महिला सशक्तिकरण के आयाम|महिला सशक्तिकरण क्यो आवश्यक है |Women Empowerment Why in HIndi

महिला सशक्तिकरण के आयाम, महिला सशक्तिकरण क्यो आवश्यक है ?

महिला सशक्तिकरण के आयाम|महिला सशक्तिकरण क्यो आवश्यक है |Women Empowerment Why in HIndi



महिला सशक्तिकरण के आयाम

 

महिलास शक्तिकरण की अवधारणा को विस्तार से समझने के बाद अब प्रश्न उठता है कि महिला को सशक्त कैसे बनाया जाये। महिला सशक्तिकरण की अवधारणा को समझने के क्रम में हम यह जान चुके हैं कि यह एक बहुआयामी अवधारणा है, केवल एक दिशा में प्रयत्न करने से वांछित सफलता मिलना कठिन है। यथार्थ में महिला को सशक्त बनाने के कई आयाम, कई दिशाऐं, कई प्रकार हो सकते हैं। कुछ प्रमुख आयामों को हम यहाँ विस्तार से स्पष्ट करने का प्रयत्न कर रहे हैं, किन्तु यह भी विचारणीय प्रश्न है कि महिला सशक्तिकरण क्यों आवश्यक है? इसके अभाव में समाज को क्या दुष्परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं।

 

महिला सशक्तिकरण क्यो आवश्यक है ?

 

  • किसी भी संतुलित समाजिक व्यवस्था के लिए विकास के क्षेत्र में स्त्री-पुरुष दोनों की समान भागीदारी आवश्यक है। इस मॉड्यूल में महिला सशक्तिकरण के पीछे पुरुष या महिला की श्रेष्ठता साबित करना लक्ष्य नहीं है, अपितु उन उपायों को सुनिश्चित करने की पहल करना है जिससे विकास मानकों की प्राप्ति में महिलाएँ और पुरुष बराबर योगदान कर सकें। वातावरण लिंगभेद से रहित परस्पर पूरकता का हो। इस दृष्टि से महिला सशक्तिकरण के अनेक ऐसे आयाम हैं जिन पर प्रेरित और प्रोत्साहित करने से महिला सशक्तिकरण की दिशा में वांछित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। आइये, सशक्तिकरण के कुछ आयामों को उनके महत्व को समझने स्पष्ट करने का प्रयत्न करते हैं. 

 

महिला सशक्तिकरण के आयाम

 

महिला सशक्तिकरण को समझने के लिए इसके विभिन्न आयामों को समझना आवश्यकता है। इस धारणा के मूल में स्त्री-पुरूष को एक दूसरे का पूरक समझते हुए समतामूलक व्यवस्था विकसित करने की भावना निहित है। इस प्रक्रिया के अनेक आयाम हैं, जैसे - 

  • शैक्षिक 
  • स्वास्थ्य 
  • भावनात्मक 
  • स्वास्थ्य 
  • आर्थिक 
  • राजनैतिक 
  • आर्थिक 
  • सामाजिक 
  • विधिक 

 

शैक्षिक सशक्तिकरण

 

  • एक सुशिक्षित महिला अपने ज्ञान से अपने परिवार को प्रकाशित करने के साथ-साथ स्वयं भी आत्मविश्वास से परिपूर्ण होती है। संतान की प्रथम गुरु अर्थात उसकी माता यदि सुशिक्षिता हो तो भावी पीढ़ी के शिक्षित होने की संभावना कई प्रतिशत बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त सामाजिक विसंगतियों से लड़ने का एक मात्र हथियार भी शिक्षा ही है, इसके इस्तेमाल से स्त्रियां परिवार तथा समाज में सम्मान के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता भी प्राप्त कर सकती हैं। 


