नवपाषाण एवं ताम्र-पाषाण काल मध्यप्रदेश के संदर्भ में । MP Tampra Pashan Kaal
नवपाषाण एवं ताम्र-पाषाण काल मध्यप्रदेश के संदर्भ में
नवपाषाण एवं ताम्र-पाषाण काल मध्यप्रदेश के संदर्भ में
- मध्यप्रदेश जिस प्रकार प्रागैतिहासिक संस्कृतियों, शैल चित्रकला हेतु समृद्ध है उसी प्रकार कहीं अधिक नवपाषाणिक एवं ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों हेतु विविध एवं समृद्ध है।
- मध्य पाषाण कालीन जमावों में ही इन संस्कृतियों के तत्व प्रदर्शित होने लगते हैं। आदमगढ़ एवं भीमबैठका के उत्खननों में मध्य पाषाण काल से ही मृद्भाण्ड, अस्थि अवशेष, धातु उपकरण अस्थि उपकरण, मनके एवं सिक्के संकेत देते हैं कि प्रागैतिहासिक मानव अपने अन्तिम पड़ाव में आखेटक संग्राहक जीवन यापन प्रवृति के मानव के साथ-साथ कृषक एवं स्थाई रूप से निवासी समाज के संपर्क में आया। चूंकि स्थाई निवास इन गुफाओं एवं शैलाश्रयों में नहीं होता था अतः कुछ अल्प समय के लिये ये शैलाश्रय शरण स्थली बने, जिनके अवशेष हमें उपर्युक्त वर्णित सामग्री के रूप में प्राप्त होते हैं।
- वस्तुत: मध्यप्रदेश, पुरातात्त्विक दृष्टि से अद्भुत प्रदेश है। यहाँ मध्य पाषाणकाल के उपरान्त भी संस्कृतियों के अवशेष विश्व के अन्य देशों की तुलना में उत्कृष्ट पाये गये हैं। मध्य पाषाण कालीन संस्कृति में विविधता के साथ-साथ विकास के अनेक चरण प्रदर्शित होते हैं। मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में मृद्भाण्ड सहित ज्यामितीय उपकरण प्राप्त होते हैं। इस काल में मानव की गतिविधियाँ बहुत बाद तक चलती रहीं एवं इसी बीच ताम्र पाषाणीय संस्कृतियाँ प्रारम्भ हो गईं। जैसे मध्य पाषाणकाल के अन्तिम चरण की तिथि 2000-1500 बी. पी. तक प्राप्त होती है परन्तु इसके पहले ही ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों का प्रारम्भ इस क्षेत्र में दिखता है, जैसे कायथा संस्कृति सम्भवतः इस कारण ही मध्यप्रदेश में नव पाषाण कालीन संस्कृति का विकसित स्वरूप नहीं प्राप्त होता और न किसी उत्खनन में नव पाषाण कालीन संस्कृति के समृद्ध अवशेष मिले हैं ।
नव पाषाण कालीन उपकरण मध्यप्रदेश में
- नव पाषाण कालीन उपकरण मध्यप्रदेश में सागर से प्राप्त हुए हैं। मध्यप्रदेश से संलग्न प्रदेशों से भी नव पाषाण कालीन उपकरण एवं जमाव बहुतायत प्राप्त होते हैं परन्तु मध्यप्रदेश में इस संस्कृति से संबंधित अवशेष कम है।
- अतः नव पाषाणीय क्रांति समृद्धता, स्तरीकरण, क्रमबद्ध विकास की परिकल्पना मध्यप्रदेश में नहीं की गई है। ताम्र पाषाणिक संस्कृति के उपरान्त समृद्ध ऐतिहासिक संस्कृतियाँ भी मध्यप्रदेश में प्राप्त होती हैं।
- अतः प्रागैतिहासिक काल से ऐतिहासिक काल, आधुनिक काल तक अनवरत विकास इस प्रदेश में प्रदर्शित होता है। सतही एवं स्तरीकृत दोनों ही प्रकार के नव पाषाण कालीन पुरास्थल मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड से मिले क्षेत्र से प्राप्त होते हैं। परन्तु मालवा-निमाड़ क्षेत्रों से इस संस्कृति के अवशेष नहीं प्राप्त होते।
- संभवत: इस क्षेत्र में मध्य पाषाण कालीन संस्कृति का बाद तक अनवरत क्रमबद्धता एवं ताम्र पाषाण कालीन संस्कृतियों का पूर्व में विकसित होने के कारण मध्यप्रदेश में समृद्ध नव पाषाण कालीन संस्कृतियों के विकास हेतु स्थान नहीं था।
मध्यप्रदेश में नव पाषाण कालीन पुरास्थल
- मध्यप्रदेश में नव पाषाण कालीन सभी पुरास्थल सतही हैं। सोनघाटी में अभी तक प्राप्त सभी नव पाषाण कालीन पुरावशेष सतह से ही प्राप्त हुए हैं। किसी भी उत्खनन से नव पाषाण कालीन संस्कृति के स्तरीकृत जमाव प्रकाश में नहीं आये। सोनघाटी के अतिरिक्त मध्यप्रदेश के अन्य किसी नदी घाटी से भी इस संस्कृति के अवशेष नहीं प्राप्त हैं। इस संस्कृति से संबंधित पुरास्थल कुछ ही हैं जो सतही हैं एवं नव पाषाण उपकरण के रूप में प्रतिवेदित किये गये हैं। प्रमुख पुरास्थलों में एरण (जिला सागर), कुण्डम, कूड़ा, गढ़ी मोरीला, मुनई, वुरचेंका (जिला जबलपुर), जतकारा, खजुराहो (जिला छतरपुर), दमोह, हटा (जिला दमोह), होशंगाबाद (जिला होशंगाबाद) हैं।
