को उठाया कि राष्ट्र की
भाषाएँ तो भारत की अन्य भाषाएँ भी है, फिर हिन्दी को इतना गौरव क्यों? हिन्दी को
राष्ट्रभाषा कहने कारणों की तलाश करते हए देवेन्द्रनाथ शर्मा ने लिखा है कि, “वस्तुतः
राष्ट्रभाषा शब्द के प्रयोग का ऐतिहासिक कारण है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा इसलिए
नहीं कहा गया है कि वह राष्ट्र की एकमात्र या सर्वप्रमुख भाषा है, बल्कि इस नाम का
प्रयोग अंग्रेजी को ध्यान में रखकर किया गया।” आगे देवेन्द्रनाथ शर्मा जी ने अपने तर्क को विस्तार देते
हुए लिखा है, “दूसरी बात यह है
कि कि सम्पूर्ण राष्ट्र में संचार की कोई भाषा हो सकती है तो हिन्दी | हिन्दी की इस
विशेषता को ध्यान में रखकर उसे संविधान ने राजभाषा के रूप में स्वीकृत किया। अतः
समग्र राष्ट्र के लिए जो भाषा सर्पक स्थापित करने का कार्य कर सके उसे राष्ट्रभाषा
कहने में कोई हानि या आपत्ति नहीं है। ये ही कारण है जिनसे हिन्दी को राष्ट्रभाषा
की संज्ञा दी जाती है।”
- भारतीय संविधान में हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति मिली है। अनुच्छेद 343 (1) में हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यात मिली है। संविधान में कहीं भी हिन्दी के लिए राष्ट्रभाषा शब्द का प्रयोग नहीं है।
- संविधान में इसे संघभाषा (Language of the Union) या संघ की राजभाषा (off~icial Language of the Union) कहा गया है। संघभाषा कहने के पीछे भी वही तर्क है कि यह पूरे राष्ट्र को एक साथ बांध सके।
- वस्तुतः राजभाषा का अर्थ है- राजकाज में प्रयुक्त होने वाली भाषा तथा राष्ट्रभाषा का अर्थ है- किसी राष्ट्र की संवेदनाओं, इच्छाओं को , जोड़नेवाली भाषा।
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