नारी विमर्श अर्थ एवं परिभाषा |Definition of feminism in Hindi
नारी विमर्श अर्थ एवं परिभाषा
'नारी विमर्श' की परिभाषा Definition of feminism
महिला विमर्श को पश्चिम और पूरब में
भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित किया है । पश्चिम की विद्वान इस्टेल फ्रडमेन ने निम्न शब्दों में परिभाषित किया है -
"Feminism is a belief that although women and men are inherently of equal worth, most ties privilege men as a group. As a result, social movements are necessery to achive political equality between women and men, with the understanding that gender always inter sects with other social heirarchies."
अर्थात् पुरुष एवं स्त्री सम महत्व रखते हैं। अधिकांश समाजों में पुरुष को वरीयता देते हैं । स्त्री - पुरुष समानता के लिए सामाजिक आंदोलन जरूरी है । क्योंकि लिंगाधारित अंतर अन्य अतः सामाजिक परंपराओं में प्रवेश करता है । जो हो यह निश्चित है कि यह चिंतन अन्याय के विरुद्ध है ।
संक्षेप में मिलिसेंट ग्रेरेट कहती हैं-
Faminism has as its goal give every women "The oppotortunity of lucaming the uest that her natural faculties wake her capablilties".
- कुछ लोग इसे पश्चिमी आविष्कार कहते हैं। मगर यह सही नहीं है । यह अत्यंत नाजुक और है गंभीर विषय है । इसे लेकर हमारे यहाँ पिछली आधी सदी से अलग वैचारिकता बनी है। कई बातें एक साथ आ जाती हैं ।
- एक तरफ चिंतन है जिसे वैचारिक दर्शन या सैद्धांतिक लेखन कहते हैं। दूसरी तरफ नारी चेतना का सारा प्रसंग है। नारी संगठन या नारीवादी आंदोलन है। यह बिलकुल अलग स्तर पर एक चीज है, जो बहुत पहले से चली आ रही है।
- तीसरे स्तर पर वह लेखन जहाँ रचनाकार क्या सोचता है, क्या करता है, किस तरह भाषा से अपनी बात कह लेता है। रचनाकार अपने लेखन पर अपनी बात कह लेता है। रचनाकार अपने लेबल पर अपनी तरह से सोचता है और कहता है। ये धरातल स्त्री को अलग-अलग तरह से केंद्रित करते हैं। उनके अपने अनुभव भी भिन्न होते हैं ।
- पुरुष समाज में पुरुष के बनाये नियमों के, उसके वर्चस्व के, स्त्री की अपनी निरीहता के विवशता के, कि वह अपने को उस जकड़न से, उन रूढ़ियों से, विपरीताओं से निकलने की कोशिश नहीं करती । अर्थात् स्त्री स्वभाव को समझने स्त्री विमर्श का महत्वपूर्ण लक्ष्य है । यह न कोई विचारधारा है, न पश्चिम का संस्कार । आज के बदलते समय में बदलती दृष्टि से हमें सोचने की जरूरत है । यह समय कुछ परंपराओं से मुक्त होने का है । मुक्त होने का अर्थ अपनी संस्कृति भूलना नहीं । एक है संतुलनात्मक लचीलापन आधुनिक सोच ही मुक्त होना है। जो स्त्री विमर्श में मिलता है ।
- इसमें रिश्ते भी है - केवल पति-पत्नी ही नहीं । परिवार में माँ के रूप में है, बहु है, बहन बेटी है। समाज में स्त्री ऐसा व्यक्ति है जिसके तार हर वर्ग से जुड़े हैं। यह प्रेम का रस सब ओर दिखता है। जोड़ता है उसे भरता है । इसी में एक रूप प्रेमिका का भी है। यह प्यार और संबंधों की चर्चा है जो नारी विमर्श को सही दिशा देता है ।
- इसमें एक रूप शोषण का भी आ जाता है । यह शोषण पति से हो सकता है, परिवार में हो सकता है । उसी प्रकार प्रेमिक से भी संभव है। समाज से भी बाहर जब नौकरी, प्रशासन, व्यवसाय करने समाज में आती है, कहीं भी वह शोषण का सामना करती है । इस शोषण की पीड़ा, अस्मिता का संघर्ष है जो नारी विमर्श का एक प्रमुख मुद्दा बनता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध एक दृष्टि भी वह नहीं सह पाती । यहाँ नारी का विद्रोही, संघर्ष रत रूप है जो नारी विमर्श में उभरा है।
- मतलब नारी विमर्श बहस का मुद्दा उतना नहीं जितना जागृति का है। यहाँ आधुनिकता संतुलित है । नारी से जुड़ी कुंठा है, समस्या है, उसे खुलासा करें, मार्ग स्पष्ट करें । मुख्यत: यह सब नारी विमर्श के अंतर्गत हैं।
Post a Comment