हिन्दी की प्रमुख बोलियां और उनकी जानकारी। Hindi ki Boliyan Aur unki Jaankari
हिन्दी की प्रमुख बोलियां और उनकी जानकारी
(Hindi ki Boliyan Aur unki Jaankari)
हिन्दी : उपभाषाएँ एवं बोलियाँ
- आज जिसे हम हिन्दी भाषा कहते हैं, उसमें कोई एक भाषा नहीं है, बल्कि इसमें कई प्रदेशों की बोलियाँ सम्मिलित हैं। तो क्या इसका यह अर्थ लगाया जा सकता है कि हिन्दी का अपना कोई क्षेत्र नहीं है? नहीं ऐसा नहीं कहा जा सकता। बड़ी / समृद्ध भाषाएँ अपना विस्तारस विभिन्न जनपदों व परिवेशों में कर लेती है। अतः उनका जनपद विस्तृत हो जाता है। ब्रजभाषा या अवधी भाषा स्वतंत्र भाषाएँ हैं। या सूर, तुलसी हिन्दी के कवि नहीं है.. इस प्रकार के तर्क विभिन्न आलोचकों द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं। भाषा और बोली के भेद को आधुनिक काल में विशेष रूप से उठाया गया है। हिन्दी के संदर्भ में एक प्रश्न यह भी उठाया गया हे इसकी बोलियों में परस्पर भिन्नता की स्थिति है। एक ही भाषा की बोलियों में इतना भेद उचित नहीं है। इस प्रकार के प्रश्न को भाषा वैज्ञानिक ढंग से ही समझा जा सकता है, दूसरे हिन्दी भाषा की संस्कृति के आधार पर भी इन प्रश्नों का समाधान किया जा सकता है।
- हिन्दी भाषा के प्रसार एवं विस्तार का प्रश्न वैश्विक हो चला है। एशिया के कई देशों में हिन्दी भाषा बोली और समझी जाती है। जबकि सैकड़ों देशों में हिन्दी भाषा का अध्यापन कार्य चल रहा है, इस प्रकार यह सांस्कृतिक संपर्क का कार्य कर रही है।
- हिन्दी भाषा के क्षेत्रीय प्रसार को 'हिन्दी भाषी क्षेत्र' कहा गया है। इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान इत्यादि प्रदेश आते हैं। इन प्रदेश में बोली जाने वाली बोलियों को मिलाकर हिन्दी भाषी प्रदेश बनता है। यहाँ हम हिन्दी की उपभाषा एवं बोलियों का परिचय देखें-
हिन्दी की प्रमुख बोलियां और उनकी जानकारी
हिन्दी भाषा के उपभाषाओं एवं बोलियों का आपने अध्ययन कर
लिया है। 5 उपभाषाओं एवं 18 बोलियों में
विभक्त हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति की प्रतिनिधि भाषा रही है। अब हम हिन्दी की
प्रमुख बोलियों एवं उपभाषाओं का अध्ययन करेंगे।
01 पश्चिमी हिन्दी उपभाषा -
- 1 खड़ी बोली
- 2. बांगरू या हरियाणवी
- 3. ब्रजभाषा
- 4. कन्नौजी
- 5. बुन्देली
02 पूर्वी हिन्दी उपभाषा
- 1.अवधी
- 2. वघेली
- 3. छत्तीसगढ़ी
03 राजस्थानी उपभाषा
- 1. मेवाती
- 2. मालवी
- 3. हाड़ौती (जयपुरी)
- 4. मारवाड़ी (मेवाड़ी)
4 बिहारी उपभाषा
- 1.भोजपुरी
- 2.मगही
5 पहाड़ी उपभाषा
- मैथिली
- कुमाऊँनी
- गढ़वाली
- नेपाली
A. पश्चिमी हिन्दी
- हिन्दी का उप-भाषाओं में से सर्वाधिक प्रमुख उप-भाषा के रूप में पश्चिमी हिन्दी की गणना की जाती है। इस उपभाषा का क्षेत्र दिल्ली, ब्रज, हरियाणा, कन्नौज व बुंदेलखण्ड के क्षेत्रों को अपने में समेटे हुए हैं। खड़ी बोली और ब्रजभाषा के कारण यह हिन्दी का प्रतिनिधि उपभाषा परिवार है।
