भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (Bhabha Atomic Research Center )
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की जानकारी
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित भारत की
प्रमुख परमाणु अनुसंधान केंद्र है एवं इसकी स्थापना 19 दिसंबर,1945 को की गई थी।
यह एक बहु-अनुशासनात्मक अनुसंधान
केंद्र है जिसमें उन्नत अनुसंधान और विकास के लिये व्यापक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध
है।
इसका प्रमुख उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के
शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के माध्यम से विदयुत उत्पादन करना है।
15 अप्रैल, 1948 को परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित किया गया तथा 10 अगस्त, 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र का इतिहास एवं वर्तमान
डॉ भाभा ने मार्च 1944 में सर दोरबजी टाटा टस्ट से भारत में
नाभिकीय अनुसंधान प्रारंभ करने के लिए संपर्क किया जिसके फलस्वरूप मुंबई में टाटा
मूलभूत अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई और इसका उद्घाटन 19 दिसंबर,1945 किया गया ।
15 अप्रैल, 1948 को परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित किया गया और दिनांक 10 अगस्त 1948 को परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की गई।
राष्ट्र के हित के लिए
नाभिकीय ऊर्जा क उपयोग संबंधी अध्ययनों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से परमाणु खनिज
प्रभाग द्वारा विरल खनिजों और यूरनियम निक्षेपो के विस्तृत सर्वेक्षण प्रारंभ किया
गया एवं विरल मृदा यौगिकों तथा थोरियम यूरेनियम निक्षेपों के रासायनिक संसाधन और
पुन: प्राप्ति हेतु दिनांक 18
अगस्त, 1959 को इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड की
स्थापना की गई।
परमाणु ऊर्जा आयोग द्वारा दिनांक 3 जनवरी,
1954 को परमाणु
ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे (ए ई ई टी) की शुरूआत की गई। दिनांक 3 अगस्त 1954 से प्राकृतिक संसाधन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय के अंतर्गत
कार्यरत परमाणु ऊर्जा आयोग को परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत लाया गया और डॉ. होमी
भाभा भारत सरकार की ओर से विभाग के सचिव बने।
परमाणु ऊर्जा विभाग सीधे प्रधान
मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नियंत्रणाधीन कार्यरत हुआ और तब से यह विभाग सीधे
उत्तरोत्तर प्रधान मंत्रियों के नियंत्रण में ही रहा है। रिएक्टर अभिकल्पन एवं
विकास, यंत्रीकरण, धातुकी एवं पदार्थ विज्ञान आदि के
क्षेत्रों में कार्यरत सभी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को उनके अपने कार्यक्रमों के
साथ टीआइएफआर से एईईटी में स्थानांतरित किया गया जो नवनिर्मित परमाणु ऊर्जा
संस्थान, ट्रॉम्बे का अहम् हिस्सा बने। टीआइएफआर
एक पूर्ण रूप से नाभिकीय विज्ञान में मूलभूत अनुसंधान कार्य करने की संस्था हो गयी
है।
परमाणु ऊर्जा संस्थान, ट्रॉम्बे को औपचारिक रूप से तत्कालीन
प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा दिनांक 20 जनवरी, 1957 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। उसके बाद प्रधान मंत्री इंदिरा
गांधी ने एईईटी को पुनर्नामित कर दिनांक 12
जनवरी, 1967 को इसका नाम भाभा परमाणु अनुसंधान
केंद्र रखा जो डॉ. होमी भाभा की दिनांक 24
जनवरी, 1966 को हवाई दुर्घटना में हुई मृत्यु के
पश्चात उनको हमारी विनम्र श्रद्धांजलि थी।
परमाणु ऊर्जा संस्थान, ट्रॅम्बे ने विज्ञान जगत में एक
विशिष्ट नाभिकीय अनुसंधान संसथान के रूप में अपनी पहचान बना ली थी जहाँ नाभिकीय
रिएक्टर अभिकल्पन एवं स्थापन, ईंधन
संविरचन, नि:शेष ईंधन का रासायनिक संसाधन के
क्षेत्रों में उच्च स्तरीय अनुसंधान एवं विकास कार्य जारी रहने के साथ-साथ
चिकित्सा, कृषि एवं उद्योगों में रेडियोआइसोटोपों
के अनुप्रयोग तकनीकों के विकास में पर्याप्त निपुणता प्राप्त की गई है।
नाभिकीय
भौतिकी, वर्णक्रमदर्शिकी, ठोस अवस्था भौतिकी, रसायन एवं जीवन विज्ञान , रिएक्टर इंजीनियरी, यंत्रीकरण, विकिरण संरक्षा एवं नाभिकीय चिकित्सा
आदि के क्षेत्रों में मूलभूत एवं प्रगत अनुसंधान कार्य आदि तेजी से चल रहे थे।
संक्षेप में, भापअ केंद्र द्वारा मूलभूत प्रयोगशाला
बेंच स्केल अनुसंधान से लेकर संयंत्र प्रचालन तक व्यापक वैज्ञानिक एवं
प्रौद्योगिकी गतिविधियों तक व्यापक सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इसकी कार्यात्मक
