भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एवं उद्देश्य। Indian National Congress Sthapna Aim

 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एवं उद्देश्य 
(Indian National Congress Sthapna Aim)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एवं उद्देश्य। Indian National Congress Sthapna Aim


 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना एवं उद्देश्य


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म 

  • भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस का बहुत बड़ा योगदान रहा । भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास है। कांग्रेस के जन्म का कारण यह कहा जा सकता है कि दिन-प्रतिदिन अंग्रेजी शासन के विरूद्ध बढ़ता क्षोभ ही कांग्रेस के जन्म का कारण बना । 
  • इलवर्ट विधेयक विवाद ने तो भारतीयों की आंखे खोल दी। इससे भारत की राजनीतिक स्थिति नग्ग रूप में सामने रख दी। 
  • सुरेन्द्रनाथ बनर्जी लिखते हैं कि "कोई भी स्वाभिमानी भारतीय तब आंख मूंदकर सुस्त बैठा नहीं रह सकता था। जो इलबर्ट बिल विवाद के महत्व को समझते थे उनके लिये यह देश भक्ति की महान पुकार थी।" इस विवाद ने भारतीय शिक्षित वर्ग को संगठित, राजनीतिक आन्दोलन की आवश्यकता का पाठ पढ़ाया। 
  • इस विधेयक के समर्थन में भारतवासियों के संगठित प्रयत्न की कमी ही यूरोपीय आन्दोलन की सफलता का कारण थी। यदि अब आगे राजनीतिक अधिकार और सुधार प्राप्त करना था तो देशव्यापी आन्दोलन चलाने के लिये एक राष्ट्रीय संस्था की आवश्यकता थी। 
  • प्रथम राष्ट्रीय संस्था की स्थापना श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने की। 1876 में उन्होने 'इंडियन एशोसिएशन की स्थापना की। यह एशोसियेशन राष्ट्रीय आन्दोलन का केन्द्र बन गयी। 1883 में 28 से 30 दिसम्बर तक कलकत्ते के इलबर्ट हॉल में इंडियन एशोसियेशन ने एक राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया। 
  • इस सम्मेलन में उन सभी पर विचार किया गया जो आगे चलकर आंदोलन की आधार भूमि बनगये जिन नेताओं ने इस सम्मेलन में भाग लिया। वे इसे राष्ट्रीय लोक सभा की पहली सीढ़ी समझते थे। उन लोगों का बड़ा उत्साह था। अगले वर्ष सम्मेलन नहीं बुलाया जा सका, लेकिन 1884 में कलकत्ते में एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी हुई, जिसने भारतीय नेताओं में पुनः वह विश्वास दृढ़ किया है कि एक अखिल राष्ट्रीय आन्दोलन ठोस आधार पर संगठित किया जा सकता है। इस वर्ष सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने उत्तर भारत का दौरा किया उन्होंने राष्ट्रीयता के लिये राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय कोष की आवश्यकता पर जोर दिया। 
  • 1884 में बंगाल में नेशनल लीग की स्थापना की गयी जिसने एक ऐसा कार्यक्रम अपनाया जो कांग्रेस के कार्यक्रम से मिलता था। 1885 में मद्रास में एक प्रान्तीय सममेलन हुआ, जिसमें मद्रास महाजन सभा की स्थापना हुई। 
  • जनवरी 1884 में बम्बई प्रेसिडेंसी एसोशियेशन की स्थापना की गयी जिसमें वहां के महान नेताओं ने पूर्ण सहयोग दिया। दिसम्बर 1884 में थियोसॉफिकल सोसायटी के उद्घार अधिवेशन के उपरान्त सत्रह व्यक्ति जो देश के विभिन्न भागों से आये थे- दीवान बहादुर रघुनाथराव के निवास स्थान पर एकत्र हुए। इसका उददेश्य था देश के सभी राजनीतिज्ञों को एकत्र करने का उपाय तथा ढंग पर विचार करना तथा देश की वर्तमान सरकार के उपायों तथा साधनों में सुधार के लिये एक राजनीतिक आन्दोलन प्रारंभ करना जो भविष्य में देश को स्वराज्य की ओर ले जाने में सफल हो सके।" इन संस्थाओं द्वारा कांग्रेस की स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार कर दी गयी। इन समस्त संस्थाओं का कार्यक्षेत्र प्रान्तों तक ही सीमित था और एक ऐसे संगठन की विशेष आवश्यकता थी जिसका कार्य क्षेत्र देशव्यापी हो

