MP Sichai Pariyojna । मध्यप्रदेश में सिचाईं (सिंचाई तंत्र / व्यवस्था)परियोजना

 मध्यप्रदेश में सिचाईं (सिंचाई तंत्र / व्यवस्था)परियोजना 

MP Sichai Pariyojna । मध्यप्रदेश में सिचाईं (सिंचाई तंत्र / व्यवस्था)परियोजना



MP Sichai Pariyojna (मध्यप्रदेश में सिचाईं (सिंचाई तंत्र / व्यवस्था)परियोजना) 

 

  • मध्य प्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 75-125 सेंमी. होती है। प्रत्येक वर्ष वर्षा के एकरूप न होने से यहां कृषि को काफी नुकसान पहुंचता है। वर्षा काल में परिवर्तन भी सूखे की स्थिति ला देता है। 
  • सिंचाई धरातल के जल तथा भूमिगत जल से की जाती है। धरातल का जल नदियों, नहरों और तालाबों से प्राप्त होता है तथा भूमिगत जल कुंओं तथा नलकूपों द्वारा उपलब्ध होता है। 
  • मध्य प्रदेश में सिंचाई के प्रमुख तीन साधन हैं- 1. नहरें 2. तालाब 3. कुएं।


मध्य प्रदेश की नहरें ( Major Canals of MP) 

 

  • मध्य प्रदेश के सिंचित प्रदेश का अधिकतर हिस्सा नहरों के अंतर्गत है। 
  • प्रदेश में नहरों द्वारा 26.7 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई होती है।
  •  मध्य प्रदेश में चम्बल घाटी में अधिकतर सिंचाई नहरों द्वारा होती है। चम्बल घाटी के ग्वालियर, भिण्ड व मुरैना जिलों में एवं बुन्देलखंड के टीकमगढ़ और छतरपुर जिलों में अधिकतर सिंचाई नहरों द्वारा होती है। 


मध्य प्रदेश की मुख्य नहरें निम्नलिखित हैं:

 

बरना सिंचाई नहर

 

  • बरना नर्मदा नदी की एक सहायक नदी है। इस नदी की कुल लम्बाई 96 कि.मी. है। नर्मदा से मिलने के पूर्व यह 1.6 कि.मी. लम्बे एक पतले खड्ड से गुजरती है। इसी स्थान पर बांध बनाया गया है। 
  • इस नदी का अपवाह क्षेत्र अधिकतर पहाड़ों और वनों से ढंका है। इस क्षेत्र में पालक माटी ताल के निकट बांध बनाकर सिंचाई की जाती है। इसमें 85 वर्ग कि.मी. क्षेत्र का जल इकट्ठा होता है। 
  • बांध के जल का फैलाव 70 वर्ग कि.मी. है, जिसकी मात्रा लगभग 40 करोड़ 70 लाख घन मीटर है। इसके दाईं और बाईं ओर दो नहरें निकाली गई हैं, जिनसे लगभग 66400 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।

 

वेनगंगा नहर 

  • यह नहर वेनगंगा नदी से निकाली गई है। यह नहर लगभग 45 कि.मी. लम्बी है और इसकी शाखाएं 35 कि.मी. लम्बी हैं। इसके द्वारा मध्य प्रदेश के बालाघाट और महाराष्ट्र के भण्डारा जिले में लगभग 4 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।

 

 हलाली सिंचाई नहर

 

  • बेतवा घाटी विकास योजना के अन्तर्गत मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में कार्यान्वित की जाने वाली हलाली सिंचाई परियोजना 1968 में पूरी हुई।
  •  इससे लगभग 73 हजार एकड़ क्षेत्र में सिंचाई होती है। परियोजना के अन्तर्गत हलाली नदी पर दीवानगंज स्टेशन से लगभग 15 कि.मी. दूर खोआ ग्राम के पास संकरी घाटी में 603 मीटर लम्बा एवं 29 मीटर ऊंचा सीधा ग्रेविटी बांध बनाया गया है। मुख्य नहरों की लम्बाई लगभग 76 कि.मी. है।

