मध्यप्रदेश प्राचीन इतिहास- मध्य पुरापाषाण काल। Madhya Pradesh Ancient History - Middle Palaeolithic

 मध्यप्रदेश प्राचीन इतिहास- मध्य पुरापाषाण काल

मध्यप्रदेश प्राचीन इतिहास- मध्य पुरापाषाण काल। Madhya Pradesh Ancient History - Middle Palaeolithic
 

मध्यप्रदेश प्राचीन इतिहास- मध्य पुरापाषाण काल

  • प्रागैतिहासिक विकासक्रम में निम्न पुरापाषाण संस्कृति के उपरान्त मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति अवशेष अब समृद्ध रूप से प्राप्त होने लगे हैं। इस संस्कृति के अवशेष पूर्व संस्कृति के अवशेषों से भिन्न थे। उपकरणअब पूर्व निर्मित कठोर पत्थरों के साथ मुलायम पत्थरों पर निर्मित होने लगे थेस्तरीकरण में भी बदलाव आया। 
  • अब यह संस्कृति स्तरीकृत रूप में पूर्व से भिन्न "सैण्डी पेवली ग्रैवेल" या "सीमेन्टेड ग्रैवेल" से प्राप्त होने लगी थी। इस काल के उपकरण आकार प्रकार में पूर्व संस्कृति से भिन्न एवं छोटे थे एवं फ्लेक पर निर्मित होने लगे थे। इसी कारण विद्वान इस संस्कृति को "फ्लेक संस्कृति" के नाम से संबोधित करते हैं.  

  • भारतवर्ष में प्रथमतः इस संस्कृति के अवशेष स्तरीकृत रूप से डेक्कन कॉलेज पोस्टग्रेजुएट एवं शोध संस्थान के प्रो. एच.डी. सांकलिया को प्रवरा घाटी पर नेवासा से प्राप्त हुए थे. 
  • इस संस्कृति पर शोध कार्य उनके शोध छात्र एन.आर. बनर्जी ने किया एवं इसकी प्राप्ति स्थान के आधार पर इस संस्कृति को 'नेवासियनके नाम से संबोधित किया. 
  • प्रथमतः मध्यप्रदेश में इस संस्कृति के प्रमाण नर्मदा घाटी पर डे टेरा एवं पैटरसन द्वारा प्रतिवेदित किये गये थेजिसका नामकरण उनके द्वारा 'प्रोटो नियोलिथिक' (Proto Neolithic) किया गया , बाद के सर्वेक्षणों से इस संस्कृति के अवशेष सभी मुख्य नदी घाटी पर स्तरीकृत एवं सतही प्राप्त हुए 46 रामेश्वर सिंह ने इस संस्कृति के अवशेष को 'लेट पैलियोलिथिक' (Late Palaeolithic) के नाम से संबोधित किया है. 

 

मध्यप्रदेश में मध्य पुरापाषाण काल के उपकरण.

 

  • मध्यप्रदेश में मध्य पुरापाषाण काल के उपकरणों की विशेषता है कि इस काल के उपकरण निम्नपुरापाषाण कालीन संस्कृति के उपकरणों में विकास की क्रमबद्धता प्रदर्शित करती है। 
  • अनेक पुरास्थल हैं जहाँ पर छोटे-छोटे हैंडेक्स मुलायम पत्थरों पर निर्मित मिलते हैंसाथ ही साथ अनेक पुरास्थल ऐसे भी हैंजैसे भीमबैठकाजहाँ तकनीक में विकास के साथ साथ पाषाण प्रयोग में भी अन्तर नहीं है। 
  • आदमगढ़ से कुछ मध्यपुरापाषाण कालीन उपकरण कुछ उपकरण चर्ट चाल्सीडोनी एवं क्वार्ट्जाइट पर निर्मित मिले है। 
  • मध्य पुरापाषाण काल के उपकरण स्क्रैपर-बोरर समूह के उपकरण हैं एवं सभी प्रमुख प्रकार मध्यप्रदेश से मिले हैं। इनमें स्क्रैपर प्रमुख उपकरण हैं। उत्खननों एवं सतही पुरास्थलों पर स्क्रैपर को कई भागों में विभक्त किया गया है। विभाजन मुख्यतः फलकों पर वनी धार एवं आकार प्रकार के आधार पर किया जाता है। जैसेसाइड स्क्रैपरडबल स्क्रैपरराउण्ड स्क्रैपर एवं एण्ड स्क्रैपर । साइड एवं डबल स्क्रैपर को पुन: धार (working edge) के आधार पर कई भागों में विभाजित किया गया है। 
  • इसी प्रकार धार के आधार पर बोरर भी दो भागों में विभक्त है-एक स्कंधीय बोरर (Single shouldered borer) एवं द्वि-स्कंधीय बोरर 48 इन दो प्रमुख उपकरण प्रकारों के साथ-साथ अन्य उपकरण जैसे छोटी हैन्डेक्सक्लीवरप्वाइंट एवं कभी-कभी ब्यूरिन उपकरण प्रतिवेदित किये गये हैं । 