गतिविधियों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी - पारंपरिक विचारों से लेकर नवोदित
क्षेत्रों तक सभी विषय शामिल हैं।
इस संस्था का मूल अधिदेश है - विद्युत उत्पादन
तथा नाभिकीय ऊर्जा के शंतिमय प्रयोग हेतु आवश्यक सभी अनुसंधान एवं विकास सहायता
प्रदान करना। इसमें पेरिफरल कंपोनेन्ट्स, कंप्यूटर
जनित कार्यशील प्रतिरूपों को तैयार करना तथा अनुकारित रिएक्टर प्रचालन की अवस्था
में उनका मूल्यांकन, एकीकरण, चयन एवं रिएक्टर प्रचालन, पर्यावरण
के विपरीत परिस्थितियों में जोखिम हेतु पदार्थों और घटकों का परीक्षण, नए रिएक्टर ईंधन पदार्थों का विकास एवं
जांच आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त भापअ केंद्र द्वारा भुक्तशेष ईंधनों का
रासायनिक संसाधन, नाभिकीय अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के
साथ-साथ उद्योग चिकित्सा एवं कृषि के क्षेत्रों में नए आइसोटोप अनुप्रयोग
प्रौद्योगिकियों का विकास आदि के लिए निपुणता प्रदान की जाती है।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में
भौतिकी, रसायनिकी एवं जैविक विज्ञानों में
प्रगत अनुसंधान कार्य को तीव्रता से आगे बढ़ाने का प्रयास जारी है ताकि देश को
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया जा
सके।
अत: भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र एक बहुमुखी संस्था है जहाँ स्वगृहे किये गये अनुसंधान के
परिणामों को विकासशील स्तर तक स्थानांतरित कर अतंत: सफलतापूर्वक निदर्शनों के
माध्यम से संबंधित क्षेत्रों तक पहुंचाया जाता है। प्रगत उपस्कर एवं यंत्र, सुचारू रूप से स्थापित प्रयोगशालाएं
अनुकूल परिस्थिति तथा विज्ञान एवं इंजीनियरी के सभी क्षेत्रों से निपुणता की
उपलब्धता भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की विशेषताएं हैं जो देश को ज्ञान एवं विकास के नये
क्षितिजों की ओर ले जाने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के संस्थापक
डॉ. होमी जहांगीर भाभा स्वप्नदृष्टा थे
जिन्होंने भारत के नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी । उन्होंने मुटठीभर
वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944
में भारत में नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान का कार्यक्रम प्रारंभ किया । उन्होंने
नाभिकीय ऊर्जा की असीम क्षमता एवं उसकी विद्युत उत्पादन एवं सहायक क्षेत्रों में
सफल प्रयोग की संभावना को पहचाना।
डॉ. भाभा ने नाभिकीय विज्ञान एवं इंजीनियरी के
क्षेत्र में स्वावलंबन प्राप्त करने के लक्ष्य से यह कार्य प्रारंभ किया और आज का
परमाणु ऊर्जा विभाग जो विविध विज्ञान एवं इंजीनियरी के क्षेत्रों का समूह है, डॉ. भाभा की दूरदृष्टि का परिणाम है।
अत: उन्हीं के शब्दों में कुछ ही दशकों में जब परमाणु ऊर्जा का विद्युत उत्पादन के
लिए सफलतापूर्वक अनुप्रयोग किया जाएगा तब भारत को विशेषज्ञों के लिए विदेशों की ओर
नहीं देखना पडे़गा बल्कि वे यहीं मिलेंगे।
डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने परमाणु
ऊर्जा विद्युत उत्पादन के लिए एक व्यवहार्य वैकल्पिक स्रोत में उच्च क्षमता को
पहचानते हुए मार्च, 1944 में भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम प्रारंभ
किया।
यह डॉ. भाभा की दूरदृष्टि ही थी जिसके कारण भारत में नाभिकीय अनुसंधान को उस
समय प्रारंभ किया जब ओटो हान एवं फ्रिट्ज स्ट्रॅसमैन द्वारा नाभिकीय विखंड़न के
चमत्कार की खोज की जा रही थी एवं तत्पश्चात एन्रिको फर्मि व साथियों द्वारा
अविच्छिन्न नाभिकीय श्रंृखला अभिक्रियाओंे की व्यवहार्यता के बारे में रिपोर्ट
किया गया। उस समय बाहरी विश्व को नाभिकीय विखंडन एवं अविच्छिन्न श्रृंखला
अभिक्रिया की सूचना न के बराबर थी। परमाणु ऊर्जार् पर आधारित विद्युत उत्पादन की
कल्पना को कोई मान्यता देने के लिए तैयार नहीं था।
डॉ. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और
प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक एवं निपुण कार्यकारी थे।
वे ललित कला एवं संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी और लोकोपकारी थे। डॉ. भाभा द्वारा
भारतीय परमाणु ऊर्जार् कार्यक्रम के प्रति अपनाया गया सही मार्ग विश्व के बेहतरीन
स्तरों में से एक है। परमाणु ऊर्जार् विभाग के सदस्यों और सारे देश के लोग इस महान
वैज्ञानिक को नमन करते हैं और आने वाले वर्षों में भी उनके द्वारा चुने गए मार्ग
पर चलने की पुन: प्रतिज्ञा करते हैं।
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