 

चम्बल की नहरें 

  • मध्य प्रदेश में चम्बल बांध की नहर मुरैना जिले की श्योपुर तहसील में प्रवेश करती है। इसकी दो शाखाएं हैं। बाईं ओर की शाखा अम्बाह 179 कि.मी. लम्बी है। दाहिनी ओर की शाखा मुरैना है। शाखाओं सहित चम्बल की नहरों ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना जिलों में 2.50 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।

 

 तवा बांध की नहरें 

  • तवा बांध परियोजना होशंगाबाद जिले में तवा और धेनवा नदियों के संगम पर 823 मीटर नीचे की ओर बनाई गई है। इसका बांध 1630 मीटर लम्बा है, इससे दो नहरें निकाली गई हैं, जो 197 कि.मी. लम्बी हैं। इससे लगभग 3 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।

 

मध्य प्रदेश में तालाब 

 

  • मध्य प्रदेश में तालाब सिंचाई का प्रमुख साधन है, क्योंकि मध्य प्रदेश की अधिकांश भूमि असमतल है, जिसके कारण सभी जगह नहरों की खुदाई नहीं हो सकती, जबकि तालाब के लिए सिर्फ गड्ढों का होना जरूरी है, इसलिए तालाब प्रदेश की सिंचाई का प्रमुख साधन है। मध्य प्रदेश में अधिकांश तालाबों का निर्माण छोटी-छोटी नदियों पर कच्चे बांध बनाकर किया गया है। इस समय प्रदेश में 3.1 प्रतिशत सिंचाई तालाबों से हो रही है। मध्य प्रदेश के मैदानी भागों में, छोटे-बड़े तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है। बालाघाट तथा सिवनी जिलों में भी अधिकतर सिंचाई तालाबों द्वारा की जाती है।

 

मध्य प्रदेश में सिंचाई के साधन के रूप में कुएं 

  • मध्य प्रदेश में सिंचाई के साधनों के रूप में कुओं का स्थान प्रथम है। 
  • वर्तमान में कुल सिंचाई का 56.4 प्रतिशत भाग कुओं से सिंचित होता है। 
  • कुओं द्वारा सर्वाधिक सिंचाई पश्चिमी मध्य प्रदेश में होती है। 
  • कुएं तैयार करने का कार्य तालाब निर्माण के कार्य से अधिक कठिन है, क्योंकि मिट्टी की परत ज्यादा गहरी नहीं है। कुओं के निर्माण में चट्टानें तोड़नी पड़ती हैं। 
  • कुओं से सिंचाई करने के लिए उन पर विद्युत या डीजल से चलने वाले पम्पों को लगाकर सिंचाई की जाती है।

 

मध्य प्रदेश में वर्षा जल और सिचाई

 

  • एक वर्ष में राज्य के उत्तर एवं पश्चिमी भागों में न्यूनतम 800 मिमी. से पूर्वी भागों में औसत 1600 कि.मी. तक वर्षा होती है। मध्य प्रदेश में सामान्य औसत वर्षा 1132 मिमी. आंकी गई है एवं इसका अधिकतर हिस्सा दक्षिण-पश्चिमी मानसून के द्वारा जून से सितम्बर माह के दौरान प्राप्त होता है।

 

मध्यप्रदेश में  वृहद् योजनाएं

 

  • मध्य प्रदेश में कुल 27 परियोजनाओं में से 12 परियोजनाएं पूर्ण की जा चुकी हैं। 8 परियोजनाएं निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। 7 परियोजनाओं के विस्तार / आधुनिकीकरण का कार्य प्रगति पर है। 

मध्यप्रदेश में  मध्यम सिंचाई योजनाएं 

  • विभाग के अंतर्गत कुल 145 योजनाओं में से 110 योजनाएं पूर्ण की जा चुकी हैं एवं 35 मध्यम परियोजनाएं निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।  

मध्य प्रदेश में  सिंचाई लघु योजनाएं 

  • विभाग के अंतर्गत कुल स्वीकृत 5821 योजनाओं में से 4337 योजनाएं पूर्ण हैं।

 