 

मध्यप्रदेश मध्य पुरापाषाण काल के स्थल 

 

  • इस संस्कृति के प्रमाण सतही एवं स्तरीकृत रूप में मध्यप्रदेश की सभी प्रमुख नदी घाटियों पर प्राप्त हुए हैं जिनमें चम्बलसोननर्मदाबेतवा प्रमुख हैं। अनेक पुरास्थलों का इस प्रदेश में उत्खनन भी हुआ है जिनमें महत्वपूर्ण हैं: 
  • गुप्तेश्वर (जिला ग्वालियर)सिहावलनकझरखुर्दपटपरा (जिला सीधी)आदमगढ़ (जिला होशंगाबाद)भीमबैठका (जिला रायसेन)ग्वारीघाटतिलवाराघाट (जिला जबलपुर)हीरापुर खदानहरदा (जिला होशंगाबाद)महोदव पिपरिया (जिला नरसिंहपुर)मैहर (जिला सतना)मोड़ी (जिला मंदसौर)समनापुर (जिला नरसिंहपुर)।
  • इनमें से अधिकतर पुरास्थलों से मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण स्तरीकृत रूप से निम्न पुरापाषाण कालीन सतरों से ऊपरी स्तरों से प्राप्त हुए हैं जबकि कुछ पुरास्थलों पर मात्र मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण ही प्राप्त हुए हैं। मध्य पुरापाषाण कालीन अधिकांश पुरास्थल सोन घाटीनर्मदा घाटीबेतवा एवं चम्बल घाटी से प्रतिवेदित किये गये हैं। 


मध्यप्रदेश में बहुधा सभी जिलों से इस संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस संस्कृति से संबंधित प्रमुख पुरास्थल-

 

  • अकावरीखूतालीखैरपुरघितोराचन्द्रेहाधबावलीनाकझूरबबोआरीबरगमाबरहईबरेडीबीचीराजघाटरामनगररामपुरलौवारसिहावलहिनोती (जिला सीधी)अखड़ारअनूपपुरजमोईमार्कण्डेयराजेन्द्रग्रामरूहानियाँशहडोलसिंगरौलीहरहालालपुर (जिला शहडोल)
  • ककरवा बरामदगढ़ीकोलुबामदिअनवाड़ी (जिला रायसेन)
  • ईसरवाड़ागढ़ाकोटागिलगवाँगोतमपुर छानतिंसीपड़राजपुरबंडारेहलीसोनारी (जिला सागर),
  •  करेटाकलाँकुण्डमकुलोनकेवलारीकजरवाराग्वारीघाटगौरैयागाताखेराचपनाचौरई-कलांचौरई-खुर्दछीरपानीडिन्डोरीडुडवाराडुन्डाडोलीढीमरखेड़ीतिलमनतुरक-खेड़ादरगढ़दिवरी- सिवनीदेवरीदेवरी- सुनवारानीमखेड़ीपड़रियापिपरियाबगरईबटईबम्हनीबिरहौला - खेड़ाबिसनपुराभदोराभीकमपुरभीटा
  • भेड़ाघाटलखनवारालम्हेटाघाटविलायत कलाँसरोलीसागौनासारंगपुरसालीवाड़ासिन्दुरसीसुपावारा (जिला जबलपुर)घाटखेड़ीचण्डीगढ़पिपल्या-बावलीबड़ाकुण्डबीजलपुरमहलखेड़ीरोशिनीसालीढाना (जिला पूर्व निमाड़)खड़की-माताखानपुराबसईबोरखेड़ीसंजेतसीतामऊसुआरा (जिला मंदसौर)इन्दौरकदवालीखामोदचोरईकदवालीजमोड़ीजामलीजेथलबड़ाखेड़ीमच्छूखेड़ीहतुनिया (जिला इन्दौर)
  • दोहरा (जिला दतिया)गोन्चीविजयपुर-डोंगर (जिला गुना)ग्यारसपुरटीला (जिला विदिशा)बिलखरियाभोपाल (जिला भोपाल)बड़वानीमहेश्वरछतरपुरखजुराहोजतकाराछिंदगाँवमहल-कलाँरायबोरहोशंगाबाद (जिला होशंगाबाद)खर-खिरी (बिलोनी)सेवापुर (जिला मुरैना)देवलोंधनोनघाटीपाटवान-जोर
  • रीवा (जिला रीवा)तातापानी, (जिला धार)कुकर्रामठकोहकाबम्हनीबरगाँवभैसिया - गाँवमण्डला जिलामेधीमोठारालुटगाँवशहपुरा (जिला मण्डला)नरसिंहपुरमहादेव - पिपरियासगौनाघाट (जिला नरसिंहपुर)
  • अलोनियाकन्हीवाड़ाछपारा, (सिवनी)सुआखेड़ा (जिला सिवनी)अंडीकोठड़ीबरेला बुजुर्गमहू लिम्बवाससिकन्दरखेड़ासिंगोदासोनकछ (जिला उज्जैन)सतना (जिला सतना)डाँड-बिछिया
  • डिन्डोरी (जिला डिन्डोरी)नरसिंहगढ़ (जिला नरसिंहगढ़)नेमावर (जिला देवास)बैतूल (जिला बैतूल)मोहगाँव-कलां (जिला छिन्दवाड़ा)।

