मध्य प्रदेश का मध्य कालीन इतिहास । MP Medieval History in Hindi
मध्य प्रदेश का मध्य कालीन इतिहास
मध्य प्रदेश का मध्य कालीन इतिहास MP Medieval History
दिल्ली सल्तनत काल : 1206 से 1526 ई.
- मध्य प्रदेश में 10वीं शताब्दी में ही आक्रमण शुरू हो गए थे। दिल्ली सल्तनत के शासक ऐबक ने बुन्देलखंड को जीत लिया। ऐबक की मृत्यु के पश्चात् प्रतिहारों ने ग्वालियर पर, चंदेलों ने कालिंजर तथा अजयगढ़ पर अधिकार कर लिया था। 1231 ई. इल्तुतमिश द्वारा ग्वालियर के किले को जीत लिया था।
- 1233-34 में इल्तुतमिश ने कालिंजर पर विजय प्राप्त की। 1234-35 ई. में इल्तुतमिश ने मालवा पर आक्रमण किया तथा भिलाना व उज्जैन से काफी मात्रा में धन लूटा। 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मुल्तान के सूबेदार आइल-उल-मुल्क को मालवा पर आक्रमण के लिए भेजा। इसके बाद उसने उज्जैन, धारानगरी व चंदेरी इत्यादि को भी जीता। यहां से प्रथम बार मालवा का दिल्ली सल्तनत में प्रवेश हुआ।
- 1401 ई. में दिलावर खां की मृत्यु के पश्चात् मालवा का शासक हुसैनशाह बना, जिसे गुजरात के शासक मुजफ्फरशाह द्वारा मालवा पर आक्रमण के फलस्वरूप कैद कर लिया गया। मालवा के विद्रोह होने पर मुजफ्फरपुर ने हुसैनशाह को भेजा। इन्होंने मांडू को अपनी राजधानी बनाया।
मुगल काल और मध्य प्रदेश
- बाबर ने 29 जनवरी, 1528 ई. को मालवा के सूबेदार मेदनीराय को पराजित कर चंदेरी पर अपना अधिकार बनाया।
- बाबर के पश्चात् मुगल शासक हुमायूं ने संपूर्ण मालवा को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
- कन्नौज के विलग्राम के युद्ध में शेरशाह ने मुगल सम्राट हुमायूं को पराजित कर उसके राज्य के मांडू, उज्जैन, सारंगपुर इत्यादि क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। उसने 1545 ई. में बुन्देलखंड के कालिंजर किले पर आक्रमण किया, जिसमें बारूद फटने से शेरशाह की मृत्यु हो गई। यह किला कीरत सिंह के कब्जे में था।
- मुगल सम्राट अकबर ने अधम खां को 1561 ई. में मालवा पर आक्रमण हेतु भेजा। अधम खां ने बाज बहादुर को परास्त कर मालवा पर अधिकार कर लिया। अकबर ने रानी दुर्गावती के गोंडवाना प्रदेश पर आसफ खां को भेजा। इसमें मुगल सेना की विजय हुई।
- अकबर द्वारा 1579 ई. में कालिंजर के जिले पर अपना अधिकार लिया। अकबर ने 1601 ई. में असीरगढ़ के किले पर अपना अधिकार जमाया। औरंगजेब के काल में मालवा तथा बुन्देलखंड में विद्रोह हुए। ओरछा के राजा चंपत राव ने भी औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया। हालांकि इसके पुत्र छत्रसाल ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् वह बुंदेलखंड का स्वतंत्र शासक बनाया गया।
मराठा साम्राज्य और मध्य प्रदेश
- मराठों के उत्कर्ष और ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के साथ मध्य प्रदेश में इतिहास का नया युग प्रारंभ हुआ। पेशवा बाजीराव ने उत्तर भारत की योजना का प्रारंभ किया। विध्यप्रदेश में चंपत राय ने औरंगजेब की प्रतिक्रियावादी नीतियों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया था।
- चंपतराय के पुत्र छत्रपाल ने इसे आगे बढ़ाया। उन्होंने विंध्यप्रदेश तथा उत्तरी - मध्य भारत व कई क्षेत्र व महाकौशल के सागर आदि जीत लिए थे। मुगल सूबेदार बंगश से टक्कर होने पर उन्होंने पेशवा बाजीराव को सहायतार्थ बुलाया व फिर दोनों ने मिलकर बंगश को पराजित किया।
- इस युद्ध में बंगश को स्त्री का वेश धारण कर भागना पड़ा था। बाद में छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव को अपना तृतीय पुत्र मानकर सागर, दमोह, जबलपुर, शाहगढ़, खिमलासा और गुना, ग्वालियर के क्षेत्र प्रदान किए। पेशवा ने सागर, दमोह में 1 गोविंद खेर को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। उसने बालाजी गोविंद को अपना कार्यकारी बनाया। जबलपुर में बीसा जी । गोविंद की नियुक्ति की गई।
