वैद्युत विभव विभवान्तर पृथ्वी का विभव क्या होते हैं । खोखले चालक के भीतर विद्युत क्षेत्र । Vidyut Vibhav Kya Hai
वैद्युत विभव विभवान्तर पृथ्वी का विभव क्या होते हैं
खोखले चालक के भीतर विद्युत क्षेत्र (Electric Field in a Hallow Conductor)
- जब किसी खोखले चालक को आवेशित किया जाता है तो संपूर्ण आवेश उसके बाहरी पृष्ठ पर ही वितरित हो जाता भीतरी पृष्ठ पर कोई आवेश नहीं रहता, अर्थात् खोखले चालक के भीतर वैधित क्षेत्र शून्य होता है। इस तरह खोखला गोला एक विद्युत परिरक्षक (Electrostatic Shield) की भाँति कार्य करता है।
- यही कारण है कि कार से यात्रा करते समय यदि कार पर तड़ित का आघात होता है तो उसके अन्दर यात्री सुरक्षित बच जाते हैं क्योंकि यदि कार के शीशे पूर्णतः बंद हैं तो आवेश कार के भीतर प्रवेश नहीं कर पाता।
विद्युत विभव (Electric Potential) किसे कहते हैं
- किसी इकाई धनावेश को अनन्त से किसी विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी बिन्दु तक लाने में जितना कार्य करना पड़ता है उसे उस बिंदु का वैद्युत विभव कहते हैं।
वैद्युत विभव (v) = w/q
जहाँ, W = किसी आवेश को विद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य व q= आवेश की मात्रा है।
- वैद्युत विभव वह भौतिक राशि है जो दो वस्तुओं के बीच आवेश के प्रवाह की दिशा को निर्धारित करती हैं। यदि दो वस्तुओं के वैद्युत विभव बराबर हैं तो उन्हें संपर्क में लाने पर आवेश का प्रवाह बिल्कुल भी नहीं होगा।
- वैद्युत विभव का S.I. मात्रक जूल/कूलॉम या 'वोल्ट' होता है।
- वैद्युत विभव का मात्रक 'वोल्ट' इटली के वैज्ञानिक 'एल सेन्ड्रो वोल्टा' के सम्मान में रखा गया है। यह एक अदिश राशि है।
विभवान्तर (Potential Difference) क्या होता है
- दो बिन्दुओं के विभवों में जो अंतर होता है, उसे ही उन दोनों बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर कहते हैं।
- विभवान्तर का मान, वैद्युत क्षेत्र में एकांक आवेश एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किए गये न कार्य के बराबर होता है जिसे हम किसी आवेश को व एक बिन्दु से दूसरे विन्दु तक ले जाने में किए गये कार्य को आवेश की मात्रा से भाग देकर प्राप्त कर सकते हैं।
- जिस प्रकार तरल (Liquids) सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की ओर, ऊष्मा उच्च ताप से निम्न ताप की ओर बहती है उसी प्रकार धन आवेश भी सदैव उच्च विभव निम्न विभव की ओर बहता है।
- जिस प्रकार, ऊष्मा प्रवाह की दिशा का ऊष्मा की मात्रा में कोई संबंध नहीं है, तरल के प्रवाह की दिशा का तरल की मात्रा से कोई संबंध नहीं, उसी प्रकार आवेश के प्रवाह की दिशा का भी आवेश की मात्रा से कोई संबंध नहीं है।
- इस प्रकार यदि भिन्न-भिन्न वैद्युत विभवों वाली दो चालक वस्तुओं को परस्पर संपर्क में लाया जाय तो आवेश तब तक प्रवाहित होता है जब तक कि दोनों वस्तुओं के विभव समान न हो जायें।
- ध्यातव्य कि धन आवेश सदैव उच्च विभव है से निम्न विभव की ओर तथा ऋण आवेश सदैव निम्न विभव से उच्च विभव की ओर प्रवाहित होता है।
- चालक वस्तुओं को संपर्क में लाने पर ऋण आवेश अर्थात् इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह निम्न विभव से उच्च विभव की ओर तब तक होता रहता है जब तक कि दोनों वस्तुओं के विभव समान न हो जायें।
पृथ्वी का विभव (Potential of Earth)
- किसी राशि के मापन (Measurment) हेतु कोई पैमाना व निर्देश बिंदु (शून्यांक) लिया जाता है।
- विद्युत विभव के मापन हेतु भी पृथ्वी के विभव को शून्य माना जाता है। कारण यह की पृथ्वी एक विशाल चालक है जिसे कोई आवेश देने या लेने पर इसके विभव में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस तरह किसी चालक को भूसम्पर्कित करने पर उसका विभव शून्य हो जाता है। इसीलिए पृथ्वी का विभव भी शून्य माना जाता है।
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