प्रायः कई रूपिम एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, जिनका वितरण और प्रयोग की दृष्टि से सभी का स्थान अलग-अलग निधार्रित है अर्थात जहाँ एक का प्रयोग होता है, वहाँ दूसरे का नहीं और जहाँ दूसरे का प्रयोग होता है वहाँ तीसरे का नहीं। ऐसी स्थिति में वे सभी एक ही रूपिम के संरूप होते हैं। हिन्दी और अंग्रेजी में इसके उदाहरण देखे जा सकते हैं।
अंग्रेजी में संज्ञा रूपों का एकवचन से बहुवचन बनाने के लिए 'स' ( cats, books,hats), ‘ज’ (eyes,dogs,words), ‘इज' (horses, roses), 'इन' (oxen), 'रिन' (children) तथा शून्य रूपिम (sheep) आदि का प्रयोग होता है। दूसरे शब्दों में स, ज, इज, इन, रिन तथा शून्य रूपिम बहुवचन बनाने वाले रूपिम हैं।
इसी प्रकार हिन्दी में बहुवचन बनाने के लिए ‘ओं’ (घरों,पुस्तकों, घोड़ों, वस्तुओं आदि), ‘ओ' (सम्बोधनवाची शब्दों जैसे-कवियो, सज्जनो, भाइयो, बहनो आदि), ‘ए’ (बेटे, लड़के, घोड़े आदि), 'एँ (माताएं, बहनें, वस्तुएं आदि), 'आँ (बकरियाँ, दवाइयाँ, नदियाँ आदि), 'अँ' (चिड़ियाँ, गुड़ियाँ आदि), शून्य रूपिम (कवि, घर, साधु आदि) का प्रयोग होता है। इस तरह हिन्दी में ओ, ओ, ए, एँ, आँ, आदि बहुवचन वाले रूपिम हैं।
हिन्दी और अंग्रेजी में बहुवचन बनाने वाले रूपिमों का अर्थ एक है। इसलिए ये सम्भावना हो सकती है कि ये अलग-अलग रूपिम न होकर एक ही रूपिम के संरूप हों।
संरूपों के विश्लेषण के लिए हमें ये देखना पड़ता है कि -
(1). ये परस्पर विरोधी नहीं हैं अर्थात समानार्थी हैं।
(2). ये परिपूरक वितरण में हों अर्थात सबके स्थान अलग-अलग निश्चित हों। एक ही स्थिति में एक से अधिक न आते हों। विश्लेषण में यदि ये स्थितियाँ होती हैं तो उन सबको एक रूपिम के संरूप माना जायेगा। उन्हीं संरूपों में किसी एक को जो अधिक प्रयुक्त हो, उसे रूपिम कहा जा सकता है। इस प्रकार अंग्रेजी में बहुवचन बनाने वाला रूपिम 'स' और अन्य 'ज, इज, इन, रिन’ आदि संरूप हैं। हिन्दी में 'ओ' रूपिम है और 'ओ, ए, एँ, आँ, अँ' आदि संरूप हैं।
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