स्वनिम का अर्थ परिभाषा विशेषताएं स्वनिम के भेद (प्रकार) । Phonemic in Hindi
स्वनिम का अर्थ परिभाषा विशेषताएं स्वनिम के भेद (प्रकार) Phonemic in Hindi
स्वनिम' और 'ध्वनिग्राम' किसे कहते हैं
- ध्वनि विज्ञान (स्वन विज्ञान) की जिस शाखा में किसी भाषा विशेष के स्वनिमों (ध्वनिग्रामों) का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है, उसे 'स्वनिम विज्ञान' या 'ध्वनिग्राम विज्ञान' कहते हैं | 'स्वनिम' और 'ध्वनिग्राम' अंग्रेजी के Phonemics शब्द के हिन्दी पर्याय हैं।
- अतः यहाँ 'स्वनिम' शब्द का ही प्रयोग किया गया है क्योंकि फोनोमिक्स के लिए यह अधिकृत पारिभाषिक शब्द है।
- स्वनिम विज्ञान आधुनिक पाश्चात्य भाषाविद् की देन है। सपीर जैसे कुछ भाषाविद् इसे मनोवैज्ञानिक इकाई मानते हैं तो ब्लूम फील्ड और डेनियल जोन्स इसे भौतिक इकाई मानने के पक्ष में हैं। इसी प्रकार स्वनिम विज्ञान को काल्पनिक और बीज गणितीय इकाई मानने वालों का भी अलग वर्ग है।
- वस्तुतः अध्ययन विश्लेषण की प्रकृति के अनुसार स्व विज्ञान को अमूर्त काल्पनिक इकाई ही मानना अधिक तर्कसंगत है। डॉ भोलानाथ तिवारी की यही तर्क है कि भाषा में सहस्वन का ही प्रयोग होता है स्वनिम का नहीं। स्वनिम तो सहस्वनों के वर्ग या परिवार का प्रतिनिधि मात्र है। अतः वास्तविक सत्ता सहस्वनों की होती है, स्वनिम की नहीं।
- बोलचाल में आपने अनुभव किया होगा कि हम अनगिनत ध्वनियों का उच्चारण करते हैं, लेकिन ध्वनि विज्ञान की दृष्टि से किसी भी भाषा में पचास-साठ से अधिक ध्वनियाँ नहीं होती।
- उदाहरण के लिए यदि हिन्दी भाषा में कलम, कागज, किताब, कुर्सी, कृपा, कोमल, कौन, काँच, में आदि शब्दों में आई 'क' ध्वनि को देखें तो स्पष्ट है कि प्रत्येक शब्द में 'क' ध्वनि का उच्चारण अलग-अलग है किन्तु मूल ध्वनि 'क' ही है अर्थात 'क' की विभिन्न ध्वनियाँ परस्पर भिन्न होते हुए भी काफी समानता रखती हैं। अतः ‘क’ मूल ध्वनि की इन विभिन्न ध्वनियों को एक परिवार की संज्ञा दी जा सकती है जैसे 'क' परिवार। ध्वनियों के इस परिवार को ही स्वनिम (Phonemics) या ध्वनिग्राम कहते हैं।
स्वनिम का अर्थ परिभाषा
स्वनिम शब्द संस्कृत के 'स्वन' धातु से बना है जिसका अर्थ है ध्वनि करना। अनेक भाषाविदों ने स्वनिम की परिभाषा निम्नलिखित रूप से दी है -
1. स्वनिम उच्चारित भाषा का वह न्यूनतम रूप है जो दो ध्वनियों का अन्तर प्रकट करता है। - आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा
2. स्वनिम मिलती-जुलती ध्वनियों का परिवार होता है। - डेनियल जोन्स
3. ध्वनिग्राम या स्वनिम समान ध्वनियों का समूह है जो किसी भाषा विशेष के उसी प्रकार के अन्य समूहों से व्यतिरेकी होता है।- ब्लाक और ट्रेगर
4. स्वनिम किसी भाषा अथवा बोली में समान ध्वनियों का समूह है। ग्लीसन
5. 'संक्षेप में स्वनिम किसी भाषा की वह अर्थ भेदक ध्वन्यात्मक इकाई है जो भौतिक यर्थाथ न होकर मानसिक इकाई होती है।' - भोलानाथ तिवारी
स्वनिम की विशेषताएं
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्वनिम की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-