 

राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्मदाता 

  • कांग्रेस की स्थापना का मुख्य श्रेय एक अवकाश प्राप्त आ.सी.एस. अफसर एलन ऑक्टवियस हयूम (ए. ओ. ह्यूम ) को दिया जा सकता हैं। उन्हें कांग्रेस का पिता कहा जाता है। 
  • यूम एक उदारवादी अंग्रेज थे और भारत के साथ उसकी विशेष सहानुभूति थी। साथ ही वे एक अनुभवी और दूरदर्शी व्यक्ति भी थे। अपनी दूरदर्शिता के कारण वे अच्छी तरह जान गये कि भारत में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध घोर असंतोष व्याप्त हैं और इसके लिये वे एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना करना चाहते थे। 
  • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने 1883 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों के नाम एक खुला पत्र लिखा जो अत्यंत हृदयस्पर्शी था। इसमें उन्होंने देश के शिक्षित नवयुवकों से मातृभूमि की उन्नति के लिये प्रयन्त करने की अपील की ताकि "भारतीय राष्ट्र का बौद्धिक, सामाजिक और राजनीतिक पुनर्जागरण हो सके और उसके लिये अनुशासित और सुसज्जित सेना तैयार हो सके।" 
  • उन्होंने आगे कहा कि यदि पचास शिक्षित नवयुवक ही स्वार्थ त्याग कर देश की स्वतंत्रता के लिये संगठित होकर प्रयत्न करें तो आगे कार्य अत्यंत सरल हो सकता है।" 
  • ह्यूम के इस पत्र को शिक्षित भारतीयों पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना के विषय में सोचने लगे।
  • इसी समय 1884 में मद्रास में थियोसॉफिकल सोसायटी के वार्षिक अधिवेशन के मौके पर मद्रास में दीवान रघुनाथराव के निवास स्थान पर देश के प्रमुख सत्रह व्यक्तियों की बैठक हुई। वहां एक देशव्यापी संगठन कायम करने का निश्चय किया गया। निश्चय के फलस्वरूप दिसम्बर 1884 में इंडियन नेशनल यूनियन नामक एक देशव्यापी संस्था की स्थापना हुई।

 

राष्ट्रीय कांग्रेस और लॉड डफरिन : 

  • ह्यूम महोदय ने अपनी योजना तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन के समक्ष रखी । ह्यूम नहीं चाहते थे कि इस देशव्यापी संगठन द्वारा राजनीतिक विषयों पर विवाद हो। लार्ड डफरिन ने ह्यूम की बात ध्यानपूर्वक सुनी और योजना के क्षेत्र को बढ़ा दिया। उसने ह्यूम को परामर्श दिया कि वे संगठन को राजनीतिक रूप लेने दे। 
  • ब्योमेशचन्द्र बनर्जी के अनुसार ह्यूम के मस्तिष्क में सबसे पहले यह विचार आया था कि भारत के प्रधान राजनीतिज्ञ साल में एक वार एकत्र होकर सामाजिक विषयों पर चर्चा कर लिया करें। वे यह नहीं चाहते थे कि उनका चर्चा का विषय राजनीतिक रहे क्योंकि बम्बई, कलकत्ता, मद्रास और अन्य भागों में राजनीतिक मण्डल थे। लार्ड डफरिन ने ह्यूम साहब के विचार को राजनीतिक दिशा दी। उसने कहा कि इस संस्था को "इंग्लैण्ड की तरह यहां सरकार के विरोध का काम करना चाहिए।" उसने यह इच्छा व्यक्त की कि यहां के राजनीतिज्ञ प्रतिवर्ष अपना सम्मेलन किया करे और सरकार को बताया करे कि शासन में क्या-क्या त्रुटिया हैं और उसमें क्या सुधार किये जाये ?"

