मध्य प्रदेश का इतिहास हिंदी में । MP Details History in Hindi
मध्य प्रदेश का इतिहास हिंदी में (MP Details History in Hindi)
भाग 01
मध्य प्रदेश का इतिहास हिंदी में
प्राचीन काल-प्रागैतिहासिक
प्रागैतिहासिक काल को निम्नलिखित कालों में विभाजित किया जा
सकता है-
1. पुरापाषाण काल
- निम्न पुरापाषाण काल
- मध्य पुरापाषाण काल
- उच्च पुरापाषाण काल
2. मध्यपाषाण काल
3. नवपाषाण काल
4. ताम्र-पाषाण काल
5. लौह युग संस्कृति
6. महापाषाण काल
मध्य प्रदेश का पुरापाषाण काल
- डॉ. एच.डी. सांकलिया सुपेकर, आर. बी. जोशी एवं बी. बी. लाल जैसे पुरातत्वविदों ने नर्मदा घाटी का सर्वेक्षण किया है।
- नर्मदा घाटी से विभिन्न प्रकार की पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई है। उस काल की कुल्हाड़ियां नर्मदा घाटी के उत्तर में देवरी, सुखचाईनाला, बुरधाना, केडघाटी, बरबुख, संग्रामपुर में पठान तथा दमोह में प्राप्त हुई हैं।
- हथनोरा में मानव की खोपड़ी के साक्ष्य मिले हैं। महादेव चिपरिया में सुपेकर को 860 औजार प्राप्त हुए हैं।
- चम्बल घाटी, बेतवा नदी, सोनघाटी तथा भीमबेटका से औजार तथा उपकरण प्राप्त हुए हैं।
मध्य प्रदेश का मध्यपाषाण काल
- भारत में मध्यपाषाण काल की खोज का श्रेय सी. एल. कालाईल को जाता है, जिन्होंने 1867 ई. में विंध्य क्षेत्र लघु पाषाणोपकरण की खोज की।
- मध्य प्रदेश में इस काल की संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थल जबलपुर के समीप बड़ा शिमला नामक पहाड़ी है, जहां से विभिन्न अस्त्र प्राप्त हुए हैं।
- भीमबेटका शिलाश्रयों तथा गुफाओं से मध्यपाषाण काल के उपकरण प्राप्त हुए हैं। होशंगाबाद जिले में आदमगढ़ शैलाश्रय में आर. बी. जोशी ने 1964 ई. लगभग 25 हजार लघु पाषाणोपकरण प्राप्त किए।
नवपाषाणकालीन संस्कृति
- इस काल में पत्थरों के साथ-साथ हड्डियों के औजार भी बनाए जाते थे। इस काल के औजार मध्य प्रदेश में एरण, जतकारा, जबलपुर, दमोह, सागर तथा होशंगाबाद से प्राप्त हुए हैं। हैं। इस काल में कृषि तथा पशुपालन के साक्ष्य भी मिलते हैं।
गुफा चित्र
- पचमढ़ी के निकट बहुत सी गुफाएं प्राप्त हुई हैं। इनमें लगभग 40 गुफाएं विविध प्रकार के चित्रों से सुसज्जित हैं। होशंगाबाद से भी एक गुफा प्राप्त हुई है, जिसमें एक 'जिराफ' का चित्र बना हुआ है। पचमढ़ी के निकट 30-40 मील की दूरी पर तामिया, सोनभद्र, झलई इत्यादि गांवों से कई गुफा चित्र प्राप्त हुए। हट्टा नामक ग्राम के समीप फतेहपुर स्थान से कुछ न चट्टानों पर चित्र प्राप्त हुए हैं।
ताम्र पाषाणकालीन संस्कृति