01 खड़ी बोली
- खड़ी बोली का क्षेत्र मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फर, सहारनपुर, मुरादाबाद, रामपुर आदि जिले है । साहित्य की दृष्टि से खड़ी बोली का साहित्य सर्वाधिक समृद्ध है।
2. ब्रज
- ब्रजभूमि में बोली जाने वाली भाषा का नाम ब्रजभाषा है। मथुरा, वृंदावन के आस-पास का क्षेत्र, आगरा मथुरा, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, बुलंदशहर, बदायूँ आदि जिलों में ब्रजभाषा बोली जाती है। सूर, अष्टछाप का साहित्य, बिहारी, देव, घत्रनंद समेत पूरा रीतिकाल, जगन्नाथदास रत्नाकर, हरिऔध जैसे कवियों के साहित्य से ब्रजभाषा समृद्ध है। व्याकरणिक दृष्टि से ओ/औ करांत इसी विशेषता है। गयो, भलो, कहयो इत्यादि शब्द इसके उदाहरण हैं।
3. कन्नौजी
- कन्नौजी का क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इटावा, फर्रुखाबाद, शाहजहाँपुर आदि जिले हैं। कानपुर, हरदोई के हिस्से भी कन्नौजी के क्षेत्र हैं। यह ब्रजभाषा और बुन्देली के बीच का क्षेत्र है। खोटो, छोटो, मेरो, भयो, बइठो इत्यादि 'ओ' कारान्त भाषा के रूप में कन्नौजी को देखा जा सकता है।
4. बुन्देली
- बुन्देलखण्ड जनपद की बोली को बुन्देली कहा गया है। इस बोली का क्षेत्र झाँसी, जालौन, सागर, होशंगाबाद, भोपाल इत्यादि है।
5. बाँगरू (हरियाणवी)
- हरियाणा प्रदेश की बोली को हरियाणवी कहा यह बोली दिल्ली के कुद हिस्सों में, करनाल, रोहतक अंबाला आदि जिलों में बोली के जाती है। को के लिए ने का प्रयोग हरियाणवी की विशेषता है।
B पूर्वी हिन्दी उपभाषा की बोलियाँ
- पूर्वी हिन्दी में तीन बोलियाँ हैं- अवधी, बघेली एवं छत्तीसगढ़ी पूर्वी हिन्दी उपभाषा, हिन्दी में विशिष्ट स्थान रखता है, क्योंकि इसमें तुलसीदास व रामचरितमानस जैसी कृतियाँ हैं। आइए पूर्वी हिन्दी की बोलियों से परिचित हों।
1. अवधी
- अवध मण्डल की बोली को अवधी कहा गया है। इस भाषा का प्रमुख क्षेत्र लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, फैजाबाद, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, फतेहपुर आदिजिले आते हैं रामभक्ति शाखा का केंन्द्र अवध मण्डल ही रहा है। इस भाषा में तुलसीदास प्रमुख कवि हैं।
2. बघेली
- बघेलखण्ड की बोली को वघेली कहा गया है। बघेली में रीवाँ, -जबलपुर, माँडवा, बालाघाट आदि जिले आते हैं। वघेली में लोक साहित्य मिलता है।
3. छतीसगढ़ी
- छतीसगढ़ की बोली को छतीसगढ़ी कहा गया है। मध्यप्रदेश के रायपुर, विलासपुर जिले इसके प्रमुख केन्द्र हैं।
C राजस्थानी उपभाषा के प्रमुख बोलियाँ
- राजस्थानी, हिन्दी का प्रमुख उपभाषा है। राजस्थानी उपभाषा में चार बोलियाँ हैं। मारवाड़ी, मेगती, जयपुरी एवं मालवी। रासो साहित्य से लेकर आधुनिक काल तक राजस्थानी साहित्य का हिन्दी पर प्रभाव देखा जा सकता है।
1. जयपुरी
