मध्यप्रदेश के मंदिर एवं तीर्थस्थल। MP Ke Mandir evam TirthSthal

मध्यप्रदेश के मंदिर एवं तीर्थस्थल (MP Ke Mandir evam TirthSthal)

मध्यप्रदेश के मंदिर एवं तीर्थस्थल। MP Ke Mandir evam TirthSthal


 

मध्यप्रदेश के मंदिर एवं तीर्थस्थल

अमरकंटक तीर्थस्थल 

  • अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ़ तहसील के दक्षिण-पूर्वी भाग में मैकाल की पहाड़ियों में स्थित अमरकंटक को भारत का एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। महाकवि कालिदास की कविताओं में भी अमरकंटक का वर्णन मिलता है। 
  • अमरकंटक से दो नदियों, नर्मदा व सोन का उद्गम हुआ है। 
  • पवित्र नदी नर्मदा के उद्गम स्थल नर्मदा कुण्ड तीर्थ यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। अमरकंटक में कुल (नवीन व प्राचीन) 24 मंदिर हैं, जिसमें से अधिकांश 10वीं व 11वीं शताब्दी में कलचुरि वंश के शासकों द्वारा बनवाए गए हैं। 
  • यहां के दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं- नर्मदा कुण्ड, नर्मदा माई का मंदिर, कपिलधारा प्रपात, दुग्धधारा प्रपात, सोन मुढ़ा, माई की बगिया, माई का हाथी आदि।
अमरकंटक तीर्थस्थल


 

चित्रकूट तीर्थस्थल 

  • झांसी-माणिकपुर रेल मार्ग पर करबी रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूर उत्तर प्रदेश में मध्य प्रदेश की सीमा पर मंदाकिनी नदी के किनारे चित्रकूट स्थित है। जनश्रुतियों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने यहीं बाल अवतार लिया था। वनवास के दौरान भगवान राम ने यहां महर्षि अत्रि और सती अनुसूइया का अतिथि बनकर प्रवास किया था तथा भरत को अपनी चरण पादुका सौंपी थी। 
  • महर्षि वाल्मीकि यहां रहे थे, जबकि महाकवि तुलसीदास आत्मिक शांति के लिए यहां आए थे। अकबर के नवरत्नों में से एक अब्दुर्र रहीम खान-ए-खाना ने जहांगीर के क्रोध के कारण यहीं शरण ली थी। 
  • यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- सती अनुसूइया का आश्रम, महर्षि अत्रि का आश्रम, रामघाट के समीप पर्णकुटी, जानकी कुण्ड, भरत कूप, हनुमान धारा, कामदगिरि, राघव प्रयाग, कैलाश घाट, राम घाट, घृतकल्प घाट आदि।

 

मध्यप्रदेश के मंदिर एवं तीर्थस्थल। MP Ke Mandir evam TirthSthal

सांची बौद्ध तीर्थस्थल

 

  • रायसेन जिले में स्थित सांची विश्वविद्यालय बौद्ध तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। सांची में तीन स्तूप हैं, जिसमें सबसे बड़ा स्तूप 36.5 मीटर व्यास का है और इसकी ऊंचाई 16.4 मीटर है। इस सबसे बड़े स्तूप के तोरण द्वार पर बुद्ध के जीवन की झलकियां उत्कीर्ण हैं। अन्य दो स्तूप अपेक्षाकृत नवीन हैं। 
  • इन स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के पश्चात ईसा से तीन शताब्दी पूर्व कराया था। सांची एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां बौद्धकालीन शिल्पकला के सभी नमूने विद्यमान हैं। यहां के स्तूप, चैत्य और विहार सभी बौद्ध कला के सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
सांची बौद्ध तीर्थस्थल


मुक्तागिरि जैन तीर्थस्थल

  • बैतूल जिले में स्थित मुक्तागिरि में जैनियों का पवित्र तीर्थस्थल है, जहां चट्टानों के अन्दर बने कुछ मंदिरों सहित कुल 52 मंदिर हैं। यहां एक छोटा सा जलप्रपात भी है।

नोहटा तीर्थस्थल

  • 12वीं शताब्दी में चंदेल राजाओं की राजधानी रहे नोहटा बीना-कटनी रेलमार्ग पर दमोह से 21 कि.मी. दूर स्थित है। गुरइया और बेरमा नदियों के संगम पर बसा यह नगर प्राचीन शिव मंदिर और जैन मंदिरों के अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है।

 

