ध्वनि गुण किसे कहते हैं । ध्वनि गुण के प्रकार (रूप) । Sound Quality and Type in Hindi

 ध्वनि गुण किसे कहते हैं (ध्वनि गुण के प्रकार (रूप) ) 

ध्वनि गुण किसे कहते हैं । ध्वनि गुण के प्रकार (रूप) । Sound Quality and Type in Hindi


ध्वनि गुण से तात्पर्य

  • भाषा का आधार ध्वनिहै। ध्वनि गुण से तात्पर्य भाषाध्वनि के गुणों से है। उच्चारण करते समय हम किसी विशेष शब्द या अक्षर पर विशेष बल देते हैं। इससे एक ही वाक्य का अलग-अलग सुर या बलाघात होने से वाक्य का अर्थ ही बदल जाता है। जिन तत्वों के कारण वाक्य में इस प्रकार का अर्थ परिवर्तन आता है अथवा विशेष व्यंजना होती हैउन्हें 'ध्वनि गुणकहते हैं। इसे ध्वनि लक्षण' (Sound Attributes ) भी कहा जाता है। 


ध्वनि गुण के प्रकार (रूप)  

1. मात्रा -('मात्राया 'मात्रा काल' kise कहते हैं 

  • किसी भी ध्वनि के उच्चारण में जितना समय लगता हैउसे 'मात्राया 'मात्रा कालकहते हैं। कम समय वाली मात्रा हस्वअधिक समय वाली दीर्घ और उससे भी अधिक समय वाली प्लुत कहलाती है। 
  • स्वर में ह्रस्व और दीर्घ स्वर के आधार पर ह्रस्व (छोटी) और दीर्घ (बड़ी) मात्रा होती है। व्यंजन में द्वित्व-व्यंजन मात्रा की दृष्टि से व्यंजन का दीर्घ रूप है। इसी प्रकार संयुक्त स्वरों के उच्चारण में दीर्घ से भी अधिक समय लगता है लिसे 'प्लुतकहा जाता है। प्लुत के लिए नागिरी लिपि में 'S' का प्रयोग होता है। जैसे 'ओम' | 
  • मात्रा के सम्बंध में दो बातें ध्यान देने योग्य हैं। पहलीहम उच्चारण एक गति से नहीं करते। कभी तेज गति से बोलते हैं तो कभी धीमी या मध्यम गति से। अतः बोलने की गति का प्रभाव भी मात्रा के घटने-बढ़ने के रूप में पड़ता है। दूसरी बात बोलने की तरह मौन या विराम अथवा दो शब्दों के बीच मौन की भी मात्रा होती है। पूर्ण विरामअर्द्ध विराम और अल्प विराम वस्तुतः मौन या रुकने की मात्रा को प्रकट करते हैं।

 

2. आघात (Accent)-  (आघात क्या होता है )

  • प्रायः हम देखते हैं कि बोलते समय वाक्य के सभी अंशों पर बराबर जोर नहीं दिया जाता। कभी वाक्य के किसी शब्द पर कम तो दूसरे शब्द पर अधिक बल दिया जाता है। इसी प्रकार शब्द के बोलने में उसके सभी अक्षरों पर भी समान बल नहीं पड़ता। इसी बल या आघात को 'बलाघातकहते हैं। 
  • भाषा की कोई भी ध्वनि बलाघात शून्य नहीं होती। कम या अधिक रूप में उसमें बलाघात होता ही है। बलाघात ध्वनिअक्षरशब्द और वाक्य के किसी एक अंश पर कम और दूसरे अंश पर अधिक पड़ता है। 
  • इस आधार पर बलाघात के भेद इस प्रकार हैं- ध्वनि बलाघात अर्थात स्वर या व्यंजन ध्वनियों पर पड़ने वाला बल। अक्षर बलाघात अक्षर पर पड़ता है। वाक्य में किसी शब्द विशेष पर पड़ने वाला बलाघात शब्द बलाघात होता है। जैसे वह घर गयासामान्य वाक्य है किंतु यदि 'घरपर बलाघात तो विशेष अर्थ व्यंजित होता है कि वह घर ही गयाकहीं और नहीं कुछ वाक्य अपने निकटवर्ती वाक्यों की अपेक्षा विशेष जोर देकर बोले जाने पर वाक्य बलाघात होता है। जैसे 'तुम कुछ भी कहो। मैं यह नहीं कर सकता।यहाँ दो वाक्य हैं। 
  • अपनी बात 'मैं यह नहीं कर सकता।पर जोर देने के लिए पहले वाक्य की अपेक्षा दूसरे  अधिक बल दिया जाता है। वाक्यों में आश्चर्यभावावेशआज्ञाप्रश्न या अस्वीकार आदि भावों में प्रायः देखा जा सकता बलाघातहै। 
  • बलाघात के संदर्भ में आपने देखा कि बलाघात शक्ति या बल की वह मात्रा है जिसमें ध्वनिअक्षरशब्द या वाक्य का उच्चारण किया जाता है। शक्ति या बल की अधिकता के कारण ही बलाघात युक्त ध्वनिअक्षर या शब्द अपने आसपास की ध्वनियोंअक्षरों या शब्दों आदि से अधिक मुखर हो जाता है। बलाघात में ध्वनियोंअक्षरों या शब्दों में किस प्रकार परिवर्तन होता है - यह आप पिछली इकाई के 'ध्वनि परिवर्तनशीर्षक में पहले ही जान चुके हैं।

