मध्यप्रदेश में पाये जाने वाले प्रमुख खनिज संसाधन । MP Mineral Resources GK

 मध्यप्रदेश में पाये जाने वाले प्रमुख खनिज संसाधन  ( MP Mineral Resources GK )

मध्यप्रदेश में पाये जाने वाले प्रमुख खनिज संसाधन । MP Mineral Resources GK



मध्यप्रदेश में पाये जाने वाले प्रमुख खनिज संसाधन

 

  • खनिज संसाधनों की दृष्टि से मध्य प्रदेश देश का एक समृद्ध प्रांत है। यहां वर्तमान में 20 प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। इन खनिज पदार्थों में हीरा उत्पादन में प्रदेश को एकाधिकार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त देश में तांबा, चूना पत्थर, मैंगनीज और पायरोफिलाइट आदि के उत्पादन में भी मध्य प्रदेश का प्रथम स्थान है। इसके अतिरिक्त प्रदेश को डायस्पोर, रॉकफास्फेट, शैल, फायरक्ले के उत्पादन में द्वितीय तथा चूना पत्थर व ओकर के उत्पादन में तृतीय स्थान प्राप्त है। कोयले के उत्पादन में प्रदेश का स्थान राष्ट्रीय परिदृश्य में चौथा है। 


मध्य प्रदेश में प्राप्त खनिजों का विवरण इस प्रकार हैं: 

मध्य प्रदेश में मैंगनीज

 

  • मध्य प्रदेश मैंगनीज का मुख्य उत्पादक राज्य है। मध्य प्रदेश में देश के कुल भण्डार का 50 प्रतिशत मैंगनीज पाया जाता है। यह दो प्रमुख क्षेत्रों बालाघाट तथा छिंदवाड़ा में पाया जाता है। 
  • मैंगनीज धातु काले रंग की प्राकृतिक भस्म के रूप में धारवाड़ युग की अवसादी शैलों में पाई जाती है। इसके प्रमुख अयस्क साइलोमलीन व ब्रोमाइट हैं। यह ठोस, नरम तथा रवाहीन होता है। ऐसा प्रस्तर, जिसमें लौह और मैंगनीज दोनों ही अधिक होते हैं, मैंगनीज लौह अयस्क कहलाता है। 
  • मध्य प्रदेश में मैंगनीज का सबसे बड़ा भंडार बालाघाट और छिंदवाड़ा में है। मध्य प्रदेश में मैंगनीज का भण्डार 196.2 लाख टन है, जिसमें से बालाघाट में मैंगनीज का कुल संचित भण्डार 181 लाख टन है, जिसमें से 65 लाख टन उत्तम प्रकार के हैं, जो 41.50 प्रतिशत के धात्विक रूप के साथ यहां के 21 क्षेत्रों में बिखरा है, जिनमें तिरोड़ी, रामरमा, केटगमेर, चिकमारा, सिरपुर, बलबुदा, सायोरनी, चांदा डोटा, सोनेगांव, चिबरोघाट नेतरा, बालाघाट, लंगूर, सेकवा, सीतापहाड़, सुकरी, हतोरा, मिरगपुर तथा भरवेरी उल्लेखनीय हैं।
  • इसी तरह से दूसरा प्रमुख मैंगनीज क्षेत्र छिंदवाड़ा है, जहां अनुमानित भण्डार 150 लाख टन है, जो काची थाना, गैमुख, सीतापुर, घोटी, गोवारी व धोना में विस्तृत है। बालाघाट - छिंदवाड़ा का उत्खनन क्षेत्र रेलवे लाइनों द्वारा मुख्य लाइनों से जुड़ा है, जिससे उत्पादन तथा निर्यात में सुविधा होती है। इसके अतिरिक्त झाबुआ के थांदलाकजला, डामरी तथा खरगौन के बड़वाहा नगर के समीप मैंगनीज के निक्षेप मिले हैं। प्रदेश के अन्य मैंगनीज अयस्क प्राप्त होने वाले क्षेत्रों में धार, इंदौर, मंडला, सिवनी, नन्दनिया, अगरवारा आदि प्रमुख हैं। 
  • मैंगनीज की कुल खपत का लगभग 95 प्रतिशत भाग का उपयोग धातु निर्माण में होता है। इसका अधिकांश भाग इस्पात उद्योगों में तथा कुछ भाग अन्य मिश्र धातुओं के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। इस्पात बनाने के लिए लोहे और मैंगनीज धातु का मिश्रण किया जाता है, जिसे 'फैरोमैंगनीज' कहते हैं। अचुम्बकीय प्रकृति, अत्यधिक कठोर व दृढ़ होने के कारण मैगनीज इस्पात का उपयोग खनन, खुदाई के यंत्रों व युद्ध सामग्री बनाने में होता है। एल्युमिनियम के साथ मैंगनीज मिलाकर विद्युत तारों के प्रतिरोधक बनाए जाते तांबे के मिश्रण से टरबाइन ब्लेड्स व मैंगनीज कांसा से जलयानों के प्रोपैलरों का निर्माण किया जाता है। इसकी मिश्रित धातु से वायुयान, मोटरगाड़ी व रेलगाड़ी के डिब्बे एवं हवाई टैंक बनाए जाते हैं। मैंगनीज के कुछ अधात्विक उपयोग भी हैं, जिसमें पोटैशियम परमैंगनेट बनाना, बैटरी निर्माण, कांच बनाना, रासायनिक उद्योग, ऑक्सीजन, क्लोरीन गैस एवं ब्लीचिंग पाउडर बनाना प्रमुख हैं। रंग बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