- जयपुर केन्द्र होने के कारण इसे जयपुरी कहा गया है। इस बोली को ढूँढाली भी कहते हैं। हाडैती इसकी उपबोली है। जयपुरी बोली के क्षेत्र कोटा, बूँदी के जिले एवं जयपुर हैं।
2. मेवाती
- यह राजस्थानी के उत्तर सीमा के अंतर्गत बोली जाती है। इसकी प्रमुख उपबोली अहीरवाटी है। मेवाती अलबर, भरतपुर औ गुड़गाँव के जिलों में बोली जाती है।
3. मालवी
- दक्षिणी राजस्थान की बोली को मालवी कहा जाता है। मालवी का मुख्य क्षेत्र दक्षिणी राजस्थान के बूँदी, झालावाड़ जिले तथा उत्तरी मध्यप्रदेश के मंदसौर, इंदौर, रतलाम आदि जिले आते हैं। यह बोली गुजराती और पश्चिमी हिन्दी के बीच की है।
4 मारवाड़ी
- राजस्थानी की पश्चिमी बोली का नाम मारवाड़ी है। इसका केन्द्र मारवाड़ है। इसका केन्द्र मारवाड़ है। इस बोली का केन्द्र जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, उदयपुर आदि जिले हैं। हिन्दी साहित्य की वीरगाथाएँ मारवाड़ी में ही लिखी गयी थीं। मीरा का काव्य मारवाड़ी में ही रचित हे। इस प्रकार राजस्थानी की बोलियों में मारवाड़ी साहित्यिक दृष्टि से सर्वाधिक परिष्कृत है।
D बिहारी उपभाषा की बोलियाँ
इस उपभाषा का केन्द्र बिहार होनेके कारण इसका नाम बिहारी पड़ा है। बिहारी उपभाषा में तीन बोलियाँ है- भोजपुरी, मगही एवं मैथिली ।
1. भोजपुरी
- भोजपुरी, बिहारी की सर्वाधिक बोली जाने वाली बोली है। बिहार का भोजपुर जिला इस बोली का केन्द्र है। इस बोली के प्रमुख क्षेत्रों में बलिया, बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, चंपारन, सहारन, भोजपुर, पालामऊ आदि आते हैं। इस प्रकार इस बोली का केन्द्र मुख्य रूप से बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश है। भोजपुरी भाषा में पर्याप्त लोक साहित्य मिलता है। कबीर जैसे बड़े कवि के ऊपर भी भोजपुरी का प्रभाव है। आज भोजपुरी फिल्मों ने इस बोली को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दी है। भोजपुरी विदेशों में- मारीशस, सूरीनाम में भी प्रचलित व लोकप्रिय है।
2. मगही
- मगध प्रदेश की भाषा होने के कारण इसका नाम मागधी पड़ा है। यह बोली मुख्य रूप से बिहार के पटना, गया आदि जिलों में बोली जाती है।
3. मैथिली
- मिथिला प्रदेश की भाषा होने केकारण इस भाषा का नाम मैथिली है यह बोली प्रमुख रूप से उत्तरी बिहार एवं पूर्वी बिहार के चंपारन, मुजफ्फरपुर, , मुंगरे, भागलपुर, , दरभंगा, पूर्णिया आदि जिलों में बोली जाती है। मैथिली हिन्दी की भाषा है या नहीं? इस प्रश्न को लेकर मतैक्य नहीं है / वैसे परम्परागत रूप से मैथिली को हिन्दी भाषा की बोली के रूप में ही स्वीकृति मिली हुई है। साहित्यिक दृष्टि से मैथिली, बिहारी उपभाषा की बोलियों में सर्वाधिक संपन्न है। मैथिल कोकिल विद्यापति तो हिन्दी भाषा के गौरव है हीं। आधुनिक कवियों में नागर्जुन जैसे समर्थ कवि मैथिल भाषा की मिट्टी से ही ऊपजे हैं।
E पहाड़ी उपभाषा की बोलियाँ