  • ध्यान रखने योग्य बात यह है कि शिक्षित स्त्री परिवार के महत्वपूर्ण फैसलों में अपनी राय देने के साथ-साथ निर्णय प्रक्रिया में भी भागीदारी कर सकती है। आज यह सकारात्मक परिवर्तन प्रत्येक समाज में देखा जा रहा है। लोग बच्चियों को पढ़ाने में रूचि लेने लगे हैं। आवश्यकता यह है कि उनके युवा होने पर भी यह रूचि बनी रहे तथा पढ़ाई समाप्त होने पर ही उनके विवाह की चर्चा हो ।

 

शारीरिक / स्वास्थ्य सम्बन्धी सशक्तिकरण

 

  • इसका अर्थ बॉडी बिल्डिंग अथवा अखाड़े में उतरना नहीं है। इस सशक्तिकरण का अभिप्राय स्त्रियों के स्वास्थ्य से जुड़ा है। कभी सबको खिलाकर सबसे पीछे खाने की परम्परा तो कई बार जीरो फिगर की चाहत के कारण वह उपयुक्त आहार नहीं ले पाती हैं। जिसके कारण शरीर कमजोर तथा रोगी हो जाता है। शरीर से कमजोर महिलाएं प्रायः गर्भवती होने पर अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त हो जाती हैं। 


  • कमजोर माँ की संतान भी कमजोर होती है और उसका जीवन रोगों से संघर्ष करने में बीतता है, उसका स्वस्थ विकास नहीं हो पाता, जिससे उसका पूरा जीवन और एक पूरी पीढ़ी प्रभावित होती है। रोगिणी स्त्री अपना अथवा अपने परिवार का ध्यान रखने में भी असमर्थ होती है। ऐसी स्त्रियां योग्य होने के बाद भी प्रगति नहीं कर पातीं हैं। इसलिए इन्हें अपने खान-पान पर ध्यान देते हुए स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिये। हम सभी जानते हैं जान है तो जहान है। 


आर्थिक सशक्तिकरण 

  • आज के युग में सभी का स्वावलंबी होना आवश्यक है। महिलाओं को भी अपनी योग्यता के अनुसार अर्थोपार्जन हेतु सामने आना चाहिए। महिलाओं के आर्थिक रूप से सबल होने से परिवार में समृद्धि आती है, साथ ही वह अपनी कई इच्छाओं (पहनने-ओढ़ने, खाने पीने घूमने-फिरने) को अपनी मर्जी से पूरा कर पाती है। 

  • आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिला बुरे वक्त में किसी की मोहताज नहीं होती, उसे किसी के सामने अपने तथा अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ता। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए सरकारी अथवा निजी संस्थानों में नौकरी करने के अलावा स्त्रियाँ स्वयं का व्यवसाय भी कर सकती हैं। यदि पति अथवा पिता आर्थिक रूप से सम्पन्न हो तो भी अपनी रूचि के अनुसार कुछ काम अवश्य करना चाहिए ताकि वह स्वयं की योग्यता सिद्ध कर सकें तथा देश के विकास में अपना योगदान दे सकें।

 

सामाजिक सशक्तिकरण 

  • सामाजिक सशक्तिकरण प्रक्रिया की शुरूआत परिवार से होती है क्योंकि विभिन्न परिवारों के योग से ही समुदाय तथा समाज का निर्माण होता है। यदि परिवार में स्त्रियों के साथ समानता का व्यवहार हो तो वे स्वयमेव सामाजिक रूप से भी सशक्त हो जाएंगी। इसके लिए परिवार में पुत्र-पुत्री भेदभाव, घरेलू प्रबंधन में पत्नी को सेविका मानने की बजाय सहयोगिनी मानना, उनके साथ अभद्र व्यवहार अथवा अपशब्दों के प्रयोग पर पूरी तरह रोक लगाने के साथ समान व्यवहार करना आदि शामिल है। 
  • इस प्रक्रिया में समाज के बड़े-बूढ़ों का सहयोग तथा बाल्यावस्था से ही पुत्रों को अपनी बहन, माता तथा सड़क पर चलने वाली लड़कियों के साथ सम्यक व्यवहार करने की दीक्षा भी शामिल है क्योंकि व्यक्ति बचपन में जो भी अपने परिवार में देखता सुनता और समझता है, अधिकांशतः उसे ही युवा होने पर दोहराता है। 