 

मध्य प्रदेश में बॉक्साइट

 

  • बॉक्साइट एल्युमीनियम का खनिज अयस्क है। अयस्क में जब एल्युमीनियम की मात्रा 40 प्रतिशत से अधिक होती है, तो उसे बॉक्साइट कहते हैं। यह अलौहयुक्त खनिज है। हल्का तथा आसानी से विभिन्न आकारों में परिवर्तित होने के कारण इसका उपयोग उन कार्यों के लिए होता है, जिनमें लोहा अथवा इस्पात उपयोगी नहीं होता। 
  • वायुयान निर्माण उद्योग में इसका उपयोग विशेष रूप से किया जाता है। इसमें मैग्नीशियम तथा तांबे से मिलकर बनी मिश्रित धातु उपयोग में लाई जाती है। इसी प्रकार एल्युमीनियम, मैग्नीशियम मिश्रित धातु से समुद्री जहाज बनाए जाते हैं, क्योंकि इसका कटाव सरलता से नहीं होता। 
  • मध्य प्रदेश में बॉक्साइट का अनुमानित भण्डार 20 से 30 करोड़ टन है। प्रदेश में बॉक्साइट का प्रमुख स्रोत विंध्यन युग के बालुका शैल और क्वार्ट्जाइट हैं। 
  • मध्य प्रदेश के पश्चिमी एवं दक्षिणी जिले बॉक्साइट की दृष्टि से प्रमुख क्षेत्र कहे जा सकते हैं, परन्तु उत्खनन का कार्य जबलपुर, मंडला, शहडोल, सतना तथा रीवा में ही हो रहा है। जबलपुर तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों में बॉक्साइट के बड़े भण्डारों का पता लगा है। यहां के कटनी, टिकरी तथा टिकुरिया में लगभग 5.35 लाख टन के भण्डार हैं। इसी प्रकार सतना के परासमनिया तथा नारोहित में एवं बालाघाट व शहडोल में भी वृहद् स्तर पर निक्षेप प्राप्त हुए हैं। प्रदेश के मंडला जिले में लखेरारिज, चांदी पहाड़, काकड़ा पहाड़, माताटीला में बॉक्साइट के निक्षेप पाए गए हैं। शहडोल में अमरकंटक खपरीपानी, सरहा के दक्षिण की पहाड़ी पौढ़ी, बहेड़ा एवं दिबिकी बनिया में बॉक्साइट के विशाल भण्डार हैं। अमरकंटक में उत्खनित बॉक्साइट रेणुकूट एल्युमीनियम मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के कारखाने को भेजा जाता है। रीवा जिले के बेकर क्षेत्र में उच्च श्रेणी के बॉक्साइट मिलने के अनुमान हैं।

 

मध्य प्रदेश में लौह-अयस्क

 