उज्जैन धार्मिक तीर्थस्थल 

  • क्षिप्रा नदी के तट पर बसा उज्जैन एक प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है। यहां अनेक मंदिर हैं, जिनमें महाकाल अथवा महाकालेश्वर का मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। यह एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो देश में शंकर भगवान के 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है।
  • जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वारा 1733 ई. में निर्मित प्रसिद्ध जन्तर-मन्तर (वेधशाला) उज्जैन के दक्षिण में स्थित है। 
  • उज्जैन के बड़ा बाजार के मध्य भाग में एक प्रसिद्ध गोपालजी का मंदिर है, जिसका निर्माण 1853 ई. में कराया गया था। 
  • भगवान श्रीकृष्ण व उनके बड़े भाई बलराम तथा मित्र सुदामा के गुरु संदीपन का आश्रम भी उज्जैन में है। संदीपन आश्रम से 3 कि.मी. आगे मंगलनाथ का मंदिर है, जहां प्रथम बार हिन्दुओं ने भूगोल को समझा था और भौगोलिक ज्ञान प्राप्त किया था। यहां से 11 कि.मी. दूर भर्तृहरि की गुफाएं हैं। 
  • प्राचीन भारत में सात पवित्र पुरियों में से एक उज्जैन का संदर्भ वेद, पुराण, रामायण और महाभारत सभी कालों में मिलता है। भगवान शंकर ने त्रिपुर नामक राक्षस का वध उज्जैन में ही किया था। 
  • मौर्य काल में सम्राट अशोक के वायसराय की राजधानी रहे उज्जैन में प्रत्येक 12 वर्ष बाद कुम्भ का मेला लगता है। विद्वान, कलाप्रिय और प्रताप सम्राट तथा विक्रमादित्य के समय उज्जैन का नाम अवन्ती था। विक्रम संवत चलाने वाले सम्राट विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में महाकवि कालिदास भी शामिल थे।

 

उज्जैन धार्मिक तीर्थस्थल

ओंकारेश्वर तीर्थस्थल 

  • इंदौर से 77 कि.मी. और खंडवा से 78 कि.मी. दूर नर्मदा नदी के तट पर ओंकारेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह मध्यकालीन ब्राह्मण शैली में बना ओंकार-मांधाता का सुंदर मंदिर है, जो देश के सुप्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ओंकारेश्वर के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- सिद्धनाथ मंदिर, गौरी सोमनाथ मंदिर और शंकराचार्य की गुफाएं आदि।

 

ओंकारेश्वर तीर्थस्थल

महेश्वर तीर्थस्थल

  • इंदौर से 90 कि.मी. दूर नर्मदा नदी के तट पर स्थित महेश्वर का प्राचीन नाम महिष्मति था, जो हैहय वंश की राजधानी थी। मान्यता है कि हैहय वंश के पराक्रमी राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने एक बार नर्मदा के वेग को महेश्वर में रोकने का प्रयास किया था, लेकिन नर्मदा सहस्त्र धाराओं में फैलकर आगे बढ़ गई। महान योद्धा परशुराम ने कार्तवीर्य को पराजित किया था। 
  • हालांकि अवंति के उत्कर्ष के साथ हैहय नगरी महिष्मति का पतन होने लगा, लेकिन 19वीं शताब्दी में महारानी अहिल्याबाई ने महेश्वर ( प्राचीन नाम-महिष्मति) को अपनी राजधानी बनाकर यहां सुन्दर किला और मनोहर घाट बनवाए । महेश्वर के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- अहिल्या घाट, पेशवा घाट, होल्कर परिवार की छत्रियां इत्यादि । महेश्वर रेशमी साड़ियों के निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध है।

 

महेश्वर तीर्थस्थल

बावनगजा जैन तीर्थ स्थल 

  • इंदौर से 128 कि.मी. दूर व बड़वानी से मात्र 10 कि.मी. दूर स्थित बावनगजा पहाड़ियों में स्थित प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल है, जहां 15वीं शताब्दी की 72 फीट ऊंची आकर्षक जैन मूर्ति स्थापित है। मान्यता है कि बावनगजा से रावण के भाई कुम्भकर्ण और पुत्र इंद्रजीत ने मोक्ष की प्राप्ति की थी, जबकि रावण की पत्नी महारानी मंदोदरी ने यहां आर्यिका दीक्षा ली थी।

