MP Environment Ecology Fact ।मध्य प्रदेश पर्यावरण एवं पारिस्थिकी महत्वपूर्ण तथ्य
MP Environment Ecology Fact मध्य प्रदेश पर्यावरण एवं पारिस्थिकी महत्वपूर्ण तथ्य
मध्य प्रदेश पर्यावरण एवं पारिस्थिकी महत्वपूर्ण तथ्य
- प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना का आरंभ 1973 में हुआ था, जिसका उद्देश्य बाघों का सर्वांगीण रूप से संरक्षण करना था। अब इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार कर दिया गया है।
- मध्य प्रदेश में 11 राष्ट्रीय उद्यान एवं 28 अभयारण्य हैं, जिसमें 6 टाइगर रिजर्व, 2 खरमौर अभयारण्य, 2 सोन चिड़िया अभयारण्य, 3 घड़ियाल ( एवं अन्य जलजीव) अभयारण्य हैं तथा 2 राष्ट्रीय उद्यान जीवाश्म संरक्षण हेतु स्थापित किए गए हैं, इसके अलावा चार अभयारण्य प्रस्तावित हैं।
- देश में सबसे अधिक राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य मध्य प्रदेश में हैं।
- वन्य प्राणी संरक्षण के लिए कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में प्रशिक्षण की व्यवस्था है।
- विश्व का पहला गौ-अभयारण्य प्रदेश के आगर-मालवा जिले के सनेर क्षेत्र में स्थापित किया गया है।
- सबसे छोटा अभयारण्य रालामंडल इंदौर (2345 वर्ग किमी) है।
- सरदारपुर (धार) तथा सैलाना (रतलाम) खरमौर पक्षी के संरक्षण के लिए है।
- करेरा (शिवपुरी) तथा घाटीगांव (ग्वालियर) अभयारण्य में लुप्तप्राय: सोन चिड़िया का संरक्षण किया जाता है।
- चम्बल (मुरैना), केन (छतरपुर), सोन (शहडोल, सीधी) अभयारण्य में घड़ियाल पाए जाते हैं।
- पालपुर कूनो ( श्योपुर) अभयारण्य व गिरी उद्यान (गुजरात) से एशियाई शेरों (बब्बर) को स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है।
- राज्य के राष्ट्रीय उद्यानों में सर्वाधिक संख्या में पाया जाने वाला जीव चीतल है।
- केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पचमढ़ी को देश का 10वां तथा मध्य प्रदेश का पहला बायोस्फियर रिजर्व क्षेत्र घोषित किया गया।
- अचानकमार तथा पन्ना को क्रमश: दूसरा एवं तीसरा जैव मंडल आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया।
- प्रदेश का पहला जीवाश्म उद्यान डिंडोरी तथा मंडला में स्थित है।
- प्रदेश का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान कान्हा किसली है।
- प्रदेश के 6 राष्ट्रीय उद्यानों यथा-कान्हा किसली, पेंच, पन्ना, बांधवगढ़, सतपुड़ा तथा संजय राष्ट्रीय उद्यान में प्रोजेक्ट टाइगर योजना लागू है तथा एक अभयारण्य रातापानी को 2012 में टाइगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है।
- सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान, डिंडोरी है।
- बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान सफेद शेरों के लिए प्रसिद्ध है।
- पन्ना स्थित अभयारण्य जंगली भैंसा हेतु प्रस्तावित है।
- प्रदेश का एकमात्र सर्प उद्यान भोपाल में है।
- प्रदेश में प्रोजेक्ट एलीफेंट व प्रोजेक्ट हंगल भी चल रहे हैं।
- मध्य प्रदेश में अभी भी लगभग 40 प्रतिशत वन्य राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्यों से बाहर हैं।