  • मध्य प्रदेश में लौह-अयस्क के भण्डार पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। छत्तीसगढ़ के पृथक हो जाने के बाद शेष मध्य प्रदेश को लौह-अयस्क के क्षेत्र में काफी हानि उठानी पड़ी है। 
  • मध्य प्रदेश में पाया जाने वाला अधिकांश लौह अयस्क उत्तम श्रेणी का है, जिसमें लोहे की मात्रा 67% तक होती है। संचित भंडारों की दृष्टि से देश में मध्य प्रदेश का स्थान पांचवां है। 
  • मध्य प्रदेश के प्रमुख लौह भण्डार कैम्ब्रियन पूर्व युग की चट्टानों की परतों के रूप में मिलते हैं। जबलपुर में जलज चट्टानों में लौह-अयस्क मिलता है। यह इस जिले के उत्तरी पूर्वी भाग में है, जो क्वार्ट्जइट, शैल तथा क्ले चट्टानों के बीच तहों के रूप में मिलता है। इस जिले का कुल अनुमानित भण्डार 123.88 मिलियन टन है। जबलपुर में पाए जाने वाले ज्यादातर भण्डार 45.60 प्रतिशत शुद्ध लोहे वाले हैं। कनवास, सरोही, जौली, लौराहिल, कुम्मी, गोसलपुर, प्रतापपुर, विजयराघोगढ़ में भी लौह-अयस्क के निक्षेप मिले हैं।

 

  • दक्कन ट्रैप की पहाड़ियों पर लैटेराइट में भी लौह संचय हुआ है। इस तरह के निक्षेप व्यापक रूप में मिलते हैं। बिजावर, ग्वालियर तथा विंध्यन काल के लौह निक्षेप क्वार्ट्जइट तथा शैल चट्टानों में मिलते हैं। इस प्रकार के भण्डार ग्वालियर, इंदौर, झाबुआ, धार तथा उज्जैन में पाए जाते हैं। ग्वालियर में सतोआ पनिहार में 4 लाख टन लौह-अयस्क के भण्डार अनुमानित हैं।

 

मध्य प्रदेश में कोयला 

 

  • मध्य प्रदेश में कोयला का पर्याप्त भंडार है और कोयले के उत्पादन में देश में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य में कोयला का कुल भंडार 19.232 मिलियन टन है। मध्य प्रदेश के कोयला क्षेत्र लोअर गोंडवाला कोयला क्षेत्र के भाग हैं।

 

1. मध्य भारत कोयला क्षेत्र 

इसका विस्तार सीधी शहडोल जिलों में है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्र हैं

 

  • (i) उमरिया क्षेत्र - यह सबसे छोटा क्षेत्र है, जिसका क्षेत्रफल 15.5 वर्ग कि.मी. है। इसमें कोयले की छः तहें मिलती हैं, जिसमें से चार का उत्खनन सम्भव है।

 

  • (ii) कोरार क्षेत्र - इसका क्षेत्रफल 24 वर्ग कि.मी. है। यहां कोयले की चार तहें मिलती हैं, जो 1.2 से 2.4 मीटर तक मोटी हैं।

 

  • (iii) जोहिला नदी क्षेत्र - इसका क्षेत्रफल 39 वर्ग कि.मी. है। यह क्षेत्र कोरार के दक्षिण में वीरसिंहपुर के निकट पड़ता है, जो कटनी-बिलासपुर रेलवे लाइन पर स्थित है। यहां कोयले की 6 मीटर मोटी परतें हैं।

 

  • (iv) सोहागपुर क्षेत्र - यह भूतपूर्व रीवा राज्य का (शहडोल जिला) सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है। इसका क्षेत्रफल 4142 वर्ग कि.मी. है। सोनहट, झिलमिली तथा कोरिया को अलग करके सोहागपुर का क्षेत्र 3.106 वर्ग कि.मी. है। इस क्षेत्र में कोयले की कई तहें हैं, जिनमें प्रथम श्रेणी का कोयला भी शामिल है। बुढार, आमलाई तथा धनपुरी में कोयले की 1.5 मी., 4.6 मी. तथा 6.7 मी. मोटी तहें मिली हैं।

 

  • (v) सिंगरौली क्षेत्र - यह दक्षिण सीधी से दक्षिणी मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) तक 2330 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में विस्तृत है। यहां कोयले की कई तहें मिलती हैं। झिगुरदह तह 102 मीटर मोटी तथा नौनागर 10 मी. से 12.1 मीटर तक मोटी है। इस क्षेत्र में उत्तम श्रेणी का कोयला पाया गया है। यहां के कोयले पर आधारित चार सुपर थर्मल पावर स्टेशन लगाए गए हैं।

 

2. सतपुड़ा कोयला प्रदेश  

यह नर्मदा, कान्हन तथा पेंच नदियों की घाटी में स्थित है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्र आते हैं:

 

(i) मोहपानी - 

  • यहां 0.9-5.4 मीटर तक मोटी चार तहें मिली हैं, यद्यपि यहां का कोयला साधारण प्रकार का है, किन्तु मुंबई- जबलपुर रेलवे लाइन के निकट होने के कारण यहां उत्खनन लाभप्रद और सुविधाजनक है।

 

(ii) शाहपुर - तवा क्षेत्र - 

  • यह बैतूल तथा होशंगाबाद के बीच तवा नदी की घाटी में पड़ता है। पाथाखेड़ा क्षेत्र में तीन तहें 1.2, 1.8 तथा 5.9 मीटर हैं तथा 59137 मीटर की गहराई तक हैं। इस प्रदेश में अन्य छोटी-छोटी खानें सोनादा, गुरमुण्ड, मर्दानपुर, बुलहारा, ब्राह्मणपारा- खापा तथा तान्दसी हैं। तवा कोयला क्षेत्र में ही प्रसारणी नामक स्थान पर ताप विद्युत केंद्र स्थापित किया गया है, जिसे इस क्षेत्र से कोयला प्राप्त होता है।

 

(iii) कान्हन घाटी क्षेत्र -

  • इनमें दमुआ कालिन, छपार घोरावारी, नीमखेरा, पनारा, जिनौरा, दातला जमाई तथा हिंगला देवी क्षेत्र सम्मिलित हैं। प्रारंभ में दमुआ खदान में 2 से 4.5 मीटर मोटी तह से कोयला निकाला जाता था। धोरावारी तह लगभग 4.5 मीटर मोटी है। उसके नीचे क्रमश: 4.5 तथा 3 मीटर मोटी तहें हैं।

 मध्य प्रदेश में हीरा उत्पादन

  • मध्य प्रदेश देश का एकमात्र हीरा उत्पादक राज्य है। भारत में हीरे की प्रसिद्ध खानें कैमूर श्रेणी में पन्ना के चारों ओर स्थित हैं। यहां के विंध्य प्रदेश में हीरे की खदानें दो समान्तर पेटियों में हैं। 
  • उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम में फैली आग्नेय चट्टानों का किम्बरलाइट शैल हीरे का प्रमुख क्षेत्र है। यहां हीरे का कुल अनुमानित भण्डार 1001 हजार कैरेट है। दूसरी पेटी रीवा के पठार पर सकरिया में झंडा (सतना) तक फैली है। 
  • उत्खनन का कार्य 'नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन' द्वारा किया जाता है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों से निजी कंपनियां भी आगे आई हैं। 
  • मध्य प्रदेश में हीरों के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं- सतना जिले में माझगांवा, पन्ना जिले में पन्ना और हीनोता तथा छतरपुर जिले में अंगौर । 
  • पन्ना जिले में भगेन नदी द्वारा निर्मित ढेर में रामखेरिया नामक स्थान पर 12 से 18 मी. की गहराई से हीरे प्राप्त किए जाते हैं। रामखेरिया में हीरे का अनुमानित भंडार 1,15,000 कैरट है।

 

मध्य प्रदेश अभ्रक

 

  • अभ्रक परतदार, हल्का और चमकीला खनिज है। यह पुरानी आग्नेय तथा कायान्तरित शैलों में मिलता है। यह विद्युत का कुचालक है, अत: इसका प्रयोग विद्युत कार्यों में होता है। यह मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, झाबुआ, मंदसौर, नरसिंहपुर, शहडोल, सीधी और टीकमगढ़ जिले में मिलता है। मध्य प्रदेश में अभ्रक ग्वालियर, कड़प्पा शैलों में भी मिलता है।

 

मध्य प्रदेश में चीनी मिट्टी

 

