भारतीय लिपियों का इतिहास। प्रमुख भारतीय लिपि। History of Indian Scripts
भारतीय लिपियों का इतिहास (History of Indian Scripts )
भारतीय लिपियों का इतिहास -
- भारतीय लिपि के इतिहास की ओर सर्वप्रथम ध्यान विलियम जोन्स के माध्यम से गया। उसके पश्चात् भारतीय लिपि के इतिहास पर काम शुरू हुआ।
- विवाद इस बात पर हुआ कि विदेश लेखकों ने भारतीय लिपि के इतिहास को ईसा पूर्व 3-4 शताब्दी बताया, जबकि भारतीय लेखकों ने इसे ईसा पूर्व 3,000 के लगभग बताया। भारतीय लिपि इतिहास के विकास को लेकर इतना विवाद रहा है कि सुनिश्चित रूप से कुछ कह सकना मुश्किल है।
प्रमुख भारतीय लिपि
सैंधव लिपि
- भारत की ज्ञात लिपियों में सैंधव लिपि प्रमुख लिपि है। सिन्धु घाटी सभ्यता से - जुड़ी होने के कारण ही इसे सैंधव लिपि कहा गया है। इस लिपि को किसी ने 4000 ईसा पूर्व का मान है तो किसी ने 4000 ईसा पूर्व की। सिंधु घाटी में मांटगोमरी जिले के हड़प्पा तथा सिंधु के लरकाना जिले में मोहनजोदडो की खुदाई से कुछ सीलें मिली हैं, जिन पर यह लिपि अंकि है। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक इस लिपि को नहीं पढ़ा जा सका है। कुछ विद्वानों ने ब्राह्मी लिपि का विकास इसी लिपि से मान है, जिसे हम प्रामाणिक स्रोत के अभाव में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कह सकते ।
ब्राह्मी लिपि -
- ब्राह्मी लिपि संबंधी अभिलेख ईसा पूर्व 3 से 5 शताब्दी पूर्व के मिलते हैं। यह लिपि बायीं ओर से दाईं ओर लिखी जाती है। इसके अक्षर प्रायः सीधे होते थे। अधिकांश अक्षरों के अन्त में तथा कुद के प्रारम्भ और अन्त दोनों स्थानों में सीधी रेक्षाएँ जुड़ी होती थीं।
- ब्राह्मी अपने की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि थी। इसकी लोकप्रियता का एक प्रमाण यह भी है युग कि बौद्ध एवं जैन धर्म के विद्वानों ने भी इस लिपि को अपनाया। ब्राह्मी लिपि की महत्त्व पर टिप्पणी करते हुए पं0 गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने लिखा है कि- “मनुष्य की बुद्धि के सबसे बड़े महत्व के दो कार्य, भारतीय ब्राह्मी लिपि हजारों वर्ष पहले भी इतनी उच्चकोटि को पहुँच गयी थी कि उसकी उत्तमता की कुछ भी समानता संसार भर की कोई दूसरी लिपि अब तक नहीं कर सकती .......... इसमें प्रत्येक आर्यध्वनि के लिए अलग-अलग चिह्न होने से जेसा बोला जावे, वैसा ही लिखा जाता है और जैसा लिखा जावे, वैसा ही पढ़ा जाता है तथा वणक्रम वैज्ञानिक रीति से स्थिर किया गया है। यह उत्तमता किसी अन्य लिपि में नहीं है।”
खरोष्ठी लिपि -
- खरोष्ठी लिपि का शाब्दिक अर्थ हे- गधे के ओंठों के सामन। अर्थात् देखने में भद्दी एवं कुरूप होने के कारण इस लिपि को खरोष्ठी कहा गया । खरोष्ठी के नामकरण के संबंध में भी विवाद है। कोई इसे खरोष्ठी नामक विद्वान के नाम के कारण खरोष्ठी बताता है, कोई गधे की चमड़ी पर लिखने के कारण तो कोई हिब्रू के, 'खरोशेथ' (लिखावट) से बने खरोठठ शब्द से। अतः निश्चित रूप से कुछ कहना संभव नहीं है।
- खरोष्ठी ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में भारत वर्ष के उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त प्रदेश के आस पास पंजाब के गांधार प्रदेश में प्रचलित थी, जो मौर्यवंशी राजाओं के शाहबाजगढी और मानसेरा के लेखों से सिद्ध है। खरोष्ठी की तरह दाहिनी ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी और इसके ग्यारह वर्ण - क, ज, द, न, ब, य, र, ब, प, ष, और ह समान सामन उच्चारण वाले अरमइक् अक्षरों से मिलते-जुलते हैं।
ब्राह्मी से उद्भूत परवर्ती लिपियाँ
डा० अनंत चौधरी ने ब्राह्मी से उद्भूत परवर्ती लिपियों को जो क्रम दिया है, उसे हजम इस आरेखा के माध्यम से समझ सकते हैं।
ब्राह्मी की शैलियाँ
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