- दुर्लभ प्रजाति का ब्रेडरी बारहसिंगा प्रदेश के एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान कान्हा - किसली में पाया जाता है। मध्य प्रदेश का बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान सर्वाधिक घनत्व (शेरों की दृष्टि से) वाला उद्यान है। यहां पर प्रत्येक 8 कि.मी. पर एक शेर पाया जाता है, जो देश में सर्वाधिक है।
- मध्य प्रदेश में देश की कुल टाइगर संख्या के लगभग 22 प्रतिशत टाइगर पाए जाते हैं, जो देश में सर्वाधिक है।
- मध्य प्रदेश का रीवा जिला प्रदेश का एकमात्र ऐसा जिला है, जहां पर सफेद शेर पाए जाते हैं।
- माधव राष्ट्रीय उद्यान में एक पहाड़ी के शिखर पर जार्ज कैसल' नामक एक भवन बना हुआ है।
- मध्य प्रदेश के पेंच राष्ट्रीय उद्यान में कृष्ण मृगों की संख्या सर्वाधिक है।
- मध्य प्रदेश का पेंच राष्ट्रीय उद्यान अब इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है।
- भोपाल का वन विहार राष्ट्रीय उद्यान एक अनोखा राष्ट्रीय उद्यान है, जिसे आधुनिक चिड़ियाघर के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।
- रीवा जिले में टाइगर सफारी का निर्माण किया जा रहा है।
- रामसर समझौते के अनुसार, देश की आर्द्रभूमियों में से एक मध्य प्रदेश का भोज स्थल (32 वर्ग कि.मी.) भोपाल में है।
- सर्वाधिक बांस वृक्ष मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
- वनपाल और वन रक्षक प्रशिक्षण के 3 विद्यालय अमरकंटक, शिवपुरी और लखनादौन में है।
- सोन चिड़िया माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी में पाई जाती है।
- 1 नवम्बर, 1981 को बारहसिंगा को राज्य पशु घोषित किया गया था।
- इमारती लकड़ी सर्वाधिक जबलपुर वन वृत्त से प्राप्त होती है।
- पचमढ़ी (2009) तथा अचानकमार (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़) (2012) जीव मंडल आरक्षित क्षेत्र को यूनेस्को के विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्राप्त है।
पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) :
- पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) मध्य प्रदेश सोसायटी पंजीयन एक्ट, 1973 के अंतर्गत पंजीकृत संस्था है। संगठन ने अपना कार्य 5 जून 1981 को आरंभ किया है।
टाइगर फाउंडेशन सोसायटी :
- वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत् 1997 से प्रदेश के सभी टाइगर प्रोजेक्टस में टाइगर फाउंडेशन सोसायटी की स्थापना की गई है। इगर प्रोजेक्ट के अंतर्गत लाए गए उद्यानों की संख्या 6 है-कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, पेंच, पन्ना, सतपुड़ा तथा संजय राष्ट्रीय उद्यान ।
- प्राकृतिक संसाधनों का सर्वे और अन्वेषण देश के पौध संसाधनों की अन्वेषण और आर्थिक महत्व की पौध प्रजातियों की पहचान भारतीय वनस्पति सर्वे करता है। इसकी स्थापना 16 फरवरी, 1890 को हुई थी।
- भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (जेड. एस. आई.) देश के लिए उस तरह के सर्वेक्षण, खोज और अनुसंधान में संलग्न है, जिससे देश की समृद्ध जन्तु विविधता के ज्ञान में वृद्धि हो ।
- वर्ष 1916 में स्थापित जेड. एस. आई. का मुख्यालय कोलकाता में है और देश के विभिन्न भागों में इसके 16 क्षेत्रीय केंद्र हैं।
भारतीय वन सर्वेक्षण (एफ. एस. आई.)