  • यह सफेद राख के रंग की मिट्टी है, जो अत्यधिक सुघट्य तथा उच्च ताप सह है और जलाने पर सिकुड़ती नहीं है। इसका मुख्यतः उपयोग बर्तन बनाने में किया जाता है। मध्य प्रदेश के प्रारम्भिक कारखानों में सिरेमिक तथा रिफ्रेक्टरी वर्क्स, जबलपुर का नाम उल्लेखनीय है, जहां पाइप, कांच के बर्तन, खपरे तथा अम्ल-सह वस्तुओं का निर्माण होता है। 
  • छिंदवाड़ा तथा जबलपुर में गोण्डवाना युग की चट्टानों में उत्तम प्रकार की मिट्टी मिलती है। राजगढ़ की खिलचीपुर तहसील में नेवाज मंदी की घाटी में तथा छिप्पी नदी की घाटी में चीनी मिट्टी पाई गई है। ग्वालियर में नाकुम पहाड़ी, अन्तरी तथा जबलपुर, बैतूल, छतरपुर, सीधी, सतना आदि स्थानों पर भी चीनी मिट्टी पाई जाती है। इनके प्रमुख कारखाने जबलपुर व ग्वालियर में हैं।

 

मध्य प्रदेश में अग्निरोधी मिट्टी

 

  • अधिकतर कोयले की खानों से प्राप्त यह मिट्टी 1600 * फारेनहाइट तक भी नहीं जलती है। इसीलिए इसका उपयोग भट्टियों की ईंट बनाने तथा अन्य उच्च ताप सह वस्तुओं के निर्माण में किया जाता मध्य प्रदेश में गोंडवाना युग की चट्टानों में इसके निक्षेप मिलते हैं, जबलपुर के दुबार तथा पिपरिया नरसिंहपुर के साली चौका, मानेगांव, सोनेरी तथा बधाई एवं छिंदवाड़ा के मुरिया नामक स्थान पर अग्नि मिट्टी पाई जाती है। शहडोल में अमदरी, बरौदी तथा चन्दिया स्टेशन के निकट भी यह मिट्टी मिलती है। इसका उत्खनन जबलपुर, शहडोल तथा पन्ना में हो रहा है।

मध्य प्रदेश में  कोरण्डम 

  • कोरण्डम एल्युमिनियम का प्राकृतिक ऑक्साइड होता है। हीरे के बाद कोरण्डम ही सबसे कठोर खनिज है। इसका उपयोग समतल शीशे व क्वार्ट्ज की सतह घिसने में होता है। मध्य प्रदेश में कोरण्डम पन्ना तथा सीधी जिले के पीपरा एवं परकोटा में पाया जाता है। प्रदेश में इस धातु का लगभग 3 करोड़ टन भण्डार मौजूद है।

 

मध्य प्रदेश में फेलस्पर 

  • फेलस्पार का उपयोग चीनी मिट्टी के बर्तन, तामचीनी की वस्तुएं तथा कांच बनाने में किया जाता है। मध्य प्रदेश में यह खनिज जबलपुर और शहडोल में पाया जाता है। छिंदवाड़ा जिले में बोरगांव तथा बीधीखेरा में भी इसका उत्खनन किया जाता है।

 

मध्य प्रदेश में चूना पत्थर

 

  • मध्य प्रदेश चूना पत्थर का एक प्रमुख उत्पादक है। यहां पाया जाने वाला चूने का पत्थर उत्तम श्रेणी का है, जिसमें 40 से 50 प्रतिशत तक चूने की मात्रा है। मध्य प्रदेश में जबलपुर कटनी, मुड़वारा क्षेत्र में चूना पत्थर के निक्षेप प्राप्त होते हैं। विंध्यन युग की चट्टानें ग्वालियर तथा मुरैना में मिलती हैं, जिनका कैलारस तथा सेमाई में उत्खनन होता है। खरगौन, झाबुआ, धार, सतना, नरसिंहपुर, निमाड़ जिलों में भी चूने का पत्थर पाया जाता है।

 

  • चूना पत्थर के विशाल भण्डार से ही यह प्रदेश सीमेन्ट उद्योग के लिए अनुकूल माना जाता रहा है।

 

मध्य प्रदेश में गेरू

 

  • गेरू के उत्पादन में मध्य प्रदेश भारत का अग्रणी राज्य है। गेरू के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र सतना, रीवा और जबलपुर हैं। पन्ना, सेहावाल, नागोद, कोठी तथा सतना जिले की बेहट खान में गेरू के विशाल भंडार हैं। सेमरिया तथा बरोली में भी उत्तम श्रेणी का पीला तथा लाल गेरू निकाला जाता है। जबलपुर जिले में जौली, झलवारा तथा गोगरा में भी इसकी खानें हैं। शिवपुरी तथा देवास में भी गेरू के संचित भण्डारों की सूचना मिली है।

 

मध्य प्रदेश में सिलिमैनाइट

 

