विश्व रेडियो दिवस 2024 : थीम इतिहास महत्व |भारत में रेडियो का इतिहास | World Radio Day Theme History
विश्व रेडियो दिवस 2024 : थीम इतिहास महत्व
विश्व रेडियो दिवस कब मनाया जाता है ?
- 13 फरवरी
विश्व रेडियो दिवस मनाने का निर्णय कब लिया गया था ?
- 3 नवंबर, 2011 को प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का एलान किया।
13 फरवरी को ही विश्व रेडियो दिवस क्यों मनाया जाता है ?
- 13 फरवरी की तारीख रखने का विशेष कारण यह था कि संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने यू एन रेडियो की स्थापना 13 फरवरी 1946 को हुई थी। तब से प्रतिवर्ष 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाने लगा।
विश्व रेडियो दिवस की थीम (विषय)
- रेडियो और विश्वास (Radio and Trust) वर्ष 2022 के लिए विश्व रेडियो दिवस की थीम है । इस वर्ष विश्व भर में 11वां विश्व रेडियो दिवस दिवस मनाया जा रहा है ।
विश्व रेडियो दिवस का इतिहास
- 20 अक्तूबर, 2010 को स्पेनिश रेडियो अकादमी के अनुरोध पर स्पेन ने संयुक्त राष्ट्र में रेडियो को समर्पित विश्व दिवस मनाने के लिये सदस्य देशों से अपील की। इसके बाद UNESCO ने पेरिस में आयोजित 36वीं आमसभा में 3 नवंबर, 2011 को प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का एलान किया। उल्लेखनीय है कि 13 फरवरी को ही संयुक्त राष्ट्र के ‘रेडियो UNO’ की वर्षगाँठ भी होती है, क्योंकि 1946 में इसी दिन वहाँ रेडियो स्टेशन स्थापित हुआ था।
- स्पेन रेडियो अकैडमी ने 2010 में पहली बार इस दिवस को मनाने का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद 2011 में यूनेस्को की महासभा के 36वें सत्र में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस घोषित किया गया।
- 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के तौर पर यूनेस्को की घोषणा को संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 14 जनवरी, 2013 को मंजूरी प्रदान की। इसके लिए 13 फरवरी की तारीख रखने का विशेष कारण यह था कि संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने यू एन रेडियो की स्थापना 13 फरवरी 1946 को हुई थी। तब से प्रतिवर्ष 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाने लगा।
- विश्व रेडियो दिवस के 10वीं वर्षगाठ और रेडियो के 110 साल होने पर यूनेस्को द्वारा समस्त रेडियो स्टेशन को यह दिवस मनाने का आह्वाहन किया है।
भारत में रेडियो का इतिहास
- भारत में रेडियो प्रसारण की पहली शुरुआत जून 1923 रेडियो क्लब मुंबई द्वारा हुई थी लेकिन इंडियन ब्रॉडकास्ट कंपनी के तहत देश के पहले रेडियो स्टेशन के रूप में बॉम्बे स्टेशन तब अस्तित्व में आया जब 23 जुलाई 1927 को वाइसराय लार्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया, लेकिन 8 जून 1936 को इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस को ‘ऑल इंडिया रेडियो’ का नाम दे दिया गया जिस नाम से यह आज तक प्रचलित है।
- हमारे देश में तकनीकी रूप से तीन प्रकार के रेडियो प्रसारण केन्द्र काम कर रहे हैं- मीडियम वेव, शोर्ट वेव और एम.एम. प्रसारण केन्द्र। इन प्रसारणों की तरंगों की फ्रीक्वेंसी अलग-अलग होती है।
- वर्तमान समय में इंटरनेट रेडियो या डिजिटल रेडियो का भी प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है। आपको बता दें उदारीकरण के बाद निजी रेडियो चैनलों की संख्या में काफी तेजी से वृद्धि हुई।
- इसके साथ-साथ भारत में सामुदायिक रेडियो का भी विकास हो रहा है। आज भारत में 180 से अधिक सामुदायिक रेडियो स्टेशन हैं, जो बुंदेलखंडी, गढ़वाली, अवधी और संथाली जैसी भाषाओं में प्रसारित होते हैं। उल्लेखनीय है कि इन स्थानीय भाषाओँ को आमतौर पर टेलीविजन पर बहुत कम या कोई स्थान नहीं मिल नहीं पता हैं।
सामुदायिक रेडियो (Community Radio - सीआर) क्या है ?
