मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक दुर्ग। Historic Fort of MP
मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक दुर्ग (Historic Fort of MP)
मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक दुर्ग
ग्वालियर का दुर्ग
- ‘पूर्व का जिब्राल्टर' कहलाने वाला ग्वालियर दुर्ग का निर्माण 925 ई. में राजा सूरजसेन द्वारा कराया गया। अपनी विशालता, भव्यता व सुदृढ़ता के कारण इसे 'भारत के किलों का रत्न' या ‘भारत के किलों का सिरमौर' कहा जाता है।
- भारत के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन (1857) में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इस विशाल पहाड़ी दुर्ग में 5 द्वार हैं, जिनको क्रमश: आलमगीरी दरवाजा, हिंडोला दरवाजा, गूजरी महल दरवाजा, चतुर्भुज मंदिर दरवाजा और हाथी - पौड़ दरवाजा कहते हैं।
- ग्वालियर स्थित इस दुर्ग में बादल महल, गूजरी महल, चतुर्भुज मंदिर, सास-बहू का मंदिर, विष्णु मंदिर, तेली का मंदिर, मान मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। ग्वालियर दुर्ग में स्थित मान मंदिर, गूजरी महल एवं हाथी की विशाल प्रतिमा का निर्माण 1486 से 1516 ई. के मध्य राजा मान सिंह तोमर द्वारा कराया गया।
- सास-बहू का मंदिर का निर्माण कछवाहा राजा महिपाल द्वारा 1093 ई. में कराया गया। इस मंदिर में विष्णु की सुंदर प्रतिमा स्थापित है।
- ग्वालियर दुर्ग के पश्चिम में स्थित 27 मीटर ऊंचा (किले में सबसे ऊंचा मंदिर) तेली का मंदिर दक्षिण भारत की द्रविड़ कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- तेली का तात्पर्य यहां तेलंगाना प्रांत का अपभ्रंश रूप है। ग्वालियर दुर्ग की तलहटी में राजा डोंगर सिंह (15वीं शताब्दी) के शासन काल में निर्मित अनेक जैन मंदिर हैं, जिनमें सर्वाधिक ऊंची (17 मीटर) जैन गुरु आदिनाथ की प्रतिमा है। यह प्रतिमा एलोरा की भांति पत्थरों को तराश कर बनाई गई है।
धार का किला
- धार जिले में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित धार किला पुनर्निर्माण 1344 ई. में सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने अपनी दक्षिण विजय के दौरान देवगिरि जाते समय विश्राम के उद्देश्य से कराया था। इस किले में अब्दुल्ला शाह चंगल का मकबरा, खरबूजा महल (किले का सबसे प्राचीन स्थल), कालका देवी का मंदिर ( परमार नरेश मुंज द्वारा निर्मित) स्थित है।
- इस किले के अंदर मुगल सम्राट शाहजहां के बड़े बेटे दाराशिकोह ने भी औरंगजेब के साथ युद्ध के दौरान आश्रय लिया था। मराठा पवार नरेशों ने इस किले पर 1732 ई. में आधिपत्य कर लिया। मराठा पेशवा बाजीराव का जन्म इसी किले में हुआ था। इस किले के समीप ही हजरत मकबूल की कब्र स्थित है।
असीरगढ़ का किला
- महेश्वरनगर के समीप असीरगढ़ नामक छोटे कस्बे में स्थित इस पहाड़ी किले का निर्माण आसाराम नामक एक अहीर राजा ने 10वीं शताब्दी में कराया था। लगभग 250 मीटर ऊंची दीवारों वाले इस किले में आशा देवी का मंदिर व उनकी प्रतिमा है। किले के तीन भाग हैं।
- मध्य में कमरगढ़ एवं मलाईगढ़ भागों का निर्माण आदिल खां फारूखी ने कराया था। इस किले की तलहटी में 10वीं शताब्दी में निर्मित एक अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर है। अभेद्य समझे जाने वाले इस किले पर मुगल सम्राट अकबर ने 1601 ई. में छल से अधिकार किया था।
चन्देरी का किला
