आपदा प्रबन्धनः बाढ़, भूकम्प, चक्रवात और भूस्खलन| Disaster management in Hindi
आपदा प्रबन्धनः बाढ़, भूकम्प, चक्रवात और भूस्खलन
आपदा प्रबन्धनः बाढ़, भूकम्प, चक्रवात और भूस्खलन
बाढ़, भूस्खलन, भूकंप एवं चक्रवात प्राकृतिक घटनाऐं हैं, किंतु मानवीय गतिविधियों एवं क्रिया कलापों के कारण इन आपदाओं की पुनरावृत्ति की दर में बढ़ोत्तरी हुई है।
(1) बाढ़:
- सामान्य रूप से नदियों में क्षमता से अधि पानी आ जाने से किनारे तोड़कर अथवा बांध तोड़कर, जब पानी शहरों, कस्बों, खेतों में चला जाता है तो इसे बाढ़ कहते हैं। विश्व के कुल क्षेत्रफल का 3.5% बाढ़ से प्रभावित मैदानी क्षेत्र जिस पर विश्व की 16% जनसंख्या रहती है।
- बाढ़ के मुख्य कारण प्राकृतिक है जैसे कम समय में एक ही क्षेत्र में लगातार अधिक वर्षा अथवा लंबे समय तक घनघोर वर्षा, नदी के प्रवाह में वर्षा के कारण अचानक ऊफान आना इत्यादि ।
- बाढ़ के मानवजनित कारकों में बड़ी नदियों के आस-पास के वनों की अंधाधुंध कटाई, जिससे भूमि की जल अवशोषण क्षमता में कमी आ जाती है, जिससे जल प्रवाह की रुकावट भी समाप्त हो जाती है एवं वर्षा का सारा जल तेजी से नदियों की ओर प्रवाहित होकर उनके स्तर में बढ़ोतरी कर देता है। इसी प्रकार शहरीकरण, पुल, बांध, नहरें इत्यादि को अवैज्ञानिक तरीकों से बनाने के कारण भी बाढ़ जैसी गतिविधियों में बढ़ोतरी होती है। कई बार बांधों व नहरों के अचानक टूट जाने के कारण भी बाढ़ आती है। हमारे देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल के गांगेय क्षेत्र व उत्तर पूर्व के ब्रह्मपुत्र क्षेत्र बाढ़ के लिए काफी संवेदनशील क्षेत्र माने जाते हैं, जहां प्रतिवर्ष बाढ़ का प्रकोप होता है।
- बाढ़ से इन क्षेत्रों में जो क्षति होती है वह देश में हुई कुल क्षति का लगभग 62% है। देश में प्रतिवर्ष बाढ़ से सार्वजनिक संपत्ति की क्षति लगभग 950 करोड़ रुपए होती है। जिससे लगभग 500 लोगों एवं 1 लाख पशुओं की मृत्यु होती है।
बाढ़ का प्रबंधनः
- बाढ़ ग्रसित क्षेत्र अधिकतर ज्ञात होते हैं। अतः बाढ़ प्रबंधन हेतु उन क्षेत्रों में स्थाई दीर्घकालीन योजनाओं की आवश्यकता है। जिस प्रकार राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम द्वारा देश देश की प्रमुख नदियों को जोड़ने की योजना प्रस्तावित की गई है, जिस पर कार्य आरंभ करने हेतु वैज्ञानिकों की समिति गठित हो चुकी है। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ही यह है कि प्रतिवर्ष कही बाढ़ तो कहीं सूखे की समस्या उत्पन्न न हो। बाढ़ क्षेत्रों में अधिक वृक्षारोपण व वन संरक्षण उपायों को बढ़ावा देना चाहिए तथा नदियों के निचले भाग में अभियांत्रिकी प्रयोगों के द्वारा बाढ़ नियंत्रण कुंड बनाकर नदी का उफान कम किया जा सकता है। नदियों के किनारे ऊँचे करके भी बाढ़ पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- अस्थाई उपायों में मानसून आने से पूर्व बाढ़ नियंत्रण केंद्रों की स्थापना, मौसम विभाग द्वारा संभावित इलाकों में चेतावनी, जन-धन की रक्षा हेतु उपाय, संचार व्यवस्था का आधुनिक प्रबंधन इत्यादि सम्मिलित है।
(2) भूकंप
- मुख्य रूप से प्राकृतिक कारणों के कारण भूमि में उत्पन्न हुई हलचल भूकंप कहलाता है। भूगर्भ में चट्टानीय विस्तार के कारण पैदा होने वाली हलचल एक बहुत बड़ी प्राकृतिक आपदा है। एवं इसकी तीव्रता रिएटर पैमाने पर मापी जाती है।
- भूकंप जिस बिंदु से शुरू होता है अर्थात् जहाँ से उत्पन्न होता है वह उसका केंद्र माना जाता है। इस जगह भूकंप की तीव्रता सर्वाधिक होती है एवं जैसे-जैसे केंद्र से दूरी बढ़ती जाती है भूकंप का प्रकोप कम होता जाता है, चूंकि तीव्रता में कमी आती जाती है। भूकंप के मुख्य कारण प्राकृतिक ही हैं, किंतु कई मानवीय गतिविधियाँ भी इसमें अपनी अहम भूमिका निभाती है जैसे- बड़े-बड़े बांधों के निर्माण से भूमि में हलचल पैदा होना, अथवा खाली पड़ी खदानों में भारी मात्रा में कचरे आदि को डालने से अथवा पानी के धीरे-धीरे जमीन में रिसने की प्रक्रिया कई वर्षों तक चले तो भी एक असंतुलन सा उत्पन्न हो जाता है एवं भूकंप जैसी घटनाओं में वृद्धि होती है।