 

  • इस प्रकार वायसराय लार्ड डफरिन का आशीर्वाद प्राप्त करके श्री ह्यूम इंग्लैण्ड गये इंग्लैण्ड में उन्होंने भारतीय मामले में दिलचस्पी लेने वाले प्रमुख व्यक्तियों से इस प्रस्तावित संगठन की योजना के संबंध में विचार विमर्श किया। भारत लौटने से पूर्व उन्होंने इंडियन पार्लियामेंटरी कमेटी का संगठन किया जिसका उद्देश्य पार्लियामेंट के सदस्यों से यह प्रतीज्ञा करवाना था कि वे भारत के मामले में दिलचस्पी लेगें।

 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन

मार्च, 1885 में ह्यूम के इंग्लैण्ड से भारत लौटने पर निश्चय किया गया कि आगामी बड़े दिन की छुट्टियों में देश के सभी भागों के प्रतिनिधियों की एक सभा पूना में बुलायी जाये। इस आशय से एक परिपत्र जारी किया गया जिसका मुख्य अंश इस प्रकार था -

 

  • "25 से 31 दिसम्बर 1885 तक पूना में इंडियन नेशन यूनियन की एक सभा होगी। इसमें बंगाल, बम्बई और मद्रास प्रान्तों के अंग्रेजी जानने वाले प्रमुख प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे। 


इस सभा के उद्देश्य थे 

(1) राष्ट्र की प्रगति के कार्य में जी जान से लगे लोगों का एक दूसरे से परिचय 

(2) इस वर्ष के लिये कौन कौन से कार्य किये जाए, इसकी चर्चा और निर्णय लेना आदि । इस प्रकार ह्यूम का उद्देश्य इस संस्था को देशीय संसद के रूप में विकसित करना था। ताकि यह संस्था उन सब आरोपों का मुंहतोड़ उत्तर हो जिसके आधार पर भारत की जनतांत्रिक प्रणाली को अयोग्य करार दिया जाता था।

 

  • कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के संबंध में यह निश्चित किया गया था कि यह पूना में 25 से 31 दिसम्बर 1885 तक हो लेकिन पूना में हैजा शुरू होने के कारण उक्त निश्चय में परिवर्तन करना पड़ा। पुनः तय किया गया कि कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन बम्बई में हो।
  • 28 दिसम्बर 1885 को दिन के 12 बजे गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज के भवन में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस प्रकार कांग्रेस का जन्म हुआ। इसमें देश के विभिन्न भागों से 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। अधिवेशन का सभापतित्व ब्योमेशचन्द्र बनर्जी ने किया जिसके अनुसार भारत में ऐसा महत्वपूर्ण और व्यापक प्रतिनिधित्व सम्मेलन नहीं हुआ था। इस प्रकार भारत की उस महान राष्ट्रीय राजनीतिक संस्था का जन्म हुआ जिसके नेतृत्व में भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी गयी।

 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य एवं कार्यक्रम इस प्रकार थे-

 

लोकतांत्रिक राष्ट्रवादी आंदोलन चलाना। 

भारतीयों को राजनीतिक लक्ष्यों से परिचित कराना तथा राजनीतिक शिक्षा देना । 

आंदोलन के लिये मुख्यालय की स्थापना 

देश के विभिन्न भागों के राजनीतिक नेताओं तथा कार्यकर्ताओं के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना को प्रोत्साहित करना । 

उपनिवेशवादी विरोधी विचारधारा को प्रोत्साहन एवं समर्थन । 

एक सामान्य आर्थिक एक राजनीतिक कार्यक्रम हेतु देशवासियों को एकमत करना । 

लोगों को जाति, धर्म एवं प्रांतीयता की भावना से उठाकर उनमें एक राष्ट्रव्यापी अनुभव को जागृत करना । 

भारतीय राष्ट्रवादी भावना को प्रोत्साहन एवं उसका प्रसार ।

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