इंदिरा गांधी नर्मदा सागर परियोजना 

  • इंदिरा सागर परियोजना मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में पुनासा गांव से 10 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यह नर्मदा नदी पर स्थित 1000 मेगावाट की अधिष्ठापित क्षमता वाली एक बहुउद्देशीय परियोजना है। 
  • वर्ष 2004-05 में इस पनबिजली परियोजना को पूरा किया गया और जनवरी 2004 से यहां बिजली उत्पादन शुरू कर दिया गया। इसकी बिजली उत्पादन क्षमता 1980 एमयू है तथा परियोजना की लागत 4533.57 करोड़ रुपए है। इस परियोजना के ठोस भार वाली बांध की लम्बाई 653 मीटर और अधिकतम ऊंचाई ( गहरी नींव के स्तर से ऊपर) 92 मीटर जितनी है। 915 वर्ग कि.मी. पर फैले इस जलाशय की क्षमता 12.2 अरब घन मीटर है, जो पूरे एक वर्ष के लिए भारत के 100 करोड़ लोगों की पानी की घरेलू जरूरत के लिए पर्याप्त है। यह भारत का सबसे बड़ा जलाशय है, जो भाखड़ा जलाशय से 1.25 गुना बड़ा है।

 

ओंकारेश्वर परियोजना

 

  • ओंकारेश्वर परियोजना एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जो मध्य प्रदेश के खंडवा, खरगांव और धार जिले में नर्मदा नदी के दोनों तटों पर बिजली उत्पादन और सिंचाई के अवसर प्रदान करती है। यह परियोजना के 40 किलोमीटर नीचे की ओर स्थित है। 
  • ओंकारेश्वर परियोजना की कुल अधिष्ठापित क्षमता 520 मेगावाट है। परियोजना की सभी 8 इकाइयों ने निर्धारित कार्यक्रम से आगे चलते हुए 2007 से बिजली का निर्माण शुरू कर दिया है। 2224.73 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत के साथ परियोजना की अपेक्षित ऊर्जा उत्पादन क्षमता 1167 एमयू है। प्रस्तावित बांध का कुल जलग्रहण क्षेत्र 64880 वर्ग कि.मी. है, जिसमें 3238 वर्ग कि.मी. इंदिरा सागर परियोजना के तहत है।

 

ऊपरी नर्मदा क्षेत्र में जल विद्युत परियोजना

 

  • नर्मदा नदी अमरकंटक से 1065 मीटर की ऊंचाई से निकलती और होशंगाबाद जिले में 686 कि.मी. लंबे पहाड़ी इलाके से बहती है। अपने मूल से 620 मीटर की दूरी पर नदी अमरकंटक से मंडला जिले में 261 कि.मी. नीचे की ओर उतरती है। 
  • ऊपरी क्षेत्र में कुल 54 मेगावाट की अधिष्ठापित क्षमता वाली तीन पनबिजली परियोजनाओं के बारे में विचार जारी है।

 

महेश्वर परियोजना 

  • महेश्वर परियोजना, मध्य प्रदेश के मंडलेश्वर शहर के निकट, ओंकारेश्वर परियोजना से 40 कि.मी. अनुप्रवाह की दूरी पर नर्मदा नदी पर स्थित है। यहां 400 मेगावाट क्षमता वाले (10 x 40 मेगावाट) विद्युत गृह के निर्माण की परिकल्पना की गई है। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा वैधानिक मंजूरी प्राप्त करने के बाद और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सी.ई.ए.) से तकनीकी आर्थिक मंजूरी के बाद जनवरी, 1994 में राज्य सरकार ने इस परियोजना को निजी क्षेत्र के लिए प्रस्तावित किया और यह काम श्री महेश्वर जल विद्युत निगम लिमिटेड (SMHPCL) को सौंप दिया गया। इस परियोजना का कार्य प्रगति पर है और पूर्णत्व के निकट है।

 

