अर्थ बोध के साधन अर्थ |आत्म अनुभव का अर्थ|पर अनुभव किसे कहते हैं ?| Arth Bodh Ke Saadhan
अर्थ बोध के साधन अर्थ, आत्म अनुभव का अर्थ,पर अनुभव किसे कहते हैं ?
अर्थ बोध के साधन
- अर्थ बोध के साधनों पर चर्चा करने से पूर्व यह जानना प्रासंगिक होगा कि अर्थ का ज्ञान कैसे होता है। हम पहले यह पढ़ आये हैं कि शब्द प्रतीक हैं। तभी शब्द के साथ किसी वस्तु, क्रिया या भाव- विचार के सम्बंध स्थापन को संकेतग्रह कहा गया है। इस तरह अर्थ का ज्ञान प्रत्यय या प्रतीत के रूप में होता है। प्रतीत अनुभव से होती है।
अनुभव दो प्रकार से होता है - आत्म अनुभव और पर अनुभव
आत्म अनुभव का अर्थ
- आत्म अनुभव का अर्थ है कि किसी वस्तु आदि को स्वयं देखना या अनुभव करना। हमारे आस-पास जितनी वस्तुएं या प्राणी हैं, उन्हें देखकर या उन्हें अनुभव करके हमें उसके अर्थ का बोध हो जाता है। सर्दी, गरमी के अर्थ की अनुभूति भी हमें आत्म अनुभव से होती है।
आत्म अनुभव के भी दो भेद हैं - इन्द्रियजन्य और अतीन्द्रियजन्य ।
- इन्द्रीयजन्य अनुभव में हमारी पाँच इन्द्रियाँ हैं - आँख, कान, नाक, त्वचा और जीभ । आँख से देखी हुई वस्तु, कान से सुना हुआ, नाक से सूँघी हुई गंध, त्वचा से स्पर्श हुआ पदार्थ और जीभ से चखा हुआ स्वाद इन्द्रियजन्य अनुभव हैं।
- अतीन्द्रिय अनुभव का सम्बंध अन्तःकरण या मन से है जो सूक्ष्म को अनुभव करता है। सुख-दुःख, प्रेम-घृणा, मान-अपमान, भूख-प्यास आदि का अनुभव स्वयं मन से करता है। यह अतीन्द्रियजन्य आत्म अनुभव है।
पर अनुभव किसे कहते हैं ?
- दूसरों के अनुभव से प्राप्त ज्ञान को पर अनुभव कहते हैं। अनेक क्षेत्र ऐसे - होते हैं जहाँ हमारा प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता अतः उस क्षेत्र से सम्बंधित शब्दों की अर्थ प्रतीति के लिए हमें पर-अनुभव पर निर्भर रहना पड़ता है। अंतरिक्ष हो या युद्ध क्षेत्र - इनसे जुड़े हुए शब्दों के अर्थ की प्रतीति के लिए दूसरों का अनुभव ही हमें अर्थ का बोध कराता है।
भारतीय परम्परा में अर्थ बोध के आठ साधन
भारतीय परम्परा में अर्थ बोध के निम्नलिखित आठ साधन माने गए हैं- व्यवहार, कोश, व्याकरण, प्रकरण, व्याख्या, उपमान, आप्तवाक्य, प्रसिद्ध पद या ज्ञात का सान्निध्य इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-
1. व्यवहार-
- अर्थ बोध का यह प्रमुख साधन है। व्यवहार का तात्पर्य लोक व्यवहार या सामाजिक व्यवहार से है। आप जानते हैं कि भाषा अनुकरण से अर्जित की जाती है। अनुकरण व्यवहार से ही सिद्ध होता है। व्यवहार से हम शब्द और उसका अर्थ अथवा संकेत ग्रहण करते हैं। लोक में प्रचलित सभी प्राणी, वस्तु, और प्रकृति सम्बंधी शब्दों के अर्थ का ज्ञान हमें लोक व्यवहार से होता है।
2. कोश-
- अनेक शब्दों के अर्थ का ज्ञान हमें शब्द कोश से होता है।
3. व्याकरण