गोम्मटगिरि जैन तीर्थ स्थल

  • इंदौर से पश्चिम की ओर एक पहाड़ी पर स्थित तीर्थ गोम्मटगिरि में जैन भगवान बाहुबली की 27 फीट ऊंची खड्गासन प्रतिमा है। यह स्थान जैन धर्म के साथ-साथ अन्य धर्म के लोगों को भी पर्यटन के लिए आकर्षित करता है।

सोनागिरि -जैन सिद्ध क्षेत्र

  • दतिया एवं डबरा के मध्य स्थित सोनागिरि रेलवे स्टेशन से 4.5 कि.मी. की दूरी पर पहाड़ी के ऊपर 108 शिखरयुक्त मंदिर हैं। इस पहाड़ी को स्वर्णगिरि या श्रमणगिरि कहते हैं, जबकि यह सुंदर एवं मनोरम पर्वत श्रृंग दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कहलाता है। यहां स्थित कुछ मंदिर मध्यकालीन देवालय कला के प्रतीक हैं, जबकि कुछ बुंदेला स्थापत्य कला के उदाहरण हैं।
  •  यहां एक चक्की जैसे आकार वाला 'चक्कीवाला मंदिर' है, जो मेरू की रचना है और ऋषभदेव या आदिनाथ के निवास स्थान का प्रतीक है। मान्यता है कि महावीर स्वामी के निर्वाण के लगभग 200 वर्ष बाद चन्द्रगुप्त मार्य के समय मगध में अकाल पड़ने के कारण जैन साधुओं ने यहां प्रवास किया था। 
  • दतिया के राजा परीक्षित के शासन काल में यहां के मंदिरों का जीर्णोद्धार किए जाने का शिलालेख चंद्रप्रभु की मूर्ति के बगल में उत्कीर्ण है। सोनागिरि में चैत्र मास में रथयात्रा का मेला लगता है।

 

मक्सी जैन सम्प्रदाय तीर्थस्थल

 

  • इंदौर से आगरा की ओर 68 कि.मी. की दूरी पर स्थित मक्सी क्षेत्र भगवान पार्श्वनाथ की सातिशय एवं चमत्कारी मनोज्ञ प्रतिमा के कारण अतिशय क्षेत्र कहलाता है। मान्यता है कि 14वीं शताब्दी में पार्श्वनाथ की यह मूर्ति भूगर्भ से प्रकट हुई थी। यहां स्थित मूल मंदिर दिगम्बर जैन सम्प्रदाय का है, जिसमें भगवान पार्श्वनाथ की 5 फुट ऊंची एक मनोज्ञ पद्मासन मूर्ति स्थापित है।

 

पावागिरि (ऊन ) 

  • इंदौर से खरगौन की ओर 160 कि.मी. दूर चेलना नदी के तट पर एक सुरम्य पहाड़ी पर पावागिरि स्थित है। मान्यता है कि सुवर्ण भद्र सहित चार मुनिराज एवं लगभग साढ़े तीन करोड़ मुनि यहां से मोक्ष को प्राप्त हुए । इसलिए इसे सिद्ध क्षेत्र माना जाता है। महान मालवराज बल्लाज द्वारा इस क्षेत्र में 1938 के आसपास 99 मंदिरों का निर्माण कराने के कारण इसका नाम ऊन पड़ा।

 

विदिशा

 

  • भोपाल से 54 कि.मी. दूर स्थित विदिशा का प्राचीन काल में नाम महामालिस्तान या मेवसा था। यहां पर प्राचीन बौद्ध, जैन व हिन्दू धर्मों के केंद्र हैं। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित बौद्ध मंदिर एवं बौद्ध विहार हैं। 
  • यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- उदयगिरि स्थित हिन्दू व जैन धर्मों की प्रतीक 20 गुफाएं, महावराह की विशाल प्रतिमा, पुरातत्व स्मारक, बीजा-मंडल, बेतवा तट पर रामघाट व चरण तीर्थ, बौद्ध तीर्थ ग्यारसपुर, प्राचीन विजयादेवी मंदिर, मालादेवी मंदिर, नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, एक पीर मजार, लुहांगी पर प्राचीन देवी मंदिर, एक अज्ञात पुरास्तम्भ आदि।

 

सिद्धवर 

  • इंदौर-खंडवा राजमार्ग पर स्थित सिद्धवर एक सिद्ध क्षेत्र है, जो प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ ओंकारेश्वर के समीप है। यहां रेखा नदी और नर्मदा नदी बहती है।

सोहागपुर 

  • शहडोल से 3 कि.मी. दूर स्थित सोहागपुर में एक हैहयकालीन शिव मंदिर है। विराटेश्वर शिव को समर्पित इस मंदिर में खजुराहो की चित्रकला की छाप स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।