  • विंध्य प्रदेश में कोरण्डम के साथ सिलिमैनाइट सीधी जिले में पीपरा के निकट सतह पर पाया जाता है, जहां लगभग 101.600 टन संचित भण्डार परन्तु केवल सतही उत्खनन से वहां के संचित भण्डार लगभग समाप्त हो गए हैं, जिससे उत्पादन काफी गिर गया है।

 

मध्य प्रदेश में तांबा 

  • अधिकतर आग्नेय और कायान्तरित शैलों से प्राप्त यह अयस्क अत्यधिक लचीला तथा विद्युत का सुचालक होता है, अतः इसका ज्यादातर प्रयोग विद्युत यंत्रों में ही किया जाता है। 
  • मध्य प्रदेश में तांबे का प्रमुख क्षेत्र बालाघाट जिले की बैहर तहसील का 'मलाजखंड' है, जिसमें 29.22 करोड़ टन भण्डार है, यह 170 मील लंबी और 20 मीटर चौड़ी पेटी है। मध्य प्रदेश में तांबा अयस्क का उत्खनन हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि, यह देश की सबसे बड़ी खुली खदान है। 
  • इसके अलावा कटनी के सलीमाबाद क्षेत्र में होशंगाबाद, नरसिंहपुर और सागर जिले में भी तांबा पाया जाता है। सीधी, छतरपुर तथा ग्वालियर जिलों में भी तांबे की एक पेटी मिली है, जिसमें अभी तक उत्खनन योग्य खनिज नहीं मिला है।

मध्य प्रदेश में  एस्बेस्टास

  • यह अग्निरोधी रेशेदार खनिज है, जिसका उपयोग अग्निरोधी वस्त्र बनाने, सेनिटरी पाइप एवं सीमेंट की चादर बनाने में होता है। मध्य प्रदेश में इसका उत्पादन झाबुआ जिले में होता है।

 मध्य प्रदेश में डोलोमाइट 

  • जिन चट्टानों में मैग्नीशियम कार्बोनेट होता है, ऐसे चूने के पत्थर को डोलोमाइट कहते हैं। इसका उपयोग लोहा साफ करने में किया जाता है। मध्य प्रदेश में इसके प्रमुख क्षेत्र जबलपुर, सतना, सीधी, झाबुआ, ग्वालियर और इंदौर हैं।

मध्य प्रदेश में सेलखेड़ी 

  • इसे 'टाल्क और स्टीएटाइट' भी कहा जाता है। इसका उपयोग चूल्हे, बर्तन, प्याले बनाने तथा कच्ची दालों को कीड़ों से बचाने के लिए किया जाता है। सौन्दर्य प्रसाधन में प्रयुक्त पाउडर में भी इसका प्रयोग होता है। प्रमुख रूप से यह नर्मदा घाटी से प्राप्त होती है। जबलपुर में भेड़ाघाट एवं कपौड़ भी प्रमुख प्राप्ति स्थान हैं।

 

मध्य प्रदेश में टंगस्टन

 

  • टंगस्टन प्रमुख रूप से बूलफ्राम नामक खनिज से प्राप्त किया जाता है। यह कठोर, भारी और ऊंचे द्रवणांक (3382 से.ग्रे.) वाली धातु है, जिसका उपयोग इस्पात को काटने, बिजली के बल्ब के फिलामेंट बनाने, एक्स-रे ट्यूब, फ्लोरोसेन्ट, रडार रेडियो, पारा संशोधकों, टेलीविजन यंत्रों आदि में किया जाता है। टंगस्टन खनिज मध्य प्रदेश में होशंगाबाद जिले के 'आगरगांव' नामक स्थान से प्राप्त होता है।

 

मध्य प्रदेश में सीसा

 

  • मध्य प्रदेश में जबलपुर, होशंगाबाद, दतिया, शिवपुरी व झाबुआ जिलों से सीसा प्राप्त होता है।

 

मध्य प्रदेश में संगमरमर

 

  • जबलपुर में भेड़ाघाट तथा गवारीघाट, बैतूल, सिवनी तथा छिंदवाड़ा में आर्कियन युग की चट्टानों में संगमरमर के भण्डार मिले हैं।

 

मध्य प्रदेश के अन्य प्रमुख खनिज

 

1. टिन- 

  • टिन के उत्पादन में राज्य का देश में प्रमुख स्थान है। टिन कैसेटराइट खनिज से प्राप्त होता है। 

