मानस्वर क्या होते हैं । मानस्वरों की सकल्पना ।Cardinal Vowel in Hindi
मानस्वर क्या होते हैं (Cardinal Vowel in Hindi)
मानस्वर क्या होते हैं ( मानस्वरों की सकल्पना)
मानस्वर (Cardinal Vowel)
स्वर - विज्ञान में मानस्वरों की सकल्पना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। मानस्वरों के अन्तर्गत आठ स्वरों को मानक स्वर माना गया है। जिनके द्वारा हम हिन्दी-अंग्रेजी सहित विश्व की किसी भी भाषा के स्वरों के उच्चारण का भाषा वैज्ञानिक आकलन कर सकते हैं।
मानस्वरों की संकल्पना
- मानस्वरों की संकल्पना जिह्वा के कार्य पर आधारित है। जिह्वा, किस प्रकार के उच्चारण में ऊपर उठ कर मुख-विवर को संकरा (संवृत) बना देती है और किसका उच्चारण करते समय मुखविवर खुला (विवृत) या अधखुला (अर्ध विवृत) रहता है। कौन सा स्वर जिह्वा के अग्रभाग (जिह्वाग्र) से, कौन सा मध्यभाग (जिह्वा मध्य) से और कौन सा पश्च (जिह्वापश्च) भाग से बोला जाता है। इसका भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण ही मास्वरों की अवधारणा का आधार है।
- यद्यपि भारतीय वैयाकरणों ने अर्द्ध विवृत और अर्द्ध संवृत के नाम से स्वरों का वर्गीकरण बहुत पहले ही कर लिया था। उसी में अग्र और पश्च के विभाजन का संयोजन कर आधुनिक काल के भाषा वैज्ञानिक ‘जान वेलिस' ने स्वरों के उच्चारण में जिह्वा की स्थिति का अध्ययन किया जो विवृत - संवृत और अग्र,मध्य,पश्च की भारतीय अवधारणा से बहुत कुछ मेल खाता है। कालान्तर में हेलबेग ने स्वरों का एक त्रिभुज बनाया जिसमें पाँच स्वर थे।
- चित्र में दिये गए त्रिभुज में बायीं ओर की रेखा अग्र स्वरों की स्थिति की सूच है और दायीओर की रेखा पश्च स्वरों की। ऊपर की रेखा जिह्वा के ऊपर उठने की स्थिति दिखलाती है और मुख्य विवर के संकरा होने का संकेत देती है जबकि नीचे की बिन्दु मुख विवर के खुला रहने का। इस त्रिभुज का स्वर-विज्ञान में भव्य स्वागत हुआ।
- यह इतना व्यापक रूप में लोकप्रिय हुआ कि बाद में भाषा वैज्ञानिक डैनियल जोन्स ने जो स्वर चतुर्भुज बनाया, उसे भी स्वर त्रिभुज ही कहा गया। आप जानते हैं कि स्वरों के उच्चारण में जीभ तालु के निकट एक खास ऊँचाई तक ही उठती है। उस खास ऊँचाई से होकर गुजरने वाली कल्पित स्वर रेखा कहलाती है।
- इसी रेखा पर आगे की ओर एक बिन्दु माना जा सकता है जहाँ तक जीभ का अग्र भाग अधिकतम जा सकता है। इसी बिन्दु पर मानस्वर 'ई' की स्थिति है। इसी प्रकार जीभ का पश्च भाग अधिक से अधिक एक खास बिन्दु तक उठ सकता है। इस बिन्दु पर मानस्वर ‘ऊ’ है।
- जिह्वा के अग्र भाग और पश्च भाग ऐसे ही नीचे एक खास बिन्दु तक जा सकते हैं जिन पर क्रम से मानस्वर ‘अऽ' और ‘आ’ हैं। इस प्रकार ये चारों बिन्दु स्वर उच्चारण में जीभ की चार सीमाओं को प्रकट करते हैं।
- चित्र में अग्र, मध्य, पश्च से जीभ या मुँह के अग्र, मध्य और पश्च भाग देखे जा सकते हैं। इनके आधार पर स्वर को अग्र, पश्च या मध्य स्वर या विवृत-संवृत की श्रेणी में रखा जा सकता है। चतुर्भुज के मध्य या केन्द्र के आसपास के स्वर केन्द्रिय स्वर कहलाते हैं। इन चार बिन्दुओं के बीच आठ स्वर ही प्रमुख हैं। इन आठ स्वरों में ओष्ठों की आठ स्थितियाँ दिखायी गयी हैं। 'ई' में वे बिल्कुल फैले हुए होते हैं। ए, ऐ, अ में उनका फैलाव क्रमशः कम होता जाता है और आ ऑ तथा ओ, ऊ में पूर्णतः गोलाकार हो जाते हैं।
संक्षेप में ओष्ठ, जिह्वा और मुख विवर की स्थिति के अनुसार इन आठ मानस्वरों की स्थिति इस प्रकार है-
- ई- अवृतमुखी, अग्र, संवृत
- स-अवृतमुखी, अग्र, अर्द्धसंवृत
- सॅ- अवृतमुखी, अग्र, अर्द्धविवृत
- अ- अवृतमुखी, अग्र, विवृत
- आ- स्वल्पवृतमुखी, पश्च, विवृत
- ऑ-स्वल्पवृतमुखी, पश्च, अर्द्धविवृत
- ओ - वृतमुखी, पश्च, अर्द्धवृत
- ऊ -पूर्णवृतमुखी, पश्च, संवृत
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