- भारतीय प्राणी विज्ञान ने हाल ही के वर्षों में अपने सर्वेक्षणों और अध्ययन को पांच प्रमुख कार्यक्रमों में समन्वित कर अपनी कार्ययोजना को पुनर्गठित किया है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफ. एस. आई.) पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाला ऐसा संगठन है, जो देश के वन क्षेत्रों और वन संसाधनों से संबंधित सूचना एवं आंकड़े एकत्र करता है। इसके अलावा प्रशिक्षण, अनुसंधान और विस्तारण का कार्य भी यह संगठन करता है। इसकी स्थापना 1 जून, 1981 को की गई थी। इसका मुख्यालय देहरादून में और चार क्षेत्रीय कार्यालय शिमला, कोलकाता, नागपुर और बंगलौर में हैं।
इमारती लकड़ी संगठन (आई.टी.टी.ओ.)
- भारत अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय इमारती लकड़ी संगठन (आई.टी.टी.ओ.) का उत्पादक सदस्य है, जिसकी स्थापना 1983 में अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय इमारती लकड़ी समझौते के तहत की गई थी। इस समय आई. टी.टी.ओ. में 59 सदस्य हैं, जिनमें 35 उत्पादक और 28 उपभोक्ता सदस्य देश हैं।
जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र
- जैवमंडलीय आरक्षित क्षेत्र स्थलीय और तटीय पारिस्थितिकी प्रणाली में आनुवंशिक विविधता बनाए रखने वाले बहुउद्देशीय क्षेत्र हैं।
- अब तक 14 जैव मंडलीय आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए जा चुके हैं। ये आरक्षित क्षेत्र हैं- नीलगिरि, नंदादेवी, नोकरेक, ग्रेट निकोबार, मन्नार की खाड़ी, मानस, सुंदरवन, सिमलीपाल, डिब्रू, दैखोवा, देहंग देबंग, पचमढ़ी, कंचनजंगा और अगस्त्यमलइ और अचानकमार-अमरकंटक।
- 14 जैव मंडलीय आरक्षित क्षेत्रों में से 4 को यूनेस्को जैव मंडलीय आरक्षित क्षेत्र के विश्व नेटवर्क पर मान्यता प्रदान की गई है। ये चार क्षेत्र हैं- नीलगिरि, सुंदरवन, मन्नार की खाड़ी और उत्तराखंड का जैव मंडलीय आरक्षित क्षेत्र नंदादेवी। शेष जैव मंडलीय आरक्षित क्षेत्रों को विश्व नेटवर्क में शामिल करने के प्रयास जारी हैं।
- जैव मंडलीय आरक्षित प्रमुख क्षेत्रों का संरक्षण वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, भारतीय वन अधिनियम, 1927 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत जारी रहेगा।
आर्द्रभूमि
- आर्द्रभूमि वह भूक्षेत्र है, जो शुष्क और जलीय इलाके से लेकर कटिबंधीय मानसूनी इलाके में फैला है और यह वह क्षेत्र होता है, जहां उथले पानी की सतह से भूमि ढकी रहती है।
- पर्यावरण मंत्रालय 1987 से कच्छ वनस्पति संरक्षण कार्यक्रम चला रहा है।
- भारत में कच्छ वनस्पतियां विश्व का लगभग पांच प्रतिशत हैं और ये तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 4500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई हैं। भारत में कच्छ वनस्पतियों के कुल क्षेत्र का आधे से थोड़ा-सा कम पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में है। भारत में विश्व की कुछ सर्वश्रेष्ठ कच्छ वनस्पतियां हैं। मंत्रालय ने ओडिशा में राष्ट्रीय कच्छ वनस्पति आनुवंशिक संसाधन केंद्र स्थापित किया है।
- कच्छ वनस्पतियों और प्रवाल भित्तियों की राष्ट्रीय समिति ने चार क्षेत्रों अंडमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप, कच्छ की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी में प्रवाल भित्तियों के गहन संरक्षण और प्रबंधन की सिफारिश की है।
- भारतीय प्रवाल भित्ति क्षेत्र लगभग 2,375 वर्ग किलोमीटर है। कठोर और नरम प्रवाल भित्ति के संबंध में बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय ने राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति अनुसंधान केंद्र अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर में स्थापित किया है।