 

मध्य पुरापाषाण काल स्तरीकरण

 

  • इस संस्कृति के उपकरण फलक पर निर्मित हैं। पूर्व संस्कृति निम्नपुरापाषाण काल के उपकरणों से वे अपेक्षाकृत छोटे हैं। ये फलक विभिन्न आकार प्रकार के हैं जिन पर वर्किंग विभिन्न की धार बनाकर विभिन्न प्रकार के उपकरणों के रूप में परिवर्तित किये गये हैं । 
  • इस काल के उपकरण स्तरीकृत रूप से द्वितीय ग्रैवल से प्राप्त होते हैं। ये ग्रैवेल भी दो अवस्थाओं में प्राप्त होते हैं। जिन नदी घाटियों पर 3 ग्रैवेल के प्रमाण प्राप्त हैं वहाँ पर सैण्डी पेवली ग्रैवेल या सीमेण्टेड ग्रैवेल से प्राप्त होते हैं। जैसे चम्बल घाटीनर्मदा घाटीसोन घाटी आदि से द्वितीय ग्रैवेल से एवं वैनगंगापार्वती नदी से प्रथम ग्रैवेल से प्राप्त होते हैं। 
  • इन ग्रैवेल के पेबुल बहुधा चर्ट एवं अन्य संबंधित मुलायम पत्थरों के हैं एवं क्वार्टजाइट पत्थरों के साथ मिलते हैं। ये पेबुल पूर्व ग्रैवेल की अपेक्षा अधिक छोटे हैं एवं इनमें गोलाई अधिक है जो संभवत: नदी में बाढ़ के कारण एवं तेज नदी बहाव के कारण हुए। नर्मदा घाटी में पेबुल विभिन्न आकार प्रकार के हैं एवं बहुधा चिकने हैं जो संभवतः नर्मदा के पहाड़ी क्षेत्र से बहने के कारण निर्मित होते हैं। 
  • नदियों से प्राप्त पत्थरों पर ही नदियों के किनारे प्राप्त होने वाले पुरास्थल उन्हीं पत्थरों पर निर्मित हुए हैं जो ग्रैवेल में मिलते हैं। 
  • नर्मदा नदी के किनारों पर प्राप्त होने वाले पुरास्थलों पर क्वार्ट्जाइट एवं चर्ट एवं अन्य संबंधित पत्थरों पर निर्मित उपकरण प्राप्त होते हैं। 


सोन घाटी पर बाघोर जमाव 20 मी. मोटा है एवं महत्वपूर्ण है। ये जमाव दो भागों में विभक्त है- 