- भूकंप से होने वाली क्षति भूकंप की तीव्रता पर निर्भर करती है। भारत में 26 जनवरी, 2000 को लातूर कच्छ से शुरू होकर गुजरात में तबाही मचाने वाले भूकंप की विनाशलीला को शायद ही भारत कभी भूल पाए। वह क्षेत्र आज तक वापस अपनी संतुलन अवस्था प्राप्त नहीं कर पाया है, वहां आज तक छोटे-छोटे झटके आते रहते हैं।
- भूकंप के विनाशकारी प्रभावों के रूप में, पहाड़ों से भूस्खलन, प्रचंड बाढ़, शहरों व नगरों की क्षति, मानव निर्मित संरचनाओं की क्षति व जन-धन की अपूरणीय क्षति इत्यादि शामिल है।
भूकंप का प्रबंधनः
1. भूकंप की आशंका वाले क्षेत्रों में खान, बांध बनाना इत्यादि कार्य वैज्ञानिकों की सलाह के बिना नहीं करने चाहिए तथा किसी भी चीज का निर्माण पूरी तरह वैज्ञानिकी तकनीक के अनुसार ही करना चाहिए।
2. भूकंप आशंकित क्षेत्रों में इमारतों का निर्माण आर०सी०सी० ढांचा बनाकर करना चाहिए। इससे अधिक नुकसान नहीं होता है।
3. प्राकृतिक आपदा प्रबंधन केंद्र तथा प्रशिक्षण आधुनिक तकनीकों से युक्त होना चाहिए।
4. जन-साधारण को भूकंप आने पर खुले मैदानों की तरफ आ जाना चाहिए तथा यह प्रशासन का दायित्व है कि उस क्षेत्र के लोगों को प्रारंभिक उपायों से अवगत कराऐं।
5. ऊँची इमारतों में कमरों के विभाजन, दरवाजे व खिड़कियां हल्की लकड़ी के बने होने चाहिए।
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(3) चक्रवाती तूफान:
- सामान्य रूप से गर्म उष्णकटिबंधी समुद्र के कम दबाव वाले क्षेत्रों में चक्रवाती तूफान की उत्पत्ति होती है। इसे पश्चिम उत्तर प्रशांत महासागर में टाइफून उत्तर अटलांटिक और मैक्सिको की खाड़ी में हरिकेन व बंगाल की खाड़ी व अरब सागर में चक्रवात या साइक्लोन कहते हैं।
- सामान्यतः चक्रवात की सामान्य गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। किंतु कभी-कभी यह प्रलयकारी हो जाता है व समुद्र किनारे के गांवों, शहरों, वन, जन धन की अत्यधिक क्षति का कारण बनता है। इसके प्रबंधन हेतु रेडार व भू-स्थैतिक निरीक्षक उपग्रहों द्वारा सूचाओं के आधार पर समय पूर्व जन सामान्य को चेतावनी, मछुआरों को समय पूर्व सूचना का इंतजाम, प्रशासन द्वारा क्षेत्र को खाली करवाना आदि आवश्यक सावधानियाँ हैं। इसके साथ ही ऐसे में अन्न भंडार, दवा उपलब्धता, जन साधारण को आपदा संबंधी ज्ञान इत्यादि का भी पूरा प्रबंधन होना चाहिए।
- समुद्र के किनारों पर वनों के विकास द्वारा, वायु के वेग को रोका जा सकता है।
(4) भूस्खलनः
- पर्वतीय क्षेत्रों में विशाल चट्टानों के खिसक कर भूमि पर आ जाने को भूस्खलन कहते हैं। भूस्खलन एक प्राकृतिक आपद है, किंतु कई मानवीय गतिविधियां जैसे खनन के समय ढाल का ध्यान न देना, पहाड़ी इलाकों में बांधों का निर्माण इत्यादि भी इसमें योगदान देते हैं।
- प्राकृतिक रूप से भूकंप के कारण भी चट्टानें ढीली होकर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव द्वारा नीचे की ओर खिसक जाती है।
- भारत में कुमाऊँ की पहाड़ियाँ, जम्मू कश्मीर, पश्चिमी घाट, दक्षिण भारत में नीलगिरी की पहाड़ियाँ उत्तर पूर्व के पहाडी भाग आदि में भूस्खलन की घटनाऐं होती हैं। इसके प्रबंधन हेतु घनघोर वर्षा के दिनों में जनमानस को भूस्खलन की चेतावनी, इन क्षेत्रों में बड़े बांधों के निर्माण को मान्यता न देना, ढालों की सुरक्षा हेतु उन पर वनस्पति को उगाना आदि प्रयासों को अपनाना चाहिए।
- आपदा होने पर प्रबंधन केंद्रों पर आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे मुख्य मार्ग से चट्टानें हटाई जा सके। परिवहन फिर से सुचारु रूप से चल सके, फंसे लोगों को सुरक्षित रूप से बाहर निकाला जा सके। प्रशासन को आपदा ग्रसित लोगों हेतु जनसहयोग से भोजन, शरण, स्वास्थ्य आदि की उचित व्यवसथा भी करनी चाहिए।
पर्यावरणीय क्षरण (प्रदूषण) |
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