रानी अवंतीबाई सागर परियोजना

  • जबलपुर जिले में बरगी गांव के पास स्थित इस परियोजना द्वारा 1,57,000 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के अनुकूल बनाने की परिकल्पना है। 
  • परियोजना के तहत नर्मदा नदी पर 69.5 मीटर ऊंची और 5360 मीटर लंबी कंपोजिट ग्रेविटी बांध का निर्माण किया गया है। प्रत्येक 45 मेगावाट संस्थापित क्षमता वाली दो इकाइयों के एक रिवर बेड विद्युत गृह और 10 मेगावाट स्थापित क्षमता वाली नहर (बाएं) हेड पावर हाउस का निर्माण किया गया है। 
  • बाएं किनारे पर स्थित 137 कि.मी. लंबा मुख्य नहर, जबलपुर और नरसिंहपुर जिलों में 57,000 हेक्टेयर क्षेत्र पर सिंचाई करेगा। वर्ष 1988 से 90 मेगावाट की स्थापित क्षमता के साथ RBPH में और वर्ष 2006 में CHPH में पूर्ण बिजली उत्पादन शुरू हो गया है। मुख्य नहर का बायां किनारा लगभग पूरा हो चुका है।

 

जोबट (चंद्रशेखर आजाद ) परियोजना 

  • झाबुआ जिले के कुक्षी तहसील में बस्कल गांव के पास हथनी नदी (नर्मदा नदी की एक उपनदी) पर बनी इस परियोजना का काम पूरा हो चुका है और यह धार जिले के 27 आदिवासी गांवों की 9848 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई प्रदान कर रही है।

 

बरगी विमुख परियोजना 

  • जबलपुर जिले के 55,832 हेक्टेयर और कटनी, सतना रीवा (सोन और टोंस द्रोणी) जिलों के 1,89,187 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई के लिए बरगी बांध से 194 कि.मी. लंबाई की दाहिनी तटीय नहर का (नर्मदा द्रोणी) प्रस्ताव है। 
  • इसके तहत नर्मदा का पानी सोन और टोंस द्रोणी में जाना प्रस्तावित है, इसलिए इसे बरगी विमुख परियोजना का नाम दिया गया है। इसका कार्य प्रगति पर है। 

 

अपर नर्मदा परियोजना 

  • नर्मदा नदी के मूल (अमरकंटक) से 77 कि.मी. ऊपरी बहाव के क्षेत्र में रिनातोला गांव के पास इस 'अपर नर्मदा परियोजना' नामक एक प्रमुख सिंचाई परियोजना के तहत 30.64 मीटर ऊंचे और 1776 मीटर लंबी कंपोजिट ग्रेविटी बांध का निर्माण किया गया है। इसके बाएं और दाएं किनारों पर क्रमश: 86.5 कि.मी. और 65.5 कि.मी. लंबाई की नहरों द्वारा डिण्डोरी और अनूपपुर के आदिवासी बहुल जिलों में 18,616 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है।

 हेलॉन परियोजना

  • मंडला के आदिवासी जिले में 11736 हेक्टेयर क्षेत्र पर सिंचाई उपलब्ध कराने के लिए नर्मदा नदी की एक उपनदी हेलॉन पर इस परियोजना की परिकल्पना की गई है। योजना आयोग ने इस परियोजना को मंजूरी दे दी है।

 

ऊपरी बेडा 

  • खरगौन जिले में झिरान्या तहसील के नेमीत गांव के निकट, नर्मदा की एक सहायक नदी बेडा पर इस 'ऊपरी बेड सिंचाई परियोजना' का कार्य प्रगति पर है। परियोजना के तहत 191 मीटर लंबे कंक्रीट बांध के निर्माण और 9900 हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता की परिकल्पना की गई है।

 

लोअर गोई परियोजना

 