  • साथ ही ऐसी परंपराएं जिसमें महिलाओं के निम्न अथवा हेय समझा जाता हो उसे बदलने में भी परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। उदाहरण के लिए एक बड़े घराने में बिटिया की शादी थी। उस शादी में लड़की की कुछ ही वर्ष पूर्व विधवा हुई बुआ जी भी आई थीं परंतु अलग थलग बैठी थीं। जैसे ही संगीत का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ लड़की के माता-पिता बुआ जी को लेकर आए और कहने लगे जब तक जसोदा नहीं नाचेगी तब तक संगीत का कार्यक्रम कैसे हो सकता है। सभी ने बुआ जी की तरफ देखा और अवाक हो गए। रंगीन धोती में बुआ जी को थामे कामता प्रसाद अपनी पत्नी के साथ खड़े थे। उसके बाद बुआ जी अपनी भतीजी की शादी में ऐसा नाची कि सभी दंग रह गए। बाद में कामता प्रसाद ने अपनी बहन का पुनर्विवाह भी कराया। 
  • इस उदाहरण में हमने देखा कि बदलाव की शुरूआत किसी एक परिवार से भी हो सकती है। धीरे-धीरे ऐसे अनेक परिवार मिलकर ही ऐसे समाज की रचना करेंगे जिसमें विधवा होने का अर्थ जीवन समाप्त होना नहीं माना जाएगा।

 

  • सशक्तिकरण के उपर्युक्त प्रकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा एक समुच्च्य के रूप में समाज पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। यद्यपि कुछ लोग कह सकते हैं कि पढ़ी लिखी अथवा आर्थिक रूप से सक्षम महिलाएं भी शोषित होती है इसलिए यह निरर्थक है। यहां समझना आवश्यक है कि सशक्तिकरण एक सतत् प्रक्रिया है। इसका प्रारंभ व्यक्ति से होता है तथा विलय समाज की विचारधारा के साथ होता है। वही विचारधारा उसे कालांतर में विकसित तथा पोषित करती है, जिसे हम प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में देखते हैं। उदाहरण के लिए आज से महज कुछ वर्ष पूर्व पेट्रोल पंप पर स्त्रियों को देखा जाना कौतुक की बात होती थी। आज समाज के लगभग सभी वर्गों में स्त्रियों द्वारा दोपहिया वाहन चलाने का चलन प्रारंभ हो चुका है। आज पेट्रोल पंप पर वाहन चालिका ही नहीं बल्कि वहां कार्य करने वाली महिलाएं भी दिखतीं हैं। इस चलन का प्रारंभ किसी न किसी व्यक्ति द्वारा किया गया होगा, जिसे समाज ने धीरे-धीरे स्वीकारा तथा अब यह चलन के द्वारा पोषित हो रही है तो किसी को ऐतराज भी नहीं है।

 

विधिक सशक्तिकरण

 

  • भारतीय संविधान पुरुष और महिला को बराबरी का दर्जा देता है। संविधान की दृष्टि में दोनों समान हैं। स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं की दशा सुधारने के लिये अनेक प्रयास हुए हैं। इन प्रयासों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। पहली श्रेणी में वे प्रयास रखे जा सकते हैं जिन्होंने महिलाओं को शोषण और उत्पीड़न से मुक्त करने के लिये अनेक विधिक प्रावधान और कानून बनाये हैं। घरेलू हिंसा का कानून ऐसा ही एक महत्वपूर्ण कानून है। 


