भाषा ध्वनि। ध्वनि विज्ञान किसे कहते हैं ।भाषा ध्वनि की उत्पत्ति ।ध्वनियों के वर्गीकरण के आधार। Phonetics in Hindi Language
भाषा ध्वनि की उत्पत्ति, ध्वनियों के वर्गीकरण के आधार
भाषा ध्वनि’ या भाषण ध्वनि (Speech Sound) सामान्य परिचय
- दैनिक जीवन में हम अनेक प्रकार की आवाजों के रूप में तरह-तरह की ध्वनियाँ सुनते रहते हैं जैसे घर में किसी वस्तु के गिरने की ध्वनि, कुत्ते के भौंकने या कौए की काँव-काँव की ध्वनि, रेल की सीटी या कार-मोटर के हार्न की ध्वनि अथवा आकाश में उड़ते हेलीकाप्टर की ध्वनि। इस तरह दैनिक जीवन में 'ध्वनि' शब्द किसी भी वस्तु / प्राणी से उत्पन्न आवाज के लिए प्रयुक्त होता है।
- भाषा के संदर्भ में ध्वनि का अर्थ सीमित और विशिष्ट है। वह केवल
बोलने या उच्चारण से निकली ध्वनि तक सीमित है। इसीलिए भाषाविदों ने उसे ‘भाषा ध्वनि’ या भाषण ध्वनि (Speech Sound) कहा है। हम यह कह
सकते हैं कि 'भाषा ध्वनि वह
सीमित ध्वनि है जिसका प्रयोग मात्र भाषा में होता है।'
- डॉ भोलानाथ तिवारी के शब्दों में, 'भाषा- - ध्वनि भाषा में प्रयुक्त ध्वनि की वह लघुतम इकाई है जिसका उच्चारण (बोलने) और श्रोतव्यता (सुनने) की दृष्टि से स्वतंत्र व्यक्तित्व हो ।
ध्वनि विज्ञान किसे कहते हैं
- भाषा में ध्वनि का अध्ययन 'ध्वनि विज्ञान' में किया जाता है। ध्वनि विज्ञान के लिए अंग्रेजी के में फोनोटिक्स और फोनॉलोजी (Phonetics, Phonology) दो शब्द प्रचलित हैं। दोनों का सम्बंध ग्रीक शब्द 'Phone' से है जिसका अर्थ 'ध्वनि' है। फोनोटिक्स और फोनोलोजी में प्रयोग की दृष्टि से थोड़ा अन्तर है।
- ‘फोनोटिक्स' में हम मुख्य रूप से ध्वनि शिक्षा, ध्वनि की परिभाषा, भाषा की विभिन्न ध्वनियाँ, उच्चारण में सहायक अवयव, ध्वनियों के वर्गीकरण, ध्वनि-गुण, ध्वनि की उत्पत्ति और सम्प्रेषण का अध्ययन किया जाता है।
- 'फोनोलोजी' में भाषा विशेष की ध्वनियों का प्रयोग, इतिहास तथा ध्वनि-परिवर्तन का अध्ययन किया जाता है।
- भारतीय व्याकरण में ध्वनि विज्ञान का अध्ययन 'शिक्षा शास्त्र' के रूप में प्राचीन काल से ही होता आया है। पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' इस विषय का उल्लेखनीय ग्रंथ है। पाणिनि के साथ ही कात्यायन और पतंजलि के नाम सर्वोपरि हैं।
- 17 वीं शताब्दी में भट्टोज दीक्षित ने 'सिद्धान्त कौमुदी' में स्वर और व्यंजन का सूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत किया ।
- आधुनिक भाषा विज्ञान के भारतीय भाषा विद्वानों यथा- उदय नारायण तिवारी, सुनीति कुमार चटर्जी, बाबूराम सक्सेना, मंगलदेव शास्त्री, भोलानाथ तिवारी, आदि तथा पाश्चात्य भाषाविदों ब्लूम फील्ड, पाइक, स्टीबल, रोबिन्स, ब्लाक ट्रेगर, डैनियल जोन्स आदि ने ध्वनि और स्वनिम विज्ञान के अनेक नए तथ्यों और नियमों पर गम्भीर विवेचन प्रस्तुत किया है।
- ध्वनि भाषा की लघुतम इकाई है। भाषा का आधार ही ध्वनि है। ध्वनि के अभाव में भाषा निर्मिति की कल्पना करना असम्भव है।
भाषा ध्वनि की उत्पत्ति
भाषा ध्वनि की उत्पत्ति के लिए चार तत्वों की आवश्यकता होती है. -
(1) भाव या विचार
(2) विचार अभिव्यक्ति की इच्छा
(3) उच्चारण में प्राणवायु की सहायता
(4) वागवयवों का सही
परिचालन