- प्रातिनूतन काल से नूतन काल के प्राकृतिक पर्यावरण के परिपेक्ष्य में तकनीकी विकास के दिग्दर्शन होते हैं। नूतन काल के प्रथम चरण में ऐसी संस्कृतियों के विकास होते हैं जिसमें सामाजिक स्वरूप स्थापित होता है। समाज का गठन होता है एवं मानव एक निश्चित स्थान पर रहकर अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। तकनीकी विकास के कारण मानव प्रगति एवं समाज की सामाजिकता एवं समाज के विभिन्न अंगों का प्रस्फुटन पर्यावरण के परिपेक्ष्य में होते दिखलाई पड़ता है। मध्यप्रदेश में ऐसी संस्कृतियाँ अत्यन्त समृद्ध हैं।
- मध्यप्रदेश के विस्तृत भू-भाग में कई महत्वपूर्ण संस्कृतियों ने जन्म लिया है। इन विभिन्न संस्कृतियों के उत्कृष्ट पुरावशेष इस क्षेत्र से उपलब्ध होते हैं। आखेटक, विचरणशील तथा स्थायी मानव निवास आदि की क्रमबद्धता विभिन्न संस्कृतियों के पुरा प्रमाणों के रूप में देखने को मिलती है। आधुनिक काल में इन युग युगीन- प्राचीन सभ्यताओं को जानने, समझने तथा इनके विकास क्रम के अध्ययन की दृष्टि से भी ये संस्कृतियाँ महत्वपूर्ण है।
- मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में अब भी प्राचीन संस्कृति के तत्व विद्यमान हैं जो अविकसित संस्कृति के अध्ययन में सहायक हैं। इस क्षेत्र की विभिन्न नदियों एवं उनकी उपत्यकाओं तथा सहायक नदियों पर नव पाषाणिक एवं ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों की विशेषताओं की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
- मध्यप्रदेश की ताम्र पाषाणिक संस्कृति की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि कुछ पुरास्थल ऐसी विशेष सामग्री से युक्त हैं जो इस क्षेत्र में ही सीमित हैं। कुछ पुरास्थलों से प्राप्त सामग्री प्रदेश के बाहर भी पायी जाती है एवं भारतीय सांस्कृतिक क्रमबद्धता एवं स्तरीकरण निर्धारित करने में सहायक रही हैं। जैसे- मृदभाण्ड, पाषाण उपकरण, ताम्र उपकरण, मनके, मृण्मयी मूर्तियाँ एवं अनाज आदि पुरासामग्री की समता किसी भी विकसित क्षेत्र की संस्कृतियों से की जा सकती है।
ताम्र पाषाणिक संस्कृति विशेषताएँ निम्नांकित हैं :
1. विशिष्ठ कायथा संस्कृति का प्रसार केवल मध्यप्रदेश के क्षेत्र में ही मिलता है।
2. राजस्थान क्षेत्र की मुख्य ताम्र-पाषाण कालीन संस्कृति अहाड़ के संबद्ध अवशेष मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों से अनेक पुरास्थलों के उत्खनन से स्तरीकृत रूप से प्राप्त हुए हैं।
3. मालवा ताम्र पाषाणिक संस्कृति, जो कि मालवा क्षेत्र में विशिष्ट
समृद्धता के कारण मालवा संस्कृति नामकरण किया गया था, संमृद्ध एवं विकसित रूप में महाराष्ट्र
के इनामगाँव नामक पुरास्थल तक भी स्तरीकृत रूप में विशेष है एवं ताम्र पाषाणिक
संस्कृति से ऐतिहासिक संस्कृति के जोड़ने में सहायक रही है।
4. जोर्वे पात्र परंपरा जो कि महाराष्ट्र की संमृद्ध परंपरा है, उसके अवशेष महाराष्ट्र से लगे हुए क्षेत्रों के उत्खनन से अनेक पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं। नावडाटोली से कुछ पात्र इस संस्कृति से संबंधित प्राप्त होते हैं। मध्यप्रदेश के चिचली में जो नर्मदा घाटी में है, जोर्वे संस्कृति का स्वतंत्र स्तर, मालवा जमाव के ऊपर प्राप्त हुआ है। इस स्तर की तिथि 1100-700 बी.सी. निर्धारित की गई
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