  • बड़वानी जिले के बड़वानी तहसील में पचपुला गांव के पास नर्मदा नदी की एक सहायक नदी गोई पर इस 'लोअर गोई परियोजना' का निर्माण कार्य किया गया है। 
  • इस परियोजना के तहत 230.50 मीटर लंबे एक बांध का निर्माण किया गया है और 13,700 हेक्टेयर में सिंचाई होती है। 2011 से नर्मदा घाटी के प्रमुख सिंचाई और पनबिजली परियोजनाओं से 3 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता और 2461 मेगावाट पनबिजली क्षमता का निर्माण किया गया है।

 

उद्योग के लिए जलविद्युत और जल आपूर्ति

 

  • पनबिजली उत्पादन ऊर्जा का सबसे साफ, सस्ता और अक्षय स्रोत है। नर्मदा नदी पर आधारित परियोजनाओं से 3 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता और 2461 मेगावाट पनबिजली क्षमता का निर्माण किया गया है।

 

  • पनबिजली उत्पादन ऊर्जा का सबसे साफ, सस्ता और अक्षय स्रोत है। नर्मदा नदी पर आधारित परियोजनाओं के कारण राज्य की जल विद्युत उत्पादन क्षमता 2300 मेगावाट है। इसके अलावा, एन.टी.पी.सी. और एम.पी.एस.ई.बी. के तापीय विद्युत संयंत्रों के लिए भी पानी की आपूर्ति की जाती है।

 

मध्य प्रदेश की प्रमुख वृहद् परियोजनाएं

 

बाणसागर परियोजना

 

  • बाणसागर परियोजना मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्यों की एक संयुक्त अंतर्राज्यीय वृहद परियोजना है, जिसके शीर्ष कार्य (बांध भू-अर्जन एवं पुनर्वास) तीनों राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से क्रियान्वित किए जा रहे हैं। परियोजना का निर्माण भारत सरकार के त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत केंद्रीय ऋण सहायता से किया गया है। 
  • परियोजना में तीनों सहभागी राज्यों-मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार का वित्तीय सहयोग 2:1:1 के अनुपात में है तथा जलाशय में संचित जल का लाभ भी इसी अनुपात में है। 
  • मध्य प्रदेश राज्य के शहडोल जिले के देवलोंद नामक स्थान पर निर्मित बांध की ऊंचाई 67 मीटर एवं लंबाई 1020 मीटर है। परियोजना में मध्य प्रदेश के रीवा, सीधी, सतना एवं शहडोल जिलों की 2.49 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की, उत्तर प्रदेश के 1500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की तथा बिहार के 310 वर्ग किमी. क्षेत्र में सिंचाई प्रस्तावित है। 
  • परियोजना से 425 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जा रहा है तथा 975 मीट्रिक टन वार्षिक मत्स्य उत्पादन का लक्ष्य है। मत्स्य महासंघ द्वारा वर्ष 2000-2001 से मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है। बाणसागर परियोजना की आधारशिला 14 मई, 1978 को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा रखी गई थी। और 25 सितंबर, 2006 को स्व. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा देश को समर्पित किया गया था।

 

राजीव सागर ( बावनथड़ी) परियोजना 

  • राजीव सागर ( बावनथड़ी) परियोजना जिला बालाघाट में मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र राज्य की एक अंतर्राज्यीय वृहद परियोजना है। बांध का निर्माण कार्य दोनों राज्यों के द्वारा अपने जिलों में वित्तीय सहयोग से किया गया है तथा नहरों के कार्य दोनों राज्यों द्वारा अपने अपने व्यय से किए जाते हैं। 
  • परियोजना से प्रदेश के बालाघाट जिले के 29.412 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचाई हो रही है। परियोजना की लागत राशि रुपए 1407 करोड़ 19 लाख आयी है। यह 31 मीटर ऊँचा और 6 किलोमीटर तथा 420 मीटर लंबाई का बनाया गया है।

 

माही परियोजना 

  • माही परियोजना आदिवासी क्षेत्र के जिला धार एवं झाबुआ में त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया है। 
  • माही नदी मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात से होकर बहती है। इस परियोजना की नींव तत्कालीन वित्तमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा रखी गई थी। मुख्य बांध का निर्माण माही की सहायक नदी पर हुआ है। परियोजना के अंतर्गत मुख्य बांध से झाबुआ जिले की 18530 हेक्टेयर तथा उपबांध से धार जिले की 7900 हेक्टेयर तथा कुल 26430 हेक्टेयर क्षेत्र में वार्षिक सिंचाई हो रही है।