 

1. रूक्ष वर्ग- (Coase member)- 

  • ग्रैवेल जमावक्वार्ट्जाइटशेलक्वार्ट्जचाल्सीडोनी और चर्ट पत्थरों द्वारा निर्मित है एवं 05-06 मी. मोटा है।

 

2. महीन वर्ग (Fine member) -

  •  इस जमाव के ग्रैवेल में कंकड की मात्रा अधिक है। इस जमाव के ऊपरी स्तरों से उच्च पुरापाषाण काल के उपकरण मिलते हैं परन्तु निचले स्तरों से घिसे हुए मध्ये पुरापाषाण कालीन उपकरण प्रतिवेदित किये गये हैं जो नदी मार्ग में आ जाने के कारण घिस गये हैं।

 


  • नर्मदा घाटी में बाद में किए गए उत्खननों एवं सर्वेक्षणों के फलस्वरूप अनेक नये अवशेष प्रकाश में आये। डेक्कन कॉलेज शोध संस्थानम.प्र. राज्य पुरातत्त्व विभागभारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षणविश्वविद्यालयों के अथक प्रयास से अनेक स्तरीकृत जमाव युक्त पुरास्थल प्रकाश में आये। 
  • इन जमावों में प्रातिनूतन कालीन प्रथमद्वितीयतृतीय ग्रैबेल से प्रागैतिहासिक संस्कृतियों के प्रमाण प्राप्त हुए। 
  • नर्मदा घाटी में जो द्वितीय ग्रैवेल हैं उनमें सैण्डी पेवली प्रैवेल एवं सीमेण्टेड ग्रैवेल के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। बरगी बाँध के निर्माण के समय वहाँ पर हुए उत्खनन से सैण्डी पेवली ग्रैवेल से मध्य पुरापाषाण काल की संस्कृति के अवशेष प्रतिवेदित किये गये हैं। यह जमाव 3 मी. मोटा प्राप्त हुआ है। 
  • महादेव पिपरिया के उत्खनन से भी अनेक मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरण प्रतिवेदित किये गये हैं। नर्मदा घाटी में मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरणों के साथ मवेशीहाथीघोड़ेहिरण के जीवाश्म बहुतायत प्राप्त हुए हैं . 
  • चम्बल घाटी में मध्यप्रदेश के भू-भाग में प्रातिनूतन कालीन जमावों एवं संस्कृतियों के अवशेषों की कमी थी। बी. बी. लाल एवं नौटियाल द्वारा किये गये गुप्तेश्वर (जिला ग्वालियर) उत्खनन में मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति के अवशेष कंकडी ग्रैवेल से प्रतिवेदित किये गये। 

  • उपकरण जैस्पर एवं अन्य मुलायम पत्थरों पर निर्मित पाये गये जिनमें स्क्रैपर प्वाइंटबोरबोरर-स्क्रैपरकुछ ब्लेड प्रमुख हैं । इस क्षेत्र में विस्तृत सर्वेक्षण के उपरान्त इस संस्कृति से संबंधित अनेक सतही एवं स्तरीकृत पुरास्थल प्रतिवेदित किये गये हैं। इस क्षेत्र में लेखक के प्रयासों से प्रथम बार स्तरीकृत जमाव में उपकरण के साथ-साथ प्रातिनूतन कालीन जीवाश्म भी प्रकाश में लाये गये है जो प्रातिनूतन कालीन जलवायु समझने में सहायक हैं ।  
  • भीमबैठका शैलाश्रय में क्रमबद्ध सांस्कृतिक विकास प्राप्त हुआ है। यहाँ से मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति का जमाव 40-50 सेमी. मोटा है एवं उत्खनन में भूरे लाल जमाव (5XR 5/4) स्तर 5 से प्राप्त हुए हैं। उपकरण पूर्व की संस्कृति में प्रयुक्त पाषाण क्वार्ट्जाइट पर निर्मित हैं। इस संस्कृति के उपकरण निर्माण में विशेषता यह है कि उपकरण सीधे पत्थरों पर धार बनाकर निर्मित किये गये हैं एवं पूर्व संस्कृति से इस संस्कृति के विकास क्रम को दर्शाते हैं। उपकरण प्रकारों में साइड स्क्रैपरएण्ड स्क्रैपरलावाल्वा फ्लेकब्लेडकुछ छोटे हैंडेक्स एवं क्लीवर हैं।