 

खजुराहो

  • छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो में चंदेल राजाओं ने 950-1050 ई. के मध्य भव्य मंदिरों का निर्माण कराया, जो हिन्दू स्थापत्य कला एवं शिल्प कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। 
  • खजुराहो में दूर-दूर तक फैले इन मंदिरों की संख्या आरंभ में 85 थी, लेकिन अब मात्र 25 मंदिर शेष रह गए हैं। यहां के मंदिरों में मैथुन एवं रति क्रीड़ाएं अत्यंत सजीव एवं निष्कपट ढंग से प्रदर्शित की गई हैं। 
  • यहां के मंदिरों को तीन समूहों में बांटा गया है 
छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो में चंदेल राजाओं ने 950-1050 ई. के मध्य भव्य मंदिरों का निर्माण कराया, जो हिन्दू स्थापत्य कला एवं शिल्प कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।


( क ) पश्चिमी समूह के मंदिर: 

  • 64 योगिनी मंदिर, कंदरिया महादेव मंदिर, देवी जगदम्बा मंदिर, लाल गुफा महादेव मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर मंतगेश्वर मंदिर, विश्वनाथ मंदिरपार्वती मंदिर, वराह मंदिर, लक्ष्मण मंदिर व नंदी मंदिर। 

(ख) पूर्वी समूह मंदिर: 

  • ब्रह्मा मंदिर, वामन एवं जावरी मंदिर, धनतेई मंदिर, आदिनाथ एवं पार्श्वनाथ के जैन मंदिर। 

(ग) पश्चिमी समूह मंदिर: 

  • शिव व विष्णु के प्रतीक क्रमशः दूलह देव मंदिर तथा चतुर्भुज मंदिर।

 

पशुपतिनाथ मंदिर 

  • राजगढ़ जिले की ब्यावरा तहसील में गिरोंद हाट ग्राम के समीप विंध्याचल पर्वत की 500 मीटर लम्बी व 150 मीटर चौड़ी घुरैल की पहाड़ियों में 1982 में बिड़ला मंदिर में पशुपतिनाथ महादेव की सवा पांच फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। 
  • पशुपतिनाथ के अतिरिक्त इस मंदिर में पार्वती, गणपति, कार्तिकेय और नंदी की चार छोटी प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। इन पांचों प्रतिमाओं में से पार्वती की प्रतिमा नाखूनी रंग के पत्थर से निर्मित है, जबकि पशुपतिनाथ सहित अन्य चार प्रतिमाएं काले महसाना मकराना पत्थर से निर्मित हैं।

 

भोरमदेव का मंदिर 

  • रायपुर जबलपुर सड़क मार्ग पर कवर्धा से 18 कि.मी. दूर स्थित भोरमदेव का प्राचीन मंदिर इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। अगाध शांति के केंद्र इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा रामचन्द्र ने कराया था।


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श्री नवग्रह मंदिर 

  • मध्य प्रदेश के खरगोन में कुंदा नदी के तट पर स्थित श्री नवग्रह मंदिर का सम्पूर्ण भारत में एक अलग महत्व है। 
  • भारत के इस एकमात्र सूर्य नवग्रह मंदिर की स्थापना वर्तमान पुजारी के आदि पूर्वज श्री शेषाप्पा सुखावधानी वेरागकर ने लगभग 600 वर्ष पहले की थी। 
  • हां माता बगलामुखी देवी स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह के मध्य में पीताम्बरा ग्रह शांति पीठ व सूर्य नारायण मंदिर हैं तथा परिक्रमा स्थलों व अन्य ग्रहों के दर्शन होते हैं। यहां नवग्रहों की शांति के लिए माता पीताम्बरा की पूजा-अर्चना व आराधना की जाती है।
  • नवग्रह देवता को नगर देवता व नगर स्वामी के रूप में पूजे जाने के कारण खरगौन को नवग्रह की नगरी कहते हैं। 
  • इस ऐतिहासिक मंदिर के नाम से प्रतिवर्ष नवग्रह मेला लगता है और मेले के अंतिम गुरुवार को नवग्रह महाराज की पालकी यात्रा निकाली जाती है। ऐसा समझा जाता है कि इस मंदिर के तीन शिखर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के प्रतीक हैं। मंदिर में प्रवेश करने वाली सात सीढ़ियां, सात वारों (रविवार से शनिवार) की प्रतीक हैं। 
  • गर्भगृह में उतरने की 12 सीढ़ियां 12 राशियों (मेष से मीन) की प्रतीक हैं। गर्भगृह से वापस ऊपर बढ़ने की 12 सीढ़ियां 12 महीनों (चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष पौष, माघ और फाल्गुन) की प्रतीक हैं।