- इस उपभाषा का संबंध पहाड़ी अंचल की बोलियों से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे पहाड़ी नाम दिया गया है। हिन्दी भाषा के पहाड़ी अंचल में उत्तराखण्ड व हिमांचल प्रदेश का क्षेत्र आता है। ग्रियर्सन ने नेपाली को भी पहाड़ी के अंतर्गत माना था। इस उपभाषा के दो भाग किये गये हैं- पश्चिमी और मध्यवर्ती। पश्चिमी पहाड़ी में जौनसारी, चमोली, भद्रवाही आदि बोलियाँ आती है तथा मध्यवर्ती पहाड़ी में कुमाऊँनी एवं गढ़वाली।
कुमाऊँनी
- कुमाऊँ खण्ड में जाने कारण इस बोली का नाम कुमाऊँ पड़ा है। उत्तराखण्ड के उत्तरी सीमा क्षेत्र इसका केन्द्र है। यह बोली उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत आदि जिलों में बोली जाती है। कुमाऊँ बोली में समृद्ध साहित्य मिलता है। कुमाऊँ ने हिन्दी साहित्य को सुमित्रानंदन पंत, शेखर जोशी, मनोहरश्याम जोशी, इलाचन्द्र जोशी जैसे बड़े साहित्यकार दिये हैं।
गढ़वाली
- उत्तराखण्ड के गढ़वाल खण्ड की बोली होने के कारण इसका नाम गढ़वाली पड़ा है। यह बोली प्रमुख रूप से उत्तरकाशी, टेहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, दक्षिणी नैनीताल, तराई देहरादून, सहारनपुर, बिजनौर जिलों में बोली जाती है। गढ़वाली में समृद्ध लोक साहित्य मिलता है। गढ़वाली की उपभाषाओं में राठी, श्रीनगररिया आदि हैं। गढ़वाल मंडल ने हिन्दी साहित्य को पीताम्बर दत्त बर्थवाल, वीरेन डंगवाल और मंगलेश डबराल जैसे ख्यातिनाम साहित्यकार दिये हैं।
भाषा और बोली का अंतर्सम्बन्ध
- किसी भी समृद्ध भाषा की बोलियाँ और उप-बोलियाँ होती है। हिन्दी के संदर्भ में यह प्रश्न उठाया जाता रहा है कि इसके विभिन्न रूप, क्षेत्रीय विभेद को बढ़ावा देते हैं। जबकि यही प्रश्न लैटिन, ग्रीक, फ्रेंच, रूसी के संदर्भ नहीं उठाया जाता । जाहिर है, इस प्रश्न के मूल में राजनीति ज्यादा होती है, यर्थाथ कम। किसी भी समृद्ध भाषा का विस्तार भौगोलिक एवं साहित्यिक दृष्टि से बहुत ज्यादा होता है, इसलिए एक बोली से दूसरी बोली में सम्प्रेषणीयता की समस्या खड़ी हो जाती है। बोली (1) और बोली (18) में इतना भौगोलिक अंतर होता है, कि उनके बीच सम्प्रेषण की समस्या उठना स्वाभाविक ही है। भाषा और बोली के अंतर्सम्बन्ध का एक प्रश्न राजनीतिक और साहित्यिक भी है। एक ही बोली राजनीतिक-साहित्यिक कारणों से कभी बोली बन जाती है और कभी भाषा। इस संदर्भ में भाषा वैज्ञानिकों ने लक्षित किया है कि खड़ीबोली जो कभी कुछ-एक जनपदों में बोली जाने वाली बोली भी, राजनीतिक-साहित्यिक कारणों भाषा का रूप ले लेती है। और केवल भाषा ही नहीं बनती बल्कि एक संस्कृति बन जाती है। इसी प्रकार मध्यकाल की ब्रजभाषा एवं अवधी भाषाएँ क्रमशः बोलियों का रूप ले लेती है। इस प्रकार भाषा और बोलियों के अंतर्सम्बन्ध को कई रूपों में समझा जा सकता है।
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