विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2024: थीम (विषय) इतिहास महत्व उद्देश्य |World Day of Social Justice 2024 Theme History

  विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2024: थीम (विषय) इतिहास महत्व उद्देश्य 

विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2022: थीम (विषय) इतिहास महत्व उद्देश्य |World Day of Social Justice 2022 Theme History



विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2042: थीम (विषय) इतिहास महत्व उद्देश्य 


विश्व सामाजिक न्याय दिवस कब मनाया जाता है ?

  • प्रत्येक वर्ष 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Day of Social Justice-WDSJ) मनाया जाता है।


विश्व सामाजिक न्याय दिवस पहली बार कब मनाया गया था  ?

  • 2009 ।


विश्व सामाजिक के उद्देश्य 

  • विश्व सामाजिक न्याय दिवस  मनाने का प्रमुख उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, पूर्ण रोजगार और समुचित कार्य को बढ़ावा देना, लैंगिक समानता स्थापित करना, सामाजिक कल्याण तक पहुंच और सभी के लिए न्याय के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों को बढ़ावा देना है।
  • यह दिवस गरीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को मान्यता देने का दिन होता है।


विश्व सामाजिक न्याय दिवस 2024 की थीम विषय 

  • वर्ष 2024 की थीम “Achieving Social Justice through Formal Employment” (औपचारिक रोजगार के माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त करना) है।

 

विश्व सामाजिक न्याय दिवस का इतिहास 

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा पुरे विश्व हेतु एक निष्पक्ष वैश्वीकरण हेतु सर्वसम्मति से 10 जून 2008 को सामाजिक न्याय पर ILO के घोषणा पत्र को अपनाया गया। 1919 से अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के द्वारा अपनाए गए यह प्रमुख 3 घोषणा पत्र सिद्धांतों में से एक था। अन्य दो प्रमुख अपनाए गए महत्वपूर्ण सिद्धांतों में 1944 का फिलाडेल्फिया घोषणा पत्र और 1998 के कार्य में मौलिक सिद्धांतों और अधिकारों की घोषणाथा। 2008 की घोषणा वैश्वीकरण के युग में ILO के जनादेश की समकालीन दृष्टि को अभिव्यक्त करती है।


  • यह घोषणा पत्र वैश्वीकरण के संदर्भ में पुरे विश्व में बेहतर और निष्पक्ष परिणामों को प्राप्त करने की दिशा में एक मजबूत सामाजिक आयाम की आवश्यकता पर व्यापक सहमति को दर्शाता है।


  • वैश्वीकरण के कारण व्यापार, निवेश और पूंजी प्रवाह, प्रौद्योगिकी में प्रगति के माध्यम से नए अवसर, सूचना प्रौद्योगिकी सहित वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास के साथ-साथ जीवन स्तर के सुधार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। हालांकि इसके नकारात्मक प्रभाव गंभीर वित्तीय संकट, असुरक्षा, गरीबी, बहिष्कार, समाजों के बीच असमानता, विकासशील देशों का वैश्विक अर्थव्यवस्था में एकीकरण और पूर्ण भागीदारी में व्याप्त बाधाएं, इत्यादि के रूप में परिलक्षित हुई हैं।


  • इसके उपरान्त सामाजिक विकास के लिए विश्व सम्मेलन के उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र आम सभा में प्रतिवर्ष 20, फरवरी को WDSJ के तौर पर मनाये जाने का फैसला किया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने 26 नवम्बर, 2007 को इस निर्णय को मंजूरी दे दी और 2009 से यह दिवस मनाया जाने लगा।


सामाजिक न्याय और भारतीय संविधान

सर्वप्रथम हमें संविधान की प्रस्तावना में ही सामाजिक न्याय के तत्व दिख जाते हैं-

  • समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय……….. प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्रदान करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर…..


सामाजिक न्याय के महत्वपूर्ण अनुच्छेद

अनुच्छेद 23: 

  • (1)मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्‌श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा। 
  • (2) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

अनुच्छेद 24: 

  • चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।

अनुच्छेद 38: 

  • कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा, जिससे नागरिक को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिलेगा.


अनुच्छेद 39: 

राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा जिसमें यह सुनिश्चित हो -

  • a. सभी नागरिकों (पुरुष और स्त्री) को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो;
  • b.  समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और प्रबंधन इस प्रकार हो जिससे यह सामूहिक हित का सर्वोत्तम साधन हो;
  • c.  आर्थिक व्यवस्था का प्रबंधन ऐसा हो जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संक्रेंद्रण न हो;
  • d.पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन हो;
  • e. पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों;
  • f. बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और आवश्यक सुविधाएँ दी जाएँ, बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।

अनुच्छे 39क: 

  • समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता

अनुच्छेद 46: 

  • राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करेगा।


सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का उद्देश्य 

  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का उद्देश्य एक ऐसे समावेशी समाज की स्थापना करना है जिसके अंतर्गत लक्षित समूह के सदस्यगण अपने विकास और वृद्धि के लिए उपयुक्त समर्थन प्राप्त करके अपने लिए उपयोगी, सुरक्षित और प्रतिष्ठित जीवन की प्राप्ति कर सकते हैं। इसका लक्ष्य, आवश्यक जगहों पर लक्षित समूहों को शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक विकास और पुनर्वास कार्यक्रमों के माध्यम से समर्थन प्रदान करना और उनका सशक्तिकरण करना है।


  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग को समाज में सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से किनारे कर दिए गए वर्ग के लोगों का सशक्तिकरण करने का अधिकार प्राप्त है जिसमें (i) अनुसूचित जाति (ii) अन्य पिछड़ा वर्ग (iii) वरिष्ठ नागरिक (iv) शराब और मादक पदार्थ के दुरुपयोग के शिकार लोग (v) ट्रांसजेंडर व्यक्ति (vi) भिखारी (vii) विमुक्त और खानाबदोश जनजाति (डीएनटी) और (viii) आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लोग शामिल है।

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