- सामुदायिक रेडियो रेडियो सेवा का एक प्रकार है, जो वाणिज्यिक और सार्वजनिक सेवा से परे रेडियो प्रसारण का एक तीसरा मॉडल प्रस्तुत करता है। सामुदायिक स्टेशन, ऐसी सामग्री का प्रसारण करते हैं जो कि किसी स्थानीय या विशिष्ट श्रोताओं में लोकप्रिय है तथा जिनकी अनदेखी वाणिज्यिक या जन- प्रसारक माध्यमों द्वारा की जा सकती है। सामुदायिक रेडियो स्थानीय स्तर की सामाजिक-आर्थिक-प्रशासनिक-सांस्कृतिक-प्राकृतिक समस्याओं को अपने मंच पर उठाते हैं तथा इसका समाधान आपसी विचार-विमर्श व लोकतांत्रिक तरीके से करते हैं।
- उदाहरण के तौर पर राजस्थान के रेडियो तिलोनिया द्वारा बालिका शिक्षा, दहेज कुप्रथा की समाप्ति की दिशा में किया गया प्रयास उल्लेखनीय है। इसी प्रकार रेडियो कुमाऊँ वाणी, रेडियो संघर्ष, रेडियो नगर, रेडियो सैफई, सीजीनेट स्वर इत्यादि प्रमुख प्रचलित सामुदायिक रेडियो हैं।
सीआर, लोकतंत्र के
प्रभावी मंत्र-सुशासन की स्थापना में राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक स्तर पर निम्न प्रकार से सहायता कर सकता हैः
राजनैतिक सुशासन के विकास में:
- लोगों की शासन में भागीदारी (Participation) बढ़ाकर।
- राज्य, बाज़ार और समाज के प्रयासों के एकीकरण द्वारा।
- ग्रामीण समुदाय में जागरूकता बढ़ाकर।
- स्थानीय संसद में प्रश्न-उत्तर की श्रृंखला का कार्यक्रम शुरू कर राजनैतिक उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करना।
- सरकारी नीतियों व सेवाओं की जानकारी लक्षित वर्ग तक पहुँचाना।
- विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका की प्रक्रियाओं की जानकारी प्रदान करना।
- सरकार, विपक्ष, सिविल सोसाइटी के साथ निष्पक्ष रहते हुए लोकतंत्र के विकास में निर्माणकारी उत्प्रेरक का कार्य करना।
सामाजिक सुशासन के विकास में:
- समुदायों को उनके अधिकारों से अवगत कराना।
- मज़बूत सिविल सोसाइटी के निर्माण हेतु कार्यक्रम चलाना।
- व्यवसायियों को निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility) हेतु प्रेरित करना।
- स्थानीय सामाजिक समस्याओं जैसे- दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि के समाधान के विषय में जानकारी प्रदान कर सहभागिता बढ़ाना। इस दिशा में सरकारी योजनाओं यथा- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि आदि योजनाओं का वर्णन करना।
- समाज के पिछड़े वर्गों और दिव्यांगों से संबंधित समस्याओं हेतु कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना।
आर्थिक सुशासन के विकास में:
- सामुदायिक स्तर पर सामाजिक विकास के लिये वित्त संवर्द्धन हेतु टॉक शो (Talk show) आयोजित करना।
- स्थानीय सरकार और सामुदायिक समूहों के मध्य वार्तालाप बढ़ाने हेतु कार्यक्रम क्रियान्वयित करना ताकि नागरिक ‘कर’ देने के कर्त्तव्य और स्थानीय सरकार जनता के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझ सकें।
- सरकार की ‘लोन सुविधा’ (मुद्रा योजना, सिडबी बैंक, नाबार्ड, स्टार्ट-अप इंडिया आदि) जैसे कार्यक्रमों की जानकारी का विश्लेषणात्मक आयाम प्रस्तुत कर अर्थव्यवस्था में सामुदायिक हिस्सेदारी को बढ़ाना।
- भूमि संबंधित सरकारी नीतियों तथा लोगों के अधिकारों की जानकारी हेतु कार्यक्रम चलाना।
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