- व्याकरण से हमें एक ही शब्द के अनेक रूपों के अर्थ का ज्ञान होता है। जैसे 'मीठा' से 'मिठाई' का क्या अर्थ है । 'मनुष्य' का अर्थ हमें ज्ञात है किन्तु 'मनुष्य' से "मनुष्यता' कैसे बना और उसका अर्थ क्या है, यह व्याकरण के द्वारा जाना जा सकता है।
4. प्रकरण
- आप जानते हैं कि अर्थ की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं - एकार्थी, जिनका एक ही अर्थ रूढ़ है और अनेकार्थी, जिनके एक से अधिक अर्थ हों। अनेकार्थी शब्दों का अर्थ प्रकरण अर्थात संदर्भ पर निर्भर करता है। यदि प्यासा कहे कि 'पानी' तो पानी का सीधा सा अर्थ जल है किन्तु कोई कहे कि तुम्हारी आँखों में जरा भी पानी नहीं है, तो यहाँ 'पानी' का अर्थ 'शर्म' से है। इसी तरह 'रस' के भी विभिन्न अर्थ संदर्भ या प्रकरण से ही स्पष्ट होते हैं।
5. व्याख्या
- इसे 'विवृति' भी कहा गया है। अनेक शब्द (विशेषकर पारिभाषिक शब्द) ऐसे हैं जिनका अर्थ बोध व्याख्या द्वारा ही कराया जा सकता है। जैसे 'ध्वनि' एक सामान्य शब्द है किन्तु भाषा वैज्ञानिक अर्थ समझने के लिए ‘ध्वनि' की व्याख्या करना अपेक्षित है।
6. उपमान
- उपमान का अर्थ है 'सादृश्य'। एक वस्तु के सादृश्य पर दूसरी वस्तु का ज्ञान प्राप्त करना। जैसे 'गाय' के सादृश्य पर 'नीलगाय' या 'कुत्ते' के सादृश्य पर 'भेड़िया' शब्द का अर्थ जाना जा सकता है।
7. आप्तवाक्य
- महान, विद्वान, प्रसिद्ध सिद्ध लोगों के वाक्य भी अर्थबोध कराने में सहायक बनते हैं। व्यवहारिक जगत में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जिनसे हमारा प्रत्यक्ष बोध नहीं होता। जैसे आस्थावान लोगों का ईश्वर, नरक-स्वर्ग, आत्मा-परमात्मा और पुनर्जन्म जैसे शब्दों का अर्थबोध मुख्यतः धर्मग्रंथों के आप्तवाक्यों पर आधारित है।
8. प्रसिद्ध पद या ज्ञात का सानिध्य
- ज्ञात शब्दों के सानिध्य से भी कभी-कभी अज्ञात शब्द का अर्थ बोध हो जाता है। इसी प्रकार प्रसिद्ध पद के सानिध्य से उस वर्ग के अन्य शब्द जिसका अर्थ ज्ञात नहीं है, उसका भी अर्थ बोध हो जाता है। जैसे- एक वाक्य लें: शरबती से बासमती शब्द का अर्थ बोध हो जाता है। यहाँ 'बासमती' और 'चावल' प्रसिद्ध पद हैं। इनके सानिध्य से 'शरबती' का अर्थबोध सहज में हो जाता है कि वह भी एक प्रकार का चावल ही है।
पाश्चात्य विद्वानों ने अर्थबोध के तीन साधन बताए हैं-
1. निदर्शन अर्थात किसी वस्तु का प्रदर्शन कर शब्द विशेष का अर्थ बोध कराना। जैसे आम, अमरूद, कलम, कापी, घड़ी, पुस्तक आदि वस्तुएं दिखाकर इनसे सम्बद्ध शब्द का उच्चारण करके अर्थ बोध कराना।
2. विवरण में किसी वस्तु विशेष का विस्तार से विवरण प्रस्तुत करके अर्थ बोध कराना
3. अनुवाद के द्वारा भी अर्थ बोध होता है। जैसे - अहिंदी भाषी व्यक्ति को उसकी मूल भाषा में अनुवाद करके हिन्दी शब्दों का अर्थज्ञान कराया जाता है।
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