- जैविक विविधता संबंधी अंतर्राष्ट्रीय संधि (सी.बी.डी.) पहला समझौता है, जिसमें सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया है। सी.बी.डी. के 184 देश सदस्य हैं, यह आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
- वनों और वन जीवन क्षेत्र के कामकाज की समीक्षा के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 7 फरवरी, 2003 को राष्ट्रीय वन आयोग का गठन किया। इस आयोग का कार्यकाल 31 मार्च, 2006 तक बढ़ाया गया।
- भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी. एन. कृपाल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय वन आयोग का गठन किया। राष्ट्रीय वन्यजीवन कार्य योजना, वन्यजीवन संरक्षण के लिए कार्यनीति और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। पहली वन्यजीवन कार्ययोजना 1983 को संशोधित करके अब नई वन्यजीवन कार्ययोजना (2002-2016) स्वीकृत की गई है।
- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में 2006 में संशोधन कर उसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया गया। अधिसूचना के बाद नवंबर 2006 में प्राधिकरण की पहली बैठक हुई थी।
- फरवरी 1992 में हाथी परियोजना भी शुरू की गई। राज्य सरकारों द्वारा 28 हाथी अभयारण्य अधिसूचित किए गए और ओडिशा में वैतरणी और दक्षिण ओडिशा और उत्तर प्रदेश में गंगा यमुना के लिए स्वीकृति प्रदान की गई।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में 1992 में संशोधन कर देश में चिड़ियाघर के प्रबंधन पर निगरानी के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण स्थापित किया गया है।
- प्राणी कल्याण विभाग जुलाई 2002 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का अंग बना।
- फरीदाबाद, बल्लभगढ़ में राष्ट्रीय प्राणी कल्याण संस्थान की स्थापना की गई। यह संस्थान पशुओं के कल्याण और पशु रोग विज्ञान के लिए प्रशिक्षण और जानकारी देता है।
- पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रक्रिया को वैधानिक बनाने के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन को विकास की 32 श्रेणियों के लिए आवश्यक बना दिया गया।
- पारदर्शिता सुनिश्चित करने, वनों की स्थिति और पर्यावरणीय संबंधी मंजूरी के लिए फरवरी, 1999 में http://enfor.nic.in नामक एक वेबसाइट शुरू की गई ।
- मंत्रालय ने 6 क्षेत्रीय कार्यालय ( शिलांग, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, बंगलौर, लखनऊ और भोपाल में) भी स्थापित किए हैं।
- पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत अप्रैल 1993 में जारी एक गजट अधिसूचना के जरिए जल ( प्रदूषण नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम, 1974 या वायु ( प्रदूषण नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम, 1981 या दोनों के तहत मंजूरी और खतरनाक अपशिष्ट ( प्रबंधन व निर्वाह) नियम, 1989 के तहत प्रदूषण उत्पन्न करने वाली लाइसेंस की इच्छुक इकाइयों के लिए पर्यावरण संबंधी वक्तव्य पेश करना अनिवार्य बना दिया गया।
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम एन. ए. एम. पी. के अंतर्गत चार वायु प्रदूषकों के रूप में, सल्फर डाई-ऑक्साइड (So2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO,), स्थगित विविक्त पदार्थ (संसपेंडिड पार्टिकुलेट मैटर-एसपीएम) और अंतःश्वसनीय स्थगित विविक्त पदार्थ (रिस्पाइरेवल संस्पेंडिड पार्टिकुलर मैटर) के रूप में सभी स्थानों पर नियमित निगरानी के लिए पहचान की गई है।
- इसके अलावा अंतःश्वसनीय सीमा व अन्य विषैले पदार्थ और बहुचक्रीय गंधीय हाइड्रोकार्बन पर निगरानी रखी जा रही है।
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