 

3. सुर- (सुर किसे कहते हैं )

  • 'बलाघातके अन्तर्गत आप जान चुके हैं कि सभी ध्वनियाँ बराबर शक्ति या बल से नहीं बोली जाती। इसी प्रकार वाक्य की सभी ध्वनियाँ एक सुर में नहीं बोली जाती। उनमें सुर ऊँचा या नीचा होता रहता है। 'बलाघातकी तरह 'सुरका सम्बंध भी व्यक्ति की मनः स्थिति से है। 
  • सुर का आधार सुर तंत्रियाँहैं। हम जानते हैं कि घोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कम्पन होता हैं। कम्पन जब अधिक तेजी से होता है तो ध्वनि ऊँचे स्वर में होती है और जब धीमी गति से होता है तो ध्वनि नीचे सुर में होती है। इसी को सुर का ऊँचा या नीचा होना कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति जब उच्चारण करता है तो उसके सुर की अपनी निम्नतम और अधिकतम सीमा होती है। प्रायः इसी के बीच उसके सुर का उतार-चढ़ाव होता है। 
  • सुर के उतार चढ़ाव को ही आरोह- अवरोह कहते हैं। आरोह-अवरोह की दृष्टि से सुर के मुख्य तीन भेद हैं. उच्चमध्य या सम और निम्न उच्च को 'उदात्त', मध्य सुर को 'स्वरितऔर निम्न सुर को अनुदात्तकहा गया है। सुरके बारे में अध्ययन करते समय 'सुर लहरऔर 'सुर तानके बारे के में जानना भी जरूरी है क्योंकि इनका सम्बंध सुर से है।

 

सुर-लहर - (सुर-लहर क्या होती है )

  • दो या उससे अधिक सुरों का उतार-चढ़ाव या आरोह-अवरोह सुर लहर कहलाता है। । सुर लहर का निर्माण दो या दो से अधिक सुरों से होता है। स्पष्ट हैं कि सुर के दो रूप हैं। एक ध्वनि में यह सुरहै और सम्बद्ध ध्वनियों में एक से अधिक होने पर 'सुर लहर। है

 

सुर-तान (क्या होता है )

  • 'सुरके समानार्थी रूप में तान का प्रयोग होता है किन्तु भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से दोनों में पर्याप्त अन्तर है। सुर ( च्पजबी) हर घोष ध्वनि में होता है। जैसे 'गमलाशब्द की सभी ध्वनियाँ घोष हैं। इसे यदि स्वाभाविक सुर में बोले या अस्वाभाविक सुर मेंगमलाशब्द के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होगा। इसके विपरीत चीनी जैसी कुछ ऐसी भाषाएं हैं जहाँ सुर के बदलने से शब्द का अर्थ भी बदल जाता है। 
  • अतः शब्द का अर्थ बदलने वाला सुर तान (ज्वदम) कहलाता है। इसी आधार पर सुर के दो भेद किये गये हैं सार्थक और निरर्थक । अर्थ भेदक सुर को सार्थक सुर या तान कहा गया और जहाँ वह अर्थ भेदक न हो अर्थात निरर्थक होउसे केवल सुर कहा गया।

 

4. संगम (Juncture ) - 

  • आपने अनुभव किया होगा कि बोलते समय हम एक ध्वनि पूरी कर दूसरी ध्वनि का उच्चारण करते हैं। जैसे- 'तुम्हारेशब्द में 'म्के बाद सीधे 'हूआता है किन्तु तुम हारेशब्द के उच्चारण से ऐसा नहीं होता। यहाँ 'के बाद 'तुरन्त न आकर थोड़े ठहराव या मौन के बाद आता है। इसी मौन या विराम को 'संगमकहते हैं। संगम सदैव शब्दों के बीच में आता है।

 

5. वृत्ति - (वृत्ति किसे कहते हैं )

  • बोलने में उच्चारण की गति महत्वपूर्ण होती है। उच्चारण की गति को ही वृत्ति’ कहते हैं। 

वृत्ति के तीन भेद हैं-

  • 1. दुरत अर्थात उच्चारण की तेज गति 2. मध्यम और 3. विलम्बित अर्थात धीरे धीरे उच्चारण करना। 
  • सटीक उच्चारण और सटीक अर्थबोधन वृत्ति के सम्यक निर्वाह पर निर्भर होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ध्वनि प्रक्रिया को भली भाँति जानने समझने में ध्वनि गुणों का ज्ञान भी अपेक्षित है।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.