- गढ़ मंडला में गोंड राजा नरहरि शाह का राज्य था। मराठों के साथ संघर्ष में आबा साहब मोरी व बापूजी नारायण ने उसे हटाया। कालांतर में पेशवा ने रघुजी भोंसले को इधर का क्षेत्र दे दिया। भोंसले के पास पहले से नागरपुर का क्षेत्र था। यह व्यवस्था अधिक समय तक नहीं टिक सकी। अंग्रेज सारे देश में अपना प्रभाव बढ़ाने में लगे हुए थे।
- मराठों के आंतरिक कलह से उन्हें हस्तक्षेप का अवसर मिला। सन् 1818 में पेशवा को हराकर उन्होंने जबलपुर सागर । क्षेत्र रघुजी भोंसले से छीन लिया। सन् 1817 में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने नागपुर के उत्तराधिकार के मामले में हस्तक्षेप किया और अप्पा साहब को हराकर नागपुर एवं नर्मदा के ऊपर का सारा क्षेत्र मराठों से छीन लिया।
- उनके द्वारा इसमें निजाम का बरार क्षेत्र भी शामिल किया गया। सहायक संधि के बहाने बरार को वे पहले ही हथिया चुके थे। इस प्रकार अंग्रेजों ने मध्य प्रांत व बरार - को मिला-जुला प्रांत बनाया। महाराज छत्रसाल की मृत्यु के बाद विंध्य प्रदेश, पन्ना, रीवा, बिजावर, जयगढ़, नागौद आदि छोटी-छोटी रियासतों में बंट गया।
- अंग्रेजों ने उन्हें कमजोर करने के लिए आपस में लड़ाया और संधियां कीं। अलग-अलग संधियों के माध्यम से इन रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य के संरक्षण में ले लिया गया। सन् 1722-23 में पेशवा बाजीराव ने मालवा पर हमला कर लूटा था।
- राजा गिरधर बहादुर नागर उस समय मालवा का सूबेदार था। उसने मराठों के आक्रमण का सामना किया। जयपुर नरेश सवाई जयसिंह मराठों के पक्ष में थे। पेशवा के भाई चिमनाजी अप्पा ने गिरधर बहादुर और उसके भाई दयाबहादुर के विरुद्ध मालवा में कई अभियान किए।
- सारंगपुर के युद्ध में मराठों ने गिरधर बहादुर को हराया। मालवा का क्षेत्र उदासी पवार और मल्हार राव होल्कर के बीच बंट गया। बुरहानपुर से लेकर ग्वालियर तक का भाग पेशवा ने सरदार सिंधिया को प्रदान किया।
- इसके साथ ही सिंधिया ने उज्जैन, मंदसौर तक का क्षेत्र अपने अधीन किया। सन् 1731 में अंतिम रूप से मालवा मराठों के तीन प्रमुख सरदारों पवार (धार एवं देवास), होल्कर ( पश्चिम निमाड़ से रामपुर-भानपुरा तक) और सिंधिया बुरहानपुर, खंडवा, टिमरनी, हरदा, उज्जैन, मंदसौर व ग्वालियर) के अधीन हो गया।
- भोपाल पर भी मराठों की नजर थी। हैदराबाद के निजाम ने मराठों को रोकने की योजना बनाई, लेकिन पेशवा बाजीराव ने शीघ्रता की और भोपाल जा पहुंचा तथा सीहोर, होशंगाबाद का क्षेत्र उसने अपने अधीन कर लिया। सन् 1737 में भोपाल के युद्ध में उसने निजाम को हराया। युद्ध के उपरांत दोनों की संधि हुई। निजाम ने नर्मदा- चम्बल क्षेत्र के बीच के सारे क्षेत्र पर मराठों का आधिपत्य मान लिया।
- रायसेन में मराठों ने एक मजबूत किले का निर्माण किया। मराठों के प्रभाव के बाद एक अफगान सरदार दोस्त मोहम्मद खां ने भोपाल में स्वतंत्र नवाबी की स्थापना की। बाद में बेगमों का शासन आने पर उन्होंने अंग्रेजों से संधि की और भोपाल अंग्रेजों के संरक्षण में चला गया।
- अंग्रेजों ने मराठों के साथ पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे युद्ध में क्रमश: पेशवा, होल्कर, सिंधिया और भोंसले को परास्त किया। पेशवा बाजीराव द्वितीय के काल में मराठा संघ में फूट पड़ी और अंग्रेजों ने उसका लाभ उठाया।
- अंग्रेजों ने सिंधिया से पूर्वी निमाड़ और हरदा - टिमरनी छीन लिया और मध्य प्रांत में मिला लिया। अंग्रेजों ने होल्कर को भी सीमित कर दिया और मध्य भारत में छोटे-छोटे राजाओं को, जो मराठों के अधीनस्थ सामंत थे राजा मान लिया।
- मध्य भारत में सेंट्रल इंडिया एजेंसी स्थापित की गई। मालवा कई रियासतों में बंट गया। इन रियासतों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु महू, नीमच, आगरा, बैरागढ़ आदि में सैनिक छावनियां स्थापित की गई।
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