मध्य प्रदेश कला एवं संस्कृति -मध्यप्रदेश के लोक नाट्य |MP Ke Lok Natya
मध्य प्रदेश कला एवं संस्कृति -मध्यप्रदेश के लोक नाट्य
मध्यप्रदेश के लोक नाट्य
माच -मालवा अंचल का प्रमुख लोकनाट्य है।
राई स्वांग-स्वांग का शाब्दिक अर्थ है- 'अभिनय'। यह जन्म एवं उत्सव के समय किया जाने वाला प्रमुख नाट्य है।
पंडवानी -शहडोल, अनूपपुर, बालाघाट में देखने को मिलता है।
काठी -निमाड़ अंचल में प्रचलित है। यह देवउठनी ग्यारस को होता है तथा एक माह चलता है।
बुन्देलखंडी स्वांग -
छाहुर - यह बघेलखंड में तेली, अहीर, कुम्हार जाति द्वारा दीपावली से गोपाष्टमी तक पुरुषों द्वारा स्त्रियों की भूमिका के रूप में किया जाता है।
ढोला मारू की कथा - यह लोक नाट्य मध्य प्रदेश के राजस्थान सीमा क्षेत्र में प्रचलित है।
मध्य प्रदेश के जनजातीय लोक नृत्य
गुदमाबाजा - दुलिया जनजाति - लोकवाद्य यंत्र हैं।
गरबा
डाण्डिया - निमाड़ के बन्जारे - दशहरा के अवसर पर होने वाला
नृत्य।
बिनाकी - भोपाल के कृषक - बन्जारों के डाण्डिया नृत्य के समान।
दादर - बुन्देलखण्ड - उत्सव-सम्बन्धी नृत्य।
सुआ
(बैगा) - मैकाल पर्वत - लावण्य के लिए प्रसिद्ध समूह में
महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
करमा - मण्डला - वर्षा ऋतु के प्रारम्भ तथा समाप्ति पर किया जाने वाला
नृत्य।
गोंडी - गोंड - फसल/बीज बोते समय सामूहिक नृत्य।
गोचों - गोंड - वर्षा हेतु आनुष्ठनिक नृत्य।
रीना - गोंड - दीपावली के तुरन्त बाद होने वाला स्त्री नृत्य।
गेंडी -गोंड - पाँवों में गेंडिया फंसाकर किया जाने वाला नृत्य।
रागिनी - ग्वालियर - यहाँ की सभी जाति व जनजातियों द्वारा।
खम्ब
स्वांग - कोरकू - दीपावली के पश्चात् मेघनाद स्तम्भ के पास
इसी की स्मृति में।
भड़म और
सैलम नृत्य - भारिया - विवाह के अवसर पर।
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