संधारित्र एक ऐसा समायोजन है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किये बिना उस पर आवेश की अधिक मात्रा संचित की जा सकती है। अर्थात् उसका विद्युत विभव बढ़ाया जा सकता है।
यदि किसी चालक को q आवेश देने पर उसका वैद्युत विभव V हो जाता है तो चालक की धारिता C = q/ V होती है।
यदि हम किसी प्रकार चालक के विभव को कम कर दें तो उसे पुनः उसी विभव V तक लाने के लिए और अधिक आवेश दिया जा सकता है। इस प्रकार चालक की धारिता (C) बढ़ाई जा सकती है।
संधारित्र का सिद्धान्त
संधारित्र का सिद्धान्त इस तथ्य पर आधारित है कि जब किसी आवेशित चालक के समीप एक अन्य अनावत चालक रख दिया जाता है तो आवेशित चातक का विभव कम हो जाता है।
यदि अनावेशित चालक को भूसंपर्कित कर दिया जाय तो विभव और भी कम हो जाता है। फलस्वरूप आवेशित चालक की धारिता में और वृद्धि हो जाती है।
इस प्रकार संधारित्र किसी भी आकार के दो ऐसे चालकों का युग्म है जो कि एक-दूसरे के समीप हों तथा जिन पर बराबर व विपरीत आवेश हों।
यदि किसी संधारित की प्लेटों पर आवेश +q व -q हों तथा उनके बीच विभवान्तर v हो तो संधारित की धारिता C = q/ v फैरड होगी
संधारित्रों के उपयोग (Uses of Capacitors)
आवेश का संचय ( Storing of Charge) -
संधारित्र का सबसे महत्वपूर्ण कार्य आवेश का संचयन करना है। यदि किसी विद्युत परिपथ में अल्प समय के लिए प्रबल वैद्युत धारा की आवश्यकता हो तो उसके एक सिरे पर आवेशित संधारित्र जोड़ देते हैं।
स्पंदित (Pulsed) विद्युत चुम्बक (electromagnets) जिनके द्वारा क्षणिक किन्तु तीव्र चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किये जाते हैं, इसी तरह प्राप्त किये जाते हैं।
ऊर्जा का संचय (Storage of Energy)
संधारित्रों में पर्याप्त ऊर्जा (वैद्युत ऊर्जा के रूप में) संचित रहती है। इलेक्ट्रान त्वरक यंत्र (Syncro Cyctotron) में कई संधारित्र लगे होते हैं जो विद्युत ऊर्जा का संचय किये रहते हैं। यंत्र इससे ऊर्जा लेता रहता है।
विद्युत उपकरणों (In Electrical Instruments )
जब किसी प्रेरकीय (Induction) विद्युत परिपथ (Electric Circuit) को अचानक तोड़ा जाता है तो तोड़ने के स्थान पर चिंगारी उत्पन्न होती है परन्तु यदि परिपथ में एक संधारित्र इस प्रकार लगा हो कि परिपथ के टूटने (Breaking) पर उत्पन्न प्रेरित धारा संधारित्र की प्लेटों को आवेशित कर दे तो चिंगारी नहीं उत्पन्न होती ।
प्रेरण कुंडली तथा मोटर इंजन के ज्वलन तंत्र ( ignition Comport ment) में इसी कारण संधारित्र लगाये जाते हैं। विद्युत पंखे में भी संधारित्र प्रयुक्त होता है।
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