 

  • इस काल में उपकरण बहुधा फ्लेक पर निर्मित हैंपरन्तु बाद के चरण में फलक ब्लेड पर उपकरण निर्मित होने लगते हैं। ब्लेड पर भी अल्प मात्रा में उपकरण प्राप्त होने लगते हैं। साधारणत: फलक इस काल में पतले एवं कम छोटे हो जाते हैं। ऊपरी स्तर पर फलक चिन्ह (flake scar) एवं निचले स्तर पर उभार (bulb of percussion) आवश्यक रूप से पाया जाता है। अधिकांश कोर छोटे प्राप्त होते हैं एवं नियंत्रित एवं अनियंत्रित दोनों प्रकार के फलक निकाले जाने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। फलक-ब्लेड निर्मित उपकरण मिलने लगते हैं जो कि मध्य पुरापाषाण काल से उच्च पुरापाषाण काल की ओर विकास को दर्शाते हैं। ब्लेड पर निर्मित उपकरण इस संस्कृति में कम ही हैं । 

मध्यप्रदेश में मध्य पुरापाषाण काल के जीवाश्म 

  • मध्यप्रदेश जीवाश्मों के संबंध में अति विशिष्ट प्रदेश रहा है। सोन एवं नर्मदा एक और सांस्कृतिक क्रमबद्धता के प्रमाण तो दिये हैं परन्तु दूसरी ओर संस्कृतियों के साथ स्तरीकृत रूप में जीवाश्म अवशेष भी समृद्ध हैं। 
  • मध्यप्रदेश में प्रवाहित होने वाली चम्बल की सहायिका पार्वती से भी मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरणों के साथ Bos namadicus जीवाश्म प्रतिवेदित किये गये हैं। ये जीवाश्म एक ओर तो संस्कृतियों की तिथि निर्धारण में सहायक हैं एवं दूसरी ओर पुरा पर्यावरण (प्रातिनूतन कालीन पर्यावरण) जानने में । 
  • नर्मदा घाटी में मध्य पुरापाषाण कालीन उपकरणों उच्च नर्मदा समूह के साथ प्राप्त होने वाले जीवाश्मों में प्रमुख हैं- इक्वस नमाडिकस (Equus namadicus), वॉस नमाडिकस (Bos namadicus), हैक्साप्रोटोडॉन पैलेन्डिकस (Hexaprotodon palaiendicus), एलिफस हाइसूड्रिकस ( Elepias hysudricus), स्टेगोडान इनसिगनिस गनेसा (Stegodon insignis ganesa ), सरवस (Cervus sp.)। 
  • सोन घाटी पर भी बाघोर जमावजिसमें मध्य पुरापाषाण काल के उपकरण मिलते हैंविभिन्न स्तरों से बैलभैंसाहाथीघोड़ादरियाई घोड़ाविभिन्न प्रकार के हिरणकछुआ एवं घड़ियाल के जीवाश्म विशेष उल्लेखनीय हैं । 


मध्य पुरापाषाण संस्कृति तिथि निर्धारण 

  • मध्य पुरापाषाण संस्कृति से संबंधित तिथि निर्धारण हेतु विभिन्न प्रकार के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस संस्कृति के अवशेष निम्न पुरापाषाण ग्रैवेल जमाव के ऊपरी स्तरों से प्राप्त होते हैं एवं ऊपरी ग्रैवेल जमाव में विभिन्न प्रकार के जीवाश्म उपकरणों के साथ प्राप्त होते हैं। इनमें कुछ जीवाश्म निम्न पुरापाषाण कालीन स्तरों से भी प्राप्त होते हैंअतः लम्बी समयावधि को प्रदर्शित करते हैं। वे एक निश्चित समयावधि को दर्शाने में असमर्थ हैं।

 