- बीना-कोटा रेलमार्ग के मूंगावली स्टेशन से 38 कि.मी. और ललितपुर से 34 कि.मी. दूर बेतवा नदी के किनारे अवस्थित चन्देरी के किले का निर्माण 11वीं शताब्दी में प्रतिहार नरेश कीर्तिपाल ने कराया था। लगभग 70 मीटर ऊंची पहाड़ी पर निर्मित इस सुदृढ़ व पहाड़ी किले की दीवारों का निर्माण चन्देरी के मुस्लिम शासकों ने कराया था।
- इस किले में कुछ दर्शनीय स्थल हैं- जौहर-कुण्ड, हवा महल, नौखंड महल, खूनी दरवाजा आदि। कहा जाता है कि बाबर के आक्रमण के समय 800 राजपूतानियों ने जौहर कुण्ड की जलती आग में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी।
गिन्नौरगढ़ दुर्ग
- भोपाल से 60 कि.मी. दूर सीहोर जिले के गिन्नौर में 390 मीटर लम्बी और 50 मीटर चौड़ी पहाड़ी पर स्थित गिन्नौरगढ़ दुर्ग का निर्माण 13 शताब्दी में गोंड शासक महाराजा उदयवर्मन ने कराया था। कहा जाता है कि गिन्नौरगढ़ पर हमला करने के लिए आए आक्रमणकारियों को एक-एक रेत की टोकरी का मूल्य एक-एक अशर्फी देना पड़ा था, जिसके कारण किला जिस पहाड़ी पर निर्मित है, उसे 'अशर्फी पहाड़ी' कहते हैं। गिन्नौरगढ़ दुर्ग का समीपवर्ती क्षेत्र शुक अर्थात् तोतों का क्षेत्र कहलाता है। यह दुर्ग भव्य महलों से सुशोभित है।
रायसेन का दुर्ग
- रायसेन में एक पहाड़ी के शिखर पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण राजा राजवसंती ने 16वीं शताब्दी में कराया था। सैनिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण होने के कारण मुस्लिम शासकों ने इस दुर्ग को अपना मुख्यालय बनाकर अनेक वर्षों तक मालवा पर राज्य किया।
- इस दुर्ग में तीन राजमहल- बादल महल, राजा रोहित महल और इत्रदार महल हैं। दुर्ग में लक्ष्मी नारायण मंदिर है। नौ प्रवेश द्वार वाले इस दुर्ग में 40 कुएं व चार तालाब तथा अन्न व गोला-बारूद रखने के विशाल तहखाने हैं।
बांधवगढ़ का दुर्ग
- कटनी-बिलासपुर मार्ग पर उमरिया स्टेशन से 30 कि.मी. दूर विंध्याचल पर्वत के घने बीहड़ जंगल में 900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अजेय, सुदृढ़ व भव्य बांधोगढ़ (बांधवगढ़) दुर्ग का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ था। इस दुर्ग के अंतर्गत एक बड़ा तालाब है, जिसके किनारे लक्ष्मी नारायण का मंदिर है।
- दुर्ग के शिखर से लगभग 400 मीटर नीचे शेषशाही नामक तालाब है, जो एक प्रसिद्ध एवं चमत्कारी संत योगी के नाम पर बना था। तालाब के किनारे उस योगी की समाधि और एक ओर क्षीरसागर कुण्ड भी है। बांधोगढ़ (बांधवगढ़) बघेलखंड के शासकों की राजधानी थी, जिसे 16वीं- 17वीं शताब्दी में बघेलखंड के राजा विक्रमादित्य ने अपने शासन काल में हटाकर रीवा कर लिया था। मुगल सम्राट अकबर ने अपने एक सरदार पालदास को 1597 में एक बड़ी सेना देकर बांधोगढ़ दुर्ग भेजा था। मजबूत घेराबंदी के बावजूद इस दुर्ग को जीतने में आठ माह पांच दिन का समय लगा।
अजयगढ़ दुर्ग
- पन्ना नगर से 34 कि.मी. उत्तर में स्थित एक छोटे से नगर अजयगढ़ के इस दुर्ग का निर्माण राजा अजयपाल ने कराया था। पन्ना रियासत के राजाओं ने इस दुर्ग का 18वीं शताब्दी में पुनर्निर्माण कराया। इस दुर्ग में राजा अमन का महल विशेष दर्शनीय स्थल है, जिसमें बारीक पत्थरों की पच्चीकारी का सुन्दर नमूना है।
ओरछा दुर्ग
- निवाड़ी जिले में बेतवा नदी के किनारे ओरछा में वीर सिंह बुंदेला ने 17वीं शताब्दी में एक विशाल एवं भव्य दुर्ग का निर्माण कराया। इस दुर्ग के अंदर विशेष दर्शनीय स्थल हैं चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मी-नारायण मंदिर, राम मंदिर, राज मंदिर, जहांगीर महल आदि। सभी प्रमुख मंदिरों व महलों का निर्माण राजा वीर सिंह देवजू द्वारा कराया गया है।
मंडला दुर्ग