  • दूसरी श्रेणी में वे प्रयास आते हैं जिनमें नारी क्षमता की संवर्धन के लिए प्रोत्साहन की योजनायें बनाई गई। अपनी उन्नति और विकास के लिए महिला को उन समस्त विधिक आयामों का ज्ञान होना चाहिए जो उसे शोषण से मुक्ति दिलाने और अवसरों का लाभ उठाने के योग्य बनाते हैं।

 

राजनैतिक सशक्तिकरण

 

  • भारतीय स्वतंत्राता संग्राम में महिलाओं का अभूतपूर्व योगदान रहा है। देश के राजनैतिक परिदृश्य में महिलाओं की बराबर और प्रभावी भूमिका सुनिश्चित करने की दृष्टि से विभिन्न स्तरों पर महिला आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। स्थानीय और राष्ट्रीय निकायों के चुनाव में भी महिलाओं के आरक्षण की व्यवस्था है। इसका परिणाम यह होता है कि आज महिलायें राजनीति के क्षेत्र में भी अपनी योग्यता और परिश्रम से मानक स्थापित कर रहीं हैं। 


  • मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था में 50 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिये आरक्षित है, लेकिन वर्तमान में उससे अधिक संख्या में महिला प्रत्याशी निर्वाचित होकर राष्ट्र को अपनी सेवाऐं दे रहीं हैं। राजनैतिक जागरूकता और अवसर के आधार पर महिलाओं में बढ़ रही जागरूकता के दीर्घकालीन सकारात्मक परिणाम मिलना अवश्यंभावी है।

 

भावनात्मक सशक्तिकरण

 

  • यदि स्त्रियां शिक्षित तथा आर्थिक रूप से मजबूत हो तब भी अतिशय भावुकता के कारण कई बार गलत निर्णय ले बैठती हैं जिससे आगे चलकर उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। 


  • उदाहरण के लिए कोई बार-बार प्रताड़ित करे फिर से जोड़कर माफी मांग ले, भावनात्मक रूप से कमजोर कर अपनी नाजायज मांग पूरी करवा ले। इसे एक कहानी से समझा जा सकता है। सुनीता एक टाईपिस्ट है। वह एक युवक से प्रेम करती है, माता पिता को पुत्री की समझदारी पर कोई भाक नहीं था इसलिए वह भी आड़े नहीं आए। उस युवक में एक गलत आदत थी, वह क्रोधित होने पर सुनीता पर हाथ उठा देता था। पहली बार सुनीता भौंचक्की रह गई, उसने सोचा वह यह संबंध तोड़ देगी परंतु अगले ही दिन वह युवक उसके हाथ पैर जोड़ने लगा। परंतु कुछ ही दिन बाद दुबारा वह घटना हुई, इसके बाद यह सिलसिला चल निकला। हर बार वह युवक रो धोकर माफी मांग लेता और भावुक सुनीता उसे माफ कर देती। एक दिन उसकी मां ने समझाया कि बिटिया अन्याय सहना और प्रेम करना दो बातें हैं। तुम प्रेम करती हो इसका यह अर्थ कहीं नहीं है कि वह तुम पर अत्याचार करे। प्रेम करना गुनाह नहीं है फिर क्यों सजा भुगत रही हो। यह बात सुनीता के समझ में आ गई। अगली बार किसी छोटी सी बात पर जैसे ही उसके मंगेतर ने हाथ उठाया सुनीता ने कलाई पकड़ ली और कहा-आगे से हाथ उठाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। घर जाओ और तसल्ली से सोचो, अगर यह आदत नहीं छोड़ोगे तो मैं तुमसे शादी भी नहीं कर सकती। वह युवक हैरान था सुनीता की इस हिम्मत पर चूंकि वह भी सुनीता से प्रेम करता था इसलिए उसने यह गंदी आदत छोड़ दी। सुनीता ने दो साल बाद तसल्ली होने पर उससे शादी कर ली।


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