 

सिंध परियोजना

 

  • इस परियोजना को वर्ष 1999-2000 में त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत सम्मिलित किया गया, जिसके अंतर्गत उक्त समस्त कार्य का निर्माण प्रस्तावित है। त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के अंतर्गत 162100 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता निर्मित करना प्रस्तावित है। हरसी उच्च स्तरीय नहर से 74,650 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई प्रस्तावित है। 
  • वर्ष 1975 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री वीरेन्द्र कुमार सकलेचा एवं महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शरद पवार द्वारा इस बांध की परियोजना की आधारशिला रखी गई थी और वर्ष 2012 के मई में इस बांध का कार्य शुरू हो गया। इस परियोजना के अंतर्गत 5 नहर प्रणालियां भी जुड़ी हुई हैं। जुलाई 2017 से परियोजना का कार्य शुरू हो गया है। सिंध परियोजना से ग्वालियर की नगर जलापूर्ति होती है, साथ ही 35200 हेक्टेयर क्षेत्र पर सिंचाई होती है।

 

  • सिंध परियोजना (द्वितीय चरण) अंतर्गत मड़ीखेड़ा में बांध और बिजली घर का लोकार्पण जुलाई 2017 को हो गया है। बाईं तट नहर (दोआब) दाईं तट नहर तथा उकायला नहर प्रणाली एवं हरसी उच्च स्तर नहर निर्माण प्रस्तावित है। परियोजना की वर्तमान अनुमानित लागत रुपए 2033.92 करोड़ है। परियोजना से ग्वालियर, शिवपुरी तथा दतिया जिलों की 1.62 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई प्रस्तावित है। इसके अतिरिक्त परियोजना से 60 मेगावाट विद्युत उत्पादन भी प्रस्तावित है। विद्युत उत्पादन दिनांक 28 जुलाई 2006 से प्रारंभ कर दिया गया।

 

मध्यप्रदेश में सिचाईं महत्वपूर्ण तथ्य

 