  • मध्यप्रदेश में सोन एवं नर्मदा नदी से अनेक रेडियो कार्वन तिथियाँ भी प्राप्त हुई है जो इस संस्कृति के तिथि निर्धारण में सहायक रही हैं। डेक्कन कॉलेज पोस्ट ग्रेजुएट शोध संस्थान के जोशी एवं उनके सहयोगियों द्वारा नर्मदा घाटी के जमावों एवं संबंधित तिथि परक सामग्री का अध्ययन करने के पश्चात् नर्मदा घाटी की मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति की तिथि 40,000-15,000 वर्ष पूर्व के मध्य रखी गई है। 
  • नर्मदा घाटी में स्थित रतिकरार पर सैण्डी ग्रैवेल से प्राप्त घोंघा (molluscan shells) से रेडियो कार्वन तिथि 31,750 (+ -) 1625 वर्ष पूर्व ज्ञात हुई है। यह तिथि भी जोशी एवं उनके सहयोगियों के तिथि समयावधि के अन्तर्गत ही है। उच्च नर्मदा समूह की तिथि उच्च प्रातिनूतन काल के अन्तर्गत है।

 

  • मध्य पुरापाषाण कालीन संस्कृति के साथ विभिन्न प्रकार के जीवाश्मों की प्राप्ति प्रमुखतः मवेशीघोड़ेहाथीघड़ियाल (Bos namadicus, Equus namadicus, Elephas namadicus, crocodylus sp.. Trionix sp.) आदि प्रजाति के जीवाश्म निम्न पुरापाषाण काल से उच्च पुरापाषाण काल तक प्राप्त होते हैं। अतः पशुओं के लम्बे अवधि तक विचरण की ओर संकेत करते हैं। 
  • मध्यप्रदेश में अनेक पुरास्थलों से पूर्व संस्कृति निम्न पुरापाषाण उद्योग से संबंधित हैंडेक्स-क्लीवर उपकरण मध्य पुरापाषाण उद्योग में भी प्राप्त होते हैं। साथ साथ इस संस्कृति से ब्लेड भी प्राप्त हैंजिससे इस संस्कृति की क्रमबद्धता एवं विकासक्रम निम्न पुरापाषाण काल से उच्च पाषाण काल तक परिलक्षित होती है। इस काल की तिथियों को नर्मदा घाटी के पास के क्षेत्र से बहने वाली नदियाँजैसे सोन एवं गोदावरी से प्राप्त तिथियों से तुलना की जा सकती है। 
  • गोदावरी की सहायिका मूला नदी पर मूला नगर-बाँध के निर्माण के समय 100 फुट गहराई से प्राप्त जले हुए वृक्ष अर्जुन (Terminalia arjuna) से प्राप्त तिथि 30,000 एवं 39,000 वर्ष पूर्व प्राप्त हुई है। 
  • सोन घाटी के खेतौंही से प्राप्त ज्वालामुखी की तोबा राख (Toba ash deposit) की पोटैशियम आर्गन विधि से प्राप्त तिथि 74,000(+ -) 20,000 वर्ष पूर्व (बी.पी.) है। 
  • अतः नर्मदा के संबंध में जोशी एवं उनके सहायोगियों द्वारा प्रस्तावित तिथिमध्यप्रदेश की अन्य नदी घाटियों के संबंध में भी उचित प्रतीत होती है। इनकी तिथियों एवं रेडियों कार्वन तिथियों में भी समानता है। 

 

  • मध्य पुरापाषाण कालीन जलवायु अत्यधिक आर्द्र थी। वर्षा अधिक थी अतः नदियों में जल एवं बहाव अधिक था एवं तेज था। अधिक एवं तेज बहाव के कारण मध्यप्रदेश की नदियाँ उच्च स्तरीय थी एवं तेज बहाव के कारण ये उच्च स्तरों पर जमाव बना सक (निम्न पुरापाषाण काल के ऊपर) अतः द्वितीय ग्रैवेल उच्च स्तरों पर जमे हुए प्राप्त होते हैं। इस काल से संबंधित ग्रैवेल के पेबुल अधिक गोल हैं अतः नदियों के तेज बहाव एवं दूर क्षेत्रों से आयातित प्रतीत होते हैं।

 

  • इस काल में अधिक वर्षा से आर्द्रता होने के कारण खुले एवं घने प्रकार के जंगल बनेजिनमें बड़े एवं छोटे जानवरजैसे-हाथीघोड़ामवेशीहिरण आदि का निवास था। दरियाई घोड़ामगर एवं कछुए के जीवाश्मों की प्राप्ति से स्पष्ट होता है कि घने जंगलों के साथ झीलें भी थीं। नदियों में पानी अधिक था जिसमें पानी के जानवर भी बहुतायत रहते थे।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.