2. टंगस्टन- 

  • यह मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के आगरगांव स्थान पर पाया जाता है।

 

3. बेराइट- 

  • राज्य में यह देवास, धार, झाबुआ, नरसिंहपुर, जबलपुर, सीधी, शिवपुरी, टीकमगढ़ एवं रीवा जिलों से प्राप्त होता है।

 

4. रॉक फॉस्फेट- 

  • यह झाबुआ जिले में पाया जाता है, जबकि सागर और छतरपुर जिलों में भी इसके भंडारों का पता चला है।

 

5. ग्रेपगोट-  यह प्रमुख रूप से बैतूल जिले में पाया 

6. सुरमा- यह जबलपुर जिले में पाया जाता है। 

7. ग्रेफाइट - यह मुख्यत: बैतूल जिले में पाया जाता है।

 

मध्यप्रदेश खनिज महत्वपूर्ण जानकारी MP Minerals Fact

 

  • मध्य प्रदेश राज्य खनिज विकास निगम की स्थापना 19 जनवरी, 1962 को की गई थी। इसका मुख्यालय भोपाल में है। 
  • मध्य प्रदेश की प्रथम खनिज नीति की घोषणा 1995 में की गई। 
  • मध्य प्रदेश की नई खनिज नीति वर्ष 2010 में घोषित की गई, जिसके अंतर्गत खनिजों के अन्वेषण एवं दोहन के लिए आधुनिकतम तकनीकी का उपयोग, खनिज उद्योगों में स्थानीय लोगों की भागीदारी तथा पर्यावरण संतुलन आदि को प्राथमिकता देने पर बल दिया गया है। 12 जनवरी, 2015 से खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 में संशोधन कर मुख्य खनिजों के क्षेत्रों को कम्पोजिट लाइसेंस व माइनिंग लीज नीलामी से आवंटित किए जाने का प्रावधान किया गया है। विभाग द्वारा कुछ खनिज ब्लॉक नीलामी हेतु चयनित किए गए हैं। केंद्र सरकार ने 12 जनवरी, 2015 को 31 मुख्य खनिजों को गौण खनिज घोषित किया है। 
  • मध्य प्रदेश से लौह-अयस्क का एक बड़ा भाग विशाखापत्तनम बंदरगाह के माध्यम से जर्मनी एवं जापान को निर्यात होता है। 
  • मध्य प्रदेश से मैंगनीज अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और रूस को निर्यात किया जाता है। 
  • मध्य प्रदेश में हीरे का उत्खनन नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन द्वारा कराया जाता है। 
  • मध्य प्रदेश को खानों से प्राप्त कुछ प्रमुख हीरे कोहिनूर, महान मुगल, पिट तथा ओरलोफ हैं। 
  • बॉक्साइट का मध्य प्रदेश में सर्वप्रथम खनन कटनी में 1908 में शुरू हुआ था। 
  • देश के कुल कोयला भंडार का लगभग 35% मध्य प्रदेश में पाया जाता है। 
  • मैसर्स जियो मैसूस सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लि. द्वारा सीधी में सोना और निकल, कटनी में सोना, शहडोल में सोना - कॉपर और बैतूल में प्लेटिनम- पैलेडियम की खोज की गयी है। 
  • सलीमाबाद, कटनी जिले एवं ग्वालियर में स्टोन पार्क की स्थापना की गयी है। 
  • संचालनालय भौतिकी तथा खनिकर्म का मुख्यालय भोपाल में है। 
  • राज्य शासन द्वारा मध्य प्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 में लागू किया गया है। इसके अंतर्गत 10 लाख रुपए मूल्य टन की 4,898 गौण खनिजों की खदानों को त्रिस्तरीय पंचायतों को सौंपा गया है। 
  • सिंगरौली में कोयले की परत 136 मी. मोटी है, जो विश्व में दूसरे स्थान पर है। 
  • सतना की मझगवां खदानों में प्रत्येक 100 टन चट्टान में 11.7 कैरेट के हीरे मिलते हैं। 
  • सिरेमिक तथा रिफ्रेक्ट्रीज वर्क्स, जबलपुर प्रदेश का चीनी मिट्टी की वस्तुएं बनाने का सबसे प्राचीन कारखाना है। भारत सरकार द्वारा हरगढ़ जिला जबलपुर में खनिज आधारित विशेष आर्थिक प्रक्षेत्र की स्थापना अधिसूचित की गई है।

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