- सभ्यता का दूसरा चरण पाषाण एवं ताम्रकाल के रूप में विकसित हुआ है। नर्मदा की सुरम्य घाटी में ईसा से 2000 वर्ष पूर्व यह सभ्यता फली-फूली थी। यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की समकालीन थी। महेश्वर, नवादाटोली, कायथा, नागदा, बरखेड़ा, एरण आदि इसके केन्द्र थे। इन क्षेत्रों की खुदाई से प्राप्त अवशेषों से इस सभ्यता के बारे में जानकारी मिलती है। उत्खनन में मृदभांड, धातु के बर्तन एवं औजार आदि मिले हैं। बालाघाट एवं जबलपुर जिलों के कुछ भागों में ताम्रकालीन औजार मिले हैं। इनके अध्ययन से ज्ञात होता है कि विश्व एवं देश के अन्य क्षेत्रों के समान मध्य प्रदेश के कई भागों में खासकर नर्मदा, चम्बल, बेतवा आदि नदियों के किनारों पर ताम्र पाषाण सभ्यता का विकास हुआ है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक दल ने सन् 1932 में इस सभ्यता के चिन्ह प्रदेश के जबलपुर और बालाघाट जिलों से प्राप्त किए थे।
- डॉ. एच.डी. सांकलिया ने नर्मदा घाटी के महेश्वर, नवादाटोली, टोड़ी और डॉ. बी. एस. वाकणकर ने नागदा-कायथामें इसे खोजा था। इसका काल निर्धारण ईसा पूर्व 2000 से लेकर 800 ईसा पूर्व के मध्य किया गया है।
- इस काल में यह सभ्यता आदिम नहीं रह गई थी। घुमक्कड़ जीवन अब समाप्त हो गया था और खेती की जाने लगी थी।
- अनाजों और दालों का उत्पादन होने लगा था। कृषि उपकरण धातु के बनते थे। मिट्टी और धातु के बर्तनों का उपयोग होता था। इन पर चित्रकारी होती थी। पशुओं प्रमुख रूप से गाय, बकरी, कुत्ता आदि पाले जाते थे।
मध्य प्रदेश में लौहयुगीन संस्कृति
- मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से लौहयुगीन संस्कृति के साक्ष्य भिंड, मुरैना तथा ग्वालियर से प्राप्त हुए हैं।
महापाषाण संस्कृति
- महापाषाण संस्कृति के अंतर्गत कब्रों पर बड़े-बड़े पत्थर रखे जाते थे। महापाषाण संस्कृति के साक्ष्य रीवा-सीधी क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं।
वैदिक काल मध्यप्रदेश में
- आर्यों का भारत में पंचनद क्षेत्र में प्रवेश हुआ। वेबर के अनुसार, आर्यों को नर्मदा घाटी तथा उसके क्षेत्रों की जानकारी थी। महर्षि अगस्त्य के संरक्षण में यादवों का एक समूह इस क्षेत्र में आकर बस गया। शतपथ ब्राह्मण में उल्लिखित है कि विश्वामित्र के 50 शापित पुत्र क्षेत्र में आकर बसे ।
- पौराणिक अनुभूतियों के अनुसार, कारकोट के नागवंशी शासकों के इक्ष्वाकु नरेश मांधाता ने अपने पुत्र पुरुकुत्स को नागों की सहायता हेतु भेजा। इस युद्ध में गन्धर्व पराजित हुए। नाग शासक ने अपनी पुत्री रेवा का विवाह पुरुकुत्स से कर दिया। पुरुकुत्स ने रेवा का नाम नर्मदा कर दिया। इसी वंश के मुचकुन्द ने परियात्र तथा वृक्ष पर्वतमालाओं के मध्य नर्मदा नदी के किनारे पर अपने पूर्वज मांधाता के नाम पर एक नगरी स्थापित की, जिसे 'मांधाता नगरी' ( वर्तमान खंडवा जिला) कहा गया।
- यादव वंश के हैहय शासकों के काल में इस क्षेत्र के वैभव में काफी वृद्धि हुई। उन्होंने नागों तथा इक्ष्वाकुओं को पराजित किया। इनके पुत्र द्वारा कौरवों को पराजित किया गया।