- 1. स्वनिम किसी भाषा विशेष से सम्बद्ध रखते हैं। इस रूप में वे भाषा विशेष की लघुतम अखण्ड इकाई हैं। अलग-अलग भाषाओं के स्वनिम भी भिन्न होते हैं जिनका आपस में सम्बंध नहीं होता। जैसे हिन्दी का कोमल तालु का स्वनिम 'क' अरबी के काकल 'क़' से भिन्न है। इसी तरह से ध्वनि की दृष्टि से भाषा विशेष के स्वनिम परस्पर नहीं मिलते। जैसे काना, गाना, से शब्द में 'क' और 'ग' ध्वनि के स्तर पर भिन्न स्वनिम है। कोई भी भाषा जब विदेशी भाषा के शब्दों को ग्रहण करती है तो उन्हें अपनी भाषा की ध्वनि प्रकृति के अनुसार ग्रहण करती है। अरबी-फारसी, अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं के अनेक शब्द हिन्दी की प्रकृति के अनुसार ढल गये हैं। जैसे किताब, कानून, गबन, आलमारी रिक्शा आदि शब्दों के स्वनिम अब हिन्दी के स्वनिम बन गए हैं। अंग्रेजी के आफिस, ट्रेक्टर, हॉस्पिटल, बैंक शब्दों की 'आ' और 'अ' ध्वनियों को हिन्दी की प्रकृति के अनुरूप ढाल लिया गया है। इस प्रकार विदेशी शब्दों में हिन्दी के स्वनिमों का ही प्रयोग होता है।
- 2. स्वनिम अर्थभेदक इकाई है। उनमें अर्थ भेद उत्पन्न करने की पूर्ण क्षमता होती है किन्तु स्वयं वे अर्थहीन हैं। जैसे 'काली' और 'गाली' शब्द को देखें। इनमें ‘क’, और ‘ग’, के अतिरिक्त 'ल' समान ध्वनि हैं। इसका उच्चारण समान है और समान क्रम में आयी है। उच्चारण स्थान और आभ्यंतर प्रयत्न की दृष्टि से भी दोनों समान हैं। अंतर यही है कि 'क' घोष है और 'ग' अघोष है जिसके कारण दोनों शब्दों के अर्थ भिन्न हो गये हैं। इसी तरह ताल- दाल, तन- धन, टालना-डालना आदि शब्दों से स्वनिम का अर्थभेदक क्षमता को समझा जा सकता है।
- 3. स्वनिम का सम्बंध भाषा के केवल उच्चारित रूप से होता है, लिखित रूप से नहीं क्योंकि स्वनिम का सम्बंध 'ध्वनि' अर्थात उच्चारित की गई ध्वनि से है।
- 4. स्वनिम में एक से अधिक उपस्वन होते हैं। जैसे- ला, लोटा, लेना, ली आदि शब्दों में चार उपस्वन हैं। इनका स्वनिम एक है - 'ल'। 'ल' स्वनिम परिवार के चार सदस्य हैं - -ल1 ल2 ल3 ल4।
संक्षेप में स्वनिम की विशेषताओं को इस प्रकार समझा जा सकता है -
1. स्वनिम भाषा विशेष की लघुतम अखण्ड इकाई है।
2. स्वनिम का सम्बंध उच्चारित भाषा से है लिखित से नहीं।
3. स्वनिम समान भाषा ध्वनियों का समूह है।
4. स्वनिम भाषा की अर्थभेदक इकाई है।
5. स्वनिम में एक या एक से अधिक सहस्वन होते हैं।
सहस्वन (Allophone) -
- अंग्रेजी के 'एलोफोन' के लिए हिन्दी में 'सहस्वन', ‘संध्वनि', 'उपस्वन' शब्द प्रचलित हैं। यहाँ 'सहस्वन' का ही प्रयोग किया गया है। आपने देखा होगा कि हम दैनिक जीवन में असंख्य ध्वनियों का उच्चारण करते हैं। एक व्यक्ति का उच्चारण भी सदा समान नहीं होता। अतः दो व्यक्तियों के उच्चारण में अंतर आना स्वाभाविक है। सहस्वन का सम्बंध ध्वनियों के उच्चारण से है।
इसे निम्नलिखित उदाहरण से समझा जा सकता है. -
- हिन्दी में '‘ल’ एक ध्वनि है। यदि हम 'उलटा', 'लो', 'ले' तथा 'ला' - इन चार शब्दों का सावधानी से उच्चारण करते समय जीभ की स्थिति पर ध्यान दें तो स्पष्ट हो जायेगा कि ल (उलटा ) के उच्चारण में जीभ उलट जाती है। ल2 (लो) दाँत की ओर थोड़ा आगे की ओर जीभ करके उच्चारित होता है। ल3 (ले) में जीभ के आगे से और ल4 (ला) और भी आगे से उच्चारण होता है। अर्थात 'ल' ध्वनि के चार शब्दों में चार सदस्य हैं ल1, ल2, ल3, ल4। चारों के उच्चारण स्थान एक दूसरे से भिन्न हैं। 'ल' के विभिन्न रूपों के आधार पर उसे मुखिया और विभिन्न रूपों को उस परिवार के सदस्य के रूप में मान लें तो 'ल' स्वनिम है तथा ल 1, ल2, ल3, ल4 उसके सहस्वन हैं। स्वनिम 'ल' की सत्ता मानसिक है और ल1, ल2, ल3, ल4 की सत्ता भौतिक है क्योंकि सहस्वन का ही वास्तविक रूप में उच्चारण और श्रवण किया जाता है। भोलानाथ तिवारी ने स्वनिम को जाति और सहस्वन को व्यक्ति कहा है। सहस्वन स्वनिम परिवार के सदस्य हैं। स्वनिम विज्ञान में इनको प्रदर्शित करने के लिए विशेष चिह्नों का प्रयोग किया जाता है।