- जबलपुर से 96 कि.मी. दूर मंडला में बंजर व नर्मदा नदी के संगम पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण गोंड राजा नरेन्द्र शाह ने अनेक वर्षों में कराया था।
- गोंड राजाओं की राजधानी और शक्ति का प्रमुख केंद्र रहा यह दुर्ग प्रारंभ में चारों ओर पानी से घिरा था। अभी नर्मदा नदी इसे तीन ओर से घेरे हुए और चौथी ओर गहरी खाई बनी है। इस दुर्ग के नीचे कभी एक सुरंग थी, जो मदन महल को जोड़ती थी ।
- मदन महल का निर्माण 1200 ई. में राजा मदनशाह ने कराया था। मंडला के दुर्ग में राज राजेश्वरी की स्थापना निजामशाह द्वारा कराई गई।
- निजामशाह की मृत्यु के पश्चात् यहां के आपसी झगड़ों का फायदा उठाकर मराठों ने 1789 ई. में आक्रमण करके गोंड वंश के शासन को समाप्त कर दिया।
मंदसौर का किला
- मालवा में शिवना नदी के किनारे स्थित मंदसौर को प्राचीन काल में दशपुर कहते थे। मंदसौर के पूर्वी भाग में 14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने एक भव्य किले का निर्माण कराया। मंदसौर के किले की प्राचीर में चुने गए अनेक पत्थरों पर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हैं।
- इस किले के 12 दरवाजे हैं, जिनमें प्रमुख हैं- भाई दरवाजा, खानपुरा दरवाजा, महादेव घाट दरवाजा तथा मंडी दरवाजा। इस किले में लगभग 500 वर्ष पुराना तापेश्वर महादेव का मंदिर भी विद्यमान है।
नरवर का किला
- शिवपुरी से 19 कि.मी. उत्तर में सतनवाड़ा स्टेशन से 25 कि. मी. उत्तर में स्थित नरवर में एक सुदृढ़ पहाड़ी दुर्ग स्थित है, जो राजा नल की राजधानी था। यह किला नल-दमयंती की प्रणय कथा को समेटे हैं तथा कछवाहों, तोमरों एवं रायपुर के राजघरानों से सम्बद्ध रहा।
दतिया का किला
- दतिया स्थित इस किले का निर्माण बुन्देलखंड नरेश वीर सिंह जूदेव द्वारा 1626 में कराया गया। इस किले का प्रवेश द्वार इतना ऊंचा है कि यहां तक हाथी पर खड़ा होकर भी नहीं पहुंचा जा सकता। प्रवेश द्वार में मजबूत लकड़ी के दरवाजे लगे हैं, जिनमें हाथी चिक्कार कीलें भी हैं।
- दतिया नरेश महाराज भवानी सिंह के शासन काल में दुर्ग के प्रवेश द्वार पर (Justice is the gem of crown) लिखवाया गया।
- किले की दीवारों पर चित्र लटक रहे हैं और चित्रों के बीच में एक दीवार पर गैंडे और हाथी का तथा उसके ठीक विपरीत दिशा वाली दीवार पर हिप्पो चिड़िया का सिर टंगा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि नरेश गोविन्द सिंह जूदेव ने अपनी अफ्रीका यात्रा के दौरान हिप्पो चिड़िया का शिकार किया था और उसका सिर अपने साथ लाए थे।
- किले में शेर के नाखूनों से स्वर्णमंडित एक हाथी की झूल भी रखी है। किले में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र के अलावा प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों का भण्डार भी है। यहां बिहारी सतसई के प्रत्येक दोहे पर बनाए गए 700 से अधिक चित्रों का संग्रह था। इनमें से लगभग 200 चित्र और मतिराम के नायिका भेद के सवैयों के अनेक चित्र महाराजा के निजी चित्र संग्रह में पाए जाते हैं।
कन्हरगढ़ दुर्ग
- दतिया जिले में सिन्दु नदी के तट पर मारतोड़ का बना यह दुर्ग मुगल इतिहासकारों द्वारा सरूआ किला लिखा गया है। हालांकि महमूद गजनवी ने चंडराय का पीछा करते हुए इस दुर्ग की घेराबंदी की थी, लेकिन वह निराश होकर वापस लौटा था। सेवड़ा के महाराजा पृथ्वी सिंह रस निधि ने इस दुर्ग में अनेक सुन्दर स्थान बनवाए थे। दतिया के नरेश शत्रुजीत ने इसी दुर्ग में ग्वालियर के महादजी सिंधिया की विधवा रानियों को 1809 ई. में आश्रय दिया था।
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