  • प्रदेश के पश्चिमी भाग में काली मिट्टी, उत्तरी भाग में जलोढ़ मिट्टी, दक्षिण-पूर्वी भाग में लाल-पीली मिट्टी तथा पचमढ़ी में लैटराइट मिट्टी पाई जाती है। 
  • काली मिट्टी का निर्माण दक्कन ट्रैप की बेसाल्ट नामक आग्नेय चट्टानों के क्षरण से हुआ है। इसे रेगुर मिट्टी भी कहा जाता है। 
  • काली मिट्टी में कैल्शियम, मैग्नीशियम कार्बोनेट, आयरन की अधिकता तथा फास्फोरस, पोटैशियम एवं नाइट्रोजन की कमी होती है। 
  • काली मिट्टी में नमी अवशोषित करने की क्षमता होती है। 
  • जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा अवसादों के निक्षेप से होता है। यह परतों में पाई जाती है। 
  • जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस की कमी होती है। लाल-पीली मिट्टी का निर्माण गोंडवाना चट्टानों के क्षरण से हुआ है। इसमें बालू पत्थर तथा शैल पाई जाती हैं।
  • वर्ष 2014-15 में प्रदेश का शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल 1584 हजार हेक्टेयर है, जो शुद्ध बोए गए क्षेत्रफल का 62% है। प्रदेश में सर्वाधिक सिंचाई ( 66.82%) नलकूप एवं कुओं द्वारा होती है। 
  • राज्य की अधिकतम सिंचाई क्षमता 112.50 लाख हेक्टेयर है। 
  • राज्य का औसत सतही जलप्रवाह 81.5 लाख हेक्टेयर है। 
  • सरदार सरोवर परियोजना गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों की बहुउद्देशीय परियोजना है। 
  • सरदार सरोवर बांध का निर्माण गुजरात के वड़ोदरा जिले के केवड़िया ग्राम में हुआ है। इंदिरा सागर देश में सर्वाधिक क्षमता वाला जलाशय है। 
  • 1953-54 में मध्य प्रदेश व राजस्थान सरकार ने संयुक्त रूप से चम्बल घाटी परियोजना का प्रारंभ किया। 
  • चम्बल घाटी परियोजना व गांधी सागर परियोजना मध्य प्रदेश में है, बाकी दो राजस्थान में हैं। 
  • 2005-06 में 813 करोड़ रुपए खर्च कर लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई सुविधा निर्मित की गयी, जो न केवल प्रदेश के इतिहास में सर्वाधिक है, बल्कि नौवीं पंचवर्षीय योजना की पूरी अवधि में निर्मित सिंचाई क्षमता के बराबर है। 
  • नदियां जोड़ने के देश के पहले महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए केन्द्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच ऐतिहासिक समझौता। 
  • केन और बेतवा नदियां जोड़ी जायेंगी। नदियों को जोड़ने का सपना इंजीनियर भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया ने देखा था, जिसे साकार करने में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मध्य प्रदेश पहला राज्य है जिसने प्रधानमंत्री की उपस्थिति में एम.ओ.यू. साइन किया। 
  • प्रदेश में सिंचाई जल कर की दरों को युक्तिसंगत किया गया है। पहले दरें फसलवार सिंचाई के आधार पर थीं, अब वे पानी के उपयोग के आधार पर तय होती हैं। 
  • सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिए लघु जल विद्युत परियोजना नीति बनाई गई। 
  • 1978 में शुरू हुई बाणसागर परियोजना वर्ष 2006 में पूर्ण। इस परियोजना की 610 करोड़ रुपए से अधिक लागत की नहर प्रणाली का निर्माण वर्ष 2008-09 में पूर्ण होगा। इसकी सिंचाई क्षमता 1.53 लाख हेक्टेयर है। इस परियोजना से बिजली का उत्पादन शुरू । 
  • प्रदेश की पांच वृहद परियोजनाओं का सर्वेक्षण कार्य पूर्ण किया गया है। इनमें ओरछा बहुउद्देशीय परियोजना के अलावा गणेशपुरा पिकअप वियर, बान सुजारा, सिंहपुर बैराज और लोअर कोलार परियोजना शामिल हैं। 

 
मध्य प्रदेश की संयुक्त सिंचाई परियोजनाएं

 

  • चम्बल घाटी परियोजना के अंतर्गत गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर, कोटा बैराज सागर एवं इनकी नहर प्रणालियां- भागीदारी राज्य मध्य प्रदेश व राजस्थान 
  • पेंच परियोजना  -भागीदारी राज्य - मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा व महाराष्ट्र के नागपुर
  • जवाहर सागर बांध परियोजना-भागीदारी राज्य - मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र
  • काली सागर परियोजना -भागीदारी राज्य - मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र
  • बावनथड़ी परियोजना -भागीदारी राज्य - मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र
  • बाण सागर परियोजना -भागीदारी राज्य -  मध्य प्रदेशउत्तर प्रदेश व बिहार
  • रानी लक्ष्मीबाई परियोजना के अंतर्गत राजघाट बाईं तट नहर, दतिया बवाह नहर, राजघाट दाईं तट नहर, सिंहपुर, बैराज, केन बहुउद्देशीय परियोजना, उर्मिल परियोजना, ईव परियोजना, सपनाई परियोजना -भागीदारी राज्य -  मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश
  • ईव परियोजना, सपनाई परियोजना, कुरनाला संयुक्त परियोजना, लोअर संयुक्त परियोजना, लोअर कोलाब संयुक्त परियोजना -भागीदारी राज्य - मध्य प्रदेश व ओड़िशा
  • सरदार सरोवर परियोजना- भागीदारी राज्य -मध्यप्रदेशमहाराष्ट्रगुजरातराजस्थान

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