- मनुष्य चूंकि भाषा ध्वनि का संवाहक मनुष्य है। अतः ये चारों विशेषताएं मनुष्य में होती हैं। की चेतना से विचार उत्पन्न होते हैं। ये विचार मन के द्वारा गति प्राप्त करते हैं। तत्पश्चात प्राणवायु के द्वारा वागवयवों से नियंत्रित होकर उच्चारित होते हैं। भाषा ध्वनि के उत्पन्न होने की यही प्रक्रिया है
ध्वनियों के वर्गीकरण के आधार
- ध्वनियों के वर्गीकरण के मुख्यतः तीन आधार माने गये हैं- 1. स्थान 2. प्रयत्न और 3. करण । इन तीनों आधारों का अपना-अपना विशेष महत्त्व है। इसमें से किसी एक के अभाव में ध्वनि का उत्पन्न होना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। अतः ध्वनि वर्गीकरण के उपर्युक्त तीन आधारों का परिचय प्रासंगिक होगा।
स्थान के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण (Place of Articulation)
- ध्वनि का उच्चारण मुख विवर के स्थान विशेष या अंगविशेष से किया जाता है। 'स्थान' वह है, जहाँ भीतर से आती हवा रोककर या किसी अन्य प्रकार से उसमें विकार लाकर ध्वनि उत्पन्न की जाती है। स्थान का भी प्रयत्न की तरह समान रूप से महत्व है।
- अतः इनके आधार पर भी ध्वनि का वर्गीकरण किया जाता है। स्वर के अग्र, मध्य, पश्च भेद स्थान पर ही आधारित हैं।
- व्यंजनों में भी ओष्ठ से लेकर स्वर-यंत्र तक अनेक स्थानों पर प्रयत्न होता है। एक ध्वनि के लिए जिस प्रकार कई प्रयत्न अपेक्षित होते हैं, उसी प्रकार कई प्रयत्नों के लिए कई स्थान भी अपेक्षित हैं।
- यद्यपि व्यावहारिक दृष्टि से प्रायः किसी भी ध्वनि के लिए प्रमुख प्रयत्न और प्रमुख स्थान का ही विचार किया जाता है। जैसे 'च' ध्वनि के लिए प्रमुख स्थान 'तालव्य' और प्रयत्न की दृष्टि से 'स्पर्श संघर्षी' कहा जायेगा।
- मुख विवर में प्रमुख स्थान ओष्ठ, दाँत, तालु (कठोर व कोमल) अलिजिहव, उपलिजिहव, स्वर यंत्र आदि हैं।
प्रयत्न के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण
ध्वनि के उच्चारण के लिए हवा को रोककर जो प्रयास करना पड़ता है, उस - क्रिया को प्रयत्न कहते हैं।
प्रयत्न दो भेद हैं - अभ्यंतर और बाह्य ।
- अभ्यंतर प्रयत्न को आस्य प्रयत्न भी कहा गया है। ‘आस्य' का अर्थ है मुँह । ध्वनि उच्चारण में मुँह के भीतर किया गया प्रयत्न ‘अभ्यंतर प्रयत्न’ कहा गया। विद्वानों के अनुसार कोमल तालु से ओंठ के बीच में किये गए प्रयत्न अभ्यंतर प्रयत्न के अन्तर्गत आते हैं।
- विद्वानों ने बाह्य प्रयत्न का सम्बंध स्वरतंत्रियों से माना है। इसके अन्तर्गत घोष-अघोष, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक-निरनुनासिक के लिये किये गए प्रयत्न को माना है। इस सम्बन्ध में यह भी तथ्य जानना आवश्यक है कि किसी भी ध्वनि के उच्चारण के लिए विभिन्न स्थानों पर एक से अधिक प्रयत्नों की आवश्यकता पड़ती है। जैसे 'क' ध्वनि के उच्चारण के लिए स्पर्शीय, अल्प प्राणीय, घोषीय तथा निरानुनासिक चार - प्रयत्न अपेक्षित हैं।
करण के आधार पर के ध्वनियों का वर्गीकरण( Articular)
- करण का प्रयोग ध्वनि उच्चारण में सक्रिय अंग के लिये किया जाता है। जैसे जीभ आदि। स्थान, ध्वनि- उच्चारण का मूल स्थान है तो करण की सहायता से प्रयत्न सम्भव होता है। अतः स्थान और प्रयत्न की तरह 'करण' का भी विशेष महत्व है।
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