 

बालाजी

 

  • दतिया से पूर्व में 17 कि.मी. दूर स्थित उन्नाव में जगतीतल को प्रकाश प्रदान करने वाले मारीचिमाली भगवान भास्कर का विशाल मंदिर है। यह स्थान अति प्राचीन काल से बालाजी के नाम से प्रसिद्ध है। 
  • भगवान भास्कर के रथाकार का यह विशाल मंदिर पहुज (पुष्पावती) नदी के तट पर है। झांसी के पेशवा के सर्वेक्षण द्वारा इस मंदिर के विस्तार की योजना तैयार की गई थी, किन्तु दतिया के बुंदेला शासक महाराज इंद्रजीत के हस्तक्षेप के कारण इसका निर्माण कार्य अधूरा रह गया। बाद में दतिया के महाराज भवानी सिंह ने मंदिर तथा यहां के बाजार का निर्माण कराया।
  • इस मंदिर में सूर्य की प्रतिमा के स्थान पर सूर्य यंत्र स्थापित है। 'दतिया दर्शन' नामक पुस्तक में लिखा है कि काशी नरेश ने मरुत के यज्ञ में इस सूर्य यंत्र में सूर्य भगवान की प्रतिष्ठा कराई थी। मान्यता है कि ऐसा दूसरा सूर्य यंत्र पेरू में है। 
  • बालाजी के सूर्य यंत्र को शंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठापित करना कहा जाता है, लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। मान्यता है कि अंशुमाली बालाजी भगवान भास्कर पर अंजलि अर्पण करने से समस्त चर्म रोगों का नाश हो जाता है।

 

पीताम्बरा पीठ 

  • दतिया स्थित पीताम्बरा पीठ मध्यकालीन पूज्यपाद स्वामी जी महाराज द्वारा स्थापित एक पूर्व जाग्रत शक्ति पीठ है, जहां यंत्र शक्ति से उन असाध्य रोगों का निदान हुआ है, जिन्हें विशेषज्ञ चिकित्सकों ने इलाज से परे बताया था। 
  • स्वामी जी द्वारा सर्वप्रथम यहां भगवती पीताम्बरा माता की स्थापना करने के कारण इसे पीताम्बरा पीठ कहा जाता है। भगवती पीताम्बरा विषयक साहित्य 'बगलामुखी रहस्यम' नामक ग्रंथ में स्वामी जी द्वारा प्रकाशित कराया गया।
  • चीन द्वारा भारत पर आक्रमण किए जाने के समय पीताम्बरा पीठ में सम्पन्न हुए राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान के अवसर पर पंचकुंडीय यज्ञशाला का निर्माण हुआ। इसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जैसे तत्वों के आधार पर पांच कुण्डों का निर्माण किया गया। पीठ पर महाकाल भैरव की स्थापना स्वामी जी की प्रेरणा से हुई। 
  • राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान में भगवती धूमावती का आह्वान किया गया था, जबकि भगवती धूमावती की पीठ की स्थापना 1978 में की गई। यहां षडाम्नाय शिव की भी 1980 में स्थापना की गई, जो देश में कहीं और स्थापित नहीं है। 
  • यहां की दर्शनीय प्रतिमाओं में सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अधीर, ईशान तथा नीलकंठ आदि प्रमुख हैं। इस पीठ के प्रमुख पर्व दोनों नवरात्र तथा गुरु पूर्णिमा एवं महानिर्वाण आदि हैं।

 

मांडू दर्शनीय स्थल

 

  • धार जिले में स्थित मांडू अनेक हिंदू एवं मुस्लिम शासकों की कार्यस्थली रहा है। यहां के खंडहर मालवा के अन्तिम सुल्तान बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रणय गाथा की याद दिलाते हैं। बाज बहादुर ने रूपमती के लिए यहां रूपमती महल बनवाया था। मांडू के किले का निर्माण होशंगशाह ने कराया था। यहां के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं जहाज महल, रूपमती महल, हिण्डोला महल, रानी रूपमती का झरोखा चम्पा बावड़ी, अशर्फी महल, होशंगशाह का मकबरा, जामा मस्जिद, नीलकंठ मंदिर, रेचा कुण्ड, हाथी महल, लोहानी गुफा आदि ।
मांडू दर्शनीय स्थल


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