- कार्तवीर्य अर्जुन इस वंश के प्रतापी शासक थे। गुर्जर देश के भार्गवों द्वारा हैहय पराजित हुए। इनकी शाखाओं में दश्मर्ण (विदिशा), त्रिपुरी, तुन्दीकेरे (दमोह), अवन्ति अनूप (निमाड़ ) जनपदों की स्थापना हुई।
महाकाव्य काल में मध्य प्रदेश
- रामायण काल के समय प्राचीन मध्य प्रदेश के अंतर्गत महाकांतार तथा दण्डकारण्य के घने वन थे। राम ने अपने वनवास का कुछ समय दण्डकारण्य (अब छत्तीसगढ़) में व्यतीत किया था।
- राम के पुत्र कुश, जो कि दक्षिण कोशल के राजा थे, जबकि शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुघाती ने दशार्ण (विदिशा ) पर शासन किया। विंध्य, सतपुड़ा के अतिरिक्त यमुना के काठे का दक्षिण भू-भाग तथा गुर्जर प्रदेश के क्षेत्र इसी घेरे में थे। पुरातत्वविदों के अनुसार, यहां की सभ्यता 2.5 लाख वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। लोग भी निवास करते थे। पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त नर्मदा घाटी से प्राप्त औजार इस बात का संकेत देते हैं कि निश्चित ही यह घाटी उस समय सभ्यता का केंद्र रही होगी।
- महाभारत के युद्ध में इस क्षेत्र के राजाओं द्वारा भी योगदान दिया गया। इस युद्ध में काशी, वत्स, दर्शाण, चेदि तथा मत्स्य जनपदों के राजाओं ने पाण्डवों का साथ दिया। इसके अतिरिक्त महिष्मति के नील, अवन्ति के बिन्द, अंधक, भोज, विदर्भ तथा निषाद के राजाओं ने कौरवों का पक्ष लिया।
- पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के काल में कुछ समय (सोहागपुर), यहां के जंगलों में व्यतीत किया था। विराटपुरी (स उज्जयिनी (उज्जैन), महिष्मती (महेश्वर), कुन्तलपुर (कौंडिया) इत्यादि महाकाव्य काल के प्रमुख नगर थे।
महाजनपद काल में मध्य प्रदेश
- छठवीं शताब्दी ई.पू. में अगुंतर निकाय तथा भगवती सूत्र में 16 जनपदों का उल्लेख मिलता है। इनमें से चेदी तथा अवन्ति जनपद मध्य प्रदेश के अंग थे। अवन्ति जनपद अत्यंत ही विशाल था।
- यह मध्य तथा पश्चिमी मालवा के क्षेत्र में बसा हुआ था। इसके दो भाग थे- उत्तरी तथा दक्षिणी अवन्ति। उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जयनी तथा दक्षिण अवन्ति की राजधानी महिष्मती थी। इन दोनों के मध्य नेत्रावती नदी बहती थी।
- पाली ग्रंथों के अनुसार, बौद्ध काल में अवन्ति की राजधानी उज्जयनी थी। यहां का राजा प्रद्योत था। प्रद्योत के समय संपूर्ण मालवा तथा पूर्व एवं दक्षिण के कुछ प्रदेश अवन्ति राज्य के अधीन हो गए।
- कालान्तर में मगध के हर्यक कुल के अन्तिम शासक नागदशक के काल में उसके अमात्य शिशुनाग द्वारा अवन्ति राज्य पर आक्रमण किया तथा प्रद्योत वंश के अन्तिम शासक नन्दिवर्धन को पराजित किया।
- अवन्ति राज्य को मगध में मिला लिया गया। चेदि जन् आधुनिक बुंदेलखंड के पूर्वी भाग तथा उसके समीपस्थ भू-खंड में फैला हुआ था।
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