स्वनिम को दो खड़ी रेखाओं के बीच तथा सहस्वन को दो कोष्ठक के बीच प्रदर्शित करते हैं।
जैसे - ।ल। - ( ल 1 } । (ल2} | {ल 3 ) । (ल4)
- एक स्वनिम के सहस्वन परस्पर परिपूरक वितरण में आते हैं। जैसे आप, रूप, पढ़, और अपढ़ - इन चार शब्दों को देखें। इनमें ‘प' दो हैं - एक स्फोटित और दूसरा अस्फोटित। अस्फोटित 'प' शब्द के आदि (पढ़) या मध्य (अपढ़) में आता है। ऐसी स्थिति को 'परिपूरक वितरण' कहते हैं अर्थात वितरण में वे एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों के स्थान अलग-अलग हैं। दोनों में विरोध नहीं है। इसके विपरीत स्वनिम व्यक्तिरेकी वितरण में आते हैं। प्रत्येक स्वनिम का स्थान सुनिश्चित होता है। किसी प्रकार के अतिक्रमण की कोई सम्भावना नहीं होती। जहाँ एक स्वनिम का प्रयोग होता है, वहाँ उसी अर्थ में दूसरे का प्रयोग नहीं हो सकता।
स्वनिम के भेद (प्रकार)
- स्वनिम दो प्रकार के होते हैं - खंड्य और खंड्येतर।
- खंड्य स्वनिम वे ध्वनियाँ हैं जिनका पृथक एवं स्वतंत्र उच्चारण सम्भव है। इनका स्वतंत्र अस्तित्व भी होता है। खंड्य स्वनिम में स्वर और व्यंजन ध्वनियाँ आती हैं।
ये निम्नलिखित हैं -
स्वर -अ आ इ ई ए ऐ ओ औ उ ऊ
व्यंजन
- क ख ग घ ङ च छ ज झ
- ट ठ ड ढ ण
- त थ द ध न
- प फ ब भ म
- य रल व
- स श ष ह
खंड्य स्वनिम के संदर्भ में कुछ बातें दृष्ट्व्य हैं -
1. यहाँ दी गई स्वर- व्यंजन ध्वनियों में स्वर में ऋ, अं अः तथा व्यंजन में क्ष, त्र, ज्ञ नहीं दिए गये हैं। क्योंकि उच्चारण में ये एक ध्वनि न होकर संयुक्त ध्वनियाँ हैं।
2. हिन्दी में फारसी ध्वनियों (क़ ख़ग़ज़ फ़) का बोलने लिखने में प्रचलन बढ़ा है। अतः व्यंजन के अन्तर्गत उन्हें भी स्वतंत्र ध्वनि के रूप में रखा गया है। इसी प्रकार अंग्रेजी की ‘ऑ’ ध्वनि को भी स्वर-ध्वनियों में शामिल किया जा सकता है। इसका प्रयोग अंग्रेजी शब्दों जैसे डॉक्टर, हॉस्पिटल, कॉलेज आदि में होता है।
3. ड़ और ढ़ दोनों स्वतंत्र ध्वनियाँ मानी गयी हैं। यद्यपि पहले ये ड और ढ स्वनिम के सहस्वन थे। अब इन्हें स्वतंत्र स्वनिम माना जाता है।
खंड्येतर स्वनिम
- खंड्येतर स्वनिम स्वतंत्र रूप में नहीं आ सकते। वे खंड्य स्वनिमों पर ही आधारित होते हैं।
ये निम्नलिखित हैं
बलाघात
- मुझे एक रुपया दो।
- मुझे एक रुपया दो।
- मुझे एक रुपया दो।
- यहाँ प्रत्येक वाक्य में अलग-अलग शब्दों पर बलाघात होने से वाक्य का विशेष अर्थ व्यक्त होता है।
सुर लहर
वह मर गया। सामान्य अर्थ
वह मर गया ? प्रश्नवाचक अर्थ
वह मर गया !
- सुर-लहर के कारण एक ही वाक्य की अलग-अलग अर्थ-व्यंजना होती है।
- अनुनासिकता - अनुनासिकता से भी अर्थ-भेद उत्पन्न होता है। जैसे - गोद-गोंद, काटा-काँटा, सवार-सँवार आदि।
- संगम ये न्यूनतम विरोधी युग्म के उदाहरण हैं। जैसे तुम हारे तुम्हारे, हो ली-होली आदि ।
- इस तरह बलाघात, सुरलहर, अनुनासिकता, मात्रा, संगम आदि खंड्येतर स्वनिम के अन्तर्गत आते हैं।
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